Tuesday, June 09, 2015

सम्झौता बारे विभिन्न प्रतिक्रिया

बाबुराम भट्टराई

२०७२ जेठ २५ गते भएको १६-बुँदे संवैधानिक सहमति २०६२ मंसिर ७ गते भएको १२- बुँदे समझदारीदेखिको राजनीतिक यात्राको अन्तिम कडी हो!
अर्थात् यो नेपालमा संघीय लोकतान्त्रिक गणतन्त्र स्थापनाको इतिहासको स्वर्ण क्षण हो!
तर चुनौति अझै सकिएको छैन। यो प्रक्रियाले पूर्णता प्राप्त गर्न अझै केही समय लाग्नेछ! राष्ट्रिय र अन्तर्राष्ट्रिय शक्ति सन्तुलनलाई ख्याल गर्दै यो प्रक्रियाका पक्षधर सबैले सुझबुझपूर्ण भूमिका निर्वाह गर्नुपर्नेछ! हीनतावोध र आत्मश्लाघा दुवैबाट वच्नुपर्न्ेछ!
यो प्रक्रियामा कसको के भूमिका रह्यो अझै मूल्यांकन गर्ने वेला भएको छैन। इतिहास निर्माता र इतिहास लेखक अक्सर एउटै हुँदैनन्।
कुनै पनि सम्झौताले सबैलाई पूर्ण सन्तुष्ट बनाउनै सक्दैन। त्यस्तो सम्झौता इतिहासमा न आजसम्म कतै भएको छ, न भविष्यमा हुनेवाला छ। सबैको win-win भनेको सबैको lose-lose पनि हो!

साइमन ढुंगाना

भुकम्प पश्चात नेपालीहरुको भावनालाई लत्तौदै पोलिटिक्स एज यिउजुअल गरेर विकास र निर्माण को समयमा संघियेता, त्यसमा पनि पहिचानको आधारमा? कुन गाउँ मा कुन जाति ले गएर मद्दत गर्यो? मेरो पहिचान (नेपाली) लाई लिएर मलाई बहिष्कृत गर्ने प्रदेशमा मा भोलि विपति आए कुन आधारमा मद्दत गर्न जाउ ?
अहिले को जनलहर नबुझ्नु भनेको को भोलिको जन आधार गुमाउनु हो। तर पनि हिजोको नेपाली जनताले संबिधान बनाउन चुनेकोहरुले यस कुरामा पहल गरेको सराहनीय हो। १८ बुदे सम्झौता मेरिटको आधारमा :
======द गुड======
(नेपालको निम्ति राम्रो)
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१०) नयाँ संविधानको व्यवस्था बमोजिम प्रतिनिधिसभाको अर्को निर्वाचन सम्पन्न नभएसम्म रुपान्तरित व्यवस्थापिका–संसदबाट प्रधानमन्त्रीको निर्वाचन, विश्वासको मत, अविश्वासको प्रस्ताव तथा मन्त्रिपरिषद्को गठन सम्बन्धी सबै कार्य नेपालको अन्तरिम संविधान, २०६३ को व्यवस्था बमोजिम हुने गरी व्यवस्था गरिनेछ । राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति, सभामुख र उपसभामुख विरुद्ध महाभियोग व्यवस्था पनि अन्तरिम संविधान, २०६३ बमोजिम नै हुने गरी व्यवस्था गरिनेछ ।
११) स्वतन्त्र न्यायपालिकाको अवधारणा अनुरुप नेपालमा स्वतन्त्र,निष्पक्ष र सक्षम न्यायपालिकाको व्यवस्था गरिनेछ ।
१२) सर्वोच्च अदालत अभिलेख अदालत हुनेछ । संविधानको अन्तिम व्याख्या गर्ने अधिकार सर्वोच्च अदालतको हुनेछ ।
१६) जनताको प्रतिनिधित्व र सहभागितालाई सबल तुल्याउनको लागि यथासक्य चाँडो स्थानीय निकायको निर्र्वाचन गरिनेछ ।
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=====द अननोन=====
(हेरौ अभ्यास कस्तो हुन्छ)
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५) प्रतिनिधिसभाको निर्वाचन मिश्रित निर्वाचन प्रणालीबाट गरिनेछ । प्रतिनिधिसभामा कूल २ सय ७५ सदस्य रहनेछन् । भूगोल र जनसंख्याको आधारमा देशमा कूल १ सय ६५ संसदीय निर्वाचन क्षेत्र हुनेछन् । यी निर्वाचन क्षेत्रबाट प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली अन्तरगत बहुमत प्राप्त गर्ने १ सय ६५ प्रतिनिधिसभा सदस्य निर्वाचित हुनेछन् । बाँकी १ सय १० सदस्य समानुपातिक निर्वाचन प्रणालीद्वारा निर्वाचित हुनेछन् । ६) राष्ट्रिय सभाको सदस्य संख्या कूल ४५ कायम हुनेछ । यस मध्ये प्रत्येक प्रदेशबाट समान संख्याका आधारमा ४० सदस्य निर्वाचित हुनेछन् । र बाँकी ५ सदस्य संघीय मन्त्रिपरिषद्को शिफारिसमा राष्ट्रपतिबाट मनोनयन हुनेछन् ।
८) नेपालमा एक संवैधानिक राष्ट्रपति हुनेछन् । राष्ट्रपतिको निर्वाचन संघीय संसद एवम् प्रादेशिक सभा सदस्य सहितको निर्वाचक मण्डलबाट हुनेछ ।
९) नयाँ संविधान घोषणा पश्चात् राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री,सभामुख र उपसभामुखको निर्वाचन रुपान्तरित व्यवस्थापिका–संसदबाट नेपालको अन्तरिम संविधान, २०६३ बमोजिम हुने गरी व्यवस्था गरिनेछ ।
१३) केन्द्र र प्रदेश, प्रदेश र प्रदेश, प्रदेश र स्थानीय तह एवम् स्थानीय तहका बीचमा अधिकार क्षेत्रबारे तथा प्रतिनिधि सभा,राष्ट्रिय सभा र प्रदेश सभाको निर्वाचन सम्बन्धी विवादमा न्याय निरुपण गर्न एक संवैधानिक अदालत गठन गरिनेछ । यी विषयमा संवैधानिक अदालतको निर्णय अन्तिम हुनेछ । यो अदालत सर्वोच्च अदालतका प्रधान न्यायाधीशको अध्यक्षता र २ जना अन्य वरिष्ठतम् न्यायाधीश तथा २ जना सर्वोच्च अदालतको न्यायाधीश हुन योग्यता पुगेका कानून क्षेत्रका विज्ञको सहभागितामा गठन हुनेछ । संवैधानिक अदालतको कार्यावधि नयाँ संविधान प्रारम्भ भएको मितिले १० वर्षसम्म हुनेछ।
१५) संघीयता, शासकीय स्वरुप, निर्वाचन प्रणाली र न्याय प्रणालीका सम्बन्धमा भएको यो मूलभूत सहमतिको भावना अनुरुप संविधान निर्माणको प्रक्रिया अघि बढाइने छ ।
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=====द ब्याड=====
(यहि प्रणाली र भोलि गरौलाको नतिजा देखि सक्यो )
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३) प्रदेशको सीमाङ्कन संबन्धी सिफारिश गर्न नेपाल सरकारले एक संघीय आयोग गठन गर्नेछ । आयोगको कार्यावधि ६ महिना हुनेछ । संघीय आयोगको सुझाव–प्रतिवेदन प्राप्त भएपछि प्रदेशको सीमाङ्कनको अन्तिम निर्णय व्यवस्थापिका– संसदको दुई तिहाइ बहुमतले गर्नेछ ।
४) संघीय संसद प्रतिनिधि सभा र राष्ट्रिय सभा गरी दुई सदनात्मक हुनेछ । प्रादेशिक सभा एक सदनात्मक हुनेछ ।
७) देशको शासन सञ्चालन गर्न बहुदलीय प्रतिस्पर्धात्मक संघीय लोकतान्त्रिक गणतन्त्रात्मक संसदीय शासन प्रणाली अबलम्बन गरिनेछ । प्रतिनिधिसभामा एकल बहुमत प्राप्त वा अन्य दलको समर्थनमा बहुमत प्राप्त दलका नेता कार्यकारी प्रमुखको हैसियतमा प्रधानमन्त्री हुनेछन् ।
१४) न्याय परिषद् गठन संबन्धी व्यवस्था नेपालको अन्तरिम संविधान,२०६३ को व्यवस्था बमोजिम हुनेछ ।
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=====द अग्लि=====
(भुकम्प पश्चात दुइ तिहाई नेपाली जनताको भाव बिरुद्ध )
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१) संघीय लोकतान्त्रिक गणतन्त्रात्मक नेपालमा पहिचानका ५ र सामर्थ्यका ४ आधारमा आठ (८) प्रदेश निर्माण गरिनेछ ।
२) प्रदेशको नामाकरण प्रदेश सभाको दुई तिहाइ बहुमतको निर्णयबाट गरिनेछ ।

सीके राउत

खोदा पहाड, निकला चुहिया ! (सन्दर्भ: १६ बुँदे और ८ प्रदेश पर सहमति)
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इतना कुछ होने पर भी मधेशी नेता लोग किसी न किसी बहाने में मधेशी जनता को उल्लू बनाएँगे ही, और कहेंगे: ऊ.....देखत हो... आकाश में, उहे बा स्वायत्त मधेश। अब ज्यादा दूर नहीं है ! अभी तो ६५ ठें वर्ष हुआ है। बस और १०० वर्ष ऐसे ही मरते रहो, अपने बेटा-बेटीका खून हमें देते रहो। हम खातेपीते रहेंगे ! तब ना अधिकार मिली तोहके!
और नेपाली संविधान के अन्तर्गत 'स्वायत्त मदेश' चलीं कितना ? वही साल या दु-साल। नेपाल में मधेशियों को काहे का अधिकार? नेपाली सेना लगाकर तुरन्त सब कुछ निलम्बन! और फिर दुबारा लगना १०० वर्ष...
क्या कहुँ ? कोई रास्ता नहीं सिवाय आजादी की, यह जितना जल्दी हो सभी जान लें, वही बेहतर है। ७ दिन पहले लिखा गया नीचे का पोस्ट फिर से जरूर (हाँ, फिर से) पढकर एकबार मनन करें। क्योंकि अभी की १६ बूँदे सहमति अत्याचारका अन्त नहीं, शुरुवात है। इसके बाद मधेशियों को क्या-क्या खोना है, और मधेशियों के साथ क्या सलुक होगा, उसके लिए नीचे की बात जरूर पढें। (पोस्ट के सबसे नीचे 'नोट' भी है!)
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चलें एक बार फिर समीक्षा करते हैं, 'मधेश स्वराज' किताब के पाठ १२ में "स्वतन्त्र मधेश क्यों? क्या संघीयता या अन्य दूसरा उपाय समाधान दे सकता है?" प्रश्न के उत्तर में दिए गए १० बूँदा को देखें और फैसला करें कि अभी तक की परिस्थिति अनुसार १० में से कितना प्वाइन्ट आता है--
1. क्या संघीयता सम्पूर्ण मधेश को अखण्ड रखकर एक राज्य होने की गारन्टी करती है?
-> संघीयता के नाम पर कभी ६ तो कभी ७ प्रदेश करके मधेश को तो ५ भाग तक में बाँटा जा रहा है। तोडो और गटको, नीति अन्तर्गत। [८ प्रदेश कर ही दिया!]
2. क्या वह मधेशियों की जमीन पुन: नहीं छीने जाने की और नेपालियों/पहाड़ियों को मधेश में नहीं बसाए जाने की गारन्टी करती है?
-> अभी ही भूकम्प के नाम पर क्या हो रहा हैं ? १०ओं लाख पहाडियों को मधेश में बसाने का षड्यन्त्र। क्या आजाद मधेश के अलावा कोई दूसरा समाधान इसे कोई रोक सकता है?
3. क्या वह मधेश के प्रशासक मधेशी होने की गारन्टी करती है? नहीं तो, बाद में भी नेपाली अधिकारियों द्वारा इसी तरह से कर्फ्यू लगाकर मधेशियों पर आक्रमण होता रहेगा और नेपाली शासक द्वारा इसी तरह से शोषण जारी ही रहेगा।
-> अभी भी मधेश में CDO और SP पहाडी ही रहते हैं, और रौतहट और बारा में ही कर्फ्यू लगाकर किस तरह से मधेशियों को कुचला गया, दो ही महीने में हम भूल जाएँ ?
4. क्या वह ऋतिक रोशन कांड और नेपालगंज घटना जैसे सुनियोजित जातीय सफाया के षड्यन्त्र कराके मधेशियों पर फिर लूटपाट और आक्रमण नहीं होने की गारन्टी करती है?
-> कुछ ही दिन पहले नेपाल प्रहरी के संरक्षण में ईटहरी में मधेशी-नेपाली दंगा कराके मधेशियों को जिंदा जलाने की बात की गई !
5. क्या वह मधेश के काम-काज और नौकरियाँ मधेशी को ही मिलने की गारन्टी करती है? कि बाहर से नेपाली लोगों को बुलाकर दी जाएगी?
-> मधेश की नौकरियाँ मधेशबासियों को मिलने की बात तो दूर, आज कल मधेशी की कोटा की नौकरी भी पहाडी ले जा रहा है। मधेशियों को सिडीओ मधेशी प्रमाणित नहीं कर रहा है,और पहाडियों को मधेशी प्रमाणित कर नौकरी दी जा रही है।
6. क्या वह मधेश की सम्पूर्ण आय और दाता राष्ट्रों से प्राप्त अनुदानों का समुचित भाग मधेश में लगानी होने की गारन्टी करती है? कि मधेश को खाली विश्व बैंक और एडीबी का ऋण ढोना पड़ेगा?
-> देखो भई, अभी ही कितने वैदेशिक अनुदान और ऋण आ रहे हैं, उसमें से कितना मधेश के लिए जा रहा है ! मधेश के अग्निपीडित, बाढपीडित, भूमिहीन और भूखे मर रहे लोगों के लिए कितना वैदेशिक सहयोग मिल रहा है, है न ?
7. क्या वह देश भीतर और बाहर रहे मधेशियों की पहचान की समस्या को समाधान करेगी? क्या तब धोती, इंडियन और मर्सिया कहके नहीं बुलाया जाएगा?
-> फेसबुक और ट्‍वीटर भी देख लिया करो कभी कभी। मालूम हो जाएगा।
8. क्या वह मधेश के साधन-स्रोत, जल, जमीन और जंगल पर पूर्णत: मधेशियों का अधिकार होने की गारन्टी करती है?
-> भूकम्प गया पहाड में, और मधेश के जंगल कटाकर, पूरे मधेश के वनको विनाश करके काठ पहाड भेजा जा रहा है। पर मधेश के अग्निपीडित के लिए १ टुक्रा काठ नहीं, मधेशियों को अपने ही जंगल जाना प्रतिबंध है। मधेश का जंगल तो पहाडियों के हाथों में है, १ महीने पहले तक "वन संरक्षण" की बात होती थी, पर पहाडियों को भूकम्प का बहाना मिला तो मधेश के सारे जंगल चले साफ करने !
9. क्या वह मधेश की नागरिकता, सुरक्षा और वैदेशिक नीति मधेशियों के हाथों में होने की गारन्टी करती है?
-> बन रहे संविधान में इस तरह का नागरिकता प्रावधान लाया जा रहा है ताकि बहुत सारे मधेशी नागरिकता विहिन हो जाय। आज भी आप अपने बच्चों को जन्मदर्ता करने या नागरिकता बनाने जा कर देखें, क्या रोटी बेलनी पडती है मधेशियों को। सुरक्षा के नाम पर अब तो APF बन्दुकधारियों को भी पक्राऊपूर्जी जारी करने का फैसला किया जा रहा हैं। वैदेशिक नीति में बार्डर पर कितना भंसार लगेगा, मधेशियों को किस तरह से सताया जाय, अपमानित किया जाय, यही दिन रात नेपाली लोग सोचते रहते हैं। शंका हो तो बार्डर पर अपने परिवारजन (माँ, बहन, बीबी) को लेकर १-२ साडी भी झोले में रखकर बार्डर पार करने की कोशिस किजिएगा, पता चल जाएगा!
10. क्या वह मधेश से नेपाली सेना पूर्णत: हटाकर पूर्ण मधेशी सेना बनाने की गारन्टी करती है? नहीं तो कभी भी नेपाली सेना को परिचालन करके केन्द्रीय नेपाली सरकार कुछ भी कर सकती है, कोई संविधान भी लागू कर सकती है, कुछ भी नियम-कानून लगवा सकती है। केन्द्रीय सरकार आपातकालीन स्थिति की घोषणा करके मधेशियों के सम्पूर्ण अधिकार मिनट भर में ही निलम्बन कर सकती है। क्या इसे हम अपनी उपलब्धि मानें? क्या इसे हम सम्पूर्ण मधेशियों के बलिदान और संघर्ष का मोल माने?
-> भूकम्प के नाम पर आपत्कालीन् स्थिति/क्षेत्र घोषणा करते समय या सेना को निकालते समय प्रक्रिया तक भी पूरा किया गया, राष्ट्रपति तक को भी पूछा गया? ये तो है पहाड में गए भूकम्प के नाम पर। मधेशी जनता जब भी थोडे से हलचल करेंगे, तब क्या होगा ? कितना देर लगेगा मधेशियों को दबाने के लिए इमरजेन्सी लगाने और सेना को निकालने में ? कितने प्वाइन्ट हुए ? 0 / 10 ?

खोदेगा पहाड तो निकलेगा क्या ?! इसलिए कहता हूँ चलो मधेश को खोदते हैं, और नेपाली उपनिवेश को उखाड फेंक मधेश को आजाद करते हैं? आखिर कब तक ऐसे ही भीख मांगोगे? स्वराज लाएँ, सम्पूर्ण अधिकार सदा के लिए पाए। नेपाली उपनिवेश अंत हो, मधेश देश स्वतन्त्र हो।

नोट: जो यह कहता है संघीयता और स्वायत्तता तो केवल २०६४ साल के मधेश आन्दोलन का एजेन्डा है और अभी तो केवल ८ वर्ष बीता है, वे लोग उससे पहले लाखों वीर मधेशियों द्वारा किया गया संघर्ष और सैकडों मधेशी द्वारा दी गई बलिदानी का अपमान कर रहे हैं। तराई कांग्रेस २००७-८ साल में ही खुला था, जिसकी प्रमुख माग ही स्वायत्त मधेश की स्थापना और मधशियों की समानुपातिक समावेशी थी। और उस संगठन की हैसियत अभी जैसी टुटी-फुटी दर्जनों मधेशी पार्टियों की तरह नहीं थी, बल्कि मधेशियों के लिए उस समय तराई कांग्रेस बहुत हद तक एकल राजनैतिक दल था, और बहुत ही सशक्त था, जिसकी सदस्यता उस समय केवल २ वर्ष में ६०,००० से ज्यादा हो गई थी। तो हम पीछले ६५ वर्ष से स्वायत्त मधेश के लिए लगे हैं, और निकला क्या!

उपेन्द्र यादव 

सोमवार राती संविधान निर्माण बारे चार राजनीतिक दल नेपाली कांग्रेस, नेकपा एमाले, एनेकपा माओवादी र फोरम लोकतान्त्रिकबीच भएको सहमति जनयुद्ध, जनआन्दोलन, ऐतिहासिक मधेश जनविद्रोह र आदिवासी जनजाति लगायतका आन्दोलनहरुको मूलमर्म र भावना विपरीत हुनुका साथै आन्दोलनरत दलहरुसँग भएको सम्झौता, सहमति र अन्तरिम संविधान तथा विगतको संविधानसभाले गरेका निर्णयआदिको प्रतिकूल हुनुका साथै पहिचानसहितको संघीयता र संघीयतासहितको संविधान एवं समानुपातिक समावेशिकताका विपरीत तथा यथास्थितिवादी र प्रतिगमनकारी रहेका छन् । यसले मधेसी, आदिवासी जनजाति, दलित, महिला, पिछडावर्ग, अल्पसंख्यक समुदाय, श्रमजीविवर्ग लगायतका जनताको अधिकारलाई सुनिश्चित गराउनुका सट्टा सत्तास्वार्थ परिपूर्तिका लागि मात्र केन्द्रीत रहेको छ ।
संघीयतामा प्रदेशहरुको नामाङकन तथा सीमाङकनको लागि आयोगलाई जिम्मा दिने कार्य नेपालको अन्तरिम संविधान २०६३ को धारा १३८ को ठाडो उल्लंघन हुनुका साथै संविधानसभाको समेत अवमुल्यन गर्ने कार्य गरेको छ । यसकार्यले संघीयता र पहिचानविहीन संविधान निर्माण गर्ने कार्यलाई नै मूर्तरुप दिन षड्यन्त्र गर्न खोजिएको छ । यसप्रकारको षड्यन्त्रमूलक सहमतिको मधेसी जनअधिकार फोरम, नेपाल विरोध गर्दछ । उक्त सम्झौताले मधेसी मोर्चा, संघीय गणतान्त्रिक मोर्चा र ३० दलीय गठबन्धन लगायतका अवधारणाहरुको समेत उल्लंघन गरेका छन् । सत्तास्वार्थ र भागबन्डाका लागि मात्र गरिएको उक्त सम्झौताले शताब्दियांैदेखि विभेदमा पारिएका मधेसी, आदिवासी जनजाति, थारु, मुस्लिम, दलित, महिला, पिछडावर्ग, अल्पसंख्यक समुदाय र श्रमिकवर्ग लगायतका जनताको अधिकार सुनिश्चित गर्न सक्दैन ।
तसर्थ, आत्मनिर्णयको अधिकार, प्रादेशिक स्वायत्तता तथा स्वशासन, राष्ट्रिय पहिचान, संघीयता, लोकतान्त्रिक गणतन्त्र, बहुलवाद, समानुपातिक प्रतिनिधित्वका लागि संघर्षरत रहनु आजको ऐतिहासिक दायित्व हो ।
२६ जेठ २०७२