Saturday, June 05, 2021

जसपा: पार्टी एकता का महत्व

जब नियत में ही खोट हो तो अपने मीडिया वाला सेना के मदद से जनता का ध्यान कैसे भटकाया जाता है यह राजेन्द्र महतो का लेटेस्ट व्यान "नेपाल बहुल राज्य" वाला से सिखा जा सकता है। हम लोग सब जानते हैं कि महन्थ - महतो लोग सरकार में जानें से पहले सिर्फ दो ही बात करते थे। एक रेशम चौधरी का रिहाई और दूसरा नागरिकता विधेयक पास कराना। और इन दोनों मुद्दा को इनके मेडिया बाले शेना ने खुब हाइलाइट किया था।

लेकिन जैसे ही ए लोग सरकार में गए, इन का चेहरा बेनकाब हो गया। सब के सब रेशम चौधरी के रिहाई बाले मुद्दा से मूकर गए तो नागरिकता विधेयक के मुद्दा पर मौन व्रत साध लिए। एक बात तो यह लोग भी जानते हैं कि इन दोनों मुद्दा में से एक भी पास करबाना इन लोगो की बस में नहीं है। इसिलीए इन लोगों ने नेपाल बहुल राज्य बाला मुद्दा से बजार को गर्म कर दिए। और अपने मेडिया वाले सेना की मदद से पब्लिक का ध्यान भटकाने में जोड़ तोड़ से लग गए l इन लोगो का कुटलिता यही पर नही खतम हुआ बल्कि ए लोग एक और स्टेप आगे चले गए और बहुल राज्य की मुद्दा पर आंदोलन तक करने की धमकी दे डाली। नेपाल में बहुल राज्य पद्धति का संरचना, मधेश के हित में ही है। इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन सवाल इन नेताओ का नियत का है। कई मित्रो का कहना है की यदि नेपाल बहुल राज्य पद्धति में जाएगी तो, रेशम चौधरी जैसे मुद्दा खुद बखुद हलका हो जाएंगे। इन मित्रो बात तो सत्य है लेकिन बात तो यह भी है की ये बहुल राज्य पद्धति लाना महंथ महतो की बस बात नही है। इसके लिए बहुत बड़ा आंदोलन की जरूरत होगी। सारे के सारे मधेशी को एक होना पड़ेगा। और इसमें वर्षो लग सकते है, काम से कम १० वर्ष और। तो क्या आप रेशम को १० वर्ष तक जेल में ही रहने देंगे?? क्या आप, हमारा नागरिकता विधेयक प्रस्ताव को आग लगा देंगे?

बात यहाँ पर रेशम चौधरी की रिहाई की नही है, नागरिकता विधेयक पास होने का नही है, नेपाल को बहुल राज्य पद्धति में ले जाने का नही है। बात तो यहां पर यह है की रेशम चौधरी की रिहाई और नागरिकता विधेयक का दिखावटी ढोंग तो सिर्फ और सिर्फ ओली को तेल लगा कर कुछ पैसा कमाना था। अब जब इन लोगो को रेशम की रिहाई और नागरिकता विधेयक बाला ढोंग भारी पड़ गया और राजनीतिक कैरियर ही दाउ पर है, तो यह लोग नेपाल बहुल राज्य का मुद्दा उठा कर अपना सियासी चमकाने का फिराक में है।

और दुर्भाग्य के बात यह है की फिर से वही मीडिया सेना के लोग इन के बातो को स्पेस दे रहे है। मीडिया को इन गद्दारों को बातो का इतना ज्यादा स्पेस देना मधेश के हित में कतई नहीं है। बल्कि मीडिया को मधेशी जनता के साथ होना चाहिए और इन ढोंगियों से पहले रेशम की रिहाई और नागरिकता विधेयक पास करवाने को कहा जाए फिर बाद में बहुल राज्यों का मुद्दा पर बात करने को कहे।




हम भी आप ही की तरह दर्शक दीर्घा से ही देख रहे हैं। 

रेशम से पहले सीके को तंग किया गया। वो इसलिए कि बड़ी पार्टीयो का मानना है तुम्हे राजनीति करना है तो हमारी पार्टी से करो। खुद का नेता मत बनो, हमारा कार्यकर्ता बनो। सीके निर्दोष था। रेशम निर्दोष है। जिस दिन मधेसी थारू एक हुवे उस दिन खेल ख़तम। वैसा आप को भी लगता है, उन्हें भी लगता है। 

वो लोकतान्त्रिक चरित्र नहीं हुवा। लोकतंत्र में तो होता है कि थारू और मधेसी के भोट के लिए प्रतिस्प्रधा करते। तुमसे ज्यादा हम काम करेंगे थारू के लिए और मत जितेंगे। वो रवैया होता। नहीं है। 

टीकापुर दुर्घटना के बाद जो चरम दमन हुवा उस पर कहीं मुद्दा मुक़दमा नहीं। 

सत्ता में जाना नहीं है तो राजनीति क्यों करना? चुनाव क्यों लड़ना? सत्ता भी अपनेआप में मुद्दा है। ३० सीट वाले पार्टी के पास १० मंत्री, १२० सीट वाले के पास १५ मंत्री। वो तो जित हुइ। 

लेकिन प्रमुख तो मुद्दा है। 

जसपा का प्रमुख मुद्दा तो है सच्चा संघीयता का स्थापना। तो उप प्रधान मंत्री बनते ही उस बात पर देश को गर्माया। उसको राजनीतिक काम के रूप में ही समझा जाना चाहिए। नयी बात तो नहीं कही। लेकिन उप प्र म हो के भी कहा। देश हिल गया। हिम्मत की बात है। बहुत रिस्क ले के कहा। 

दो तिहाई के बल पर भी नेकपा वो सब न कर सकी जिसका वादा किया था। सबसे प्रमुख वादा तो था कि पाँच साल सरकार चलाएंगे। सिर्फ सत्ता में चिपक के रहते वादा पुरा हो जाता। नहीं कर सके। 

साधारण बहुमत से भी कोसो दुर है जसपा। उस हालत में जितना किया है सत्ता में जाने से पहले बहुत किया है। 

क्रांति सिर्फ तीन बार कसके किया। लेकिन क्रांति के बाद अच्छा से डील न कर सके। इस बार न क्रांति किया न चुनाव जिता। संसद की अंक गणित बदल गयी सिर्फ उतने पर इतना अच्छा डील किया। 

सयकड़ो कार्यकर्ता का मुद्दा फिर्ता। जो मुद्दा खेप रहे थे उनके लिए बहुत बड़ी बात हुवी। रेशम का मुद्दा सर्वोच्च तक पहुँच गया। वहाँ पर वो निर्दोष साबित होंगे क्योंकि वो निर्दोष हैं। उस रोडमैप को शार्ट सर्किट करने का रोडमैप उपलब्ध नहीं है विधि के शासन में। 

अदालत के कठगरे में तो अदालत खड़ी है, रेशम नहीं। एक निर्दोष आदमी को दोषी कैसे घोषित कर दिया?

नागरिकता के बारे में जो बात संविधान में थी और है उसको भी एक संसदीय समिति में लटका के रखे हुवे थे। 

लेकिन इस अध्यादेश को संसद में पास करा के कानुन बनाना होगा। फिर भी नागरिकता समस्या समाधान नहीं हुवा। और भी बाँकी हैं। 

बहुल राज्य तक का रास्ता कठिन है। लेकिन जसपा के फुट्ने से और भी कठिन हो जाता है। नहीं?

नागरिकता, रेशम रिहा, इन सम्पुर्ण बातों पर प्रगति का सबसे अच्छा रास्ता है पार्टी का एक होकर चलना। नहीं?

पार्टी एक रहेगी, एक स्वर में बोलेगी तो फटाफट काम होगा। ज्यादा मिलेगा। 


लथालिंग विपक्ष

राजेन्द्र महतो ले भनेको विविधता 

अहिले देखि चुनाव सम्म को समय 

मोहम्मद इश्तियाक राई

जसपा: मुद्दा राजनीति कि सत्ता राजनीति? 

उपेन्द्र यादव: देर आए, दुरुस्त आए

लथालिंग विपक्ष

उपधारा (५) माथि शेर बहादुर देउबा को नाचगान 

राष्ट्रपति ले मलाई प्रधान मंत्री बनाएन, अदालत ले बनाइदिनु पर्यो भनेका होइनन देउबा ले? त्यो कति सारहो गैर संवैधानिक प्रवृति! कहाँ लेखिएको छ संविधानमा अदालत ले सरकार बनाउने कुरा? उपधारा (३) मा केपी ओली चिप्लिएको हो नै। तर उपधारा (५) ले देश लाई निर्दलीय व्यवस्थामा लान्छ भन्ने व्याख्या गर्दै हिडेका देउबा जी, प्रचंड जी, माधव जी। अझ बाबुराम जी, उपेंद्र जी। निर्दलीय व्यवस्थामा मात्र हो प्रदेश २ को सरकार फेरबदल हुन सक्ने। जनकपुर किन जाने उपेंद्र जी? 

ओली 

केपी ओली लाई माधव नेपाल ले, प्रचंड ले चार वर्ष अगाडि नचिनेको, अहिले चिनेको? ओली गलत चरित्र को मान्छे हो भने चार वर्ष अगाडि पनि हो। त्यस्तो तपाईं ले भने जस्तो गलत मान्छे देश माथि लादने काम किन गर्नुभो? गर्नुभो भने अहिले जिम्मेवारी किन लिनुहुन्न? जिम्मेवारी साथ लिनुस राजनीति बाट सन्यास। 

गायब विपक्ष 

तीन वर्ष ओली सँग भागबण्डा गर्दै बसेका देउबा जी। अहिले विपक्षी नेता को टोपी लगाउने? तीन वर्ष सम्म विपक्षी नेता बिना थियो देश। धेरथोर त्यो रोल बरु प्रचंड ले नै खेलेको। एक दलीय प्रवृति को मान्छे लाई "बॉम्बार्ड द हेडक्वार्टर" जस्तो लागेको। 

तानाशाही 

चुनाव लड्ने जित्ने पनि तानाशाह हुन सक्छन। भने पछि संसद जोगाउनु पर्ने थियो। संसद पुनर्स्थापना पछि तीन महिना निदाएर बसदिने? यदि ओली तानाशाह हो भने संसद बिना त लगाम बिनाको घोड़ा हुन्छ। संसद किन नबचाएको समय छँदा? लोकतंत्र लाई खतरा छ तर यति खतरा होइन कि महंथ को नाम स्वीकार गर्न सकियोस!

महामारी 

संसद बचाएर राख्नुपर्ने ठुलो कारण थियो महामारी। चुनाव हुन सक्ने अवस्था छैन। तर पाण्डव हरु ले सबै फिर्ता पाएर पनि दोस्रो पटक वनवास जानुपर्ने भएको जस्तै अहिले संसद पुनर्स्थापना भए पनि विगठन हुन दिने ठाउँमा छ विपक्ष। 

जबज र जनवाद बीच संघर्ष 

ओली र प्रचंड को कुरा नमिलेको प्रचंड जबज नमान्ने। जनवाद को लाइन मा देउबा जी आएको हो त!

नया सत्ता: जसपा 

३० वर्षे कार्यकाल सकियो। अब कांग्रेस को विपक्षमा बस्ने पालो। जसपा सत्ताधारी पार्टी हो अब। चुनाव पछि ६० बढ़ी सीट हुन्छ। २० बढ़ी सीट पहाडमा हुन्छ।