Friday, March 08, 2019

सीके ले पार्टी खोल्नुपर्छ, चुनाव लड्नुपर्छ

सीके राउत को संगठन लाई यथास्थिति मा नै एउटा राजनीतिक पार्टीको रूप दिने हो भने त्यो अहिले नै मधेसको सबैभन्दा ठुलो दल बन्ने अवस्थामा छ। सीके ले पार्टी तत्काल खोल्नुपर्छ। आगामी चुनाव लड्नुपर्छ। तर चुनाव त वर्षौं टाढा छ।

पार्टी खोले पछि सीके ले विद्यमान लोकतान्त्रिक पद्वति मार्फ़त समस्या समाधान गर्ने सहमति अनुसार पहिला त फोरम, राजपा र ओली सँग नै वार्ता गर्नुपर्ने हुन्छ। सीके ले आफ्नो सम्पुर्ण राजनीतिक शक्ति अब संविधान संसोधन को प्रक्रिया मा लगाउनुपर्ने हुन्छ।

आन्दोलनको स्पिरिट एउटा हुन्छ। वार्ताको स्पिरिट फरक हुन्छ। अहिले नै ओली र सीके बीच जुन ब्रेकथ्रू (breakthrough) भयो त्यो एउटा सफल वार्ता को सटीक उदाहरण हो। दुबै पक्षले दैनिक मीडिया मा वक्तव्यबाजी गर्दै गरेका भए वार्ता सफल हुनु संभव थिएन। दुबै पक्षले आफुले खोजेको सबै कुरा पायेन। दुबैले एकले अर्कोको कुरा केही हदसम्म सुन्यो।

संविधान संसोधनको मुद्दा त्यसरी नै अगाडि बढाउनुपर्ने हुन्छ। पहिलो कुरा त एउटा सानो टोली बनाउनुपर्ने हुन्छ। एकले अर्काको कुरा सुन्नुपर्ने हुन्छ। ब्रेकथ्रू (breakthrough) नहुँदा सम्म मीडिया बाट टाढा बस्नुपर्ने हुन्छ।

मधेसको कुरा नसुन्ने हरु भारतको कुरा गर्छन, मधेसको कुरा गर्दैनन। नेपाली र भारतीय नागरिक बिहे गर्दा दुबै देशको नागरिकता कानुन उस्तै हुनुपर्छ भन्ने पहाड़ी पक्ष को माग हो। त्यो नाजायज होइन त। मधेसी नेता हरुले खोइ त्यो कुरा सुनेको? अर्को पक्षको कुरा नै नसुन्दा वार्ता अगाडि बढ्छ त?

पार्टी खोल्नु र चुनाव लड्नु बीच सीके ले गर्नु पर्ने दुई कुरा छ। एक, संविधान संसोधन लाई टुङ्गोमा पुर्याउनु। दुई, फोरम, राजपा र गठबंधन को सांगठनिक एकीकरण। एउटै पार्टी बनेर अर्को चुनाव स्वीप गर्नु पर्छ। यादव, महतो र राउत सह-अध्यक्ष बन्नुपर्छ। मधेसको प्रत्येक जिल्लामा त चुनाव लड्नुपर्छ पर्छ, पहाड़ पनि पस्नुपर्छ।

सिके राउतसँग भएको सहमतिबारे नेकपाभित्रै असन्तुष्टि
बाबुराम भट्टराईको प्रश्न : सरकारले जनमत संग्रह स्वीकारेको हो?
सिके राउतको भाषणको पूर्णपाठ : ‘अन्यथा अर्थ लगाउने प्रयास नगरौं’
सिके राउतको शान्तिपूर्ण अवतरणमा पहिलो कडी थिए जयकान्त
विखण्डनकारीलाई मूलधारमा ल्याउनु सानो उपलब्धि होइन : पौडेल
सिके राउत मूलधारमा आउनु स्वागतयोग्य : विमलेन्द्र निधि
सरकार र सीके राउतबीच ११ बुँदे सहमति (पूर्णपाठ)
कसरी सम्भव भयो सिके राउतको राजनीतिक यु-टर्न?
प्रचण्डसँग तुलना गर्दै प्रधानमन्त्रीले गरे सीके राउतको प्रशंसा प्रधानमन्त्री केपी शर्मा ओलीले असाधारण निर्णय क्षमता देखाएको भन्दै सीके राउतको प्रशंसा गरेका छन् । सरकारसँग ११ बुँदे सहमति गरेर राउतले असाधारण निर्णय क्षमता देखाएको उनले बताए । ....यस्तो असाधारण निर्णय क्षमता यसअघि पुष्पकमल दाहाल प्रचण्डमा मात्र देखेको उनले बताए । प्रचण्डले हतियारको राजनीतिबाट चुनावमा सहभागी भएर संविधान बनाउने कामको एक ढंगले अगुवाइ गरी त्यसपछि एमाले र माओवादीबीच एकता गर्नु ठूलो निर्णय क्षमता भएको ओलीले बताए । ‘जो सुकैले, सानो हिम्मतकोले सक्दैन । सीके राउतजीमा पनि असाधारण निर्णय क्षमता देखेँ’ उनले भने । ......सीके राउत पढेलेखेको विद्वान र वैज्ञानिक रहेको भन्दै ओलीले कता कता बाटो बिराउँदा बिराउँदै बिग्रने हो कि भन्ने डर आफूलाई रहेको बताए । ‘तर खुशी लाग्यो । टेक्नोक्र्याट मात्र होइन थिंकर पनि हो सीके राउत ।’
प्रधानमन्त्री ओली र सिके राउतले एउटै मञ्चबाट सम्वोधन गर्ने!
मधेसका बुद्धिजीवी भन्छन्– सिके राउतको ‘रिडिङ’ गलत सावित भयो
सिके राउतसँगको सम्झौताको भाषाप्रति भीम रावलको आपत्ति
सिके राउतको दाबी : मधेसमा जनमतसंग्रह गराउन सरकार सहमत!
सबैको जित भयो : सीके राउत
सरकार-सिके राउत वार्ताः सहमति एक, व्याख्या अनेक!



मधेसमा ८० प्रतिशत मत प्राप्त गरेर नेकपा ठूलो पार्टी बन्छ : प्रचण्ड
मधेससँग दोस्ती बढाउन प्रधानमन्त्री ओलीको ‘सिके राउत कार्ड’?



सिके राउतसँगको सम्झौता शंंकास्पद छः कमल थापा
भीम रावलले भने–ओलीले प्रचण्डलाई सिके राउतसँग तुलना गर्दा दुःख लाग्यो
सिके राउत ‘माथि परेको’ भन्दै नेकपामा असन्तुष्टि! अमूर्त सम्झौता गलपासो बन्न सक्ने बाबुरामको चेतावनी
‘ओली र प्रचण्ड प्रधानमन्त्री हुन हुने तर रेशम चौधरी अपराधी?’ राजपा अध्यक्ष मण्डलका सदस्य शरतसिंह भण्डारीसँगको अन्तरवार्ता
सिके राउतका प्रवक्ता भन्छन् : सरकार जनमत संग्रह गर्न तयार भयो

Monday, January 07, 2019

सीके राउत की गिरफ़्तारी नेपाल लोकतंत्र न होने का प्रमाण है

सीके राउत को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया है।



आप सीके राउत के विचारधारा से असहमत हो सकते हैं। लेकिन एक शांतिपुर्वक अपने बात रखनेवाले व्यक्ति को, शांतिपुर्वक संगठन निर्माण करने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार सिर्फ उस राजनीतिक व्यवस्थामें किया जा सकता है जो कि लोकतान्त्रिक नहीं है। ये मानव अधिकार का हनन है। जिस देशमें चुनाव हो वो लोकतंत्र है ऐसी बात नहीं है। लोकतंत्र होना नहोना मानव अधिकार से सम्बंधित बात है। चुनाव तो तानाशाह भी कराते हैं।

क़ानून के शासन का एक नियम है कि एक ही आरोप पर एक व्यक्ति को एक से ज्यादा बार मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता है। लेकिन नेपाल में कानुन का शासन है ही नहीं। पहली बार जब सीके राउतको गिरफ्तार किया गया तो नेपालके सर्वोच्च अदालत ने उन्हें रिहा करवाया। क्यो कि नेपालके संविधान में स्पष्ट लिखा गया है कि वाक स्वतंत्रता प्रत्येक नागरिक का अधिकार है।

लेकिन उसके बाद भी बार बार कइयों बार गिरफ़्तारी हुइ। ये मुसा बिरालो के खेल की तरह हो गया।लोकतंत्र का उपहास होता रहा है।

इस बार तो सर्वोच्च अदालत भी खेल में शामिल हो गया। इस से बड़ा मजाक क्या हो सकता है?

सीके का विश्लेषण सही है कि नेपालके भितर मधेसीको राजनीतिक समानता प्राप्त नहीं है। उस समस्याका समाधान फोरम राजपा वाले कहते हैं संघीयता है। सीके फरक विचार प्रस्तुत करते हैं। संघीयता है तो आ गया आपका संघीयता, तो फिर अब मधेसीको समानता क्यों नहीं मिला?

आप सीके के विचार से असहमत हो सकते हैं। और मैं हुँ। मेरा विचार है लक्ष्य होना चाहिए दक्षिण एशिया का राजनीतिक एकीकरण। मधेस अलग देश क्यों, सारे उपमहाद्वीपको ही एक देश बना दो।

लेकिन मैं सीके के विचार से असहमत हुँ इसका मतलब तो ये नहीं निकलता कि सीके को जेल में ठुँस दो। ये क्या हो रहा है ये? अप्रिल २००६ के १९ दिन के क्रांति में जो नेपाली शहीद हुए वो क्या इसी के लिए शहीद हुवे थे? मधेसी क्रांति १, २, ३, ४ में जो शहीद हुवे वो क्या इसी के लिए शहीद हुवे? नेपाल गणतंत्र के राजनेता क्या सबके सब नवराजा बन गए हैं?

बस भी करो ये तानाशाही।

सीके राउत की मैने आलोचना की है और इसी ब्लॉग पर की है। चुनाव के समय किया। आप इस ब्लॉग के पिछले पन्नों में जा के अभी देख सकते हैं। मैंने कहा है कि आप स्पेन के केटलोनिआ का उदाहरण देते हैं, स्कॉटलैंड का उदाहरण पेश करते हैं। लेकिन आप जिन लोगों की बाते करते हैं वो तो चुनाव लड़ के अपने अपने प्रांतो में सरकार बनाए बैठे हैं। आप क्यों नहीं पार्टी खोलते? आप क्यों नहीं चुनाव लड़ते? आप क्यों नहीं प्रान्तीय सरकार बनाने की सोंचते? महात्मा गांधी की भारतीय कांग्रेस पार्टी अंग्रेज शाषित भारत में चुनाव लड़ा करती थी, और प्रांतीय सरकार बनाया करती थी। आप चुनावी प्रक्रिया से अलगथलग रह के strategic, tactical गलतियाँ कर रहे हैं। ऐसा मैंने कहा है।

लेकिन कोइ अहिंसावादी राजनेता अगर strategic, tactical गलतियाँ करे तो उसे जेल में ठुँस दो, ये कौन सा न्याय है?

सन २००५-२००६ में अमेरिका में रह रहे दो तीन लाख से उपर नेपाली में मैं अकेला था जिसने फुल टाइम नेपालके लोकतान्त्रिक आंदोलन के लिए काम किया। जो नेपाली दो नंबर पर था समय देने के हिसाब से उसने मेरे तुलना में २०% भी समय नहीं दिया।

वो मेरा योगदान मैंने इसलिए नहीं किया कि ये दिन देखना पड़े।

एक राजनीतिक शाश्त्र के अध्येता और विद्यार्थी होते मैं ये देख रहा हुँ कि मधेस अलग देशकी संभावना के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा भु-राजनीति है। भारत और चीन दोनों ही नहीं चाहेंगे कि नेपाल एक से दो देश बन जाए। जबकि भारत चाहता है कि मधेसीको समानता मिले। नाकाबंदी ही कर दिया था।

अगर कोइ बर्लिन की दिवार ढहने साइज का भु-राजनीतिक भुकम्प आ जाये और भारत और चीन ही एक से १० देश बन जाए तो अलग बात है। उस परिस्थिति में मधेस अलग देश संभव है। लेकिन उसकी संभावना क्या है? बल्कि उलटे युरोप के १०-१२ देश एक देश बन जाना चाहते हैं।

लेकिन यहाँ बात भु-राजनीति की नहीं है। मुद्दा मानव अधिकार की है। आप किसी की वाक स्वतंत्रता हनन नहीं कर सकते। नेपाल में लोकतंत्र का उपहास बंद करिए। सीके को तुरन्त रिहा करिए। बन्दर का खेल नहीं लोकतंत्र। लोकतंत्र की अपनी मुल्य मान्यताएँ होती है।

नेपालके नेता लोग कहते रहते हैं विदेश में रह रहे लोग वापस आ जाओ। गया तो वापस सीके। क्या हालत कर के रखे हो? कुछ लोग होते हैं बौद्धिक रूप से प्रखर। कुछ संगठन में कुशल होते हैं। जैसे कि गिरिजा कोइराला संगठन में कुशल थे। लेकिन वो कोइ बौद्धिक लोग नहीं थे इस बात को वो खुद मानते थे। सीके दोनों में माहिर हैं। इस बात की कदर करो। देश के भविष्य की सोचो।

नेपालमा लोकतंत्र बाँदर को हात मा नरिवल?















राजधानीका ठाउँठाउँमा सीके राउतका पोस्टरहरु (६ तस्बिरहरु)
‘काठमाडौँभन्दा बाहिर पनि एउटा शक्ति निर्माण हुँदैछ, त्यो हो जनकपुर’
Asian Human Rights Commission: NEPAL: Dr. C.K. Raut needs urgent medical care and treatment