The only full timer out of the 200,000 Nepalis in the US to work for Nepal's democracy and social justice movements in 2005-06.
Tuesday, December 15, 2015
नेपाल के शासक: ये हैं आखिर कौन? (2)
नेपाल के शासक: ये हैं आखिर कौन?
मेरे को मुघलों के बारे में सिर्फ इतना मालुम है कि अकबर बीरबल की कहानियाँ, फुटपाथ पर सुपथ मुल्य में खरीदने को मिल जाते थे। सोवियत संघ खत्म तो सोवियत प्रोपागण्डा मशीन ख़त्म, लेकिन अकबर को देखो, अभी तक फुटपाथ पर सुपथ मुल्य में।
तो मैंने बहुत पहले नोटिस किया कि इन लोगों का समुदाय कुछ अजीब सा है। वैश्य है ही नहीं। हमारे मधेसी समुदाय में तो सब हैं। लालु जो कहते हैं भुराबाल वो सर पर चढ़ के बैठे हुवे हैं। गोवार की तो बात ही न करो। बात बात पर वो लाठी पर उतर जाते हैं। बात बिगड़ती है और इंडिया पाकिस्तान, या पाकिस्तान बांग्लादेश हुवा तो जिसकी लाठी उसकी भैंस पर बात जा पहुँचेगी। दलित इतने ज्यादे हैं, मायावती को पता चले तो इधर भी एक ब्रान्च खोल लें। अमरेश सिंह जो लोगों को धमकाता रहता है वो राजपुत है।
जरा गौर से सोंचो।
ये लोग नेपाल में पोलिटिकल रिफ्यूजी नहीं हो सकते। ये उस इलाके से हैं जिधर मुग़ल गए ही नहीं। कि उधर तो wasteland है कौन जायेगा उधर। मुग़ल हिमालय तक भी नहीं पहुँचे। कि उधर तो wasteland है कौन जायेगा उधर। यानि कि इन लोगों ने वो जगह छोड़ा जहाँ मुग़ल गए ही नहीं। और वहाँ जा बसे जहाँ मुग़ल गए ही नहीं। और पोइंट A टू पोइन्ट B मुघल के इलाके से गए। आप उस रास्ते से क्यों जाओगे जहाँ खौफनाक लोग रहते हो? तो ये लोग बात बना रहे हैं शूरमा भोपाली की तरह। कि मैने जय और वीरू को ये मारा ये मार मारा कि दोनों जमीन पे जा के गिर गए।
ये कहते हैं हमें मुघलों ने खदेड़ा। झुठ बोल रहे हैं। मुघल वहाँ तक गए ही नहीं। मुघल ने इनके इलाके में जा के कभी शासन किया ही नहीं। मुघल ने हम मधेसी पर शासन किया। हम तो कहीं नहीं भागे। यहाँ तक की हम ने चुरिया भी क्रॉस नहीं किया। मुघल ने हमारा एक भी कोइ मंदिर नहीं तोड़ा। शायद हम से डर गए होंगे। कि टैक्स तक ले लो, नो प्रॉब्लम, उससे ज्यादा लो तो ये मधेसी फिर खाल खिंच लेंगे।
मेरे कहने का मतलब ये कर्णाटक के वानर सेना, ये tribals, आदिवासी, ये पोलिटिकल रिफ्यूजी नहीं थे, शूरमा भोपाली की तरह ये बात बना रहे हैं। ये economic refugee थे, मेक्सिको से जिस तरह अमरिका जाते हैं, या फिर नेपाल से भारत जाते हैं अभी। कुछ उस टाइप का।
एक और बात मैंने नोटिस किया है इनके बारे में, वेद पुराण में बहुत पोख्त, बहुत ज्ञान भी है और दिलचस्पी भी। रामायण और महाभारत में almost no interest. जब कि मेरे लिए ठीक उल्टा। वेद पुराण में फोर्मुला सब होता है, E=mc^2 आदि इत्यादि, तो कौन जाएगा उतना माथापच्ची करने। रामायण और महाभारत में इतने दिलचस्प कहानियाँ हैं कि गैर हिन्दु के लिए भी दिलचस्प। तो जो गैर हिन्दु के लिए भी दिलचस्प है वो इन हिन्दुओं के लिए दिलचस्प क्यों नहीं? बात क्या है कि भारतीय जो आइडेंटिटी है उसमें रामायण और महाभारत का बड़ा हात रहा है। लेकिन रामायण में इनको वानर कहा गया है। अमरिका के इतिहास में जिस तरह Native American को The Other कहा गया है, रामायण में इन्हे The Other कहा गया है। तो मैंने बहुत पहले नोटिस किया इनका पशुपतिनाथ मंदिर में बहुत दिलचस्पी है लेकिन जानकी मंदिर में जीरो इंटरेस्ट। अजीब बात है नहीं? It's like, अमेरिका में Thanksgiving पर्व होता है, हाल ही में हुवा था। सब मनाते हैं। लेकिन वो पर्व क्या है कि गोरों का लोकल लोगों पर विजय का पर्व है। तो Native American वो पर्व क्यों मनाएंगे? उन्हें लगता है ये गोरे साल में एक बार फिर घाओ में मिर्ची लगा देते हैं। तो इन लोगों का काशी वनारस में इंटरेस्ट है, अयोध्या मथुरा ------- not so much.
सबसे मजे की बात है इन लोगों ने प्रमाणित कर दिया है कि ब्राह्मण अकेले ही कास्ट सिस्टम चला सकते हैं। इनके समुदाय में सिर्फ बाभन है। और इनको ये नहीं लगता कि चलो मुघलों ने हमारे क्षत्रिय को ख़त्म कर दिया तो अमरेश सिंह को ही अपना लेते हैं। अमरेश सिंह के प्रति एक रेसिस्ट हैट्रेड है।
लेकिन काश्मीर के सभी को अपना मानते हैं। हिन्दु ही नहीं मुसलमान को भी। पहाड़ी आर्य। जैसे कि राज ठाकरे हिन्दु है लेकिन मेरे लिए कुछ नहीं। मेरे लिए बिहार का मुसलमान अपना है, राज ठाकरे कुछ भी नहीं। बिहार का मुसलमान --- सिर्फ धर्म से मुसलमान नहीं तो बाँकी सब चीज एक है। यहाँ तक छठ भी मनाते हैं।
मेरे लिए बिहार का मुसलमान और इनके लिए काश्मीर का मुसलमान ---- same to same. मजे की बात है। ये मुँह खोल के ही कहते हैं। मधेसी के प्रति क्योँ है ऐसा तुम्हारा? तो ये कहते हैं, तुम भी तो काश्मीर में हमारे लोगों को तंग कर के रखे हो। यार, मैं तो कभी काश्मीर गया नहीं। मैंने कब किसको तंग कर दिया?
इन लोगों ने प्रमाणित कर दिया है। सिर्फ ब्राह्मण अकेले कास्ट सिस्टम सम्हाल सकते हैं। जैसे यादव हैं, standalone ---- तो ये अच्छी बात है। सांस्कृतिक पहचान के रूप में ब्राह्मण बन के रहना चाहते हो तो रहो। वेद पढ़ो पुराण पढ़ो। लेकिन किसी और को नीचा देखने की क्या जरुरत है? भइ सुरमा भोपाली।
मेरे को मुघलों के बारे में सिर्फ इतना मालुम है कि अकबर बीरबल की कहानियाँ, फुटपाथ पर सुपथ मुल्य में खरीदने को मिल जाते थे। सोवियत संघ खत्म तो सोवियत प्रोपागण्डा मशीन ख़त्म, लेकिन अकबर को देखो, अभी तक फुटपाथ पर सुपथ मुल्य में।
तो मैंने बहुत पहले नोटिस किया कि इन लोगों का समुदाय कुछ अजीब सा है। वैश्य है ही नहीं। हमारे मधेसी समुदाय में तो सब हैं। लालु जो कहते हैं भुराबाल वो सर पर चढ़ के बैठे हुवे हैं। गोवार की तो बात ही न करो। बात बात पर वो लाठी पर उतर जाते हैं। बात बिगड़ती है और इंडिया पाकिस्तान, या पाकिस्तान बांग्लादेश हुवा तो जिसकी लाठी उसकी भैंस पर बात जा पहुँचेगी। दलित इतने ज्यादे हैं, मायावती को पता चले तो इधर भी एक ब्रान्च खोल लें। अमरेश सिंह जो लोगों को धमकाता रहता है वो राजपुत है।
जरा गौर से सोंचो।
ये लोग नेपाल में पोलिटिकल रिफ्यूजी नहीं हो सकते। ये उस इलाके से हैं जिधर मुग़ल गए ही नहीं। कि उधर तो wasteland है कौन जायेगा उधर। मुग़ल हिमालय तक भी नहीं पहुँचे। कि उधर तो wasteland है कौन जायेगा उधर। यानि कि इन लोगों ने वो जगह छोड़ा जहाँ मुग़ल गए ही नहीं। और वहाँ जा बसे जहाँ मुग़ल गए ही नहीं। और पोइंट A टू पोइन्ट B मुघल के इलाके से गए। आप उस रास्ते से क्यों जाओगे जहाँ खौफनाक लोग रहते हो? तो ये लोग बात बना रहे हैं शूरमा भोपाली की तरह। कि मैने जय और वीरू को ये मारा ये मार मारा कि दोनों जमीन पे जा के गिर गए।
ये कहते हैं हमें मुघलों ने खदेड़ा। झुठ बोल रहे हैं। मुघल वहाँ तक गए ही नहीं। मुघल ने इनके इलाके में जा के कभी शासन किया ही नहीं। मुघल ने हम मधेसी पर शासन किया। हम तो कहीं नहीं भागे। यहाँ तक की हम ने चुरिया भी क्रॉस नहीं किया। मुघल ने हमारा एक भी कोइ मंदिर नहीं तोड़ा। शायद हम से डर गए होंगे। कि टैक्स तक ले लो, नो प्रॉब्लम, उससे ज्यादा लो तो ये मधेसी फिर खाल खिंच लेंगे।
मेरे कहने का मतलब ये कर्णाटक के वानर सेना, ये tribals, आदिवासी, ये पोलिटिकल रिफ्यूजी नहीं थे, शूरमा भोपाली की तरह ये बात बना रहे हैं। ये economic refugee थे, मेक्सिको से जिस तरह अमरिका जाते हैं, या फिर नेपाल से भारत जाते हैं अभी। कुछ उस टाइप का।
एक और बात मैंने नोटिस किया है इनके बारे में, वेद पुराण में बहुत पोख्त, बहुत ज्ञान भी है और दिलचस्पी भी। रामायण और महाभारत में almost no interest. जब कि मेरे लिए ठीक उल्टा। वेद पुराण में फोर्मुला सब होता है, E=mc^2 आदि इत्यादि, तो कौन जाएगा उतना माथापच्ची करने। रामायण और महाभारत में इतने दिलचस्प कहानियाँ हैं कि गैर हिन्दु के लिए भी दिलचस्प। तो जो गैर हिन्दु के लिए भी दिलचस्प है वो इन हिन्दुओं के लिए दिलचस्प क्यों नहीं? बात क्या है कि भारतीय जो आइडेंटिटी है उसमें रामायण और महाभारत का बड़ा हात रहा है। लेकिन रामायण में इनको वानर कहा गया है। अमरिका के इतिहास में जिस तरह Native American को The Other कहा गया है, रामायण में इन्हे The Other कहा गया है। तो मैंने बहुत पहले नोटिस किया इनका पशुपतिनाथ मंदिर में बहुत दिलचस्पी है लेकिन जानकी मंदिर में जीरो इंटरेस्ट। अजीब बात है नहीं? It's like, अमेरिका में Thanksgiving पर्व होता है, हाल ही में हुवा था। सब मनाते हैं। लेकिन वो पर्व क्या है कि गोरों का लोकल लोगों पर विजय का पर्व है। तो Native American वो पर्व क्यों मनाएंगे? उन्हें लगता है ये गोरे साल में एक बार फिर घाओ में मिर्ची लगा देते हैं। तो इन लोगों का काशी वनारस में इंटरेस्ट है, अयोध्या मथुरा ------- not so much.
सबसे मजे की बात है इन लोगों ने प्रमाणित कर दिया है कि ब्राह्मण अकेले ही कास्ट सिस्टम चला सकते हैं। इनके समुदाय में सिर्फ बाभन है। और इनको ये नहीं लगता कि चलो मुघलों ने हमारे क्षत्रिय को ख़त्म कर दिया तो अमरेश सिंह को ही अपना लेते हैं। अमरेश सिंह के प्रति एक रेसिस्ट हैट्रेड है।
लेकिन काश्मीर के सभी को अपना मानते हैं। हिन्दु ही नहीं मुसलमान को भी। पहाड़ी आर्य। जैसे कि राज ठाकरे हिन्दु है लेकिन मेरे लिए कुछ नहीं। मेरे लिए बिहार का मुसलमान अपना है, राज ठाकरे कुछ भी नहीं। बिहार का मुसलमान --- सिर्फ धर्म से मुसलमान नहीं तो बाँकी सब चीज एक है। यहाँ तक छठ भी मनाते हैं।
मेरे लिए बिहार का मुसलमान और इनके लिए काश्मीर का मुसलमान ---- same to same. मजे की बात है। ये मुँह खोल के ही कहते हैं। मधेसी के प्रति क्योँ है ऐसा तुम्हारा? तो ये कहते हैं, तुम भी तो काश्मीर में हमारे लोगों को तंग कर के रखे हो। यार, मैं तो कभी काश्मीर गया नहीं। मैंने कब किसको तंग कर दिया?
इन लोगों ने प्रमाणित कर दिया है। सिर्फ ब्राह्मण अकेले कास्ट सिस्टम सम्हाल सकते हैं। जैसे यादव हैं, standalone ---- तो ये अच्छी बात है। सांस्कृतिक पहचान के रूप में ब्राह्मण बन के रहना चाहते हो तो रहो। वेद पढ़ो पुराण पढ़ो। लेकिन किसी और को नीचा देखने की क्या जरुरत है? भइ सुरमा भोपाली।
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