Saturday, June 05, 2021

Churiya Pahad



‘बहुराष्ट्र’ले निम्त्याएको बबाल! नेपाल विविधताले भरिएको देश भएकाले बहुल राष्ट्रिय राज्य हुनुपर्ने......... दुई राष्ट्रको सिद्धान्तकै जगमा मुहम्मद अली जिन्नाले भारतबाट पाकिस्तान अलग बनाउन सफलता पाएको ........ जापान, स्वीडेन, दि नेदरलैन्ड्स आदि देशहरु धेरै अर्थमा एक राज्य र एक राष्ट्र भएका अत्यन्तै थोरै मुलुकहरुमध्ये हुन्। तर अमेरिका, क्यानडा, भारत र विश्वका अन्य अनगिन्ति देशहरु एक राज्य तर अनेक राष्ट्र भएका मुलुकहरु हुन्। यस अर्थमा नेपाल एक बहुभाषिक, बहुजातीय, बहुधार्मिक, बहुसांस्कृतिक र बहुराष्ट्रिय देश हो। ......... नारायणकाजी श्रेष्ठ .... देशभन्दा पद र सत्ता प्यारो ठान्ने कार्यकारी प्रमुखको कारण देश बर्बाद हुँदैछ,बचाऔं । ...... रवीन्द्र मिश्र ....... संविधान जलाउनेलाई संविधान र देशको रक्षक बनाएपछि उनीबाट 'बहूल राष्ट्रिय राज्यका लागि मुक्ति आन्दोलनको तयारी गर्ने' अभिव्यक्ति आउनु अचम्मको कुरा होइन!

महतोकाे अभिव्यक्तिविरूद्व नेपालपक्षीय अनेरास्ववियुले आइतबारदेखि देशभर प्रदर्शन गर्ने

जसपा: पार्टी एकता का महत्व

जब नियत में ही खोट हो तो अपने मीडिया वाला सेना के मदद से जनता का ध्यान कैसे भटकाया जाता है यह राजेन्द्र महतो का लेटेस्ट व्यान "नेपाल बहुल राज्य" वाला से सिखा जा सकता है। हम लोग सब जानते हैं कि महन्थ - महतो लोग सरकार में जानें से पहले सिर्फ दो ही बात करते थे। एक रेशम चौधरी का रिहाई और दूसरा नागरिकता विधेयक पास कराना। और इन दोनों मुद्दा को इनके मेडिया बाले शेना ने खुब हाइलाइट किया था।

लेकिन जैसे ही ए लोग सरकार में गए, इन का चेहरा बेनकाब हो गया। सब के सब रेशम चौधरी के रिहाई बाले मुद्दा से मूकर गए तो नागरिकता विधेयक के मुद्दा पर मौन व्रत साध लिए। एक बात तो यह लोग भी जानते हैं कि इन दोनों मुद्दा में से एक भी पास करबाना इन लोगो की बस में नहीं है। इसिलीए इन लोगों ने नेपाल बहुल राज्य बाला मुद्दा से बजार को गर्म कर दिए। और अपने मेडिया वाले सेना की मदद से पब्लिक का ध्यान भटकाने में जोड़ तोड़ से लग गए l इन लोगो का कुटलिता यही पर नही खतम हुआ बल्कि ए लोग एक और स्टेप आगे चले गए और बहुल राज्य की मुद्दा पर आंदोलन तक करने की धमकी दे डाली। नेपाल में बहुल राज्य पद्धति का संरचना, मधेश के हित में ही है। इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन सवाल इन नेताओ का नियत का है। कई मित्रो का कहना है की यदि नेपाल बहुल राज्य पद्धति में जाएगी तो, रेशम चौधरी जैसे मुद्दा खुद बखुद हलका हो जाएंगे। इन मित्रो बात तो सत्य है लेकिन बात तो यह भी है की ये बहुल राज्य पद्धति लाना महंथ महतो की बस बात नही है। इसके लिए बहुत बड़ा आंदोलन की जरूरत होगी। सारे के सारे मधेशी को एक होना पड़ेगा। और इसमें वर्षो लग सकते है, काम से कम १० वर्ष और। तो क्या आप रेशम को १० वर्ष तक जेल में ही रहने देंगे?? क्या आप, हमारा नागरिकता विधेयक प्रस्ताव को आग लगा देंगे?

बात यहाँ पर रेशम चौधरी की रिहाई की नही है, नागरिकता विधेयक पास होने का नही है, नेपाल को बहुल राज्य पद्धति में ले जाने का नही है। बात तो यहां पर यह है की रेशम चौधरी की रिहाई और नागरिकता विधेयक का दिखावटी ढोंग तो सिर्फ और सिर्फ ओली को तेल लगा कर कुछ पैसा कमाना था। अब जब इन लोगो को रेशम की रिहाई और नागरिकता विधेयक बाला ढोंग भारी पड़ गया और राजनीतिक कैरियर ही दाउ पर है, तो यह लोग नेपाल बहुल राज्य का मुद्दा उठा कर अपना सियासी चमकाने का फिराक में है।

और दुर्भाग्य के बात यह है की फिर से वही मीडिया सेना के लोग इन के बातो को स्पेस दे रहे है। मीडिया को इन गद्दारों को बातो का इतना ज्यादा स्पेस देना मधेश के हित में कतई नहीं है। बल्कि मीडिया को मधेशी जनता के साथ होना चाहिए और इन ढोंगियों से पहले रेशम की रिहाई और नागरिकता विधेयक पास करवाने को कहा जाए फिर बाद में बहुल राज्यों का मुद्दा पर बात करने को कहे।




हम भी आप ही की तरह दर्शक दीर्घा से ही देख रहे हैं। 

रेशम से पहले सीके को तंग किया गया। वो इसलिए कि बड़ी पार्टीयो का मानना है तुम्हे राजनीति करना है तो हमारी पार्टी से करो। खुद का नेता मत बनो, हमारा कार्यकर्ता बनो। सीके निर्दोष था। रेशम निर्दोष है। जिस दिन मधेसी थारू एक हुवे उस दिन खेल ख़तम। वैसा आप को भी लगता है, उन्हें भी लगता है। 

वो लोकतान्त्रिक चरित्र नहीं हुवा। लोकतंत्र में तो होता है कि थारू और मधेसी के भोट के लिए प्रतिस्प्रधा करते। तुमसे ज्यादा हम काम करेंगे थारू के लिए और मत जितेंगे। वो रवैया होता। नहीं है। 

टीकापुर दुर्घटना के बाद जो चरम दमन हुवा उस पर कहीं मुद्दा मुक़दमा नहीं। 

सत्ता में जाना नहीं है तो राजनीति क्यों करना? चुनाव क्यों लड़ना? सत्ता भी अपनेआप में मुद्दा है। ३० सीट वाले पार्टी के पास १० मंत्री, १२० सीट वाले के पास १५ मंत्री। वो तो जित हुइ। 

लेकिन प्रमुख तो मुद्दा है। 

जसपा का प्रमुख मुद्दा तो है सच्चा संघीयता का स्थापना। तो उप प्रधान मंत्री बनते ही उस बात पर देश को गर्माया। उसको राजनीतिक काम के रूप में ही समझा जाना चाहिए। नयी बात तो नहीं कही। लेकिन उप प्र म हो के भी कहा। देश हिल गया। हिम्मत की बात है। बहुत रिस्क ले के कहा। 

दो तिहाई के बल पर भी नेकपा वो सब न कर सकी जिसका वादा किया था। सबसे प्रमुख वादा तो था कि पाँच साल सरकार चलाएंगे। सिर्फ सत्ता में चिपक के रहते वादा पुरा हो जाता। नहीं कर सके। 

साधारण बहुमत से भी कोसो दुर है जसपा। उस हालत में जितना किया है सत्ता में जाने से पहले बहुत किया है। 

क्रांति सिर्फ तीन बार कसके किया। लेकिन क्रांति के बाद अच्छा से डील न कर सके। इस बार न क्रांति किया न चुनाव जिता। संसद की अंक गणित बदल गयी सिर्फ उतने पर इतना अच्छा डील किया। 

सयकड़ो कार्यकर्ता का मुद्दा फिर्ता। जो मुद्दा खेप रहे थे उनके लिए बहुत बड़ी बात हुवी। रेशम का मुद्दा सर्वोच्च तक पहुँच गया। वहाँ पर वो निर्दोष साबित होंगे क्योंकि वो निर्दोष हैं। उस रोडमैप को शार्ट सर्किट करने का रोडमैप उपलब्ध नहीं है विधि के शासन में। 

अदालत के कठगरे में तो अदालत खड़ी है, रेशम नहीं। एक निर्दोष आदमी को दोषी कैसे घोषित कर दिया?

नागरिकता के बारे में जो बात संविधान में थी और है उसको भी एक संसदीय समिति में लटका के रखे हुवे थे। 

लेकिन इस अध्यादेश को संसद में पास करा के कानुन बनाना होगा। फिर भी नागरिकता समस्या समाधान नहीं हुवा। और भी बाँकी हैं। 

बहुल राज्य तक का रास्ता कठिन है। लेकिन जसपा के फुट्ने से और भी कठिन हो जाता है। नहीं?

नागरिकता, रेशम रिहा, इन सम्पुर्ण बातों पर प्रगति का सबसे अच्छा रास्ता है पार्टी का एक होकर चलना। नहीं?

पार्टी एक रहेगी, एक स्वर में बोलेगी तो फटाफट काम होगा। ज्यादा मिलेगा। 


लथालिंग विपक्ष

राजेन्द्र महतो ले भनेको विविधता 

अहिले देखि चुनाव सम्म को समय 

मोहम्मद इश्तियाक राई

जसपा: मुद्दा राजनीति कि सत्ता राजनीति? 

उपेन्द्र यादव: देर आए, दुरुस्त आए