Saturday, February 27, 2021

सीके राउत: एक आलोचना

सीके राउत जी। 

अपने प्रवास से शुरू कइली। नेपाल गेला के बाद भी अपने के लक्ष रहे जे १० साल पहले गृह कार्य करब। लेकिन अपने के बार बार जेल में ध के अपने के उ समयतालिका फ़ास्ट फॉरवर्ड क देल गेलै। अपने के आत्म जीवनी पढ़लि। अपने के विश्लेषण पढ़लि। बहुत सटिक। अपने के कहब जे नेपाल के भितर मधेसी के प्रति अतेक ज्यादा भेदभाव छै कि मधेस अलग देश के अलाबे औरो कोनो रास्ता नै छै। अपने के ओइ बात पर मनन नै कइली आ चाहे आजकल नै करै छि से बात नै छै। सिद्धांत और आदर्श एक चीज भेलै। लेकिन राजनीतिक रणनीति त भी कुछ होइ छै। नेपाल के भितर मधेसी के प्रति भेदभाव छै और ओकर समाधान छै संघीयता कहेवाला लोग सब के बात पर भी त मनन करे के पड़तै। करैत आ रहल छियै। लेकिन अपने के इ कथन जे मधेसी के प्रति बहुत ज्यादा भेदभाव छै तै से त असहमत कहियो नै भेलौं। दुर भविष्य में मधेस अलग देश भ भी सकै छै। आ चाहे नेपाल और भारत के राजनीतिक एकीकरण भी भ सकै छै। नेपाल के और दक्षिण एशिया के विगत २०० आ चाहे २,००० साल के नक्शा देखियौ। सदा गतिशील। 

लेकिन निकट भविष्य के आधार पर निर्णय सब लेबे के बखत छलै और अभी छै। मधेस प्रति भेदभाव छै लेकिन अभी के अवस्था में मधेस अलग देशके नारा प्रत्युत्पादक भ जाइ छै, तै किसिम के असहमति प्रकट करितो हम हर समय इ कहलि कि सीके राउत अगर कहै छै मधेस अलग देश त उ वाक स्वतंत्रता भेलै। शांतिपुर्वक अपन बात कोइ राखि सकैय। संविधान प्रदत अधिकार भेलै उ। लेकिन अपने के तंग करिते रहि गेल। 

भु-राजनीति देखियौ। भारत और चीन के बीच ओतेक ज्यादा टेंशन रहै छै लेकिन मधेस अलग देश के मुद्दा पर दुन्नु एक रहतै। कोनो भी हालत में नै होबे देतै। नेपाल एक से दु होबे के मतलब चीन एक से पाँच, भारत एक से २० के रास्ता पर चलनाइ शुरू। उ डर रहतै। और चीन और भारत के नेपाल के भितर चलै छै। सिर्फ चीन अथवा सिर्फ भारत से सीधा मुठभेड़ क के नेपाल के भितर आगे बढना संभव न। दुन्नु से एक्के बेर सीधा मुठभेड़ सही रणनीति नै रहै। त उ विश्लेषण क के खुद से मधेस अलग देश के नारा से हट के संघीयता के रास्ता पर अबिती त कतेक अच्छा होइतै? लेकिन अभी केपी ओली सन आदमी सब कहेवाला जे सीके राउत के जेल में ठुंस के ही सही मध्य मार्ग में ला के छोड़लि। 

बीपी कोइराला राजतन्त्र के आजीवन न छोड़लकै लेकिन नेपाली कांग्रेस अंततः गणतंत्र के लाइन पर अलै जे कि कोनो पार्टी महाधिवेशन से पारित लाइन न। तहिना संघीयता नेका और नेकपा के एजेंडा कहियो न। लेकिन नाक मुँह झाँपि के स्वीकार कलकै। राजनीतिक यथार्थ फेस कलकै। देखलकै पैर तले जमीन खिसैक गेल। माओवादी १० साल जनयुद्ध कलकै एक पार्टी शासन स्थापित करे के लेल लेकिन समाजिक राजनीतिक यथार्थ के अध्ययन क के सात पार्टी से मिललै। बहुदल मानले हइ। 

अभी आहाँ के लाइन हबे अगला चुनाव में १० लाख भोट लाबि। त जनता के इमानदारीपूर्वक स्पष्ट ढंग से कहियौ हमरा १० लाख भोट दिय ताकि हम पाँच साल हाथ पर हाथ ध के बैठ सकु। जै देश में संघीयता सिर्फ देखावटी छै और सब अधिकार अभी भी काठमाण्डु में केंद्र सरकार के पास छै, मतदाता डेढ़ करोड़, भोट खसाबेवाला एक करोड़ छै, जहाँ सबसे नमहर पार्टी ४५ लाख और दोसर पार्टी ३५ लाख भोट लाबै छै, और दुन्नु मधेस के अधिकार और अस्मिता के सख्त विरोधी होबे वहाँ अपने १० लाख भोट ला के कथि करबै? राजनीति के लक्ष सत्ता ही होइ छै। भोट दिय ताकि हम सत्ता में पहुँच के अपने के लेल काम करि। सेहे अनुरोध नै रहै छै? 

प्रथम प्रश्न त उठत आहाँ उ १० लाख भोट लबै कि न लबै? ओहु से पहले प्रश्न उठत राष्ट्रिय पार्टी भी बनबै कि न? आहाँ खुद चुनाव जितबै कि न? जितबै त कोन जगह से? जहाँ जम्मा एक करोड़ भोट के बात छै वहाँ १० लाख भोट लाबे वाला पार्टी या त विपक्ष में बैठत या त मिलीजुली सरकार बनावे के प्रयास करत। भाजपा छोट रहै त जनता दल से मिल के सरकार बनलकै। भाजपा के जनता दल से बहुत बात न मिलै छै। नेपाले में कांग्रेस कम्युनिस्ट मिल के पंचायत के गिरलकै। बाद में सात पार्टी और माओवादी तहिना मिल के राजतन्त्र के ख़तम कयलक। यथास्थिति के अध्ययन क के तेना रणनीति तय करे के होइ छै। 

दु नम्बर प्रदेश में कोन पार्टी के सरकार बनत आ चाहे दु नंबर भितर स्थानीय तह पर कोन पार्टी के सरकार बनत तहि से मधेसी के अधिकार, अस्मिता और समृद्धि के मुद्दा समाधान भ जतै से नै छै। अभी भी प्रमुख लड़ाइ केंद्र में छै। 

या त भ्रष्टाचार के मुद्दा पर लेजर फोकस क के कमसेकम मधेस के २२ जिल्ला में आंदोलन करू अन्ना हजाड़े और अरविन्द केजरीवाल जिका और तै २२ जिल्ला में १० लाख भोट न बल्कि स्वीप क के देखाउ। जेना दिल्ली स्वीप कलकै केजरीवाल। आ न त अइ बात के मानु कि जनता के लेल काम करे के लेल सत्ता में जाए के पड़बे करतै, १० लाख वाला पार्टी के लेल से रास्ता गठबंधन के रास्ता ही भेलै, और चुनाव के बाद के गठबंधन से ज्यादा फायदा चुनाव से पहले के गठबंधन से होइ छै, और मुद्दा के हिसाब से अपने के जनमत पार्टी से मिल्दोजुल्दो पार्टी जसपा ही भेलै, कियक त दुन्नु अपन पहिचान बनएले छै मधेशीके अधिकार और अस्मिता के मुद्दा के पकड़ि के। मधेस के २२ जिल्ला में ५०-५० सीट बाड़ी के लड़े के सोचु। तै आधार पर भी स्वीप कयल जा सकै छै। जसपा और जपा दुन्नु १०-१० लाख भोट अगर ललकै त केंद्र में दुन्नु पार्टी निर्णायक भ जतै। तै अवस्था में शायद केंद्र में केकरो बहुमत न रहत। 

समय भी त कम छै। एक साल में शायद स्थानीय चुनाव होतइ। दु साल में केंद्र के चुनाव। अभी आहाँ के पार्टी महाधिवेशन भी बाँकी हबे। फेसबुक पर देख रहल छि आहाँ बराबर दौड़ाहा में रहै छि और आहाँ के पार्टी के कार्यक्रम सब में काफी संख्या में लोग उपस्थित रहैय। सराहनीय बात छै। 

लेकिन जेना बहुत लोग कहैय ओली जेल में ठुंस के सीके के मध्य मार्ग पर ललकै तेना लोग इ न कहे जे सीके कहौ इ क देबौ उ क देबौ लेकिन हाथ पर हाथ ध के बइठल हउ, कहाँ गेलै १० लाख के रोजगारी? आ चाहे इ न कहे जे आब नेका, नेकपा, जसपा सबसे मिले चाहै छै आ पहले कहौ सब के जे म्याद गुजरि गेल औषधि छौ बलु। 

रणनीतिक गलती न करू। या त अन्ना हजाड़े और अरविन्द केजरीवाल वाला रास्ता पकडु आ १० न २० अथवा २५ लाख भोट लाबे के सोचु। आ न त जसपा के साथ चुनावी गठबंधन करू। से कहब। 



Thursday, February 25, 2021

ओली को राजीनामा नदिने निर्णय

सर्वोच्च्को संसद पुनर्स्थापना पछि ओली को राजीनामा नदिने निर्णय बड़ा अचम्मको छ। यहाँ बहुमतको होइन नैतिकताको कुरा छ। संविधान पढ्ने साक्षरता मसँग छैन भनेर राजीनामा दिने हो। संसद विगठनको गलत सिफारिस प्रयाप्त कारण हो राजीनामा दिने। 

त्योभन्दा उदेकलाग्दो छ अबको प्रधान मंत्री पनि ओली नै हुन्छन् भन्ने ओली को आसेपासे हरुको तर्क। एक छिन त म घोतलियेको पनि। सर्वोच्च्को निर्णयमा सेटिंग देखिएन, सेटिंग अब पो हुने हो कि भने जस्तो। 

राजनीतिक अस्थिरता बाट निकै चेतेका मानिसहरुले लेखेको संविधान जस्तो देखिन्छ। संसद विगठन गर्न नपाउने भने जस्तै अर्को कड़ा प्रावधान छ पार्टी फुटाउन नपाउने प्रावधान। पार्टीको केन्द्रीय समितिमा पनि र संसदीय दलमा पनि कमसेकम ४०% छैन भने पार्टी फुटाउन पाइएन। ओली को केन्द्रीय समितिमा २५% पनि छैन। संसदीय दलमा ४०% जति देखिन्छ तर त्यो कति दिन सम्म? 

नेकपाले संसदीय दलको बहुमतले आफ्नो नेता फेरि सक्यो। संसद जब बस्छ तब अविश्वासको प्रस्ताव दर्ता हुन्छ। व्हिप जारी गर्ने नया नेताले हो, अर्थात प्रचण्डले। नेकपा, नेका, जसपा सबैले अविश्वास प्रस्तावको समर्थन गर्ने पुर्ण संभावना छ। ओली को त संसदीय सीट नै जान्छ र उपनिर्वाचन हुन्छ झापामा। ओली गुट भनेर चिनिएका सांसद हरु या त पार्टी फुटेन भनेर माउ पार्टीमा आउनु पर्यो (चाहे त्यहाँ भित्र गुट चलाएर नै किन नबसुन) होइन भने ८० जना जतिको संसदीय सीट गुम्छ र ती सबै ठाउँमा उप निर्वाचन हुन्छ। मध्यावधि निर्वाचन त भएन भएन तर ८० सीट मा मात्र उप निर्वाचन हुन्छ भने त्यसलाई सानोतिनो मध्यावधि निर्वाचन नै भन्नुपर्ने हुन्छ। हो न हो यो ओली ले सानो भए पनि मध्यावधि निर्वाचन गराएरै छाड़े भन्ने हुन्छ। 

तर कुरा त्यहाँ सम्म शायद नपुग्ला। अहिले लाई नेकपा भित्र नै बसौं, पछि चुनाव नजिक पुगेपछि अर्को पार्टी दर्ता गरौंला ओली को नेतृत्वमा भनेर बस्न पनि सक्छन। तर त्योभन्दा ओली एकलिने संभावना बढ़ी छ। 

अविश्वास प्रस्ताव दर्ता गर्नेले वैकल्पिक प्रधान मंत्री को नाम पनि दिनैपर्ने प्रावधान रहेछ। देउबाले मोही माग्ने ढुङ्ग्रो लुकाउने गर्नु हुँदैन। आफ्नो नाम प्रयोग गर्न दिनुपर्छ। होइन भने जसपा कै उपेन्द्र यादव को नाम सारे भो। नेकपा, नेका, जसपा तीन वटा पार्टीले मिलेर अविश्वास प्रस्ताव दर्ता गर्दा। 

संसद बसेको प्रथम दिन नै अविश्वास प्रस्ताव दर्ता भएन भने ओली ले चलखेल गर्न पाउने देखिन्छ। फेरि संसद अधिवेशन समाप्त गरिदिन सक्छन। समय त खेर जान्छ। तुरुन्त ओली लाई पदच्युत नगरिकन नेकपा, नेका र जसपाको नया सरकार बनाइँदैन भने देश अर्को भुमरीमा फँसछ। तीन पार्टीको सरकारको प्रमुख एजेंडा नै मधेसले खोजेको संविधान संसोधन हुनुपर्छ।

नेपाली कांग्रेस लाई लाग्ला नेकपा दुई फ्याक भएको राम्रो। त्यो त भइसक्यो। राजनीतिक रुपमा। तर कानुनी रुपमा दुई हुने बाटो तत्काल छैन। संसद बसेको प्रथम दिन अविश्वास प्रस्ताव दर्ता नहुने अवस्था आउन दिनु हुँदैन कांग्रेस ले।