Dire COVID-19 Situation in India Unfortunately is Just Beginning Current COVID-19 situation in India is dire with a...
Posted by Madhav Bhatta on Saturday, April 24, 2021
The only full timer out of the 200,000 Nepalis in the US to work for Nepal's democracy and social justice movements in 2005-06.
Saturday, April 24, 2021
India And The Pandemic
"India will likely exceed 1.1 million new cases reported daily. The daily death tolls will likely reach over 7,000 a day. ............... The daily death tolls will likely reach over 7,000 a day. There is no reason to expect the transmission to slow down immediately as non-pharmaceutical mitigation measures-- masking, social distancing, and limiting gatherings-- have not been really adopted in recent months .......... The only way to slow down the epidemic in the short-term is to adopt those measures immediately, Unfortunately, India cannot vaccinate or treat itself out of the current surge. Only about 1% of the population has been fully vaccinated and the healthcare system has collapsed. ......... Why did this have to happen a year after the pandemic began, when highly effective non-pharmaceutical mitigation measures were known, multiple effective vaccines were available, and the country was the largest producer of vaccines globally?"
मेरा परिचय: मैं एक प्रवासी डिजिटल एक्टिविस्ट
मैं एक प्रवासी मधेसी, एक प्रवासी नेपाली। न्यु यॉर्क में रहता हुँ। नेपाल में काठमाण्डु जो है, दुनिया में न्यु यॉर्क वही है: राजधानी। कोइ जनकपुर से काठमाण्डु जाता है तो नहीं कहते अरे घर छोड़ के चले गए। मैं जब जनकपुर से काठमाण्डु जाया करता था तो रात्रि बसमें भर रात का सफर होता था। तो अभी दिल्ली से न्यु यॉर्क के डायरेक्ट फ्लाइट में बारह घंटे तो ही लगते हैं। उतना दुर तो नहीं।
मैं प्रवास में ना होता तो सन २००५, २००६ और २००७ में जो मैंने काम किया वो शायद न कर सकता। लोकतंत्र के लिए। फिर मधेसी क्रांति के लिए। मेरा रोल क्या? मैंने जो किया उसे पत्रकारिता नहीं कहते। मुझे एक डिजिटल एक्टिविस्ट (digital activist) कह लिजिए। किसी संगठन में पद तो दुर की बात, सदस्यता तक नहीं। अगर मैं नेपाल में होता तो जसपा अथवा जनमत पार्टी के केन्द्रीय समिति में होता। तो जसपा अथवा जनमत पार्टी के किसी भी केंद्रीय सदस्य से मैं कम योगदान करता हुँ वैसा तो मुझे नहीं लगता। वो भी कोइ पद लिए बगैर। तो नेपाल में रह के जो पद लेते हैं उसे भी आप भराबुला कहेंगे, जो पद न ले उसे भी, तो वो तो नाइंसाफी हुइ। पद लेनेवालों की कमीं नहीं। हम बगैर पद के ही ठीक हैं। अपना काम कर रहे हैं। राजनीतिक विचार, रणनीति पेश करते रहते हैं। सुनने वालों पर कोइ प्रेशर भी नहीं रहता कि मेरा किया ही करो।
उजाले के गति में सुचना प्रवाह होती है। बहुत लोग जुड़े रहते हैं। लेकिन ये भी है कि आप सिर्फ न्यु यॉर्क टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट पढ़ के अमेरिकी राजनीति नहीं समझ सकते। उसी तरह सिर्फ ऑनलाइन न्युज पढ़ के नेपालकी राजनीति समझी नहीं जा सकती। तो लोगों मिलने का काम तो वहां के फुल टाइमर लोग तो करते ही हैं।
नेपालके राजनीति में मैं देखता हुँ एक से एक काबिल लोग सब हैं। सन २००५ और २००६ में लोकतंत्र के लिए खटने वाले अमेरिका के नेपाली लोगों में से मैं अकेला फुल टाइमर था। दिन रात सुबह शाम हप्ते में सात दिन। मेरा ग्रीन कार्ड था, एक्सपायर हो गया पता भी नहीं चला। उसके बाद से अभी तक जो सब हुवा है नेपाली राजनीति में मेरे को कभी ग्लानि नहीं हुइ। लोकतंत्र एक नीट एंड क्लीन व्यवस्था नहीं होती। अधिकांश मेडीओकर (mediocre) लोग ही प्रधान मंत्री बनेंगे। वैसा होता है। नेता लोगो का रोल होता है। जनता की भी रोल होती है। सिस्टम बनाने में वक्त लगता है।
मैं नयु यॉर्क शहर में लेकिन नहीं। मेट्रो एरिया में हुँ। एक छोटा सा गाओं है। इतना छोटा की मुझे जहाँ जहाँ जाना होता है पैदल ही पहुँच जाता हुँ। मेरा न अपना घर है न गाडी। अमेरिकन ड्रीम कहने वाले कहते हैं: घर और गाडी। मैंने कई मर्तबा प्रयास किया टेक स्टार्टअप शुरू करूँ। अभी एक किताब लिख रहा हुँ। फिर से एक बार प्रयास करूँगा टेक स्टार्टअप। मेरे को लगता है नेपाल, बिहार, भारत, अफ्रीका के अरबो लोगो की सेवा करने की सबसे अच्छी रास्ता शायद वही है। इसलिए।
(फोटो: नवंबर २०१५)
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