Wednesday, January 12, 2022

४६ साल वालों का सफाया

क्रान्ति का मतलब होता है पत्ता साफ। नयी शुरुवात। सन २००६ में क्रान्ति हुवा लेकिन उसके बाद एक से एक बकलोल सब प्रधान मंत्री बने। यानि कि सन २००६ में क्रांति शुरू हुवा। क्रान्ति अभी ख़त्म नहीं हुवी। लेकिन क्रान्ति अब अंतिम चरण पर है। एक से एक ढेलफोरबा सब। जेकरा कोनो ठुवाठेकान ना। न देश चलाबे के लुइर। न इमान न धर्म। एक प्रचंड के पास तो वास्तव में ही धर्म नहीं है। नास्तिक आदमी अपने ही किस्म का निरक्षर होता है। तो प्रचंड वो काला अक्षर भैंस बराबर हैं आध्यात्मिक बातों पर। वैसे नास्तिक लोग ही "मांसाहारी आन्दोलन" की बात कर सकते हैं। लेकिन जो धर्म की दुहाइ देते भी हैं वो धर्म नहीं मानते। कौन धर्म है जिस में नहीं लिखा है कि चोरी पाप है? भ्रष्टाचार चोरी नहीं तो क्या है? चोरी करते हैं सब सेन काट काट के। सीधे सरकारी तिजोरी से चोरी। 

३० साल पंचायत चला तो ३० साल लुतंत्र भी तो चला। लेकिन अब बस। बहुत हुवा। पंचायत ख़त्म हुवी लेकिन राप्रपा रही, अभी भी है। एक सीट तो जिती है। उसी तरह कांग्रेस कम्युनिस्ट भी रहेंगे। लेकिन राप्रपा के साइज में रहेंगे। छोटी मोटी पार्टी बन के रहेंगे। 

किसान आन्दोलन के १० माँगे इस देउबा सरकार से पुरा हो ही नहीं सकता। न इमान है। दिल साफ नहीं है। जनता का सेवा करने पद पर जाते हैं वो सोंच है ही नहीं। न लुइर। कनपट्टी पे सिनुर वाली बात। जिस तरह ४७ साल वाला संविधान किसी को दफनाने का भी मौका नहीं मिला उसी तरह ये संविधान भी टांय टांय फिस। 

लोकतंत्र, गणतंत्र, संघीयता, समावेशिता पर कोनो कोम्प्रोमाईज़ नहीं। लेकिन सच्चा संघीयता। सर्बभौमसत्ता जनता में है। जनता वो ताकत संविधान सभा को देती है जो संसद का भी काम करती है। पहला काम तो करना होगा न्यायपालिका का पुनर्गठन। संसद चाहे तो देश के प्रत्येक न्यायधीश को पद से हटा सकती है। रवाण्डा में हुवा।  एक ही दिन ५०० न्यायधीश का पद ख़तम। उस स्तर पर कुछ करना होगा। बल्कि उसमें से २०० को फिर से पद पर लाना पड़े, फिर से शपथ ग्रहण करवाना पड़े वो मंजुर। 

नेपाल सेना नेपाली जनता से उपर नहीं है। नेपाली जनता चाहे तो नेपाल सेना को विसर्जन कर सकती है। कोस्टा रिका में कोइ सेना नहीं। मैं उसके पक्ष में नहीं हुँ। लेकिन ये स्पष्ट बात है कि जनता सेना से उपर है। गृह युद्ध तो कबका खत्म हुवा। अब तो सेना को फिर से ३०,००० पर ले जाओ। संविधान सभा वो आदेश दे सकती है। और फिर रक्षा मंत्री को वो कार्यान्वयन करनी होती है। 

दो तिहाई सेना, दो तिहाई प्रहरी, और दो तिहाई कर्मचारी की घर वापसी को ही संघीयता कहते हैं। क्यों कि संघीयता में कम पैसे में ही काम हो जाता है। एक साल तलबी विदा दे दिया जाए कि उस एक साल के भितर निजी क्षेत्र में जाओ कोइ काम ढुंढो। 

जितने निकलेंगे सब के लिए निजी क्षेत्र में पहले से दोबर तलब वाला काम मिलेगा। ख़ुशी ख़ुशी निकलेंगे। 

किसान आन्दोलन तो एक चुनौती है ,कर सकते हो तो कर के दिखाओ। दिवाकालीन लोकमार्ग जाम। बस्ती बस्ती में जुलुस, सभा, बैठक। राणा शासन ख़त्म करने पहले मधेस ही तो जागी थी। पहाड़ में भी पहुँचेगी किसान आन्दोलन। 

४६ साल के थके चेहरे। 

(ये हिन्दी नहीं मधेसी भाषा है।)








नेपाल को एकीकरण हुन बाँकी छ, राष्ट्र निर्माण हुन बाँकी छ

नेपाल एक गरेको श्रेय कसै लाई दिने हो भने, त्यो पनि सयौं वर्ष अगाडि, नेपाल आज एक रहेको त हुनुपर्यो। छैन त। नेपाल एक हुन बाँकी नै छ। कसैले राष्ट्रनिर्माता भन्ने हो भने राष्ट्र निर्माण भएको हुनुपर्यो। राष्ट्र निर्माण हुन बाँकी छ। गरीबी समाप्त हुनु राष्ट्र निर्माण हुनु हो। त्यो त अत्तोपत्तो छैन। 

नेपाल को "एकीकरण" मा पृथ्वी को हात छ। बहादुर शाह को हात छ। ब्रिटिश को हात छ। भन्ने ले जंगे भन्दिन्छन। कुमाउ गढ़वाल मा गोरख्याणी हरु ले गरेको ज्यादती को मिशाल आधुनिक भारत मा अर्को छैन। क्रुरता को प्रत्येक हद पार गरिएको हो। बहादुर शाह का संतति ले माफ़ी माग्नुपर्छ। कुमाउ गढ़वाल मा जे गरियो किरात, मगरात, थरुहट, मधेस मा त्योभन्दा धेरै फरक गरिएन। आज तक गलत व्यवहार कायम छ। 

नेपाल को एकीकरण हुन बाँकी छ। गणतंत्र नेपाल का जनता नागरिक हुन। त्यो प्रत्येक नागरिक मा अपनत्व को भावना जगाउन बाँकी छ। प्रत्येक को परिचय को अधिकार स्थापित गर्न बाँकी छ। सार्वभौमसत्ता जनता मा गएको ले देश आफ्नो तर हात मा लालपुर्जा छैन। नागरिकता को प्रमाणपत्र छैन। 

सच्चा संघीयता ले देश को एकीकरण गर्ने हो। देश को एकीकरण पृथ्वी नारायण ले होइन देश लाई संघीयता दिने मधेसी क्रान्ति ले गर्ने हो। तेस्रो विश्व को देश लाई प्रथम विश्व को देश बनाउने सीके राउत ले हो राष्ट्र निर्माण गर्ने। कहाँ को पृथ्वी नारायण शाह!