सम्पूर्ण मैथिलगणकेँ नव वर्षक हार्दिक मङ्गलमय शुभकामना ।
नव वर्ष नेपालमे केहन आएत से कहल नहि जा सकैत अछि। एखन सभसँ प्रमुख विषय अछि राष्ट्रिय कुशलताक। से देशकेँ मृत्युशय्यासँ उबारि पुन: स्वस्थतादिस अग्रसर करएबाक लेल नेपाली जनता एखन जागल अछि, तन-मन-धनसँ लागल अछि। व्यक्तिगत रूपेँ हम भावनात्मक रूपेँ पूर्णत: समर्थक रहितहुँ सडकपर नहि उतरि पाएल छी। नान्हिटा सरकारी नोकरी की करैछी बुझू जे पूरा स्वतन्त्रते बन्हकी पडि गेल अछि। तथापि मोन निर्बन्ध अछि। मोनक भावकेँ व्यक्त करबाक लेल कलम सक्रिय अछि। साहित्यिक रचनासभसँ एखनुक सर्न्दर्भकेँ किछु मात्रामे अभिव्यक्त कऽ रहल छी। सन्तोष करबाक सभसँ पैघ आधार इएह अछि। चिन्ता होइत अछि तँ खालि अपन जातिक शिथिलतापर। एखनधरि कोनो मैथिल संघ-संस्था वा व्यक्ति एहिदिस कोनो तरहक संलग्नता देखबैत नहि पाओल गेल अछि। हमरा लगैत अछि- कोनो समयक जाज्वल्यमान मिथिला आइ एहि लेल शिथिला भऽ गेल अछि, जे हमसभ 'भोजमे आगू, जुद्धमे पाछू' वला कहबीकेँ जिनगीक मूलमन्त्रे बना लेने छी। आबो जँ 'कामकाजमे कोढी बाबा भोजनमे होशियार' बनल रहब तँ ओ दिन दूर नहि रहत जखन हमरासभक सभ होशियारी धएले रहि जाएत।
ई तँ बस खालि मोनक गुबार अछि। मुदा हमरा लगैत अछि जे मैथिलसभ जे-जतऽ छी, सभकेँ अपन-अपन मोर्चासँ अपन मैथिलत्ववला पहिचानकेँ कायम रखैत नेपालमे लोकतन्त्रक लेल आवाज बुलन्द करबाक चाही। किएक तँ लोकतन्त्रमे मात्र आमलोकक आवाज कनियोँ सूनल जा सकैत अछि। एखन तँ उएह पइर भऽ रहल अछि जे 'भैँस के आगे वीन बजाए, भैँस रहे पगुराइ'। एहिमे दोस भैँसक मात्र नहि, वीन बजौनिहारक सेहो छैक। किएक तँ आकरा भैँसक चरित्र बूझल होएबाक चाही । भैँसक आगाँमे जा कऽ वीन बजौनाइ समयक बर्वादी छियैक। आब तँ देशकेँ चरि-चरि खालि पाउजु करैत रहनिहार भैँसकेँ गोहालीसँ खदेडनाइए सभसँ पैघ बुधियारी छियैक। आ ई बुधियारी देखएबाक उपयुक्त मौका एखने छैक। एखन जँ हमसभ चूकि जाएब तँ ई हमरासभक एकटा आओर ऐतिहासिक भूल हएत। हमरा ई कहैत कनेको अन्यथा नहि बुझा रहल अछि जे आबक दिनमे मिथिला, मैथिल, मैथिलीक लेल जँ किछु कएल जा सकैत अछि तँ नेपालहिसँ। अन्यत्र मैथिलोसभमे अपेक्षाकृत मैथिल भावना मुरझाइतसन देखल जा रहल अछि। नेपालमे एखन जनता जागल छैक। मिथिलाकेँ सेहो जगएबाक चाही। किएक तँ हमर मान्यता अछि -
जखन जनजन ई मिथिलाक जागि जेतै भाइ
हेतै सोन सनक भोर, राति भागि जेतै भाइ
अहाँसभकेँ नव वर्ष विक्रम संवत २०६३ क हार्दिक मङ्गलमय शुभकामना ।
धीरेन्द्र प्रेमर्षि