Wednesday, May 19, 2021

CK: Corruption Killer


अरविन्द केजरीवाल ने स्पष्ट रोडमैप दिखा दिया है। प्रशांत किशोर ने टेक्निक सब बता दिया है। इस चुनाव में १० सीट, अगले चुनाव में २० सीट वाले रास्ते निकलेंगे सीके तो रविंद्र मिश्र का हाल होगा। समय की आवाज को पहचानना होगा। पहले क्रांति करने के लिए जनता सड़क पर आती थी। अभी तो क्रांति ही खुद घर घर पहुँच चुकी है। गलत लोगों को भोट दो तो साँस तक लेना मुश्किल हो जाता है। जनता तक ये सन्देश पहुँच रहा है। 

चुनाव को चुनाव न समझ कर एक आंदोलन समझना होगा। क्रांति के रूपमें स्वीकार करना होगा। एक दो साल के अंतराल में जिस जनता ने गणतंत्र और संघीयता जितनी बड़ी छलांगे लगायी उस जनता को कम नहीं आँका जा सकता। जनता भ्रष्ट लोगों को नहीं चुनती कि भ्रष्टाचारको क्रांति का मुद्दा अभी तक किसी ने बनाया ही नहीं। 

उस मतदाता का १०० रुपैया पॉकेटमारी करने का प्रयास कर के देखिए। क्या करती है? लेकिन वही मतदाता प्रत्येक साल जो नेता और कर्मचारी एवं व्यापारी अरबो खरबो चोरी कर ले जाते हैं उन्हीं से तो उसके बारे में कोइ रोष नहीं। रोष पैदा करना होगा। नेपाल सरकारका पैसा आपका पैसा है, ये समझाना होगा। अपनत्व की भावना लाना होगा। 

आप ने गलत लोगों को चुना अब सही लोगों को चुनिए, ये तो कोइ सन्देश ही नहीं हुवा। पालिसी लेवल पर भ्रष्टाचार का क्या दवा है आपके पास, वो प्रस्तुत करना होगा। १०० रुपैया कर या बिजली बिल हो तो एक रुपैया नेता लोगों को दे कर ९९ रुपैया हजम करने वाले घराना सबको आप क्या करिएगा? जनताका पैसा कैसे वसुलिएगा? सरकारी ठेकापट्टा पर मोनोपोली ज़माने के लिए ही चुनाव लड्ने वालो का सफाया कैसे करिएगा? केंद्र से स्थानीय तह तक ठेकापट्टा देने का जो प्रक्रिया होता है उसको कानुन के बल पर पुर्ण पारदर्शी और निश्चित मापदंड वाला बनाया जा सकता है। सरकारी तलब खाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपनी और अपनी परिवारकी संपत्ति प्रत्येक साल दर्ज करानेवाला कानुन चाहिए। अख्तियार का पुननिर्माण करना होगा। अभी का अख्तियार चोरो का अखाडा है। 

लेकिन सरकारी तलब खाने वालों का संख्या घटा के सरकारी तलब बढ़ाना भी होगा। भ्रष्टाचार से लडनेका एक तरिका वो भी है। 

पहले भ्रस्टाचार से लड़ेंगे, और वो लड़ाइ जितने के बाद आर्थिक विकास करेंगे आप वैसा नहीं कह सकते हैं। चुइंग गम चबाना और चलना दोनों साथ साथ करना होता है। भ्रष्टाचार से लड़ने का प्रमुख अस्त्र है डबल डिजिट आर्थिक वृद्धि वाला विकास। विदेशी पुँजी भारी मात्रा में नेपाल के भितर लाने की सोंचिए। उसके लिए सरकारी यंत्र को दुरुस्त किजिए। सही पालिसी लाइए।

सन १९८० के हाराहारी में चीन में जब डेंग स्योपिन्ग सत्ता में आए तो गरीबी बहुत थी। तथाकथित सांस्कृतिक क्रांति ने देशको तबाह कर दिया था। भ्रष्टाचार भी बहुत था। अभी जो नेपाल में है वो चीन में था। तो डेंग ने कहा पहला काम करो रेल बनाओ। ये नहीं कहा कि पहले भ्रष्टाचारको ख़तम करेंगे फिर आर्थिक विकास करेंगे। नेपाल के हक़ में भी वो तर्क लागु होता है। आप चाहते हैं सभी समुदायों को समानता और अधिकार मिले? आर्थिक विकास पर फोकस करिए। आप चाहते हैं भ्रष्टाचार कम हो? आर्थिक विकास पर फोकस करिए। जनमत पार्टीका पहला नजर इस बात पर रहना चाहिए कि दो अंको वाली आर्थिक वृद्धि देशको कैसे देंगे। 

इसका मतलब समानता और अधिकार आफसेआफ मिल जाएगा वो नहीं। इसका मतलब भ्रष्टाचार का उपचार जरूरी नहीं वो नहीं। भ्रष्टाचार को दोनों सिंग से पकड़ के पछारे बगैर वो दो अंको वाला आर्थिक वृद्धि संभव ही नहीं। 

डेंग ने कहा रेल। अर्थात भौतिक संरचना (physical infrastructure)। सोंच ये था कि आप भौतिक संरचना बनाएंगे तो आर्थिक गतिविधि स्वतः बढ़ेगी। अफ्रिका में गोरे लोग जाते हैं तो पहला बात कहते हैं भ्रष्टाचार को कंट्रोल करो। चीन जाती है तो कहती है बोलो रेल कहाँ बनाना है। चीन को बखुबी मालुम है कि अफ्रिका में भ्रष्टाचार हो रहा है और बड़े पैमाने पर हो रहा है। 

रास्ते तो बन रहे हैं, और बनेंगे। बनने चाहिए। 

तरकारी खेती के रास्ते प्रति व्यक्ति आय हजार डॉलर से २०,००० डॉलर 

एक बिघा जमीन पर धान खेती के जगह तरकारी खेती करिए तो एक रुपया के जगह सौ या पचास कमाएंगे। मैंने इस हिसाब में सिर्फ २० माना। मधेसके २२ जिलों में १२ मास सिंचाइ का व्यवस्था करके प्रत्येक खेत को तरकारी खेत बनाने का मतलब होगा नेपाल में प्रति व्यक्ति आय एक हजार डॉलर से बढ़ के २०,००० डॉलर हो जाना। उतना करने के लिए नेपाल में लोग अभी ही प्रयाप्त शिक्षित हैं। पहाड़ से जितना आना है आओ। खेत में काम करो। आधा तो आ ही जाओ। देशके ७०% लोग मधेस में ही रहे। रेफ्रिजरेटेड रेल से बर्दिबास से कोलकाता बंदरगाह और वहां से रेफ्रिजरेटेड बड़े बड़े जहाज जो कि छोटे मोटे शहर ही होते हैं सब जगह: चेनाई, मुम्बई, दुबई, उधर सिंगापोर, शंघाई। 



कसलाई अक्सिजन चाहिएको छ? कसलाई हस्पिटलमा बेड चाहिएको छ? कसलाई भेन्टिलेटर र आइसियू चाहिएको छ? कसलाई सस्तो र सुलभ उपचार चाहिएको छ? कसलाई राम्रो शिक्षा र रोजगार चाहिएको छ? यहाँ जनतालाई त आफ्नो नश्लको, आफ्नो जातिको, भ्रष्ट, निकम्मा, भिज़नहीन, पटक पटक असफल साबित भइसकेका सड़ेगलेका थोत्रा पार्टी र नेता भए पुग्छ !

तीनै तहको सरकारलाई पूरा पूरी एक वर्ष तयारी गर्ने अवसर त कोभिड-१९ ले दिएकै हो। कोभिड-१९ सँग जुझ्न सबै बजेट दिन पनि कसैको असहमति रहेन। जस्तो सुकै गरीब बेरोजगार असहाय जनता भए पनि तिनीहरूले आफ्नो बालबच्चाहरूलाई भोकै राखेरै भए पनि हरेक लकडाउन र निषेधाज्ञा मात्रै हैन, सरकारका हरेक आज्ञाहरू पालन गरेकै हुन्, सरकारलाई कर बुझाएकै हुन्, सरकारलाई पालेकै हुन्। मन्त्री सांसददेखि स्थानीय सरकारका प्रमुखहरूको लागि महँगा चिल्ला गाडी किनिदिएकै हुन्, तारे होटलमा विलास गर्ने खर्च तिरिदिएकै हुन्, आफ्नो ढाड सेकेर भए पनि तिनीहरूलाई सपरिवार विदेश शयर गर्न पठाएकै हुन् ।

तर सरकारले जनतालाई के दियो? मर्नै लाग्दा पनि एक मुठ्ठी साँसको व्यवस्था गर्न सकेन -- स्थानीय छोटेराजाहरूले होस् कि प्रदेशका भ्रष्ट नवराजाहरूले कि संघीय सरकारका सदाबहार शोषकहरूले। कसैलाई आफ्नी श्रीमती र आफन्त अस्पतालको ढोकामा अक्सिजन नपाएर, भर्ना लिन न मानेर, छटपटाएर बितेको हेर्नु परेको छ, भने कसैलाई आफ्नो बालबच्चा अक्सिजन बिना काखमै मृत्युवरण गरेको साक्षी बन्नु परेको छ। आखिर अक्सिजन बिना १० मिनेट पनि बाँच्न सकिँदैन।

तर यति झेल्दा झेल्दै पनि भोलि त्यही मान्छे त्यही काँग्रेस, एमाले, माओवादी र जसपाकै झण्डा बोकेर जुलुसमा जानेछन् (गएकै हुन्); ५००-१००० रुपैयाँ लिएर त्यही काँग्रेस, एमाले, माओवादी र जसपालाई भोट हाल्नेछन्; त्यही काँग्रेस, एमाले, माओवादी र जसपाको नेताहरूका लागि बचाउमा ओर्लिनेछन्। ओर्लेकै हो। एक वर्ष अघि कोभिड-१९को महामारी झेलेपछि दशैं आउँदासम्म चियापान गर्न र त्यही भ्रष्ट नेताहरूको जयजयकार गर्न जनता ओर्लेको हैन? त्यही कोभिड-१९कै लागि स्वास्थ्य सामग्रीमा समेत चरम भ्रष्टाचार गरेको सरकारको समर्थनमा दुई-दुई हजार रुपैयाँ लिएर काठमाडौंको सभामा ओर्लेका होइनन्? कोभिड-१९ अलिकति शान्त हुनेवित्तिकै त्यही भ्रष्ट स्थानीय र निकम्मा प्रदेश सरकारको जयजयकार गरेका होइनन्?

अनि बेकारको के को गुनासो हो ? भ्रष्ट, सड़ेगलेका र पटक पटक असफल साबित भइसकेका थोत्रा पार्टी र नेता पनि नछोड़ने, अनि राम्रो व्यवस्थाको पनि अपेक्षा गर्ने? यो हुनै सक्दैन।

संघीय र प्रदेश सरकारको त कुरै छाडौं, आज एउटा भिज़न भएको गाउँपालिका/नगरपालिका अध्यक्ष मात्रै भएको भए, त्यही गाउँपालिकामैं अक्सिजन प्लान्ट जडान हुनसक्थ्यो, कोभिड-१९ अस्पताल निर्माण हुनसक्थ्यो, कोही भोको बस्नुपर्ने र उपचार नपाएर छटपटाएर मर्नु पर्ने अवस्था आउने थिएन। तर त्यतिबेला पोखरी सौन्दर्यीकरण, भ्यूटावर, र खाली कमिशन आउने गिट्टीवालुवाको कारोबारको कमिशनमा रमाउने, अनि अहिले राम्रो स्वास्थ्य सुविधा, भेन्टिलेटर, अक्सिजन आपूर्ति खोजेर हुन्छ?

आत्मसमीक्षा जरूरी छ। र जुन समाज आफ्नो र आफ्नो प्रियजन अक्सिजन नपाएर छटपटाउँदा पनि अन्तरात्मा भेटाउन सक्दैन, र भ्रष्ट सड़ेगलेका पुराना पार्टीहरूमै रमाएर बस्छ, त्यो समाज पतन भए कुनै आश्चर्यको कुरा हो र?



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