अभी तो संसद में एक ही मधेसी पार्टी है जसपा। आप कह रहे हैं जनता ने मैंडेट दिया कि जाओ मधेसी और थारू को उनका अधिकार दिलाओ। आप कह रहे हैं दिलाने का सिर्फ एक तरिका है: सत्ता से बाहर रहो। अजीब तर्क है आप का। पहला मैंडेट तो ये था कि सपा राजपा एक हो जाओ। वो मैंडेट पुरा नहीं करेंगे तो दोनों गायब हो जायेंगे। होना भी चाहिए। जसपा संसद में है। उल्लेखनीय उपस्थिति है। चरम एकता प्रदर्शन कर सके, चरम अनुशासन दिखा सके तो संविधान संसोधन करवा लेने की स्थिति है। आप जो कह रहे हैं फाइट करो वो आप नेता लोगों को नहीं कह रहे हैं। नेता लोग तो एक दुसरे से गले मिल रहे हैं। कोइ देउबा से कोई ओली से। पिक्चर सब आता रहता है। आप को ऐतराज नहीं। जो आप फाइट करो कह रहे हैं वो नेता नहीं जनता को कह रहे हैं।
अदालत में बड़ा अन्याय कर दिया
नेता लोगों का काम है जो सत्ता समीकरण है उससे खेल कर मधेस की माँग पुरी करबाओ। माँग क्या है? संविधान संसोधन। तो उसके लिए जो दो तिहाइ चाहिए वो सिर्फ कांग्रेस माओ पार्टी से नहीं मिलता। दो तिहाइ तो दुर की बात, साधारण बहुमत भी नहीं है उन दोनों के पास। इसलिए संविधान संसोधन का रट लगाने वालो का ये जिम्मेवारी बनता है कि एमाले को माइनस न करे।
राजनीति सत्ता और शक्ति का ही तो खेल है। संसदीय अंकगणित का खेल जो चलता है वो सरकार बनाने गिराने के लिए ही। सत्ता खुद अपने आप में मुद्दा है। चुनाव के समय जो वादे किए जाते हैं उसको पुरा करने के लिए सत्ता में जाना अनिवार्य होता है। लेकिन मैं ये मानता हुँ हर समय सत्ता में जाना अच्छा निर्णय नहीं होता। विपक्ष का भी अहं रोल होता है। कभी विपक्ष में बैठना भी सही निर्णय होता है। लेकिन अक्सर देखा जाता है विपक्ष में वो बैठते हैं जिनके पास संख्या नहीं होता।
आप अपनी मांग पुरा कराने के लिए सत्ता में नहीं जाइएगा लेकिन दुसरे सत्ताधारी से अधिकार भीख माँगिएगा? अधिकार भीख मांगने से मिलता है? वैसा मिला अधिकार आखिर कैसा अधिकार? अगर खुद सत्ता में जा के काम नहीं कर सकते हैं तो दुसरे सत्ताधारी से अपेक्षा रखना कहाँ तक जायज है?
जसपा एक नहीं है तो नंगरी है, पुच्छर। एक इसका एक उसका नंगरी बन कर घुमते रहेंगे चुनाव तक, उसके बाद दोनों समाप्त हो जाएंगे। अभी तो संविधान संसोधन कोइ एजेंडा भी नहीं है। अभी तो सिर्फ एक एजेंडा है: पार्टी एकता। क्योंकि उसके बगैर संविधान संसोधन संभव नहीं।
अभी तो कदम कदम पर सर्वसम्मत निर्णय ले ले के चलने का समय है। जनता के बेटा शहीद हो जाए और नेता उतना भी न कर सके? छाती पर गोली खाने से वो एकता प्रदर्शन करना तो आसान काम है। नहीं करिएगा तो मधेस आंदोलन के प्रति गद्दारी करिएगा। जनता समय आने पर जवाव देगी।
संसद के अंकगणित से खेलना ही तो सांसदों का काम है। उस अंकगणित से खेल कर संविधान संसोधन करबाओ। उससे खेल कर सत्ता लो। सत्ता खुद मुद्दा है। एक के जगह तीन उप प्रम ले सके अच्छा। तीन नहीं तेरह मंत्री बने तो बहुत अच्छा।
तीन नहीं तेरह मंत्री पद लेने वाली पार्टी संविधान संसोधन भी करबाएगी। तेरह के जगह सिर्फ तीन मंत्री पद ले सकने वाली पार्टी शायद संविधान संसोधन न करवा सके।
अदालत ने संसद पुनर्स्थापना किया। अच्छा किया। लेकिन उसमें उपेंद्र यादव का क्या योगदान रहा? जीरो। शुन्य। आर्यभट्ट का शुन्य। कुछ भी नहीं। बल्कि नेगेटिव। सड़क पर माइकिंग किए गलत किए। अदालत में विचाराधीन मुद्दा पर जिम्मेवार नेता चुप रहते हैं। जैसे महंथ चुप थे। डर के मारे नहीं। उन्हें अपनी मर्यादा का ज्ञान है। संसदीय अभ्यास का ज्ञान है। अज्ञानी उपेंद्र माइकिंग कर रहे थे।
ओली ने संसद विगठन किया। उसका जिम्मेवारी सिर्फ और सिर्फ ओली का है। कानुनी जिम्मेवारी सिर्फ और सिर्फ ओली का है। महंथ को जिम्मेवार कहना बेइमानी भी है और कानुनी ज्ञान की कमी भी। ओली ने किया। महंथ से पुछ के नहीं किया। पुछते तो महंथ कहते नहीं करो।
संसद कब्र से वापस आ गया। शुक्रगुजार है।
अब तो संसदीय अंकगणित का खेल खेलने का समय है। जसपा के लिए प्रमुख बात सत्ता नहीं संविधान संसोधन है। लेकिन उसके लिए जो दो तिहाइ चाहिए वहां तक पहुँचने का मुझे सिर्फ एक रास्ता दिखाइ दे रहा है। एमाले जसपा गठबंधन।
देश को एक जनजाति प्रधान मंत्री अगर मिल जाता है तो एक मेन्टल बैरियर ब्रेक होगा। कल कोइ मधेसी भी बन सकता है।
जसपा पहाड़ में जाएगी, पहाड़ के जनजाति जसपा में आएंगे, जितेंगे, और जनजाति भी मुख्य मंत्री और प्रधान मंत्री होंगे, वो जसपा का सोंच हो सकता है। लेकिन पहाड़ के जनजाति तो एमाले ही कब्ज़ा करने पर लगे हुवे हैं। देश की सबसे बड़ी पार्टी कब्ज़ा करिएगा कि जसपा का सदस्यता लिजिएगा? आप उस जगह होते तो क्या करते? पहाड़ के जनजाति उपेंद्र यादव को कहते हैं, पहले आप खुद का अधिकार ले लियो फिर मुझे अधिकार दिलाने की सोंचना। सही कहते हैं। उपेंद्र यादव कतार जा के बोलेंगे हम आप को मुसलमान प्रधान मंत्री बना देंगे। वैसी बात हो गयी। मुलायम लालु वाला यादव मुसलमान समाजवाद।