Monday, August 24, 2015

In The News (34)



अखण्ड प्रदेशको अडान लिएका ओली र देउवालाई बाबुरामको चेतावनी
उहाँले ट्विटरमा लेख्नुभएको छ-‘हाम्रा पूर्व र पश्चिमका शेरहरु अलि लचिलो बनेर थारु, मधेसी, जनजाति, महिला, दलितलाई साथ लिदैं छिटो संविधान जारी गर्नु बेश होला, नत्र अनिष्ट होला !’
तराई बन्द जारी रहे उपत्यकाको खाद्यान्नले १५ दिनसम्म मात्र पुग्ने
अझै केही दिन बन्द कायम रहे खाद्यान्न, इन्धनलगायतको आपूर्तिमा केही समस्या हुने सम्भावना छ । ...... व्यवसायीका अनुसार हाल उपत्यकालाई आवश्यक पर्ने खाद्यान्न मौज्दात समग्रमा १५ दिनलाई पुग्ने छ । ‘उपत्यकाका गोदाममा एक महिनालाई पुग्ने चामल छ,’ खाद्य किराना व्यापार संघका अध्यक्ष देवेन्द्रभक्त श्रेष्ठले भने, ‘तत्काललाई आत्तिहाल्नुपर्ने अवस्था छैन । अन्य खाद्यान्न पनि १५ दिनजतिलाई पुग्छ ।’

Kailash Mahato

भारतीय विदेशसचिव राजनीतिक भेटवार्तामा व्यस्त
काँग्रेसको क्रियाशील सदस्य छ लाखसम्म पुग्नसक्ने
बाह्रौँ महाधिवेशनमा काँग्रेसको क्रियाशील सदस्यको सङ्ख्या तीन लाख १७ हजार रहेको थियो । ..... पुराना क्रियाशील सदस्यमध्ये दुई लाख ५० हजार सदस्यको नवीकरणका लागि आवेदन परेको थियो
थरुहटका सभासदलाई भीम रावलको कडा जवाफ
जनतालाई भड्काएर संसदमा नउफ्रीन चेतावनी
थरुहट तराई पार्टी नेपालका गङ्गा चौधरी (सत्गौवा)ले लगाएको आरोपको खण्डन गर्दै नेता रावलले थारु समुदायलाई विशेष अधिकार दिइने बताउँदै उनले जनतालाई भड्काएर संसदमा नउफ्रीन चेतावनी दिए । चौधरीले आइतबारको बैठकमा नामै किटान गरे सुदूरपश्चिमका शेरबहादुर देउवा र भीम रावलले थारुहरुको अधिकार खोसेको भनी अमर्यादित ढङ्गले आक्षेप लगाएका थिए ।
‘कैलालीका थारु आन्दोलनकारीलाई सशस्त्रका डीआइजी खडानन्द चौधरीको सहयोग ?’
कैलाली घटनाबारे जानकारी दिँदादिँदै प्रधानमन्त्री कोइराला संसदमा रोए
‘उत्तेजना होइन, साम्प्रदायिक र धार्मिक सद्भाव कायम गरौँ’
बोल्दाबोल्दै आफूलाई थाम्न सक्नुभएन् । एकछिन प्रधानमन्त्रीले रुँदै सबैलाई भावुक बनाउनुभयो । संसदमा सान्नटा छायो । व्यवस्थापिका–संसद्को आजको बैठकमा करिब १ मिनेटसम्म रुनुभएका प्रधानमन्त्रीले घटनामा संलग्न जो सुकैलाई पनि कारवाही गरिने बताउनुभयो ।
मधेशको तीन जिल्लामा सेना परिचालन
सर्लाही, रौतहट र कैलाली
टिकापुरमा ३५ जनाभन्दा बढी मारिएको दाबी, संख्या बढ्दै
स्थानीय पत्रकारहरुका अनुसार प्रहरी र प्रर्दशनकारीसहित करिब ४० जना मारिएको हुन सक्छन् । ..... स्थानीय प्रहरीले विभिन्न स्थानबाट लासहरु संकलन गरिहरेको प्रहरी कार्यालयले जनाएको छ । ....... घाइतेहरुको टीकापुर अस्पतालमा उपचार भइरहेको छ । घाइतेहरुले अस्पताल भरिएको छ ।
पृथ्वीनारायणशाह ने ही मधेशियों को अपने सेना मे रखना बन्द कर दिया था : कैलाश महतो
यत्त मधेश नही, अब आजाद मधेश ही अन्तिम विकल्प है । .....

प्राचिन और मध्य इतिहास के अनुसार वर्तमान मे कहे जानेबाले नेपाल तथा उससे पहले के सत्यबति, साङृला, नागदह या बाद के काठ्मान्डु समेत के शासन कर चुके मधेशियो

को तत्कालिन नेपाल पर कायर्तापूर्ण आक्रमण कर गोर्खा से राज्य बिस्तार कर के नेपाल को अधिनस्थ करनेबाले नव नेपालियो ने नेपाली सेना, प्रहरी तथा प्रशासनो के अङो मे सामेल और समावेश करने करबाने मे अघोशित प्रतिबन्ध क्यू लगा दिया ? ........ जाहेर है कि

मधेशी राजा तथा उनके सिपाहियो से गोर्खाली पृथ्वीनारायण शाह कभी लडाई के खुल्ले मैदानो मे जित नही पाया था

। और जब काठमांडू के कुछ गद्दारों के षड्यन्त्र के कारण पृथ्वीनारायण शाह ने रात के समय तत्कालिन नेपाल के राज्यो पर कब्जा कर लिया | उसके बाद मधेशियो को अपने सेना मे रखना बन्द कर दिया, क्योंकि

मधेशियो के लडने की कौशलता से पृथ्वीनारायण शाह घबराए हए थे

, और आज पर्यन्त वही रणनिती को कायम रखकर मधेशियो को नेपाली सेना मे नही स्विकार किया जाता है । वो रणनिती सिर्फ गोर्खालियो के लिए मधेशियो से डर का ही कारण नही, अपितु मधेशियो के प्रति बदले समेत की भावना रही थी । .......... वह खस गोर्खाली शासक्, जिसने मधेशियो के राज्यो को बिना जिते कब्जा किए हुए राज्य के बासियो को सेना लगायत के राज्यके प्रमुख अङो से बहिस्कृत कर सदियो से अपना गुलाम समझा, क्या अभी के सघियता समर्थित एवम पक्षधर मधेशी राजनीतिक पार्टियो के आन्दोलनो से मधेश या मधेशियो को कुछ खास दे सकते है ? बिल्कुल नही । क्योंकि राज्य और राज्य सन्चालको की नियत वही पृथ्वीनारायण और महेन्द्र की है । दुसरा, जैसे तत्कालिन नेपाल के जयप्रकाश मल्ल तथा अन्य मधेशी राजाओ से छल और चोरीपूर्वक उधार मे ही उनके राज्यो को राज्य धर्म के खिलाफ कब्जा किया गया, ठीक उसी प्रकार बिना कोई लडाई या विजयपूर्ण कार्यो से ही मधेश मध्य देश के विशाल भूभागो: क्रमश: सन १८१६ और सन १८६० मे कोशी नदी के सीमा से राप्ती नदीतक तथा राप्ती नदी से महाकाली नदीतक अग्रेंजों से ठेक्का तथा उपहार मे पया था, जो कानुनतह तथा राज्यतह गलत है, जिसको कानुनपूर्ण एवम खास करके दुसरे विश्वयुद्ध के बाद के विश्व को मन्जुर नही हो सकता ।

मधेश के २३०६८ वर्ग किलोमिटर क्षेत्रफल का जमिन न भारत का है, न तो नेपाल का है । यह विशाल भूमि मधेशियो का है जिसका प्रमाण बृटेन की महारानी एलिजाबेथ की डा- सि- के- राउत को लिखी पत्र से भी अवगत होता है । उसी तरह सन्युक्त राष्ट्रसघं के महाचार्टर के बुन्दा न- ८३ अनुसार भी मधेश नेपाल मे न होने का तथ्य प्रमाणित होता है ।

........... २०६२-६३ से लेकर आजतक के मधेश आन्दोलन से नेपाली सरकार, उसकी प्रशासन तथा उसके सत्ताधारी समेत हैरान एवम परेशान है और वे कही न कही जयप्रकाश मल्ल ठाकुर, नान्यदेव, हरिसिंह देव, मुकुन्द सेन लगायत के मधेश के समृद्ध राजाओ की गरीमा, प्रसिद्धी तथा उनके वीरता को पूनर्जागरण से डरने लगे है और उन्ही डरो से बचने के लिए ए खस नेपाली लोग त्रसित है और मधेशी सेनाओ से घबाराए हुए पृथवीनारायण के तरह ही उनके उपशासक लोग भी त्रशित है और इसिलिए वे पृथवीनारायण के तरह ही मधेशियो को अपने राज्य से अलग थलग रखने के साजिस के तहत उन्हे उनके अधिकार या उनके साथ किए गए सम्झौते के अनुसार भी उनको प्रान्त या अधिकार देना नही चाह्ते है ।

मधेशियो के वीरता से वे डर रहे है ।


१- मधेशियो को सेना मे समावेश नही होने दिया गया ।
२- मधेशियो के जमीन को अपने भाई भारदारो तथा कर्मचारीयो मे वितरण किया शासको ने ।
३- मधेश के जल, जमीन तथा जङलो पर कब्जा किया गया ।
४- मधेश की भाषा तथा संस्क्रती को नष्ट करने की रणनीती अपनाई गयी ।
५- मधेशी मनोविज्ञान को नेपाली मनोविज्ञान के सामने तुच्छ दिखाने की कोशीश की गयी ।
६- जङ बहादुर द्वारा प्रयोग मे लाए गए नेपाल के पहला नेपाली कानुन मुलुकी ऐन १९१० के धारा १७३ मे मधेश के कोई भी जमीन मधेशियो द्वारा बेचे जाने पर वह जमीन खरीदने का पहला अधिकार कोई पहाडी नेपाली को दिया गया ।
७- मधेश के हरेक अड्डा अदालत तथा सरकारी- गैरसरकारी कार्यालयो मे पहाडो से पहाडियो, खास करके खस नेपालियो को लाकर नौकरी दिया जाने लगा जो आजतक कायम है ।
८- मधेश के हरेक भन्सारो को कब्जा किया गया ।

९- मधेश की जमीनो से बहने बाली नदियो से मधेश के जमिनो को सिचाई करने से रोकने की योजना मुताबिक उन नदियो को विदेशी हाथो मे बेच दिया गया ।


१०- मधेशी किसानो को कृषी उत्पादन के सामगृयो से दुर रखकर उनके कृषी क्षमता को नष्ट किया गया ।
११- कृषी उत्पादन के लिए किसानो को भारतीय बजारो से भी मलखाद तथा अन्य कृषी सामग्री लाने देने मे बन्देज लगाया गया ।
१२- मधेशियो के समान्य दैनिक अत्यावश्यक वस्तुओ को उनके दैनिक प्रयोग समेत के लिए लाने देने मे रोक लगाया गया ।

१३- सीमा सुरक्षा के नाम पर चालीस हजार की संख्या मे रहे शसस्त्र प्रहरी बल को मधेश के हरेक एक से दो किलोमीटर के दुरी पर ३३ हजार शसस्त्र प्रहरी को रखकर मधेश के हरेक गाव तथा टोल मे अत्याचार करबाया जाता है ।


१४- मधेश की भूमि पर अनावश्यक नेपाली सेनाओ का क्याम्प बैठाकर मधेशियो मे दहसत फैलाया जाता है ।
१५- मधेश के १५% भूभाग पर पहाडो से लाखो लोगो को योजनाबद्ध धङ से लाकर नेपालियो का उपनिवेष खडा करने की रणनिती को कायम रख कर तृपन्न प्रतिशत से ज्यादा लोगो की बास स्थान बना गया है और पहाडो से आज और अभी भी लोगो को मधेश मे लाने का काम जारी है ।

१६- मधेश का ७२% से ज्यादा जमीन उन पहाडियो के नाम दर्ज है जिनको मधेश मे औपनिवेषिक शासन तथा मधेशियो को लुटने के अलावा और कोई मधेशियो के हित्त मे कुछ करना नही है ।


१७- मधेश के युवाओ को विदेश भेजकर मधेश के जमिन तथा परिवारो को बन्जर बनाया जा रहा है ।
१८- मधेश मे नए नए उल्झन तथा आपसी द्वन्द फैलने बाला गुरू योजनाओ को लाकर औसतन मधेशियो को आपस मे लडाभिडाकर मधेशियो को लुटने का नया नया तरीका अपनाया जा रहा है ।
१९- मधेश के शिक्षा को ध्वस्त बनाया जा रहा है ।
२०- मधेश मे चुनाव के नाम पर लोगो को विभिन्न तरीको से खरीद कर चुनावो को गुन्डा राज को स्थापना किया जा रहा है, आदी ।
अब प्रान्तिय मधेशी राज्य से मधेश की समस्या सुलझाने के विपरीत उलझने की अवस्थाअ निश्चित होने के कारण स्वायत्त मधेश नही, अपितु अब आजाद मधेश ही अन्तिम विकल्प है ।
सह- सन्योजक्, स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन

काठमाण्डु त झिलिमिली हुने भो

मेलम्ची बाट खानेपानी। तराई सम्म फ़ास्ट ट्रैक। निजगढ़मा दोस्रो विमानस्थल। पेट्रोल पाइपलाइन। काठमाण्डु त झिलिमिली हुने भो त। बिहार को पटना मा पनि Service Sector बड़ो फस्टाई रहेको छ। वायु प्रदुषण तर tackle नगरे बिजोग छ।



जनजाति सभासदले नै मस्यौदा जलाउने
संविधानमा आदिवासी जनजातिका अधिकार समेट्न दवाव दिँदै आएका आदिवासी जनजातिले आज दिउँसो राजधानीको दुई मुख्य चोकमा संविधानको मस्यौदा जलाउने भएको छ । .... सात प्रदेशको सीमांकनमा आदिवासी जनजातिका अधिकार नसमटेटिएको भन्दै आदिवासी जनजाति महासंघको नेतृत्वमा आज दिउँसो ३ बजे चावहिल र कलंकी चोकमा मस्यौदा जलाउन लागेका हुन् । ...... आदिवासी जनजाति महासंघका अध्यक्ष तथा सभासद नगेन्द्र कुमाल र महासचिव तथा सभासद पेम्बा भोटेको नेतृत्वमा मस्यौदा जलाउन लागिएको हो ।
तराई दु्रतमार्गपछि पेट्रोलियम पाइपलाइन काठमाडौँसम्म विस्तार गरिने
गत वैशाखको ‘गोरखा भूकम्प’पछि ..... रक्सौलदेखि अमलेखगन्जसम्म निर्माण हुने पेट्रोलियम पाइप लाइनले नेपालको आर्थिक विकासलाई सघाउने उल्लेख गर्दै काठमाडौँ–तराई दु्रतमार्ग बनेपछि पेट्रोलियम पाइपलाइन काठमाडौँसम्म विस्तार गरिने

Jaffnaization Of Madhesh Is Not Possible, Technically Speaking

Jaffnaization Of Madhesh Is Not Possible, Technically Speaking

  • Madhesis are not immigrants. We did not come to work on your tea plantations. It is the Khas who are all immigrants, some from six years ago, some from 600 years ago, but immigrants all. The Madhesis and the Janajatis are the natives. And together they make up two thirds of the population. You simply don't have the arithmetic. 
  • For the first time the Madhesi-Janajati have come together. 
  • Nepal is not an island. It is not even land locked. It is an India locked country. 
  • Bihar and Uttar Pradesh will not stand still if there is even the remotest hint Jaffnaization is being attempted. Kathmandu will go hungry. 
  • The worst case scenario are ethnic Pahadi-Madhesi riots across the plains. And that is bad enough. It would be purely unnecessary. That the Madhesis will not be the losing party in Madhesh is a moot point. Riots are wrong, pure and simple. But the Chari-Ghainte government is doing everything possible to bring them about. They want to fan the flames because they think that will prolong their stay in power. Wrong! Start counting your days. 
  • A more likely scenario is a people's movement like in April 2006 that also enfulfs Kathmandu and boots the Chari-Ghainte coalition government out of power. A new Madhesi-Janajati interim government comes into power and orders elections to a new constituent assembly, and this time the Nepal Army is ordered not to interfere. This is not Pakistan. You will stay in your barracks. 











CK Lal Is Mind Boggling Brilliant

Not only is he the best political analyst in Nepal, he is as good as any political columnist anywhere in the world. And I read top global magazines routinely.



सदभावना सभासदको राजीनामा, मधेसमा भव्य स्वागत
मधेसभरी राजीनामाको सराहना भएको छ र पार्टीका नेता सभासदको भव्य स्वागत पनि गरिएको छ | अन्य मधेसी पार्टीका नेताहरुले पनि सदभावनाको कदमबाट सिक्दै तुरुन्तै राजिनामा दिनुपर्ने मधेसी युवाहरुले दवाव दिईरहेका छन् | ..... मधेसमा जारी अनिश्चितकालिन आमहड्ताल यस अघि सरकारले मधेसी पार्टीहरुसंग विभिन्न आन्दोलनका क्रममा गरेका सम्झौताहरु लागु नगरेसम्म नरोकिने मधेसी नेताहरुले बताएका छन् | आन्दोलनमा मधेसी जनताको उल्लेख्य सहभागिता बढ्दो छ भने मधेस पूर्ण रुपले प्रभावित भएको छ |


कसरी चलेका छन् ठूला पार्टी?
कांग्रेसले नयाँ क्रियाशील सदस्यता शुल्क दुई सय र नवीकरणमा सय रुपैयाँ लिने गरेको छ । १२औँ महाधिवेशनमा कांग्रेसका क्रियाशील सदस्य तीन लाख १७ हजार थिए । १३औँ महाधिवेशनमा क्रियाशील सदस्य संख्या दोब्बर पुर्‍याउने कांग्रेसको लक्ष्य छ । ....... कांग्रेस विधानमा हरेक वर्ष सदस्यता नवीकरण गर्नुपर्ने उल्लेख छ । ...... कांग्रेसले तीन लाख १७ हजार पुराना सदस्यबाट सदस्यता नवीकरणस्वरूप तीन करोड १७ लाख रुपैयाँ शुल्क उठ्ने जनाएको छ । अनुमान गरिएअनुसार क्रियाशील सदस्य बढेर दोब्बर पुगेमा नयाँ सदस्यबाट प्रतिसदस्य दुई सयका दरले ६ करोड ३४ लाख रुपैयाँ उठ्नेछ । तर, नयाँ सदस्यको दुई सयमध्ये एक सय २० रुपैयाँ जिल्ला, क्षेत्र र गाउँमा तथा बाँकी ८० रुपैयाँ केन्द्रीय कार्यालयमा पुग्छ । ...... केन्द्रीय कार्यालयमा ८० रुपैयाँ मात्र नयाँ सदस्यबाट पुग्दा दुई करोड ५३ लाख ६० हजार हुनेछ । पुराना तीन लाख १७ हजार सदस्यको नवीकरणबाट उठ्ने शुल्क तीन करोड १७ लाख रुपैयाँसमेत जोड्दा कुल पाँच करोड ७० लाख रुपैयाँ सदस्यता शुल्कबाट उठ्ने कांग्रेसको अनुमान छ । ...... सविधानसभामा सबैभन्दा ठूलो दल कांग्रेसका दुई सय पाँच सभासद् छन् । सभासद्को लेबी प्रतिमहिना पाँच हजार रुपैयाँ तोकिएको छ । त्यसमध्ये प्रतिसभासद् एक हजार रुपैयाँ संसदीय दलमा जान्छ । बाँकी चार हजारका दरले सभासद्को लेबीबाट कांग्रेसले मासिक आठ लाख २० हजार रुपैयाँ आम्दानी गर्ने गरेको छ । ...... चुनावका वेला मात्र चन्दा उठाउने गरिएको ....... ‘चुनावका वेलाको चन्दा त्यतिवेलैको आर्थिक हिसाब हेर्ने समितिले खर्च गरेको हुन्छ ।’ तर, पार्टीको महाधिवेशनका वेलामा पनि कांग्रेसले चन्दा लिने गरेको एक केन्द्रीय सदस्यले बताए । उनले भने, ‘सदस्यता शुल्क र सभासद्को लेबीले मात्र खर्च पुर्‍याउन सकिँदैन । ठूला ठेकेदार र व्यापारीबाट चन्दा उठ्छ ।’ ........ कांग्रेस केन्द्रीय कार्यालयमा मुख्यसचिवसहित २४ कर्मचारी छन् । उनीहरूको तलबमा मासिक साढे पाँच लाख खर्च हुने ..... ६ वटा टेलिफोनको मासिक ३५ हजार, बिजुलीमा मासिक १५–१६ हजार खर्च हुने गरेको ....... कांग्रेसले केन्द्रीय कार्यालयमा बैठक, गोष्ठी, अतिथि सत्कारमा चियापान र खाजाका लागि खर्च गर्ने गरेको छ । केन्द्रीय समिति बैठक बसेको दिन बाहिरबाटै चिया र खाजा मगाउने गरिन्छ । तर, केन्द्रीय समिति वा अन्य बैठक कार्यालयमा कमै मात्र बसेका छन् । प्रधानमन्त्रीमा निर्वाचित भएपछि सभापति सुशील कोइरालाले बालुवाटारमै बैठक डाक्ने गरेका छन् । कांग्रेसले नेतालाई तलब वा भ्रमण भत्ता भने दिँदैन । कतै जानुपरे आफ्नै खर्चमा वा आयोजकको खर्चमा जानुपर्ने ......... कांग्रेस कार्यालयमा अहिले एउटा स्कार्पियो गाडी छ । त्यो गाडी मुख्यसचिव तिवारीले चढ्ने गरेका .... सबैभन्दा धेरै पार्टीको महाधिवेशनमा खर्च हुने ........ महाधिवेशनमा करिब दुई करोडजति खर्च हुन्छ ..... ‘तीन हजारभन्दा बढी महाधिवेशन प्रतिनिधिका लागि खाना र आवासका लागि एक करोडभन्दा बढी लाग्छ ।’ ..... एक केन्द्रीय सदस्यले महाधिवेशनमा चारदेखि पाँच करोडसम्म खर्च लाग्ने बताए । खर्च जुटाउन चन्दा उठाउने गरिएको ....... संविधानसभाको दोस्रो निर्वाचनका वेला ०७० मा कांग्रेसको खातामा तीन करोड जम्मा भएको थियो । ...... टिकटसँग कांग्रेसले दुई सय ४० उम्मेदवारलाई एक–एक लाखका दरले चुनाव खर्च दिएको थियो । पछि पुन: सहयोग लिन आउने उम्मेदवारलाई थप खर्च दिइएको ...... सबै आर्थिक कारोबार चेक र भौचरबाट मात्र गर्ने गरिएको .... चेकमा कोषाध्यक्ष चित्रलेखा यादव, मुख्यसचिव ऋषिकेश तिवारी, महामन्त्री प्रकाशमान सिंह र लेखापालको हस्ताक्षर चल्छ । ........................................ एमालेको बजेट ६ करोड ... चालू आर्थिक वर्षमा एमालेले पार्टी सञ्चालनमा ६ करोड खर्च लाग्ने अनुमान गरेको छ । चालू आवमा ठूला कार्यक्रम र गतिविधि नहुने भएकाले बजेटको आकार धेरै नबढेको ..... केन्द्रीय सदस्यहरूलाई दिने तलब, कार्यालयका कर्मचारीको तलब, जनवर्गीय संगठनलाई सहयोग, स्थायी समिति सदस्यहरूको भ्रमण खर्च, दैनिक कार्यालय सञ्चालनमा स्टेसनरी, छपाइ, अतिथि सत्कार र अध्यक्षले स्वविवेकले गर्न पाउने खर्चलगायत जोड्दा ६ करोड रुपैयाँ खर्च हुने ..... एमालेले प्रत्येक सभासद्बाट मासिक १० हजार रुपैयाँ लेबी लिन्छ । अहिले संविधानसभामा एमालेका एक सय ८३ सभासद् छन् । उनीहरूबाट महिनाको १८ लाख ३० हजार अर्थात् वार्षिक दुई करोड १९ लाख ६० हजार रुपैयाँ लेबी जम्मा हुन्छ । ......... यसबाहेक

राजदूत, सार्वजनिक संस्थानलगायतका विभिन्न निकायमा राजनीतिक नियुक्ति पाएकाहरूबाट पनि मासिक तलबको १० प्रतिशत लेबी लिने गरिएको

........ प्रत्येक सदस्यले वर्षको ६० रुपैयाँ लेबी बुझाउनुपर्छ । यो वर्षको सदस्यसंख्या पनि दुई लाख ५८ हजार ६ सय ७१ सदस्य मान्ने हो भने उनीहरूबाट लेबीबापत एक करोड ५५ लाख २० हजार रकम पार्टी कोषमा जम्मा हुन्छ । ......... एमालेको आम्दानीको मुख्य स्रोत संगठित सदस्यता शुल्क हो । गत वर्ष नवौँ महाधिवेशनमा एमालेका दुई लाख ५८ हजार ६ सय ७१ जना संगठित सदस्य थिए । उनीहरूबाट मासिक १० रुपैयाँका दरले शुल्क लिँदा तीन करोड १० लाख ४० हजारभन्दा बढी रुपैयाँ जम्मा हुने ........ एमालेले गत वर्ष निर्वाचन आयोगमा बुझाएको विवरणमा एमालेले सदस्यता वितरण, नवीकरण र लेबीबाट सबैभन्दा बढी सात करोड ४९ लाख ६१ हजार दुई सय ६ रुपैयाँ उठाएको उल्लेख छ । ....... स्वदेशी चन्दादाताबाट एक करोड ९५ लाख ५९ हजार आठ सय २४ रुपैयाँ र

संस्थागत रूपमा विदेशबाट ६ करोड ३८ लाख ५३ हजार नौ सय सात रुपैयाँ प्राप्त गरेको

............ संस्थागत र व्यक्तिगत गरी

३८ चन्दादाता

को विवरण एमालेले लेखापरीक्षण प्रतिवेदनमा उल्लेख गरेको छ । ....... केन्द्रीय सदस्यहरूले मासिक १० हजार तलब लिने गरेका छन् । सभासद् वा कुनै राजनीतिक नियुक्ति पाएको केन्द्रीय सदस्यलाई भने तलब नदिने नीति छ । ...... एमालेमा एक सय ८४ केन्द्रीय सदस्य छन् । हाल एक सय २७ सदस्यले पार्टीबाट मासिक १० हजार तलब बुझ्छन् । ....... वार्षिक एक करोड ५२ लाख रुपैयाँ ........ २५ जना कर्मचारी .... अध्यक्ष र महासचिवको स्वकीय सचिवसहित सुरक्षागार्ड, सवारीचालकको मासिक न्यूनतम आठ हजारदेखि १५ हजारसम्म तलब रहेको ....... वार्षिक ३५ लाख ...... प्रचार, सम्पर्क, संगठन, विदेश र अनुगमन विभागका सचिवलाई मासिक तलब ....... एमालेले जनवर्गीय संगठनका पदाधिकारीलाई मासिक एकमुष्ट २५ हजार रुपैयाँका दरले वार्षिक तीन लाख दिने गरेको छ । यो शीर्षकमा वार्षिक झन्डै ४० लाख खर्च हुने एमालेले जनाएको छ । युवा संघ, अनेरास्ववियु, मुक्ति समाज, आदिवासी जनजाति महासंघ, मुस्लिम इत्तेहाद, जनसांस्कृतिक महासंघ, भूमिहीन सुकुम्बासी संगठनलगायतका एक दर्जनभन्दा बढी संगठनले रकम लिने गरेका छन् । किसान महासंघ, अखिल नेपाल महिला संघसहितका केही भ्रातृ संगठनले रकम नलिने जनाएका छन् । ....... दुईवटा गाडी .... देशबाहिर हुने कार्यक्रममा जाँदा एमालेले खर्च दिने गरेको छैन । देशबाहिर हुने कार्यक्रममा जाँदाको सबै खर्च आयोजकले नै व्यहोर्छन् । तर, उपत्यकाबाहिरका जिल्लामा जाँदा भने एमालेले स्थायी कमिटीका सदस्यलाई हवाई टिकटको व्यवस्था गर्ने गरेको छ । ..... अतिथि सत्कार, बैठक खाजा, कार्यालयको बिजुली, पानी, मर्मतसम्भार, स्टेसनरीलगायतका शीर्षकमा पनि खर्च छुट्याएको छ । यी शीर्षकमा नसोचेको रकम खर्च हुने गरेको एमाले मुख्यालयले जनाएको छ । ................................... एमाओवादी अव्यवस्थित ..

अहिले एमाओवादीको आम्दानीको मुख्य स्रोत सभासद्को लेबी छ ।

....... एमाओवादीले सभासद्बाट मासिक १२ हजार रुपैयाँ लेबी लिने गरेको छ । त्यसमध्ये दुई हजार सहिद तथा बेपत्ता परिवारका लागि छुट्याउने गरिएको छ । ८४ सभासद्बाट मासिक १० लाख आठ हजार रुपैयाँ लेबी उठ्छ । त्यसमध्ये प्रतिसभासद् दुई हजारका दरले एक लाख ६८ हजार सहिद तथा बेपत्ता परिवारका लागि जाने गरेको ............ पार्टीका संरचना भद्रगोल अवस्थामा रहँदा सदस्यता नवीकरण र लेबी संकलन हुन नसकेको हो । ....... तेस्रो स्रोत शुभचिन्तकबाट आउने चन्दा ..... ‘मोटामोटी पार्टी कार्यालय व्यवस्थापनका लागि मासिक आठ लाखजति खर्च हुन्छ ...... वार्षिक एक करोड ..... एमाओवादीका केन्द्रीय नेताहरूले भने आफ्नो खर्च आफैँ व्यवस्थापन गर्छन् । सभासद् र लाभको पदमा बसेका नेताहरूले जिल्ला भ्रमणमा जाँदा आफैँ खर्च गर्नुपर्ने प्रावधान छ । लाभको पदमा नबसेका नेताहरूको जिल्ला भ्रमणका लागि भने पार्टीले खर्च दिने गरेको छ । यसबाहेक निवेदन दिएमा पार्टीले नेताहरूको उपचार खर्चमा सहयोग गर्ने गरेको छ । ........ जनवर्गीय संगठनका नेताहरूको खर्च पार्टीले व्यहोर्दैन -
आन्दोलन नरोकिएपछि प्रमुख दल अन्योलमा

सीमांकनलाई परिमार्जन गरेर ६ बाट सात प्रदेश बनाउँदा पनि असन्तुष्ट पक्षहरूले आन्दोलन नरोकेपछि शीर्ष नेताहरू अन्योलमा परेका छन् ।

...... यसअघि प्रमुख दलसँगको सहकार्य तोडेको घोषणा गरेका फोरम लोकतान्त्रिकका अध्यक्ष विजयकुमार गच्छदार आइतबारको बैठकमा सहभागी भए पनि चेतावनी दिएर निस्किएका छन् ।

गच्छदारले कांग्रेस, एमाले झुक्नुपर्ने समय आउने चेतावनी दिएका हुन् ।

...... गच्छदारले झापादेखि पर्सासम्म एउटा र नवलपरासीदेखि कैलालीसम्म एउटा गरेर तराई मधेसमा दुईवटा प्रदेश बनाउनुपर्ने प्रस्ताव दोहोर्‍याएका छन् । उनले

दुई प्रदेश नदिए आफू एक मधेस एक प्रदेशमा उभिने चेतावनी दिए ।

....... एमाओवादीले आठ प्रदेश बनाएर भए पनि सम्बोधन गर्नुपर्ने प्रस्ताव गरेको थियो । एमाओवादीको प्रस्तावमा कांग्रेस–एमाले छलफल गर्न भने तयार भएका छन् । ‘हामीले असन्तुष्टको आन्दोलन सम्बोधन गर्न आठ प्रदेश भए पनि बनाऔँ भनेका छौँ,’ एमाओवादी उपाध्यक्ष श्रेष्ठले भने, ‘उहाँहरूले (कांग्रेस–एमाले) छलफल गरौँ भन्नुभएको छ ।’ ........ नारायणकाजी श्रेष्ठले भने कांग्रेस–एमालेका नेताको गैरजिम्मेवार हठ ...... ‘त्यो कुरा तपाईंहरूले मान्नुभएन । अहिले परिस्थिति सामान्य छैन । म अब त्यो प्रस्ताव पनि मान्नेवाला छैन । हिजो साथीहरूसँग हामीले जे भनेका थियौँ, भोलि त्योभन्दा तल आएर तपाईंहरूले सम्झौता गर्ने दिन आउँछ ।’
प्रहरीले फायर खोलेपछि हिंसात्मक झडप भएको हो : सभासद चौधरी
लोकतान्त्रिकका सभासद रामजनम चौधरीले

प्रहरीले गोली चलाएवपछि कैलाली घटना भएको

बताएका छन् । ..... उनका अनुसार थरुहट संघर्ष समितिले सरकारी कार्यालयमा थरुहट स्वायक्त प्रदेश लेख्ने कार्यक्रम थियो । ...... झण्डै ८/१० हजारको संख्यामा रहेका आन्दोलनकारी टीकापुरतर्फ अघि बढ्दा प्रहरीले रोकेको थियो । सुरक्षाकर्मीलाई धकेल्दै अघि बढेका आन्दोलनकारी पशु हाटमा पुगेपछि प्रहरीले गोली चलाएको सभासद चौधरीले दाबी गरे । उनले भने-‘साँघुरो बाटोमा प्रहरीले गोली चलाएपछि आन्दोलनकारी तितरवितर भयो । प्रहरी पनि तितरवितर भएपछि यस्तो घटना भएको हो ।’ .... प्रहरीले गोली चलाएपछि थारु आन्दोलनकारीमा रिसाएको र कसैले सम्हाल्न सक्ने अवस्था नआएको
गगन थापाद्वारा घैटैंको ‘इन्काउन्टर’ छानबिन गर्न माग
सामान्य जीवनयापनमा फर्कन चाहेका घैंटेसित इन्काउन्टर भएको भनिएको घटना हेर्दा प्रहरीले गैरकानुनी हत्या नै गरेको हुन सक्ने देखिएको उल्लेख गर्दै छानबिन गर्न माग गरेका हुन् ।
दंगाग्रस्त तराई मधेसका जिल्लामा के-के गर्छ सेनाले ?
गृहप्रवक्ता भन्छन्-सेनाले शंका लाग्नासाथ गोली हान्न सक्छ
आवश्यक खाद्य तथा अन्य सामाग्रीहरु सेनाले आपूर्ति गर्नेछ । कम्तिमा एक महिना यो दंगाग्रस्त क्षेत्र कायम रहने र आवश्यकता अनुसार थपिन सक्ने ढकालले बताएका छन् ।
कैलालीका प्रजिअ भन्छन्-२० हजार मानिस हतियार बोकेर आए
‘करिब २० हजार मान्छे थिए र उनीहरु सबैले भाला, लाठी, खुकुरी लगायत घरेलु हतियार बोकेका थिए । उनीहरुले सरकारी कार्यालयहरु कब्जा गरेर थरुहट प्रदेश लेख्ने प्रयास गर्दा झडप सुरु भयो ।’ .... अत्याधुनिक हतियार बोकेको जानकारी भने नरहेको उनले बताए ।
A continuous conundrum

Jaffnaization as a desirable goal and Mahendra Rajapaksa as an ideal protector of the ruling Jaati have begun to crop up during soirées of PEON salons in Kathmandu

..... The Constitution of Kingdom of Nepal, 1990 .. Once celebrated as one of the best constitutions in the world, the statute began to unravel within five years of its adoption. ........ The purpose of Interim Constitution of Nepal, 2007 is perhaps clearest of all. It seeks to transform unitary and exclusive polity of Nepal into a federal and inclusive republic through twin processes of democratization and federalization in a legitimate manner. Elections of Constituent Assembly were deemed necessary to acquire popular legitimacy, international recognition, and redemption of a public pledge to promulgate a constitution through popular participation. .........

If attempts of the Three Party cabal succeed, the country will soon have a statute promulgated through super fast track.

...... Padma had to flee the country once his constitution failed. BP Koirala, the prime mover of 1959 constitution, spent most of his life either in jail or in self-exile. King Birendra had to surrender within a decade of taking supposedly bold steps. After remaining in political limbo for over a decade, Krishna Prasad Bhattarai, the head of government that had seen through the enactment of 1990 constitution, died embittered. Even Girija Prasad Koirala, the head of state as well as the government when the Interim Constitution of 2007 was adopted, was disillusioned in the end when his dreams of institutionalizing constitutional rule remained unfulfilled. ........ The ground reality hasn't changed much in nearly seven decades.

Constitutions of Nepal are still being made in fear of the masses

rather than reflect hopes of the downtrodden, disenfranchised, marginalized and the externalized sections that constitute majority of the population. ........ The PEON that holds all levers of control over apparatuses of the state refuse to accept that Nepal is a multiethnic, multi-religious, multilingual and multinational country. Consequently, it wants a statute that will give continuity to its unhindered hegemony.

It has been hawking dread to consolidate control over its own community

and to ensure desired outcome. Fear is the key to understanding communal politics being played by dominant castes at the helms of constitution-making. .............. The first fear being purveyed is that of purity of Nepali Jaati. Racialism is a strong term, but tribalism (tendency to form group loyalty based on certain real or imagined similarities) has remained the basis of manufacturing

imagined Nepali Jaati

. Provisions of bloodline, ancestry and Nepali origin in the draft constitution are all aimed to prevent 'pollution' of the tribe. If these stipulations smack of patriarchy and end up excluding children of bona fide daughters that dare to marry outside the clan, then so be it. That's a small price to pay to prevent Fijikaran of the land of the pure and the brave. .................... lopsided laws of representation that shall turn Madheshis into second class citizens with lower representation in the legislature per thousand voters than pure Nepalis. The neologism of Sikkimikaran is so strong that even otherwise reasonable people of the dominant community fail to see the absurdity of this logic. ....... Though not as inflammatory as Fijikaran and Sikkimikaran phrases, Bhutanikaran is yet another weapon in the arsenal of exclusivists. The specter being portrayed is that policies of inclusivity will slowly transfer the reins of power from supposedly meritocratic PEON elite to reservation beneficiaries of hoi polloi that have little appreciation for the grand Gorkhali traditions of King Prithvi and his Divyopadesh. Since the autonomy of the Nepali Jaati must be protected at all costs, clever ways must be incorporated in the constitution to water down provisions of inclusion. ............ The threat of losing religious identity has been fashioned into Hindutva ideology in India. While fears of Fijikaran, Sikkimikaran and Bhutanikaran are all aimed at Madheshis inside the country and India across the border, the project of creating Hindu Pakistan (pure land of Hindus) attempts to lure fellow believers of the southern plains and placate religious zealots of the resurgent order in New Delhi.

Pakistanization thus has no negative connotation in PEON conversations.

........ Jaffnaization as a desirable goal and Percy Mahendra Rajapaksa as an ideal protector of the ruling Jaati have begun to crop up during soirées of PEON salons in Kathmandu quite often.

The emphasis is invariably on the middle-name Mahendra with Rajapaksa pronounced in a slow and deliberate manner.

...... Albert Einstein is often quoted as having said that the common sense is the collection of prejudices acquired by age eighteen. The trio of Pahadi Brahmans that hold the destiny of the country in their hands as supreme lawgivers have all grown up in a milieu where Nepalipan meant characteristics of the Hindu, Aryan, Male and Nepali Speakers (HAMNS) community. Madheshis, Muslims and Tharus could never be imagined being a part of the exclusive category of Nepali Jaati. A constitution that seeks to institutionalize such prejudices is unlikely to go unchallenged. It appears that the constitutional conundrum of Nepal is not going to end any time.

१ मत को ५० रुपया

१ मत को ५० रुपया बाट शुरू गरी प्रत्येक राजनीतिक पार्टी ले चुनाव मा बटुलेको मत को समानुपातिक पैसा सरकार बाट नै पाउने, अरु कतै बाट पैसा लिन नपाउने गर्दिनुपर्छ। अनि राजनीति सफा भएर जान्छ। पार्टी सदस्य बाट लेबी लिन नपाउने, सांसद को तलब बाट काटन नपाउने, चन्दा उठाउन नपाउने, विदेश बाट पैसा लिन नपाउने। बरु देश बाहिर रहेका १ करोड़ नेपाली लाई पनि ऑनलाइन वोटिंग को व्यवस्था गरेर त्यसै सिस्टम मा लाने।

२५ लाख हाराहारी मत बटुलेको काँग्रेस एमाले ले १२ करोड़ बढ़ी पाउने भए। ३ लाख बटुलेको फोरम जस्तो ले डेढ़ करोड़ पाउने भो। पार्टी सञ्चालन देखि लिएर चुनाव खर्च सब यसै बाट निकाल्नु पर्ने। 

१६ लाख मत बटुलेको माओवादी ले ८ करोड़ पाउने। अहिले को जस्तो लथालिंग अवस्था नहुने। 

यो तीन तहमा गर्दिनुपर्छ। केंद्र, प्रदेश र स्थानीय। जुन स्तर को चुनाव को मत बाट पैसा पाएको हो त्यो पैसा त्यसै तहमा खर्च गर्नु पर्ने। १ करोड़ मत खस्यो भने ५० करोड़ गयो, तीन तहमा गरेर १५० करोड़ गयो। यस ले लोकतंत्र लाई बलियो बनाउँछ। मतदाता को महत्त्व बढेर जान्छ। पार्टी सभापति को तानाशाही समाप्त हुन्छ। ठेक्कापट्टा मा बदमाशी निकै कम भएर जान्छ, डॉनतंत्र को जड़ो काटिन्छ। 

सकिन्छ भने वडा अध्यक्ष देखि नै होइन भने मेयर देखि मासिक तलब को व्यवस्था भएको राम्रो। ताकि नेता पार्टी प्रति कम जनता प्रति बढ़ी जवाफदेह होऊन। अनि जो सुकै मान्छे सक्षम छ र जनताको सेवा गर्छ भने उ वडा अध्यक्ष देखि शुरू गर्दै पार्टी अध्यक्ष देशको प्रधान मंत्री सम्म बन्न सक्छ। 

आखिर पार्टी र नेता ले घुमाई फिराई जनता को पैसा नै लिने हुन। तर कतिपय गन्दा किसिमले लिने गरिएको छ। 

यो मुद्दा मलाई प्रत्यक्ष निर्वाचित प्रधान मंत्री को मुद्दा भन्दा पनि महत्वपुर्ण जस्तो लाग्छ। 

१ मत बराबर ५० रुपया बाट शुरू गरे पनि संसद ले त्यो कुनै बेला नया कानुन पास गरेर बढाउन सक्छ। १ मत बराबर पछि ७५ रुपया हुन सक्छ। १०० हुन सक्छ। बरु देशको GDP संग इंडेक्स गर्दिये हुन्छ। देशको GDP दोब्बर भयो की आफसेआफ ५० बाट १०० पुग्ने। नेता हरुको तलब पनि GDP संग इंडेक्स गर्दिये हुन्छ। नेताको पनि र कर्मचारी को पनि। देशको GDP दोब्बर भयो भने तलब पनि आफसेआफ दोब्बर हुने। 



नेपाली जातीय भाषा हो, नेपाल जातीय पहिचान को नाम हो

त्यस कुरामा कसैलाई कुनै शंका छ?



Two states in Madhesh with hilly areas acceptable to us: Mahato
Disconnect and discontent
Let’s admit it, we in Kathmandu are a bunch of hypocrites
In our parochial view, there is little difference between Saptari and Itahari, Pokhara to many of us is just Lakeside and the Tarai is the home of barbers, fruit vendors and scrap collectors. ...... Caste discrimination, we believe, is an evil of the past. We don’t understand why the rest of the country wants to settle down in the Valley. We consider ourselves to be liberal, unprejudiced, and egalitarian. ...... We claim to be so enlightened that stereotyping is beneath our intellect, that is a thought process of simple people who make oversimplified generalisations. Yet, our everyday lingo is laced with racially derogatory remarks. “You better be careful, he’s a Tamang from Kavre.” Just kidding. “How did you even fall for a Madhesi guy, they are so ugly.” LOL. “For a Brahmin man you are actually quite generous.” HEHE. Everything unacceptable can be said as long as you append a ROFL or a smiley sticker. We are not racist, you see, we just like to judge people by their association to the group they are born into. .......

the Tarai has been shutdown now for nearly two weeks and one is hard pressed to find mention of that anywhere in the Kathmandu-centric press

........ Pokhara and Chitwan the towns that let us behave like the expats we are not. ..... We believe all ethnic groups, men and women of this country have been given equal rights and opportunities and thus even a mention of identity-based federalism irks us. That’s a devil that’s going to destroy the harmony of this country we write, but we collectively fail to propose measures that would in other ways help ensure equal treatment of all and not

make more than half of the citizens feel like they would better belong in the lands of our neighbours

. ....... Deaths of protesters in Surkhet and Saptari earlier this month didn’t touch us much. That there had been abuse of power by police was all but ignored, and our super inept leaders slept through the ordeal. Life went as normal in the capital until a gangster, enjoying protection of a ruling party, is killed in a police encounter in Kathmandu. That generated a hue and cry over police accountability. NC lawmakers suddenly woke up from their slumber, questioning the police under ultimate command of a UML home minister and demanding that the deceased, a man accused of multiple manslaughter be declared a martyr. Within a day everyone and their grandmother had heard that the Don was dead thanks to social media and front page news.

Strike-hit Saptari, Surkhet, Banke could as well be on another planet.

भोटे भगाउ देश बचाउ । Via Manoj Kumar Acharya
*****जनजाति हरु ले बाहुन क्षेत्री हरु लाइ दमन गरेका हुन । *****
जनजाति हरु लाइ पढ्न अल्छी लागेर बाहुन हरु लाइ काशी पठाए
।अनि पढेर आएको त्यों बाहुन लाइ पंडित बाजे
पंडित बाजे भन्दै फुर्कायेर पूजा पाठ माँ तल्लीन
गराए । बाहुन ले त मासु खान नि हुदैन जाड खान
पनी हुदैन भन्दै खाने कुरा हरु माँ पनी बन्देज
लगाइदिये । उता बाहुन हरु जोत्न नि हुदैन भनेर
जोत्न नि दिएनन । बाहुन लाइ बोलायेर दिन
भरी कराउन(पूजापाठ ) लगाएर दुई माना चामल
दिएर पठाउथे तर आफु ले भने दिन माँ तिन पहर खाएर
जोतेर साझ दुई पाथी को पारिश्रमिक लैजान्थे ।
बाहुन ले त अरु ले छोएको खानु हुदैन भनेर आफ्ना घर
माँ आएको बाहुन लाइ खान दिदैन थे । तर आफु ले भने
बाहुन का घर गएर स्वाम्म खाएर
आफ्नो मानो जोगाउथे । बाहुन ले त अन्य जात
माँ बीहे गर्न हुन्न भन्दिन्थे बाहुन ले पत्याउथे तर आफु
हरु ले भने तेइ बाहुन
का छोरी चेली पनी मौक़ा मिलाई मिलाई
टपकाउथे । अनि बाहुन हेर्या हेरेइ । बाहुन ले पढ्न
बाहेक बाहिर जानू हुदैन भन्दिन्थे । अनी आफु हरु भने
भारतीय फ़ौज ब्रिटिस आर्मी सिंगापुर पुलिस
जस्ता काम माँ लागेर भारु र डलर कमाउथे ।
अनी बाहुन लाइ भने नेपाल
को सत्ता माँ अल्माल्याएर राखे । अनी बीस बर्ष
माँ भर्ती भाका मनुवा हरु ले चालीस बर्ष
को हुदा पेन्सन पाउछ्न र पेन्सन निस्केर मजा संग
बचेको जिन्दगी ब्यतित गर्छन ।तर बाहुन हरु भने
चालीस बर्ष को हुदा बल्ल होशा आउछ्न र
खाड़ी तीर लाउछ्न ताठा बाठा ले सरकार
चलायेर खान्छ्न सोजा साझा बाहुन ले या त
खाड़ी तातो घाम खान्छ्न
या फेरी जनजाति को गाली । जनजाति हरु भने
भारु र डलर खादै बाहुन लाइ गाली गर्दै
मृदुला कोइराला ले जस्तै खुट्टा खापेर पेन्सन खाएर
बस्या छन ।
नेपाल को उत्पीडित ब्राह्मण क्षेत्री प्रति सरकार को ध्यान जाओस् !



दंगाग्रस्त क्षेत्रमा कसरी परिचालित हुन्छ सेना?
दंगाग्रस्त क्षेत्रमा कसैले हिंसात्मक गतिवधी गर्न खोजे सुरक्षाकर्मीले तुरुन्तै गोली हान्न सक्ने बताए । स्थानीय प्रशासन ऐन २०२८ को दफा ६ को -ख) अनुसार दंगाग्रस्त क्षेत्रमा कसैले हिंसात्मक, ध्वंसात्मक र आगजनीलगायतका काम गरे तत्काल गोली हान्न सक्ने व्यवस्था छ । दंगाग्रस्त क्षेत्र घोषणा गरिएको स्थानमा नेपाल प्रहरी र सशस्त्र प्रहरीले भीड रोक्न नसके प्रमुख जिल्ला अधिकारीले सेना परिचालनको आदेश दिन सक्नेछन् । दंगाग्रस्त क्षेत्र घोषणापछि एक महिनासम्म सेना परिचालित हुनेछ । प्रमुख जिल्ला अधिकारीले शान्ति सुरक्षाको स्थिति हेरी समय घटाउन र बढाउन सक्ने कानुनी व्यवस्था छ । ..... दंगाग्रस्त क्षेत्रमा ५ जनाभन्दा बढीको समूहमा हिड्न पाइने छैन । दंगाग्रस्त क्षेत्रमा क्षेत्रमा जुलुस, सभा, बैठकमात्र होइन मनोरन्जनात्मक क्रियाकलाप पनि गर्न पाइने छैन । सुरक्षाकर्मीले आवश्यक ठानेमा भीड जम्मा हुने डान्सबार, दोहोरीका साथै शिक्षण संस्थासमेत बन्द गराउन सक्नेछन् । सुरक्षाकर्मीले शंका लागेको ब्यक्तिलाई खानतलासी र बिनापुर्जी पक्राउ गर्न सक्नेछन् । सुरक्षाकर्मीले शंका लागेमा कसैको घर, पसल, गोदामलगायतको खानतलासी गर्न सक्नेछ ।
Pro-Statehood Protesters Attack Police in West Nepal; 9 Dead
They attacked the officers with stones, knives and spears, and one was set on fire and died ..... Police from neighboring districts were rushed to the town as reinforcements. The government also decided to send soldiers to bring the situation under control


नाम सीमांकनको, कामचाहिँ राजनीतिक जमिनदारीको
तीन पार्टीका नेताले अवैज्ञानिक तथा हचुवा किसिमले संघीय प्रदेशको सीमा कोरेका छन् । नेताहरुले व्यक्तिगत अनुकूलताको परिधिमा रहेर सीमांकन गरेका छन् । ..... नेताहरुले नयाँ जमिनदारी कायम गर्न संघीय प्रदेशहरुको सीमा कोरिरहेझै देखिन्छ । ....

जहाँ जहाँका जनतालाई संघीय सीमांकन चित्त बुझेका छैनन्, त्यहाँका जनता आन्दोलित छन् । अहिलेको आन्दोलन नयाँ राष्ट्रिय एकतामा समाहित हुने राष्ट्रवादी आन्दोलन हो ।

...... लोकतान्त्रिक भनाउँदा ठूला नेताहरु जमिनदार नै भए । कथित लोकतान्त्रिक सरकारले पनि राणाकाल र पञ्चायती व्यवस्थाको जस्तै व्यवहार प्रदर्शन गर्दैछ । यो लोकतान्त्रिक सरकार भएको भए यसका प्रधानमन्त्री र मन्त्रीहरु त्यस क्षेत्रमा जान्थे, जहाँका जनतामा आक्रोश छ र जहाँका जनता आन्दोलित छन् । समग्र मधेश र थरुहटका जनता हप्ताभन्दा बढी दिनदेखि सडकमा छन् । अब पनि ढिलो भएको छैन । संविधान निर्माणका सबै काम छाडी ठूला पार्टी र सरकारका मन्त्रीहरु आन्दोलित जनता समक्ष जानुपर्दछ । ......

चार जना व्यक्तिले मात्र संविधान लेखिरहेको नेपाली कांग्रेसका केन्द्रीय नेताहरुकै आरोप छ । संविधानसभाभित्र संविधानका विषयवस्तुबारे कुनै छलफल भएको छैन । कसको कुरा सुनेर संविधान लेखिँदैछ ?

...... सीमांकनको सन्दर्भमा कुनै नेताले कैलालीलाई समातेर बसिरहेका छन् । कसैले झापामा अड्डी लिइरहेका छन् । कसैले चितवनलाई फुत्किन दिन्न भनिरहेका छन् । त्यसैले हामीलाई खोज छ समग्र देशलाई समात्ने र सबैको भावना बुझ्ने राष्ट्रिय नेताको । ......

मधेशी, थारु, मुस्लिम, जनजाति, दलित एक आपसमा मिलिरहेका छन् । एक ढिक्का भइरहेका छन् ।

यी उत्पीडितहरुको एकताबाट एउटा नयाँ नेतृत्व स्थापित हुने र यसले मुलुकको भलो गर्ने विश्वास लिएको छु । ..... पछिल्लो समयमा

मधेशी, जनजाति र थारुबीच सामाजिक र राजनीतिक रुपमा अत्यन्तै निकटता बढेको छ । यसले अत्यन्तै सकारात्मक परिणाम ल्याउँछ ।