Saturday, August 25, 2012

CK Raut

अमेरिका आर्थिक मन्दीले आक्रान्त हुँदै थियो। औद्योगिक कम्पनीहरू क्रमशः बन्द हुँदै थिए। घाटामा गैरहेका कतिपय कम्पनीबाट मानिस निकालिने क्रम बढ्दो थियो। बेरोजगारीको समस्याले नराम्रोसँग गाँज्दै लगेपछि धेरै जना हतास र निराश हुन थाले, तर ठीक त्यही बेला एक जना नेपाली युवालाई अमेरिकाको नामुद रेडन बीबीएन टेक्नोलोजीले काम गर्न बोलायो।

रेडन बीबीएन टेक्नोलोजी त्यही कम्पनी हो जसले अमेरिकी सेनाका लागि सुरक्षामा प्रयोग हुने प्रविधिजन्य उपकरण आविष्कार गर्छ। इमेल, इन्टरनेटको आविष्कार हुनुपूर्व डार्पा नेट (इन्टरनेटको पूर्वस्वरूप) यही कम्पनीले आविष्कार गरेको थियो। त्यस्तो कम्पनीबाट काम गर्न बोलाउँदा यी युवामा खुसी नछाउने कुरै भएन। 'मलाई त सुरुमा स्वर्गै पुगेजस्तो लाग्यो, अनुहारमा खुसीको रंग छर्दै सिकें,' राउतले अनुभव साटे- ' अमेरिका पुगेर अरूले झैं सुखी जीवन जिउने मेरो पनि इच्छा थियो।' बेलायतको क्याम्ब्रिज विश्वविद्यालयबाट इन्फरमेसन इन्जिनियरिङमा विद्यावारिधि गरेका राउतमा बीबीएनमा काम गर्ने पहिलेदेखिकै 'ठूलो सपना' थियो, तर उक्त कम्पनीमा पाइला टेक्न पाउनु आफ्नो है सियतबाहिरको कुराजस्तो लाग्थ्यो। तैपनि मनको कुनामा सजाएको त्यो रहर पूरा गर्न निरन्तर प्रयास गर्न उनले छाडेनन्। नभन्दै उनको त्यो 'ठूलो सपना' ले कालान्तरमा मूर्त रूप लियो।

अमेरिकाको म्यासाचुसेट्सस्थित बीबीएन कम्पनीमा राउत ट्रान्स टक उपकरण आविष्कारमा संलग्न थिए, जुन उपकरणले स्पिच ट्रान्सलेसनको काम गथ्र्यो। कुनै मानिसले बोलेको जुनसुकै भाषालाई यसले अंग्रेजीमा अनुवाद गरिदिन्छ। अमेरिकी सेनाले प्रयोग गर्ने यो नौलो प्रविधि इराक, अफगानिस्तान र चीनजस्ता मुलुकमा बढी प्रयोग हुन्छ। अमेरिका पुगेपछि राउतको मनमा थुप्र्र्रै सपना थिए। जस्तो राम्रो घर किन्ने, गाडी चढ्ने, सुखसयलपूर्वक जीवन जिउने। उनका सबै रहर पूरा भए। अत्याधुनिक ग्याजेटहरूसँग खेल्दै, बिदाका दिनहरूमा समुद्री किनारमा टहलिँदै उनको दुई वर्ष बित्यो।

अमेरिकाका चिल्ला सडकमा ४५ लाख पर्ने 'माज्दा-६' गाडीमा हुइँकिँदा राउतको मन भने नेपालका बस्तीहरूमा डुलिरहन्थ्यो। उनले छिचोलेका हिलाम्य बाटा, पराले झुपडी र फुसका घरहरू आँखाभरि एकपछि अर्को गर्दै आउँदै-जाँदै गर्थे। आफू जन्मी, हुर्किएको सप्तरीको महादेवाले बे लाबेला ध्यान तान्थ्यो। भोका, नांगा, गरिबीको रेखामुनि बाँच्न विवश सयौं अनुहार झल्झली सम्झन पुग्थे उनी। ती सबै कुरा सम्झिँदा राउतलाई ग्लानि महसुस हुन्थ्यो। जीवनको सदुपयोग नभएजस्तो लाग्न थाल्यो। अन्ततः यिनै कुराले उनलाई नेपाल फर्काएरै छाड्यो। अमे रिकाको लोभलाग्दो जागिर छाडेर जन्मभूमिका लागि योगदान गर्न छातीभित्र हुट्हुटी र छट्पटी पलायो।

'ठीक गरें जस्तो लागिरहेको छ।' गए साता नयाँ बानेश्वरस्थित एक क्याफेमा साप्ताहिकसँग राउतले आफ्ना अनुभव बाँड्दै भने, 'जुन समाजले मलाई बनायो त्यो समाजका लागि केही त गर्दैछु।' यतिबेला उनले इन्जोत अभियानलाई तीव्र बनाउँदैछन्। यो अभियानले विकट गाउँका विद्यार्थी एवं समुदायका मानिसहरूलाई कम्प्युटर र इन्टरनेटसम्बन्धी ज्ञान दिने काममा जोड दिँदै आएको छ। यसका सुरुवातकर्ता राउत नै हुन्, जसलाई उनी अमेरिका छँदै आर्थिक सहयोग गरिरहेका थिए। उनका कम्प्युटर इन्जिननियर साथीहरू महेश इशर, दीपककुमार साह, महेश थापा र भूपेन्द्र झाको सहयोगमा अघि बढिरहेको यो अभियानले सप्तरी, सुनसरी तथा सिन्धुपाल्चोकका स्कुल र समुदायमा कम्प्युटर र इन्टरनेटसम्बन्धी ज्ञान, सीप बाँडिसकेको छ। 'विद्यार्थीहरूको पढाइमा सहयोग पुग्नेछ। कृषकहरूले उन्नत तरिकाबाट खेतीपाती र पशुपालन गर्न सक्नेछन्।' आफ्नो कामका सम्बन्धमा राउतले प्रस्ट्याए। कफीको चुस्कीमा उनले बिदेसिएका साथीहरू पनि मातृभूमि फर्केर केही यो गदान दिऊन् भन्ने इच्छा व्यक्त गरे।

सीके स्वयं गरिब परिवारबाट संघर्ष गर्दै सफलताको सिंढी चढेका हुन्। सप्तरीको महादेवामा सीकेको परिवारसँग कुनै दिन स्कुल फिस तिर्ने क्षमता थिएन। वर्षको २ सय रुपैयाँ तिर्न नसक्दा परीक्षाको दिन २ घण्टा बाहिर राखिन्थ्यो उनलाई, तर पनि उनी सधैं पहिलो भए। पुल्चोक इन्जिनियरिङ क्याम्पसमा ठैबतिरका एक मजदुरले उनको शुल्क तिरिदिएका थिए। 'सीके तिमी पढ। हामी चन्दा मागेर भए पनि पढाउँछौं।' गाउँलेहरूले दिएको आश्वासन उनले अझै बिर्सिएका छैनन्। त्यो चरम अभावका बीच सीकेले पुल्चोकबाट बीईमा गोल्ड मेडल हात पारे। यदि हारेर भागेको भए यतिबेला दिल्ली र पञ्जाबमा मजदुरी गरिरहेको हुन्थें कि जस्तो लाग्छ। निरन्तरको प्रयासपछि उनले जापानको टोकियो विश्वविद्यालयमा छात्रवृत्ति पाए। इन्फरमेसन एन्ड टेक्नोलोजीमा मास्टर्स डिग्री पूरा गरे। जापान बसाइले उनलाई कडा मेहनत र नम्र बन्न सिकायो। 'जापानीहरू कामप्रति इमानदार हुन्छन्।' टोकियो विश्वविद्यालयमा अनुसन्धानकर्ताका रूपमा काम गर्दागर्दै उनले बेलायतको क्याम्बि्रज विश्वविद्यालयमा प्रवेश पाए। त्यसपछि अमेरिकाको यात्रा तय भयो।

अमेरिकाबाट र्फकंदा राउतले सम्पत्तिका नाममा ५ कार्टुन किताब ल्याए अनि मातृभूमिका लागि प्रशस्त योजना, सपना र काम गर्ने अठोट। अहिले उनी भोकै, नांगै, खाली खुट्टा हिंडेको आफ्नो बस्तीमा परिवर्तन खोज्दैछन्। विदेश बस्दा उनले व्यावसायिकता, समयअनुसार चल्न, कामप्रतिको सम्मान, पेसाप्रतिको इमानदारी राम्रैसँग बुझेका छन्। 'अब थोरै भए पनि गाउँलेहरूको मुहारमा खुसी छर्न चाहन्छु।' -अनुहार उजिल्याउँदै राउतले भने।

Source: Kantipur



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स्वतन्त्र मधेश ही क्यों?

मानव सभ्यता के प्रारम्भ से ही मधेश (मध्यदेश) राष्ट्र का अस्तित्व रहा है। वेद, पुराण और प्राचीन ग्रन्थों में मध्यदेश की चर्चा और विवरण बराबर मिलती है। वैवश्वत मनु के बेटा इक्ष्वाकु मध्यदेश के प्रथम राजा माने जाते हैं। उसके ३४ पिढी बाद भगवान राम और माता सीता ने मध्यदेश को धन्य किया था। भगवान बुद्ध भी ई. पु. ५६३ में मधेश (मज्झिमदेश) में ही जन्म लेकर इस भूमि को धन्य किया। उनके समय में मधेश विशाल था, और मधेश की सीमाओं का विवरण विनय पिटक जैसे ग्रन्थों मे विस्तार से दिया गया है। सम्राट अशोक से लेकर राजा सलहेश तक, अनेकौं गौरवशाली राजा-महाराजों ने इस भूमि पर राज्य किया। बारहवीं शताब्दी के आसपास मूस्लिम शासक यहाँ पर आए, और उसके बाद ब्रिटिश लोग। गोर्खाली ने अठारबीं शताब्दी में मधेश पर हमला किया, उस समय मधेश में सेन राजाओं का राज्य था। गोर्खालीयों ने अनेक छल-कपट किए, क्रूर-बर्बरता दिखाए, फिर भी मधेश पर कब्जा नहीं जमा सके। लेकिन ब्रिटिश ने कोशी से राप्ती बीच की मधेश की भूमि सन् १८१६ में उपभोग करने के लिए नेपाल सरकार को दे दिया, और उसी तरह सन् १८६० मे राप्ती से महाकाली बीच की मधेश की भूमि ब्रिटिश ने उपहार स्वरूप नेपाल सरकार को दे दिया। इस तरह से मधेश नेपाल के उपनिवेश बन गए। और शुरू से ही नेपाल सरकार मधेशीयों की जमीन हडपने और मधेशीयों को अपनी ही भूमि से भगाने में लगे रहे, मधेशीयों के साथ युद्धबन्दी सरह व्यवहार करते हुए गुलाम बनाने में लगे रहे।

मधेशीयों के उपर लादे गए उपनिवेश और गुलामी और उनके साथ किए जा रहे भेदभाव और रंगभेद अब छिपी नहीं हैं। इन सबसे मुक्ति के लिए मधेशीयों ने वर्षों से संघर्ष किया है, यहाँ तक कि महान मधेश आन्दोलन भी किया, ५४ से अधिक शहीद हुए, हजारों-हजार घायल हुए, लाखों ने अपना योगदान दिया। परन्तु इतने संघर्ष के बाद भी, इतने मधेशीयों के बलिदान और खून के बाद भी क्या परिवर्तन आए हैं? सुधरने के बदले, नेपाल के शासक तो उल्टा रूख पकडे हुए हैं। सम्झौते के मुताबिक हमें अधिकार देने के बदले, ये लोग हमारे अधिकार छिनने में लग गए। रंगभेद और भेदभाव खत्म करने के बदले, हमें और भी शिकार बनाते गए। मधेशीयों को नागरिकता देने के बजाए नागरिकता छिनने में लग गए; एक पर एक नागरिकता विधेयक लाकर ये लोग मधेशीयों को अनागरिक बनाने में लग गए। जो मधेशी कई दशकों से अपना भोट देते रहे हैं, उसका भी मतदान अधिकार इन्होंने छीन लिया, उनको भोटर लिस्ट से हटा दिया। विशेष सुरक्षा प्रणाली के नाम पर मधेश के निर्दोष लोगों को जेल में बन्द कर दिया, कितनों को दिनदहाडे बेबजह गोली मार दी गई। हमें दबाने के लिए सशस्त्र प्रहरी और सैनिक जगह-जगह पर लगा दिए गए हैं। मानव अधिकार संगठन बन्द करा दिए गए हैं। भाषा और भेषभूषा के मामले पर भी वही पुराने षड्यन्त्र करते रहे। मधेशी उपराष्ट्रपति को नेपाली बोलने और दौरा-सुरुवाल पहनने पर मजबूर करेके ही छोडा। हजारौं वर्ष से चलते आए सीमा आर-पार के हमारे सम्बन्धों को तोडने के लिए एक पर एक नियमकानून बनाते रहे, आज तो आप एक तौलिया लेकर भी आर-पार नहीं हो सकते। सेना में मधेशी की भर्ती और समावेशी की बात को धराशायी कर दिया गया। सम्झौता होने के बाबजूद हमारे नेता और पार्टीयाँ मधेशीयों को सेना में समानुपातिक प्रवेश तो क्या, ३००० मधेशीयों को भी प्रवेश नहीं करा सके, वश मजाक बनकर रह गया। हर क्षेत्र में मधेशी का कोटा पहाडी ले जा रहा है। नेपाल की मिडिया मधेश-विरोधी अभियान में संगठित हो गए और मधेश को बदनाम करते रहे, मधेशी की आवाज को दबाते रहे हैं। सम्झौता कर चुके ‘स्वायत्त मधेश प्रदेश’ देने के बजाए मधेश को खण्ड-खण्ड बनाने के लिए एक पर एक षड्यन्त्र करते रहे, हमें तोडेने का अनेक षड्यन्त्र करते रहे। पहाडी लोग कभी चुरे-भाँवर तो कभी अखण्ड सुदुरपश्चिम के नाम पर हमारी जमीन पर कब्जा जमाए रखना चाहते हैं, अपनी विरासत बनाए रखना चाहते हैं। हमें कभी थारू, कभी मूस्लिम, तो कभी जनजाति के नाम पर शासक लोग फुट डालना चाहते हैं, पर हम पुछते हैं, ऋतिक रोशन या नेपालगंज जैसे कांडो में थारू या जनजाति कहने पर पहाडीयों ने मारना छोड दिया था? मूस्लिम कहने पर पहाडियों ने आक्रमण नहीं किया था? घर में आग नहीं लगाई थी? माँ-बहन की इज्जत नहीं लुटी थी? काठमाण्डू में मस्जिद नहीं जलाई थी? सच तो यह है कि पहाडियों के अत्याचार से थारू हो या मूस्लिम या जनजाति, सभी मधेशी तडप रहे हैं। पूर्व में सुनसरी के शहीद परिवार हो, या सप्तरी-सिरहा-धनुषा के दलित, या पश्चिम में कंचनपुर जिल्ला के भूमिहीन हो या दांग के थारू कमैया या वीरगंज-नेपालगंज के हमारे मूस्लिम भाइ-बहन, सब की दुर्दशा है।

नेपाल को इतना पैसा मिलता है अनुदान में, इतने प्रोजेक्ट आते हैं, इतने का बज़ट बनता है, लेकिन सब पहाड चला जाता है। मधेशीयों को क्या मिलता है? पहाड में एक पर एक स्वर्ण-नगरी स्थापित किया जाता है, एक पर एक रोड, एयरपोर्ट, सरकारी कार्यालय, अस्पताल, स्कूल-कलेज, फैक्ट्री बनाए जाते हैं, इन्टरनेट की अत्याधुनिक सुविधाएँ है, ल्यापटप बाँटा जाता है, मधेश में क्या होता है? मधेश मे कुछ खुलने नहीं देता है, जो भी फैक्ट्री, सरकारी अफिस, कलेज या अस्पताल था, जो भी प्रोजेक्ट चल रहे थे, उसे बन्द करा दिया गया, उसे पहाड के तरफ लेकर चले गए। किसान को खाद और बीज तक नहीं मिलता, सरकार सिंचाइ की कोई व्यवस्था नहीं करती, किसान की कोई भी समस्या को सरकार नहीं देखती। मधेश में व्यापारी को अनावश्यक दु:ख दिया जाता है, निरूत्साहित किया जाता है। एक से एक बेहतरीन मधेशी युवा पढकर बेरोजगार बैठे हैं, सरकार उन्हें काम नहीं देती। नेपाल सरकार ने तो मधेशीयों को काम नहीं दिया, लेकिन अपने खून-पसीनों से अरब-मलेशिया, दिल्ली-पंजाब से भी जो हम कमाकर लाते हैं, मेहनत-मजदूरी करके यहीं पर भी जो कमाते हैं, उसका भी लगभग दो-तिहाई सरकार हमसे छीन लेती है। कैसे? कर के नाम पर। जिस मोटरसाइकल का दाम पचास हजार है, उसे हमें नेपाल सरकार डेढ़ लाख में खरीदने पर मजबूर करती है, यानि सरकार हमसे एक लाख छीन लेती है! जिस नानो गाडी का दाम दो लाख नेपाली रूपैयाँ है, उसे हमें नौ लाख में खरीदने पर मजबूर करती है, यानि हमारे मेहनत-मजदूरी का सात लाख नेपाल सरकार छीन लेती है! इसी तरह, पैसा तो हम कुछ न कुछ खरीदने में ही खर्च करते हैं, और सरकार मेहनत-मजदूरी से कमाए हुए हमारे पैसौं के अधिकांश हिस्सा हमसे छीन लेती है। और बदले में हमें क्या मिलता है? गोली और गुलामी। हमारे पैसौं से नेपाली शासक बन्दुक खरीदते हैं, गोली खरीदते हैं, और शसस्त्र प्रहरी और सैनिक हमारे उपर छोड देते हैं। आज जगह-जगह पर मधेशीयों को दबाने के लिए हजारों-हजार सशस्त्र प्रहरी और सैनिक तैनाथ किए गए हैं, वे पग-पग पर हमें सता रहे हैं, नेपाली उपनिवेश लाद रहे हैं, हमारी माँ-बहन की इज्जत लुट रहें है, हम पर एक पर एक अत्याचार किए जा रहे हैं।

मधेशीयों ने अपना अधिक से अधिक मत देकर मधेशी नेताओं को संसद भेजा, जितने सीट वे लोग सोच भी नहीं सकते थे उससे ज्यादा सीट पर नेताओं को पहुँचाया। लेकिन राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, उपप्रधानमन्त्री, रक्षामन्त्री, गृहमन्त्री लगायत के मन्त्री परिषद् में मधेशी मन्त्रियों का बहुमत रहते हुए भी वे लोग मधेशी के लिए कुछ भी नहीं कर सके, बल्कि मधेशीयों का अधिकार खोते रहे हैं। यह प्रमाण है कि नेपाल के अन्दर रहते हुए हम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। मधेशी अफिसर, नेता, मन्त्री, उपप्रधानमन्त्री या राष्ट्रपति को तो एक पहाडी प्यून या ड्राइभर भी नहीं ‘टेरता’ है, तो ये क्या परिवर्तन लाएँगे? सेना को ‘धोती’ रक्षा-मन्त्री स्वीकार्य नहीं, तो सेना क्या मधेशी मन्त्री को ‘टेरेंगे’?

नेपाल के अन्दर रहते हुए कोई राजनैतिक परिवर्तन मधेशीयों के जीवन मे कुछ बदलाव ला न सका, और न ही ला सकेगा। पुराने तरीके, पुरानी माँगे बर्षो-वर्ष अब पचकर-सडकर ‘मल’ बनकर निकल चुकी है, और हम देख चुके हैं कि उससे मधेशीयों को कभी कुछ पोषण नहीं मिला। लेकिन हमारे नेतालोग संसद और सरकार मे जाने के लालच से वही पचकर-सडकर निकले हुए ‘मल’ फिर से मधेशीयों को खिलाने की कोशिस कर रहे हैं। लेकिन मधेशी जनता वही ‘मल’ खाएगी? हरगिज नहीं। मधेशी जनता तो अब नई राह पर, नए लक्ष्य की ओर चलेगी; अपनी और मधेश की स्वतन्त्रता के लिए आगे बढेगी।

क्या कोई और व्यवस्था मधेश की अखण्डता की ग्यारेन्टी करती है? नेपाली शासक तो हमें तोडने में लगे हैं, हमें लडाने में लगे हैं। क्या कोई और व्यवस्था मधेशीयों की जमीन नहीं छिनने की और पहाडीयों को मधेश में बसाने का षड्यन्त्र नहीं होने देने की ग्यारेन्टी करती है? अगर नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब और जिल्ला भी झापा या चितवन की तरह पूरी तरह से पहाडीयों से भर जाएगा, और मधेशी केवल उनके दास बन कर रह जाएँगे। क्या कोई और व्यवस्था मधेश में सिडियो, एसपी लगायत के सभी प्रशासक मधेशी होने की ग्यारेन्टी करती है? नहीं तो पहाडी शासक हम पर कर्फ्यू लगाकर आक्रमण करता रहेगा, शोषण करता रहेगा। क्या कोई और व्यवस्था ऋतिक रोशन कांड र नेपालगंज घटना जैसे षड्यन्त्र कराके मधेशीयों पे आक्रमण और लुटपाट नहीं होने की ग्यारेन्टी करती है? पहाडी द्वारा मधेशीयों के घर और गाँव नहीं जलाने की ग्यारेन्टी करती है? मधेश के कामकाज और नौकरियाँ मधेशीयों को ही मिलने की ग्यारेन्टी करती है? क्या मधेश की आय के सम्पूर्ण भाग और वैदेशिक अनुदान और प्रोजेक्ट के आधे हिस्से मधेश को मिलने की ग्यारेन्टी करती है? क्या देश भितर और बाहर रहे मधेशीयों की पहचान और आत्मसम्मान की समस्या को हल करती है? क्या हमारी राष्ट्रियता पर शक नहीं किया जाएगा, हमसे नागरिकता नहीं माँगा जाएगा, हमसे ‘नेपाली हो र? नेपाली जस्तो देखिनुहुन्न’ नहीं कहा जाएगा? क्या कोई और व्यवस्था मधेश से सम्पूर्ण पहाडी सेना वापस करने की ग्यारेन्टी करती है? सम्पूर्ण पहाडी प्रहरी और सशस्त्र प्रहरी फिर्ता लेने की ग्यारेन्टी करती है? नहीं तो नेपाली शासकलोग जब चाहे हम पर गोली चलाकर राज करता रहेगा, जो भी नियम-कानून और संविधान बनाकर हम पर लादता रहेगा, केन्द्रिय सरकार आपत्‌कालीन स्थिति घोषणा करके मिनट भर में हमारे सारे अधिकार छीन सकती है। और हमें, हमारी माँ-बहन को, इन पहाडी सैनिक और पुलिस के खौफ में सदा की तरह जीना पडेगा। यानि कि, परम्परागत तरीकों से इनमें से हमें कुछ भी नहीं मिल सकता। ये सब चीज स्वतन्त्र मधेश में ही प्राप्त हो सकती है, मधेश आजाद होने से ही मिल सकती है।

स्वतन्त्र मधेश के बनने से हमारा एक देश होगा, हमारी पहचान होगी जो मधेशी की संस्कृति, भाषा, रहन-सहन को समेटेगी, और कोई भी हमारी पहचान के उपर सवाल नहीं करेगा। कभी नागरिकता-पासपोर्ट लेने मे दिक्कत नहीं होगी, किसी को भी नागरिकता के अधिकार से वंचित नहीं होना पडेगा। स्वतन्त्र मधेश में लाखों मधेशी युवा मधेशी सेना मे प्रवेश करेगा, लाखों-लाख पुलिस में प्रवेश करेगी, लाखों-लाख प्रशासक बनेगी, और लाखों-लाख मधेशीयों को नौकरी मिलेगी, बेरोजगारी हटेगी। हम मधेश का विकास खुद कर सकेंगे । बोर्डर के सम्बन्ध को सहज करते हुए किसानों को खाद, बीज, तेल-डिजल, थ्रेसर, पम्पिनसेट आदि सहज रूप से लाने दिया जाएगा, उनके लिए बाजार खुला रहेगा। मेशिन, मोटरसाइकल, ट्रयाक्टर जैसी चीजों पर से कर हटा दिया जाएगा, जिससे वे चीज बोर्डर के पार के दामों में ही मिल जाएगी। हम क्यों नेपाल सरकार को लाखों-लाख कर बेवजह देते रहें? जो मोटरसाइकिल आज डेढ लाख में मिलती है, वह चालीस-पचास हजार में मिलने लगेगी, जो नानो गाड़ी आज नेपाल में नौ लाख मे मिलती है, वह डेढ-दो लाख मे मिलने लगेगी। सीमा-क्षेत्र से नेपाली शासक के सशस्त्र पुलिस और सैनिक का अत्याचार हटा दिया जाएगा, और बोर्डर क्षेत्र में आवत-जावत और व्यापारों को हम मधेशी अनुकुल सहज बनाएँगे। किसान लोगों के लिए, खेती के लिए सिंचाइ, सुलभ ऋण सहयोग, बोरिङ्ग और उन्नत बीज की व्यवस्था की जाएगी। गरीबों को राशन कार्ड मिलेगा; खाना, कपडा और बास की उचित व्यवस्था की जाएगी। मधेश में एक पर एक रोजगार और प्रोजेक्ट आएँगे, फैक्टरी खुलेगी, सड़क बनेगी, पुल, एयरपोर्ट, अस्पताल, स्कूल-कलेज, लाइब्रेरी बनेंगे। स्वदेश में ही सभी को रोजगार प्राप्त होंगे, लेकिन वैदेशिक रोजगार पर जाने चाहने वालों को भी सुलभ ऋण (जो वापस न कर सकने वालों के लिए मिनाहा कर दिया जाएगा) और विदेश में सुरक्षा की व्यवस्था किया जाएगा। हमें हर गुलामी से मुक्ति मिलेगी, आत्मसम्मान होगा । ईसलिए यह जरूरी है कि हम स्वतन्त्र मधेश के लिए संघर्ष करें।

हमारे बाप-दादा नहीं लडे, और हम गुलाम हुए। आज हम नहीं लडेंगे, हमारे बच्चे गुलाम होंगे। क्या हम अपने बच्चों को गुलामी देना चाहेंगे, ऋतिक रोशन और नेपालगंज जैसे कांडो में मरने के लिए छोडना चाहेंगे, भेदभाव और रंगभेद का शिकार होने के लिए छोडना चाहेंगे? आज हम नहीं लडे, आज हम चुप बैठे रहे, तो शासकवर्ग हमारे अस्तित्व को ही मिटा डालेंगे। हमारे अधिकार ही नहीं छिनेंगे, हमारे नामोनिशान को मिटा देंगे।

और ऐसी सरकार जो अपना सैनिक और सशस्त्र पुलिस लगाकर हमें कुचल देना चाहती हो, उसके आगे बारबार भिखारी की तरह हात फैलाने का औचित्य क्या है? मधेश तो केवल लगभग दो सौ वर्ष पहले नेपाल मे आए थे, तो नेपाल में दास बनकर सब दिन रहने की जरूरत क्या है? मधेशीयों को तो सन् १९५८ तक काठमाण्डू जाने के लिए भी भिसा लेना पडता था, और मधेश का नेपाल से पृथक अस्तित्व था। नेपाल सरकार ने तो झूठ बोलकर संयुक्त राष्ट्रसंघ का सदस्यता ले लिया, और मधेश को खा गया। हमें मधेश की वह स्वतन्त्रता वापस करनी है, न कि छोटी-छोटी चीज भीख में माँगनी है। हम कितनी बार एक ही चीज के लिए लडते रहें? कितनी बार हम एक ही चीज के लिए मरते रहें? कितनी बार वही सम्झौते करते रहें, जो केवल कागज पर ही सीमित रह जाता है? इस लिए बारबार नेपाली शासकों की गोली खाने के बजाय, एक ही बार अन्तिम संघर्ष करना है जो मधेश और मधेशीयों को स्वतन्त्र कर दे, हमें गुलामी से आजाद कर दे, नेपाली शासक के सभी षडयन्त्रों को सदा के लिए खत्म कर दे। एक निर्णायक संघर्ष, स्थायी स्वतन्त्रता और अधिकार के लिए। इसलिए, कौन नेता कहाँ वार्ता करता है, यानि हमें और हमारे खून का सौदा करता है, इसकी परबाह नहीं करते हुए, हमें तब तक संघर्ष करना है जब तक हम स्वतन्त्र न हो जाएँ । किसीके कहने पर हम ना रूकें, वश खुद से पुछें कि ‘क्या हम आजाद हो गए, मधेश आजाद हो गया?’ और जब तक ‘हाँ’ मे जवाफ नहीं मिल जाता तब तक हमें रुकना नहीं है। यह स्वतन्त्रता संग्राम मन्त्री, प्रधानमन्त्री या सांसद् बनने के लिए नहीं है, हम उस पुरानी दिशा की ओर जाना ही नहीं चाहते हैं क्योंकि उस तरफ जाने वाला हर कोई गद्दार है, मन्त्री और सांसद् बनने के लालची है। हम तो आजादी चाहते हैं, जो मधेश आजाद होने पर सबको प्राप्त होगी।



Speech by Dr. CK Raut at Khulamanch, Kathmandu, Nepal
Enhanced by Zemanta

Friday, August 24, 2012

Three Gorges Dam

Hydropower In Nepal


 
Three Gorges Dam
The Three Gorges Dam is the world's largest power station in terms of installed capacity (22,500 MW) .... As well as producing electricity, the dam is intended to increase the Yangtze River's shipping capacity and reduce the potential for floods downstream by providing flood storage space. The Chinese government regards the project as a historic engineering, social and economic success, with the design of state-of-the-art large turbines, and a move toward limiting greenhouse gas emissions. However, the dam flooded archaeological and cultural sites and displaced some 1.3 million people, and is causing significant ecological changes, including an increased risk of landslides. The dam has been a controversial topic both domestically and abroad. ...... A large dam across the Yangtze River was originally envisioned by Sun Yat-sen in The International Development of China, in 1919. He stated that a dam capable of generating 30 million horsepower (22 GW) was possible downstream of the Three Gorges. ........ On completion, the reservoir flooded a total area of 632 square kilometres (244 sq mi) of land ..... Full cost recovery is expected to occur ten years after the dam starts full operation ...... The dam was expected to provide 10% of China's power. However, electricity demand has increased more quickly than planned. Even fully operational, on average, it supports only about 1.7% of electricity demand in China in the year of 2011 ...... At full power, Three Gorges reduces coal consumption by 31 million tonnes per year, avoiding 100 million tonnes of greenhouse gas emissions, millions of tonnes of dust, one million tonnes of sulfur dioxide, 370,000 tonnes of nitric oxide, 10,000 tonnes of carbon monoxide, and a significant amount of mercury. Hydropower saves the energy needed to mine, wash, and transport the coal from northern China. ....... From 2004 to 2007 a total of 198 million tonnes of goods passed through the ship locks. ..... sedimentation projections are not agreed upon, and the other is that the dam sits on a seismic fault. ..... China's huge reforestation effort. This accelerated after severe flooding in 1998 convinced the government that it must restore tree cover, especially in the Yangtze's basin upstream of the Three Gorges Dam ..... home to 6,388 species of plants, which belong to 238 families and 1508 genera. Of these plant species, 57 percent are endangered. These rare species are also used as ingredients in traditional Chinese medicines ....... the Yangtze River basin is home to 361 different fish species and accounts for twenty-seven percent of all endangered freshwater fish species in China ..... The reservoir's flood storage capacity is 22 cubic kilometres ... This capacity will reduce the frequency of major downstream flooding from once every ten years to once every 100 years. The dam is expected to minimize the effect of even a "super" flood ....... Since the filling of the reservoir in 2003, the Three Gorges Dam has supplied an extra 11 cubic kilometres of fresh water to downstream cities and farms during the dry season .... The installation of ship locks is intended to increase river shipping from ten million to 100 million tonnes annually, as a result transportation costs will be cut between 30 and 37%. Shipping will become safer, since the gorges are notoriously dangerous to navigate. Ships with much deeper draft will be able to navigate 2,400 kilometres (1,500 mi) upstream from Shanghai all the way to Chongqing. It is expected that shipping to Chongqing will increase fivefold
China's Three Gorges Dam: An Environmental Catastrophe?
For over three decades the Chinese government dismissed warnings from scientists and environmentalists that its Three Gorges Dam—the world's largest—had the potential of becoming one of China's biggest environmental nightmares. But last fall, denial suddenly gave way to reluctant acceptance that the naysayers were right. ..... When complete, the dam will generate 18,000 megawatts of power—eight times that of the U.S.'s Hoover Dam on the Colorado River. .... "There's been a lot less rain, a lot more drought, and the potential for increased disease" ..... "When it comes to environmental change, the implementation of the Three Gorges dam and reservoir is the great granddaddy of all changes." ..... Inhabited for several millennia, the Three Gorges region is now a major part of western China's development boom. To date, the government has ordered some 1.2 million people in two cities and 116 towns clustered on the banks of the Yangtze to be evacuated to other areas before construction, promising them plots of land and small stipends—in some cases as little as 50 yuan, or $7 a month—as compensation. ....... The first of the Yangtze's famed gorges—a collection of steep bluffs at a bend in the river—was determined to be the perfect site. ...... a narrow lake 410 miles (660 kilometers) long—60 miles (97 kilometers) longer than Lake Superior ..... the landslides are directly linked to filling the reservoir. Water first seeps into the loose soil at the base of the area's rocky cliffs, destabilizing the land and making it prone to slides. ..... One of the greatest fears is that the dam may trigger severe earthquakes, because the reservoir sits on two major faults: the Jiuwanxi and the Zigui–Badong. ...... officials failed to foresee the full magnitude of the dam's effects ..... half of China's animal and plant species, including the beloved giant panda and the Chinese sturgeon, are found no where else in the world. The Three Gorges area alone accounts for 20 percent of Chinese seed plants—more than 6,000 species. ..... Downstream, near where the river empties into the East China Sea, the land around the Yangtze contains some of the densest clusters of human habitation in the world, and overfishing there has already endangered 25 of the river's 177 unique fish species. ..... When officials unveiled plans for the dam, they touted its ability to prevent floods downstream. Now, the dam seems to be causing the opposite problem, spurring drought in central and eastern China. ..... the dam had reduced the flow volume of the river by 50 percent. To make matters worse, China is now plowing ahead with a controversial $62-billion scheme to transfer water from the Yangtze to northern China, which is even more parched, through a network of tunnels and canals to be completed by 2050. ..... "Once you dramatically change the climate and change water patterns, as is now seen in the Three Gorges region," he says, "you change a lot of environmental variables. Almost all infectious diseases are up for grabs." ..... President Hu Jintao and Premier Wen Jiabao are eager to distance themselves from a project they inherited. ..... Government officials fear that continued free discussion of the project's ramifications could lead to civil unrest. ..... China still draws 82 percent of energy from coal, but large dams are crucial to the country's climate change program, which aims to increase its proportion of electricity from renewable resources from the current 7.2 percent to 15 percent by 2020. Over one third of that will come from hydropower—more than from any other source. Twelve new dams are planned for the upper Yangtze alone. ..... [a river] is also important for shipping, alleviating pollution, sustaining species and ecosystems, and maintaining a natural evolutionary balance." .... "The Yangtze doesn't belong to the Three Gorges Project Development Corporation," Fan adds. "It belongs to all of society."
China's Three Gorges Dam
a dam one and a half miles wide and more than 600 feet high that will create a reservoir hundreds of feet deep and nearly 400 miles long ..... the dam's hydropower turbines are expected to create as much electricity as 18 nuclear power plants. .... the largest construction project in China since the Great Wall. Many high-ranking Chinese officials expect the dam to become a potent symbol of their nation's vitality in the new century and the new millennium. ..... authorities hope the dam will take care of several major national problems with a single monumental stroke. .... The Yangzi's notorious floods have been recorded for millennia and have claimed more than 1 million lives in the past 100 years. ..... Officials hope the combination of inexpensive electricity and cheap river transportation will further open the region to international investment -- making Chongqing a major business center. .... Allegations of corruption among officials involved with the project have raised fears of shoddy construction. The Chinese media recently reported several incidents in which corruption and poor construction have led to disasters at major building projects. Notable among the reports was the collapse of a steel bridge in the city of Chongqing in January 1999 that killed 40 people. ..... Li Peng, the former Chinese premier and Soviet-trained engineer who spearheaded the dam's construction. .... The dam will "drown" more than 100 towns once the water starts to rise in 2003. .... Archaeologists and historians have estimated nearly 1,300 important sites will disappear under the reservoir's waters ..... More than 20,000 workers are working around the clock on the dam itself.
Great Wall Across The Yangtze
Swimming Great plans are afoot: A bridge will fly to span the north and south, Turning a deep chasm into a thoroughfare; To hold back Wushan's clouds and rain Till a smooth lake rises in the narrow gorges. The mountain goddess if she is still there Will marvel at a world so changed. - poem by China's former Communist Leader Mao Tse-tung The Three Gorges project has been engineered to store over 5 trillion gallons of water and to withstand an earthquake of 7.0 on the Richter scale. The reservoir will allow 10,000-ton freighters to enter the nation's interior, which currently limits access to boats under 1,500 tons. In addition to increasing commercial shipping access to China's interior, the government says the dam will control devastating floods and provide much-needed electrical power to China's growing cities. .... Like China's Great Wall, it will be one of the few man-made structures visible from space.
Biggest flood peak passes Three Gorges Dam
As the world's largest water hydropower project, the Three Gorges Project consists of a dam, a five-tier ship dock and a total of 32 hydropower turbo-generators.
China Admits Problems With Three Gorges Dam
The Three Gorges Dam, the world’s largest hydroelectric project and a symbol of China’s confidence in risky technological solutions, is troubled by urgent pollution and geologic problems, a high-level government body acknowledged. ..... According to official figures, the venture cost China about $23 billion, but outside experts estimate it may have cost double that amount. The dam has been plagued by reports of floating archipelagoes of garbage, carpets of algae and landslides on the banks along the vast expanse of still water ..... the government has fallen far short of its goals in helping to resettle the 1.4 million people displaced by the rising waters behind the dam. ..... denied that the project played any role in China’s powerful May 2008 quake in Sichuan Province, in which at least 87,000 people died. .... Faced with a historic drought this spring, cities downstream of the dam have been unable to accommodate oceangoing vessels that usually visit their ports, and about 400,000 residents of Hubei Province lost access to drinking water this month. ..... the dam has changed regional water tables, contributing to the shortage. .... some problems were anticipated during the dam’s construction, but that others “arose because of new demands posed by economic and social development.” .... “My sense is that the Chinese government is getting better and better at collecting information about things like this.”
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