The only full timer out of the 200,000 Nepalis in the US to work for Nepal's democracy and social justice movements in 2005-06.
Saturday, February 05, 2022
जनमत पार्टी के लिए आगे का रास्ता
किसान आन्दोलन का घोषणा हो गया तब मुझे पता चला किसान आन्दोलन हो रहा है। मैंने कदम कदम पर प्रशंसा किया है। आम जनता के साथ कुछ हप्ते बिताने के बाद पार्टी के अध्यक्ष को लगा ये मुद्दा उठाना जरूरी हो गया है।
११ माँगे पुरा करेंगे तो भी जित। ११ माँगे पुरा नहीं करेंगे तो भी जित। उस रास्ते से चलिए। आप कितना भी अनशन पर बैठ जाइए, कोइ भी हाईवे बंद कर दिजिए, मेरे को कहिएगा रोलर स्केटिंग करो तो मैं नहीं कर सकुंगा। मेरे को आता ही नहीं। देउबा ये ११ माँगे पुरा कर सकते हैं तो मैं भी रोलर स्केटिंग कर के दुनिया को दिखा दुँगा। ये बात स्पष्ट है कि देउबा ये ११ माँगे पुरा करना जानते ही नहीं है।
तो क्या किया जाए? आन्दोलन रोक दिया जाए? नहीं।
अपने पर प्रेशर डालिए। दो साल में सदस्य एक लाख से सात लाख पहुँच गए। अब आन्दोलन के रास्ते २७ लाख तक ले जाइए। स्रोत साधन चाहिए। सदस्य संख्या बढ्ने पर स्रोत साधन मिल जाते हैं। कांग्रेस के पास १० लाख सदस्य, एमाले के पास मोटामोटी उतना, माओवादी के पास १० लाख भोट। तो जनमत पार्टी के सदस्य २७ लाख पहुँचे तब जनमत पार्टी खुद अपने ११ माँगे पुरे करने के स्थिति में पहुँच जाती है।
पुरानी पार्टीयों से गठबंधन बनाने से अच्छा रास्ता है संगठन विस्तार का। लेकिन किसान आन्दोलन के ११ बुँदे को समर्थन करिए वो तो प्रत्येक दल को कहा जा सकता है, प्रत्येक संगठन को।
बल्कि हाईवे बन्द को अंतिम समय तक बचा के रखा जाना चाहिए। अभी धीमी गति आन्दोलन ही सही। मुख्य फोकस होने चाहिए कि इस महिने पार्टी के प्रत्येक सदस्य एक व्यक्ति को बाँह पकड़ के सदस्य बनावे। अगले महिने फिर वही बात। दो ही महिने में हो जाएंगे २७ लाख। अभी हाईवे बन्द करने से कुछ नहीं होगा।
एक समय आएगा जब देउबा सरकार चुनाव की घोषणा करेगी। घोषणा से पहले ही ज्ञापनपत्र दे देना है। कि इस किस्म से संविधान संसोधन करो नहीं तो चुनाव नहीं होगा। और आन्दोलन भी करना है। अगर नहीं माने तो चुनाव को विफल कराने के लिए चुनाव के एक दो हप्ते पहले से मधेस बन्द, देश बन्द। तो उस समय तो २४ घंटे ही बन्द। लेकिन सकभर वो भी ना करना पड़े। वो अंतिम अस्त्र। पहले तो प्रत्येक पार्टी से लगातार वार्ता कर के सबको संविधान संसोधन के लिए राजी करवाने का प्रयास करना होगा।
देउबा और ओली ३० साल से चले आ रहे लुटतंत्र के लोकेन्द्र बहादुर और सुर्य बहादुर। दोनों में कोइ तात्विक अन्तर नहीं। देउबा ने माँग पुरा नहीं किया तो ओली के साथ गठबंधन? कोइ अर्थ नहीं रखता। रोलर स्केटिंग ओली को भी नहीं आता।
यानि कि अभी हाईवे बन्द शायद नहीं। वो चुनाव को विफल बनाने के लिए अंतिम अस्त्र।
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