निधि मंत्री हैं और जनकपुर से हैं तो उनको मोदीके जनकपुर भ्रमणका जिम्मा दिया गया ---- that makes sense. मोदीको बारह बिघामें प्रस्तुत नकर एक छोटे मोटे कमरे में दो चार सय लोगो से मिलवाने का निर्णय किया गया। उस निर्णयका चेहरा निधि रहे। लेकिन वो निर्णय लिया किसने?
वो निर्णय मोदीने नहीं लिया। मोदीकी तीव्र इच्छा थी। आम जनताको सम्बोधन करेंगे। ये कहते आए थे। तो मोदीके इच्छा विपरीत भारत सरकारके किसीभी तहके किसी भी व्यक्ति ने आम सभा मत करो ऐसा कहा होगा ये सवाल पैदा होता ही नहीं। भारतके राजदुत खुद प्रधान मंत्रीसे मिल मिलके कहे पर कहे जा रहे थे कि आम सभा करिए।
तो या तो निधिको सुशीलने कहा कि आम सभा मत करो और निधि ने उस बातको माना। लेकिन आम सभा वाले आईडिया को सुशीलने कभी पब्लिक्ली विरोध नहीं किया। विरोध किया वामे ने। तो निधिको आर्डर कौन दे रहा है? सुशील कि वामदेव? निधिका बॉस कौन है? सुशील कि वामदेब? आम सभाके विषय पर सुशील और वामदेब एक राय के थे या उनमें मतभिन्नता थी? मतभिन्नता थी तो सुशीलने अपनी बात निधिको बताया कि नहीं? बताया तो क्या निधि ने नहीं माना? बात क्या है? देश आखिर चला कौन रहा है?
कि निधि से न वामदेब ने बात किया न सुशीलने, हवामें ही उनको हिन्ट मिल गया? कि पहाड़ी शासक वर्ग नहीं चाहते हैं कि आम सभा हो, तो वो तो काँग्रेस में टोकन (token) मधेसी तो हैं ही। वो अपने पहाड़ी बॉस लोगोकी इच्छा पुरी करने में जीजान से लग गए और जनकपुरको ५०० करोड़का चुना लग गया।
मोदीको जनकपुर में आम सभामें न बोल्ने देनेका निर्णय आखिर किसने लिया? एक आयोग गठनकी माग हम कर रहे हैं। आखिर truth क्या है?