सपा, राजपा, जपा र त्रिपा को एकीकरण
समाजवादी पार्टी ले १० प्रदेशको कुरा उठाएर देशमा तेस्रो ध्रुवको निर्माण गर्न सक्छ
पार्टी एकीकरण का समय
नेपालमें सच्चा संघीयता लागु करने से पहले आर्थिक क्रांति संभव ही नहीं है। या तो आप इस बातको मानते हैं या नहीं। मैं कसके मानता हुँ। आर्थिक क्रांति का परिभाषा हुवा लगातार २०-३० साल तक नेपालमें आर्थिक वृद्धिका दर दो अंको का होना। डबल डिजिट ग्रोथ जिसे कहते हैं अंग्रेजी में। तो नेपालमें आर्थिक क्रांति अभी चाहिए कि ५० साल बाद आने से भी काम चलेगा? अभी नहीं ३०-४० साल पहले होना था। बहुत समय जाया गया। तो आर्थिक क्रांति की जल्दबाजी अगर है देशको तो देशको सच्चा संघीयता देना होगा। जिस तरह पंचायती व्यवस्था और राजतन्त्र लोकतंत्र के विरोधी शक्ति थे उसी तरह कांग्रेस और कम्युनिस्ट सच्चा संघीयता विरोधी शक्ति हैं। उनके विरुद्ध सिर्फ मोर्चाबंदी करने से काम नहीं चलेगा। एक तीसरी पार्टी की निर्माण करनी होगी। जनतासे आन्दोलन कर उनसे अंतिम बलिदान मांगने वाले नेता लोगो को समझना होगा कि जनता अंतिम बलिदान देती है तो नेता लोगो को कमसेकम चाहिए कि वो अपना गृह कार्य करे। आजके सन्दर्भमें वो गृह कार्य पार्टी एकीकरण और संगठन निर्माण एवं विस्तार ही है। आप कितना भी आंदोलन कर लिजिए लेकिन संसद में अंक गणित नहीं जुटा पाते हैं तो आपकी जो एजेंडा है वो पिछे पड़ी रहेगी। यानि कि अगला स्थानीय, प्रादेशिक और संसदीय चुनाव को डेडलाइन मानके चलना होगा। चुनाव से कमसेकम एक साल पहले पार्टी एकीकरण का काम ख़त्म हो जाना चाहिए। चुनावमें बुरी तरह हार जाने के दो महिना बाद पार्टी एकीकरण करना न करना बराबर होगा। सिर्फ मधेसी को नहीं जोड़िए संविधान संसोधन से। अंक गणित फिका पड़ जाता है। सिर्फ जनजाति को नहीं जोड़िए। अंक गणित दो तिहाई पहुँच जाती है लेकिन राजनीतिक चेतना उस कदर नहीं है अभी तक। संविधान संसोधन को सच्चा संघीयता से जोड़िए और सच्चा संघीयता को आर्थिक क्रांति से ताकि शत प्रतिशत नेपाली जनता को टारगेट किया जा सके। आर्थिक क्रांति तो सभी को चाहिए। बाहुन क्षेत्री को भी चाहिए। सरकारी जागीर करने वाले बाहुन क्षेत्री सिर्फ कुछ लाख होंगे। बाँकी में अधिकांश तो गरीब ही तो हैं। सरकारी जागीर करने वाले बहुसंख्यक भी गरीब हैं। सामाजिक न्याय का मुद्दा उठाना बहुत जरुरी है। लेकिन उससे मुख्य रूपसे दमजम को सम्बोधित किया जा सकता है।
पार्टी एकीकरण का समयतालिका
कुछ साल के प्रयास के बाद उपेन्द्र यादव और बाबुराम तो मिल गए। मोर्चा नहीं बनाया। पार्टी एकीकरण की। मोर्चा बनाने की बात बेतुक बात है। मुद्दा कठिन हो तो मोर्चाबंदी से काम नहीं चलेगा। फोरम और नया शक्ति एक हो गए। अब अगला कदम है सपा और राजपा एक हो जायें। नया शक्ति का फोरम में एक हो जाने से अंक गणित में बहुत फर्क नहीं हुवा है। पहले जो ५०-५० था उसमें थोड़ा १९/२० हुवा है। सपा और राजपा एक होने के बाद शायद तीसरा नम्बर आता है सीके राउतका। अकेले वो चुनाव लड़ेंगे तो जाने नजाने केपी ओली द्वारा प्रयोग हो जाएंगे। सपा और राजपा का भोट काटेंगे, खुद मधेसमें ५% या उससे कम पर अटक जाएंगे। सपा और राजपा का भोट काट कर मधेसमें कांग्रेस कम्युनिस्ट के जीतका मार्ग प्रशस्त करेंगे। वो नहीं होने देना है। मुद्दा जब हुबहु मिलता हो तो अलग पार्टी चलाने का मतलब क्या? अन्त में शायद हृदयेश त्रिपाठी आ सकेंगे। १०-१२ महिने में जब प्रचंड प्रधान मंत्री बनेंगे तो हृदयेश त्रिपाठी का उस मंत्री मंडल में आने की संभावना है। मंत्री बनना बड़ी बात नहीं। वो जरुरी चीज नहीं है। लेकिन ओली से अलग चल कर अगर प्रचंड संविधान संसोधन का मुद्दा आगे बढ़ाते हैं जैसा कि सोंचा जा रहा है तो हृदयेश के उस प्रयोग के लिए भी थोड़ा समय दे दिया जाए। उपेन्द्र यादव भी तो उसी आशा में मंत्रीमंडल में बैठे हुवे हैं। पुर्व माओवादी वाले भले संविधान संसोधन की बात करे पुर्व एमाले वाले जो कि बहुमत में हैं वो रोड़ा अड़कायेंगे ऐसा अनुमान किया जाता है। तो प्रयोग असफल होने के बाद हृदयेश त्रिपाठी या तो नया झंडा ढूढ़ेंगे या तो फिर उनकी राजनीति समाप्त हो जाएगी। छोटेमोटे कई जनजाति पार्टियां हैं। उन्हें भी मुद्दा के आधार पर एक एक कर के एकीकरण करते हुवे आगे बढ़ना होगा।
पार्टी एकीकरण का अंकगणित
फोरम और राजपा ५०-५० पर थे। अब नया शक्ति से मिलने के बाद शायद सपा को थोड़ा और बड़ा मानना होगा। अब शायद ५५-४५ पर बात हो। पार्टी एकीकरण की बात शुरू होते तक सीके राउत के जनमत पार्टी की सदस्य संख्या कितनी पहुँचती है। वो देखना होगा। अगर पार्टी सदस्य संख्या एक लाख से उपर ले जाते हैं तो सपा प्लस राजपा को २/३ और जनमत पार्टी को एक तिहाई मान कर एकीकरण किया जा सकेगा। सीके राउत को पार्टी में प्रथम पाँच में एक पद देना होगा। हृदयेश त्रिपाठी को तो कपिलवस्तु या रुपन्देही या परसा महोत्तरी कहीं एक सीट देना होगा। उनके कुछ साथीयों को पश्चिम तराई में टिकट। हृदयेश संसदीय मनस्थिति ले के चलते हैं। हृदयेश को पार्टी भितर पद अंक गणित नहीं केमिस्ट्री और हिस्ट्री के आधार पर दिया जाना जरुरी है। एक सम्मानजनक पद।
चुनाव से एक साल पहले पार्टी एकीकरण का काम ख़त्म कर लेने के बाद एक नजर कांग्रेस पार्टी पर भी डालने की जरुरत पड़ सकती है। लेकिन पहले मुद्दा की बात होगी। संविधान संसोधन के मुद्दे पर कांग्रेस एक ज्वॉइंट मेनिफेस्टो पर अगर तैयार हो जाती है तो उसको मधेसमें २५% और पहाड़में ५०% सीट देकर एक मोर्चा बनाया जा सकता है। लगभग दो तिहाई पर रही नेकपा को फेकना है तो उतना करना पड़ सकता है।
पार्टी एकीकरण की केमिस्ट्री
केमिस्ट्री में प्रथम बात तो मुद्दा ही है। मुद्दा स्पष्ट है। लेकिन विभिन्न नेताओं के पर्सनालिटी की भी बात आ जाती है। पार्टीका अध्यक्ष कौन बने? ये केमिस्ट्री की बात नहीं है। ये अंक गणित की बात है। लेकिन इसको केमिस्ट्री की बात बना कर अभी तक पार्टी एकीकरण को न होने देने का काम किया गया है। उपेन्द्र यादव को लगता है मुझे पार्टी अध्यक्ष मानिए दो मिनट में पार्टी एकीकरण हो जाएगा। राजेन्द्र महतो को लगता है उपेन्द्रजी अध्यक्ष मंडल में एक सीट आप भी ले लिजिए। ऐसे में मुद्दा गौण हो जाता है। जो ओली संविधान संसोधन का विरोध कर के ही चुनाव जिता है उसी ओली को अनुनय विनय करने पहुँच जाते हैं कि संविधान संसोधन करो।
आपको पार्टी अध्यक्ष बनना है तो व्यापक संगठन विस्तार करिए ताकि ज्यादा से ज्यादा महाधिवेशन प्रतिनिधि आपको मत दें। और उस अंक गणित के आधार पर बनिए पार्टी अध्यक्ष। लेकिन पार्टी अध्यक्षता सिर्फ अंक गणित की बात नहीं है। पार्टी के अंदर एक ऐसी राजनीतिक संस्कृति होनी चाहिए की नेतृत्व परामर्श खोजने वाली हो अर्थात कंसल्टेटिव (consultative) . निर्णय करिए व्यापक छलफल के बाद। पार्टी पदाधिकारी, पोलिटब्युरो सदस्य, केन्द्रीय समिति को लगे कि सभी बड़े छोटे निर्णय में ज्यादा से ज्यादा सहभागिता रहती है।
अंक गणित के आधार पर भले ही पार्टी अध्यक्ष उपेन्द्र यादव हो जाएँ लेकिन पार्टी नेतृत्व का स्टाइल राजपा के अध्यक्ष मंडल टाइप का ही होना होगा। व्यापक विचार विमर्श के आधार पर निर्णय की संस्कृति अपनानी होगी। इसके लिए पार्टी के शत प्रतिशत केन्द्रीय सदस्य और पदाधिकारी निर्वाचित होने की व्यवस्था की जा सकती है। पार्टी के भितर भी तो आरक्षण चलेगी। जहाँ दलित पदाधिकारी चाहिए वहाँ सिर्फ दलित उम्मेदवारी की नियम बनाई जा सकती है।
एकीकृत पार्टीका अंतिम नाम जनता पार्टी या नेपाल जनता पार्टी कर सकते हैं।
मुद्दा के प्रति वफ़ादारी
सामाजिक न्याय की बात करने वाले पार्टी और नेतागण वास्तव में मुद्दा के प्रति वफादार हैं तो पार्टी एकीकरण के महत्व को समझेंगे और अगली चुनाव के लिए उसे अपरिहार्य मानेंगे। जनता से मैंडेट लाइए और खुद संविधान संसोधन करिए।
एकीकृत पार्टी ले काठमाण्डु उपत्यका को १० को १० सीट ताकन सक्छ। राजेन्द्र श्रेष्ठ कीर्तिपुर बाट सांसद बन्छन।
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