जयकृष्ण गोइत द्वारा लिखित भारतीय प्रधानमन्त्री लाई खुल्ला पत्र
सम्माननीय प्रधानमन्त्री , श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी, भारत सरकार
मार्फत
महामहिम राजदूत
भारतीय राजदूतावास
लैनचौर, काठमाण्डौं ।
तिथिः ९ अगस्त २०१५
श्रीमान् ,
हम, नेपाल अधीनस्थ तराई(मधेश) के मूल निवासियों के सच्चे प्रतिनिधि और तराई(मधेश) में जारी मुक्ति आन्दोलन के नेता के रुप में आपको भारत–नेपाल “शान्ति एवं मैत्री” सन्धि – १९५० की धारा – ८ का नेपाल में दोहरा मापदण्ड के सन्दर्भ में अवगत कराना अपना कत्र्तव्य समझतें हैं और आपका ध्यान इस ओर आकृष्ट करना चाहते हैं कि नेपालियों(पहाडियों) द्वारा भारतीय भू–भाग को सम्मिलित दिखाकर “वृहत्तर(गे्रटर) नेपाल” के एकतरफा अभियान से अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को गुमराह किया जा रहा हैं और तराई(मधेश) को औपनिवेशिक उत्पीडन में ही रखने की हताशापूर्ण कोशिशें की जा रही हैं ।
इतिहास की नींव पर ही वत्र्तमान का निर्माण होता है । इतिहास का संबंध सिर्पm अतीत से नहीं हैं, उसका संबंध वत्र्तमान और भविष्य से भी है । नेपाल के पाठ्यक्रम और अकादमिक चर्चा के रूप में इतिहास की विषयवस्तुओं के अनुसार नेपाल अधीनस्थ मेची नदी से महाकाली नदी तक का ‘तराई(मधेश)’ किसी शाहवंशी राजा, महाराजा वा नेपाली(पहाडी)का विजित भू–भाग नहीं रहा बल्कि ब्रिटिश स्वार्थ को पूरा करने के सहयोग के बदले नेपाल को हस्तान्तरित किया गया भू–भाग है ।
अतः भारत–नेपाल ‘संधि–१९५०’ की धारा– ८ के आधार पर मेची से लेकर महाकाली तक मधेश के ऊपर रही नेपाली अधीनता पूर्णतः अनाधिकृत और अवैध है । मेची से लेकर महाकाली तक मधेश वस्तुतः स्वतन्त्र भूभाग है । तराई(मधेश) के मूल निवासी(मधेशी) भारत–नेपाल संधि–१९५० की धारा– ८ के अनुसार नेपाल के अधीनस्थ मेची से लेकर महाकाली तक के भू–भाग को ‘स्वतन्त्र तराई(मधेश)’ मानते है जबकि नेपाली(पहाडी) मधेशियों की ऐसी धारणना को नेपाल का विखण्डन मानते हंै ।
दूसरी ओर पहाडियों के अनुसार उसी संधि–१९५० की धारा– ८ के अनुसार भारत के अधीनस्थ तिष्टा नदी से लेकर मेची नदी तक और महाकाली नदी से लेकर सतलज नदी तक का भू–भाग वृहत्तर(गे्रटर) नेपाल का अंग है, मगर ऐसी मान्यता को भारत का विखण्डन नहीं माना जाता है । २९ जून, १९९७ को “वृहत्तर(गे्रटर) नेपाल” के सन्दर्भ में नेपाल के सुप्रसिद्ध इतिहासविद् योगी नरहरिनाथ, अधिवक्ता रामजी विष्ट, अधिवक्ता श्याम प्रसाद ढुंगेल, नेपाली कांगे्रस सुवर्ण के अध्यक्ष प्रह्लाद प्रसाईं हुमागाईं, ‘विशाल नेपाल’ साप्ताहिक के सम्पादक तथा प्रकाशक प्रकाश देवकोटा, राष्ट्रीय जनजागरण पार्टी के अध्यक्ष अशोक लाल श्रेष्ठ, स्वतन्त्र पत्रकार राधेश्याम लेकाली आदि ने मंत्रिपरिषद्, मंत्रिपरिषद् सचिवालय, सम्माननीय प्रधान मंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय, परराष्ट्र मंत्री, परराष्ट्र मंत्रायल और साथ ही संसद सचिवालय सिंहदरबार को परिवादी बनाकर सर्वोच्च अदालत काठमाण्डू में एक रिट(याचिका) दायर की जिसका दर्ता नं. ३१९३ है ।
इसी प्रकार १९९९ में प्राध्यापक तथा “नेपाल ः टिस्टादेखि सतलजसम्म” के लेखक फणीन्द्र नेपाल, पूर्वी नेपाल के आदिवासी किरांत समुदाय के यमबहादुर कुलुङ, पत्रकार प्रकाश देवकोटा, समाजसेवी बाल कुमार अर्याल जैसे विभिन्न पेशा में संलग्न व्यक्तियों ने नेपाली जनता का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हुए सामूहिक रूप से नेपाल की सर्वोच्च अदालत काठमाण्डू में “वृहत्तर(गे्रटर) नेपाल” सम्बन्धी दूसरी रिट(याचिका) दायर की । इस रिट(याचिका) का दर्ता नं. ३९४० है और इसमें मंत्रीपरिषद् सचिवालय, सम्माननीय प्रधान मंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय, परराष्ट्र मंत्रायल, भूमि सुधार तथा व्यवस्था मंत्रायल के साथ—साथ रक्षा मंत्रायल सिंहदरबार को भी परिवादी बनाया गया है ।
सर्वोच्च अदालत के माननीय न्यायाधीश हरिप्रसाद शर्मा, दिलीप कुमार पौडेल और खिमराज रेगमी के विशेष इजलास ने नेपाल अधिराज्य का संविधान, १९९०(२०४७) की धारा २३ और ८८ (१) तथा (२) के अनुसार दायर दोनों याचिकाओं को २६ जून, २००३ के अपने फैसले में निरस्त कर दिया । उस फैसले को चुनौती देते हुए निवेदकओं ने सर्वोच्च अदालत के समक्ष पुनरावलोकन के लिए निवेदन नहीं पेश किया ।
गे्रटर नेपाल के उत्साही समर्थक अपने अभियान को व्यापक बनाने के प्रयासों में लगे रहे । उनलोगो ने सर्वसाधारण व्यक्ति से लेकर छोटे–छोटे बालक—बालिकाओं को भी अपने अभियान में आबद्ध करने हेतु ‘ग्रेटर नेपाल सिमानाको खोजीमा’ नामक एक वृत्तचित्र का निर्माण किया । ९ फरवरी, २००८ को नेपाल सरकार के सूचना तथा संचार मन्त्रालय के अन्तर्गत केन्द्रीय चलचित्र जाँच समिति से चलचित्र जाँच प्रमाण–पत्र लेकर वे पूरे नेपाल में इस वृत्तचित्र के प्रदर्शन एवं वितरण में लग गए ।
२०१० में नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचण्ड’ ने भी ‘गे्रटर नेपाल’ के लिए आवाज उठायी । गे्रटर नेपाल के अभियान में एकीकृत नेपाल राष्ट्रीय मोर्चा, नेपाल नेशलिस्ट फ्रन्ट, नेपाल भू–भाग संरक्षण मंच, राष्ट्रीय जागरण पार्टी आदि संगठित रूप से आवद्ध हैं ।
पुस्तक–पुस्तिकाओं, पत्र–पत्रिकाओं, सोशल मीडिया – फेसबुक आदि के माध्यम से अपने अभियान को व्यापक बनाने के प्रयासों में जुटे हैं । २० मई,२०१३ सुबह ९ .२५ बजे झापा जिले के सुमन श्रेष्ठ ने माउन्ट एवरेस्ट के शिखर पर गे्रटर नेपाल का नक्शा फहराया । राजधानी काठमाण्डू के एक समारोह में पहाडियों ने सुमन श्रेष्ठ का अभिनन्दन किया । इस अवसर पर सीमाविद् बुद्धिनारायण श्रेष्ठ ने पर्वतारोही सुमन श्रेष्ठ को माला पहनाया और अवीर लगाया ।
नए संविधान में गे्रटर नेपाल की सीमा और क्षेत्रफल का उल्लेख करने की मांग को लेकर ग्रेटर नेपाल राष्ट्रवादी मोर्चा ने नेपाली नया साल २०७१ बैशाख १ तदानुसार २०१४, अप्रैल १४ से देशव्यापी हस्ताक्षर अभियान चलाया । २० जनवरी, २०१५ को ग्रेटर नेपाल राष्ट्रवादी मोर्चा ने नए संविधान में गे्रटर नेपाल की सीमा और क्षेत्रफल का उल्लेख करने हेतु दबाव बनाने के उद्देश्य से काठमाण्डू के नयाँ बानेश्वर स्थित संविधान सभा भवन के आगे बैनर के साथ प्रदर्शन किया ।
आश्चर्य है कि १९५० की भारत–नेपाल संधि की धारा– ८ के आधार पर गे्रटर नेपाल बनाने के लिए पहाडियों द्वारा संचालित अभियान को संवैधानिक एवं कानूनी करार दिया जाता ह,ै जबकि उसी संधि की धारा– ८ के अनुसार “मुक्त तराई” के लिए मधेशियों द्वारा संगठित अभियान को असंवैधानिक और गैरकानूनी । कहने की जरूरत नही है कि नेपाल में १९५० की शान्ति एवं मैत्री सन्धि की धारा– ८ का बिल्कुल दोहरा मापदण्ड है ।
पूर्व के घटनाक्रम प्रमाणित करते है कि पहाडी शासकों द्वारा बडे सुनियोजित ढग से मधेशियों को मूलभूत नागरिक एंव मानव अधिकारों से वंचित रखा गया है और उनके न्यायपूर्ण आन्दोलन का भीषण नरसंहार कर दमन करने के लिए सभी पहाडी एकजुट रहते हैं ।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने प्रतिवेदन में तराई(मधेश) में नेपाली(पहाडी) अद्र्धसैनिक बलों द्वारा मधेशियों को गैरकानूनी रुप से गिरफ्तार कर उनकी नृशंस हत्याओं को सार्वजनिक किया है । सन् २०११ जनवरी ११ को जेनेवा में संयुक्त राष्ट्रसंघीय मानव अधिकार परिषद के विश्वव्यापी आवधिक समीक्षा (यूपीआर) में नेपाल के प्रतिनिधि तत्कालीन उपप्रधान तथा विदेश मन्त्री सुजाता कोइराला से तराईवासियों की गैरन्यायिक हत्याओं और दोषियों पर कारवाई के बारे में प्रश्न किए गए ।
अन्तर्राष्ट्रीय और नेपाल के मानवाधिकारवादी संस्थाओं के अनुसार भविष्य के होनहार लगभग ३०० मधेशी सपूतों की कायरतापूर्ण गैरन्यायिक हत्याए की जा चुकी हैं और यह क्रम जारी है, करीब डेढ हजार लोग गैरकानूनी बन्दी जीवन बिताने के लिए विवश किए गए हैं ।
ताजा स्थिति यह है कि पहाडी शासकों ने गांव—गांव में पहाडी पुलिस की चौकी, कुछ किलोमीटर पर पहाडी अद्र्धसैनिक सशस्त्र बल का कैम्प और जिले–जिले में पहाडी सैनिकों का बैरेक खडा कर मधेश को हिटलर के कैदखाना मे. परिणत कर दिया गया है और मधेशियों के विरोध की हर आवाज को बडी बेरहमी से कुचला जा रहा है ।
हम, आप से विनम्र आग्रह करते हैं कि आप अपने स्वतन्त्र स्रोत से सच्चाइयों का पत्ता लगाएं कि मधेश में नेपाली शासन के प्रति कितना विरोध एवं नफरत हैं । जब से नेपाली शासकों ने तराई मुक्ति आन्दोलन को बन्दूक की ताकत पर कुचलना शुरु किया, तभी से हमने बाध्यतावश प्रतिरोध की कारवाई का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सम्भाली है ।
अतः हम सम्माननीय प्रधानमन्त्री और भारत सरकार से अपील करते हैं कि वे मधेश को नेपाली औपनिवेशिक शासन से मुक्ति दिलाने एवं मधेशियों को स्वयं अपना राजनैतिक भविष्य निर्धारित करने में न्यायपूर्ण सहयोग करें
जयकृष्ण गोइत
संयोजक
अखिल तराई मुक्ति मोर्चा
The only full timer out of the 200,000 Nepalis in the US to work for Nepal's democracy and social justice movements in 2005-06.
Friday, August 21, 2015
Goit To Modi
२०६३ माघ १७: डा. सी. के. राउत
२०६३ साल के मधेश आन्दोलन के समय में डा. सी. के. राउत (आजाद) द्वारा दिया गया सार्वजनिक वक्तव्य भी देखिए और एक बार पुनर्विचार किजिए कि उस समय भी हमने क्या गलत कहा था
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वि. सं. २०६३ माघ १७ गते बुधवार जारी गरिएको सार्वजनिक-वक्तव्य
मधेशको अधिकार र स्वतन्त्रताका लागि हाल संघर्षरत मधेशका सम्पूर्ण वीर-सपूतहरू र समस्त मधेशवासीहरू,
सबभन्दा पहिला मधेश र मधेशीहरूको अधिकार र स्वतन्त्रताका लागि आफ्नो ज्यान पनि बलि दिन पछि नपर्ने मधेशका ती वीर-सपूतहरूलाई स्मरण गर्दै र उहाँहरूको बलिदानको कदर गर्दै हामी हार्दिक श्रद्धान्जलि अर्पण गर्न चाहन्छौं। हाम्रा वीर शहीदहरू सदाका लागि अमर रहनेछन् र सम्पूर्ण मधेश उहाँहरूको योगदानको सदैव आभारी रहनेछ। मधेश र मधेशीहरूको अधिकार र स्वतन्त्रताका लागि निर्भय भएर मधेशका विभिन्न ठाउँमा हाल संघर्षरत स्वतन्त्रता-क्रान्तिका तमाम योद्धाहरू समक्ष हामी आफ्नो आदर र एकवद्धताको सलाम टक्र्याउन चाहन्छौं।
आज इतिहासमा पु:न एक पटक मधेश र मधेशीहरूलाई नेपालका शासकवर्गले आफ्नो सुनियोजित षड्यन्त्रमा फसाउँने प्रयास गरेका छन्। देखावटी केही बुँदे सम्झौताका नाममा र त्यसलाई नाटकीय ढंगले के-के न दिए जस्तो प्रस्तुत गरी मधेशीहरूको आवाजलाई दबाउने षड्यन्त्र गरिएको छ। यथार्थमा
यो एउटा सम्झौता नभएर मधेशीहरूले एकजुट भई उठाइरहेको आवाजलाई दबाउने एउटा कुचाल मात्र हो। गोली बर्साउँदा-बर्साउँदा मधेशीहरूको आवाज दबाउन नसकी थाकिसकेका सरकार र यसका गठबन्धनहरूद्वारा गरिएको यो सम्झौता बोली फ्याँक्ने एक अर्को अदृष्य शस्त्र मात्र हो।
आज हामी सबै मधेशीहरू सावधान भई यस षडयन्त्रबाट बच्नु आवश्यक छ। आज हामी सबैले यस बारेमा सोच्नु जरूरी छ, आखिर यस सम्झौताले आम-मधेशीलाई के दिएको छ? मधेशीहरूको कुन समस्यालाई समाधान गरेको छ त? यसले मधेशका केही नेताहरूको समस्या समाधान गर्न सक्ला, तर आम-मधेशीहरूले के पाएको छ त? के परिवर्तन आएको छ त आम-मधेशीका लागि? सांसद्मा लड्न नपाएका केही नेताहरू थप केही ठाउँबाट लड्न पाउनेछन्, बढीमा थप केही नेताहरूलाई संसद्को आरामदायी सीटमा बसेर निदाउँने अवसर प्राप्त होला, तर त्यसले मधेशीको जीवनमा के परिवर्तन ल्याउने छ त?के अहिले संसद्मा मधेशी सांसद्हरू छैनन्? अनि किन मधेशीहरूमाथि सरकारले अन्धाधून गोली चलाउँदा तिनीहरूले रोक्न सकेनन् त?
किन मधेशीहरूमाथि पहाडीहरू, सरकारका सशस्त्र-प्रहरीहरू र माओवादी जवानहरूले आक्रमण गरी लुटपाट गर्दा तिनीहरूले केही गर्न सकेनन् त?
केही मधेशी नेताहरू अब नयाँ पार्टी नै खोल्न पाइने भइयो, वा सांसद् बनेर भोट बटुल्न पाइने भइयो, वा थप केही सांसद्हरू उठाउन पाइने भयो भनेर सम्झौताबाट तत्काल अहिले खुशी पनि हुन सक्ला, श्रेय बटुल्न हतारिएका तिनीहरू आफ्नो विजय जुलुस पनि निकाल्न सक्ला, तर तिनीहरूको सांसद् बन्ने सपना पनि पूरा हुने भन्ने कुरा संदेहनीय नै छ। यस सम्झौतामा यस्ता शर्तहरू जोडिएका छन् कि सरकार र यसका गठबन्धनहरूले आफ्नो संविधान-सभा चुनावको काम निकाल्न खोजेको प्रष्टै देख्न सकिन्छ, र एक-पटक आफ्नो काम पुरा भएपछि यी सम्झौताहरूलाई पनि धोती लाउन के बेर? र, कसै-कसैले त मधेशीलाई प्रधानमन्त्री वा राष्ट्रपति बनाइदिनाले मधेशीहरूको समस्या समाधान हुने जस्ता हास्यास्पद कुराहरू पनि प्रस्तावित गर्छन्। त्यसले पनि कुनै एक मधेशी नेताको सपना पूरा होला, तर आम-मधेशीहरूको जीवनमा त्यसले कुनै परिवर्तन ल्याउने छैन। डिजेल र पेट्रोलको भाउमा एक रूपैयाँ बढाउँदा त व्यापक विरोध र दंगा हूने देशमा मधेशी प्रधानमन्त्री वा राष्ट्रपतिले मधेशीको लागि के निर्णय गर्न सक्ला त? सिटौला वा प्रचण्डलाई कारबाही गर्न सक्ला?मधेशी मन्त्रीहरूलाई एउटा प्यूनले समेत नटेर्ने र गाली दिने ठाउँमा, मधेशीको लगभग शून्य समावेशी रहेको नेपाल सैनिकले मधेशी प्रधानमन्त्रीलाई टेर्ला त?
कुन चाहिं निर्णय लिन सक्ला त मधेशी प्रधानमन्त्रीले? याद रहोस् यसभन्दा अगाडि एउटा मधेशी उपप्रधानमन्त्रीले “गिरिजालाई कारबाही गर्ने” भन्दा गिरिजा प्रसाद कोइरालाले उक्त मधेशीलाई “आफ्नो हैसियत भित्र बसेर कुरा गर्ने” चेतावनी दिएका थिए, र यही मानसिकता शासक वर्गका प्यूनदेखि प्रधानमन्त्रीसम्म सबैमा लागू हुन्छ र यो कुरा तपाईंहरूले एउटा मधेशी अधिकारीका रूपमा दैनिक आफ्नै कार्यालयमा पनि अनुभव गर्न सक्नुहुन्छ। त्यही भएर कसैले एउटा मधेशीको प्रधानमन्त्री वा राष्ट्रपति बन्नाले मधेशीको समस्याको निवारण हूने दिवा-स्वप्न देख्दछ भने, उहाँहरूलाई त्यस स्वप्नबाट शीध्र नै ब्यूँझी मधेशी-सैनिक सहितको स्वतन्त्र मधेश बनाउने तर्फ अग्रसर हुनका लागि हामी सचेत गराउँदछौं।
र, मानौं सरकारले अहिले भने झैं संघीय-राज्य प्रणाली र निवार्चन क्षेत्रको पुनर्निधारणका कुराहरू लागू गरे तापनि यसले हामीद्वारा पूर्व उठाइएका मधेश र मधेशीहरूको कुन मूलभूत समस्याहरूको समाधान गर्दछ त? के यसले सम्पूर्ण मधेशलाई अखण्ड राखी एउटै राज्य हुने ग्यारेन्टी गर्दछ? के यसले मधेशीहरूको जमीन पुन: नखोसिने र पहाडीहरूलाई मधेशमा नबसाइने कुराको ग्यारेन्टी गर्दछ? स्मरण रहोस्, बाबुराम भट्टराई अहिले नै मधेशको जग्गा हदबन्दी गरेर पहाडीहरूलाई दिने योजना बनाइसकेको छ, विभिन्न अन्तर्वार्ताहरूमा हेर्नुस्। के यसले मधेशका सम्पूर्ण प्रशासकहरू मधेशी नै हुने कुराको ग्यारेन्टी गर्दछ? होइन भने, पछि पनि ती पहाडी अधिकारीहरूद्वारा यस्तै नै कर्फ्यू लगाई मधेशीमाथि आक्रमण गरिराखिनेछ, पहाडी शासकहरूद्वारा यसरी नै शोसन जारी नै रहनेछ। के यसले ऋतिक रोशन कांड र नेपालगंज घटना जस्ता सुनियोजित क्रियाकलापहरू गराई मधेशीहरूमाथि फेरि पनि लुटपाट र आक्रमण नहुने कुराको ग्यारेन्टी गर्छ? के यसले मधेशका काम-काज र जागिरका पदहरू मधेशीहरूलाई नै मिल्ने कुराको ग्यारेन्टी गर्छ? के यसले मधेशको सम्पूर्ण आय र दाता राष्ट्रहरूबाट प्राप्त अनुदानहरूको समुचित भाग मधेशमा लगानी हूने कुराको ग्यारेन्टी गर्छ? कि मधेशलाई खाली विश्वबैंक र ADB को ऋण मात्रै बोकाइने छ? के यसले देशभित्र र बाहिर रहेको मधेशीको पहिचानको समस्यालाई समाधान गर्छ? के यसले मधेशबाट पहाडी सैनिक अड्डाहरू हटाएर पूर्ण मधेशी सैनिक बनाउने कुराको ग्यारेन्टी गर्छ? होइन भने जतिबेला पनि ती सैनिकहरू परिचालन गरेर केन्द्रिय सरकारले जे पनि गर्न सक्छ, जे संविधान पनि लागू गर्न सक्छ, जे नियम पनि बनाउन सक्छ। केन्द्रिय सरकारले आपत्कालीन स्थितिको घोषणा गरी मधेशीहरूको सम्पूर्ण अधिकार मिनटभरिमै निलम्बन गर्न सक्छ। के यसलाई हामीले उपलब्धि ठान्ने? यसलाई हामीले सम्पूर्ण मधेशीहरूले दिएको बलिदान र संघर्षको मूल्य ठान्ने?
आज संयुक्त राष्ट्र-संघ लगायत सारा विश्वको ध्यान नेपालतिर रहँदा त नेपाल सरकार र नेताहरूले मधेशीविरुद्ध यसरी ज्यादती गर्न सक्छन्, आफ्नै प्रशासन र पुलिसद्वारा लुटपाट गराउन सक्छन्, सशस्त्र प्रहरी परिचालन गरी मधेशीहरूको नर-संहार गर्न सक्छन् भने भोलि विश्वको ध्यान पनि नेपालतिर नरहँदा मधेशीहरूमाथि कुन हदसम्मको आक्रमण गराउने होला?कसैको जन-निर्वाचित बहुमत सरकार नरहँदाको आजको संक्रमणकालीन् स्थितिमा यिनीहरूले यसरी ज्यादती गर्न सक्छन् भने भोलि यिनीहरूको बहुमतको सरकार बन्यो भने मधेशीहरूविरूद्ध के-के निर्णय गर्ने होला?
अहिले यिनीहरूले आफूलाई तानाशाहको शक्ति प्रदान गर्ने संविधान बनाई लागू गर्न सक्छन् भने भोलि यिनीहरूबाट कस्तो कानून र राज्यको अपेक्षा गर्न सकिन्छ त? त्यसमाथि १३००० मान्छेहरूको निर्मम हत्या गरेका हिजोसम्मका माओबादी आतंककारीहरू सबै अब नेपाली सेना हुने कुरा छ, यी हत्यारा सत्ताधारी र सैनिकहरूमाथि कुन आधारमाथि विश्वास गर्न सकिन्छ?अहिलेको स्थितिमा त प्रचण्ड, बाबुराम र अन्यनेताहरूले शान्तिप्रिय मधेशीहरूलाई आतंककारीको दर्जा दिँदै कुनै पनि वार्ता गर्नबाट साफ अस्वीकार गरी मधेशीविरूद्ध सैनिक परिचालन गर्ने कुरा सोच्छन् भने भोलि यिनीहरू सत्तामा भएको बेला के मात्र गर्न छोड्ला र?
त्यसैले, हामी सबै मधेशीहरू अहिलेका सत्ताधारी नेताहरूले आफ्नो काम निकाल्न गरेको यस घोर षड्यन्त्रबाट बची मधेशलाई स्वतन्त्र घोषित नगरेसम्म आफ्नो संघर्षलाई जारी राख्ने प्रतिबद्धताका साथ अगाडि बढौं। यसका लागि मधेशका सम्पूर्ण जनताहरू, पार्टीहरू, नेताहरू, कार्यकर्ताहरू र संघ-संस्थाहरू सबै एक जुट भई लागौं। हाम्रा पूर्वजहरू दासताविरुद्ध लडेनन्, दासतालाई स्वीकार गरे, जसको सजाइ हामीहरूले भोग्यौं र भोग्दैछौं;एउटा दास भएर, दोश्रो-दर्जाको नागरिक भएर आफ्नै भूमिमा लाखौं अपमान र हेपाइसहितको गरिमारहित जिन्दगी विताइरह्यौं। तर के हामी आफ्ना भावी सन्ततिलाई, आफ्ना बच्चाहरूलाई पनि त्यही घृणामय जिन्दगी दिन चाहौंला?
आफ्ना बालबालिकाहरूको भविष्यलाई पनि त्यही पहाडी शासकवर्गका हातमा दिई तिनीहरूलाई अनेकौं ठक्कर खानका लागि छोड्न चाहौंला? आफ्ना बालबालिकाहरूको भविष्यलाई त्यही भेदभावपूर्ण अन्धकारमा धकेल्न चाहौंला? होइन भने, आज हामी सबै एकजुट भएर मधेशलाई स्वतन्त्र घोषणा नगरेसम्म आफ्नो आन्दोलन जारी राखौं।
हाम्रो सहपाठी मित्रले पहिला पनि भने झैं कसले कहाँ के वार्ता गर्यो र कुन नेताले के पायो भन्ने कुरातिर नलागी अब हामी आफैंलाई सोधौं, ‘के हामी स्वतन्त्र भइसक्यौं? के मधेश स्वतन्त्र भइसक्यो?’। र, यसको जवाफ ‘अँ’ भनेर सकारात्मक नआएसम्म हामी संघर्ष गर्दै जाऔं, आफ्नो अधिकार र स्वतन्त्रताका लागि लड्दै जाऔं। मधेशलाई २३८ वर्षको दासताबाट उन्मुक्त हुन अब कसैले रोक्न सक्ने छैन, मधेश र मधेशीहरूलाई स्वतन्त्र हुनबाट अब कसैले रोक्न सक्ने छैन।
जय मधेश!
आजाद, केन्द्रिय समिति सदस्य
मधेश अधिकार एवं स्वतन्त्रता गठबन्धन
वि. सं. २०६३ फाल्गुण ७ गते सोमबार जारी गरिएको सार्वजनिक-वक्तव्य
वार्ताका लागि उपयुक्त वातावरण बनाउन भनी रोकिएको मधेश आन्दोलनपछाडि बितेका यी दश दिनहरूमा नेपाल सरकार र यसका गठबन्धनहरूले देखाएको असंवेदनशीलता र लापरबाहीले सरकार र यसका गठबन्धनहरू मधेशीको कुनै पनि माँग प्रति गम्भीर नरहेको कुरा पु:न एकपटक पुष्टि गरेको छ। प्रधानमन्त्रीद्वारा जारी गरिएका सम्बोधनहरू र देखावटी संविधान संशोधन मधेशीहरूलाई अल्झाइराख्ने र मधेशीहरूको आवाज दबाउने एउटा षड्यन्त्र बाहेक केही नभएको कुरा यसले छर्लङ्ग पार्दछ। मधेशका वीर शहीदका रगतका टाटाहरू सडकमा सुक्न नपाउँदा-नपाउँदै, लाखौं-लाख मधेशीहरूद्वारा मधेशका गाउँ-गाँउ र शहरहरूमा गुञ्जाइएका ती आवाजका प्रतिध्वनिहरू साम्य हुन नपाउँदै मधेशीहरूको आन्दोलन र न्यायपूर्ण माँगहरू सरकार, यसका संयन्त्रहरू र संचार माध्यमहरूबाट ओझेल हुन पुगेका छन्। मधेशी आन्दोलनलाई रोक्न बन्दुकको भरमा गोली बर्साएर तीस जनाभन्दा बढीको ज्यान लिने र सयौं मधेशीहरूलाई गोलीले घायल बनाएका नर-संहारक हत्याराहरूलाई सरकारले अविलम्ब कडा-कारबाही गर्नु पर्नेमा सरकार र यसका गठबन्धनहरू हालसम्म उत्तरदायित्व लिन समेतबाट पन्छिँदै आई यस बारेमा कुरा गर्न पनि पन्छिँदै आएको छ। मधेशमा आन्दोलनरत समूहहरूसँग वार्ताका लागि हालसम्म पनि कुनै पनि पहल नगर्नुले सरकारको वार्ता प्रस्ताव अन्तर्राष्ट्रिय जगत र अन्य मानवअधिकारवादीma संस्थाहरूको आँखामा धूलो छर्ने र मधेशीहरूको आन्दोलन दबाउने कुचाल मात्र रहेको भन्ने कुरा अझ प्रष्ट पार्दछ। शासन-संयन्त्र निर्माणारत यस घडीमा यदि मधेशीहरूले तीन-हप्तासम्म अबिरल आफ्नो ज्यानसम्मको परवाह नगरी एक जुट भई उठाएका माँगहरू प्रति सरकार र यसका गठबन्धनहरू संवेदनशील हुन सक्दैनन्, र उल्टो आफ्ना सशस्त्र-प्रहरी र सैनिकहरू परिचालन गरी मधेशीका माँगहरूलाई शासकवर्गले आफ्नो पैताला मुनि सदाका लागि कुल्चन चाहन्छन् भने त्यस देश, सरकार र संयन्त्रसँग मधेशीहरूले फेरि-फेरि भिखारी बनेर आफ्नो हात फैलाउनु र सरकारका सैनिकहरूको गोली खाइराख्नुको के औचित्य छ र?
कसैको पनि बहुमतको सरकार नभएको र माओवादीहरू पूर्णसत्तामा नभएको बेला आजको यस घडीमा जब सरकारले सैनिक परिचालन गरी मधेशीहरूको आवाजलाई सदाका लागि दबाइदिन चाहन्छन् भने, भोलि पनि मधेशीहरू यसै संयन्त्रभित्र रहेमा दास बन्नु बाहेक अरु के विकल्प हुन आउँछ र?
आज प्रचण्ड सत्तामा नभएको बेला आफ्नो जनसेना लगाएर मधेशीको नरसंहार गराउन चाहन्छ भने भोलि ऊ राष्ट्रप्रमुख भएको बेला, उसले मधेशीहरूको नर-संहार गर्ने सरकारी लाइसेन्स प्राप्त गरेको बेला, उसका चालीस हजार जनसेनाहरू सरकारी अत्याधुनिक हतियारले सुसज्जित रहेको वेला मधेशीहरूसँग मर्नु वा दास बन्नु बाहेक अरु के नै विकल्प बाँकी रहन्छ र?
र यो कुनै अनुमान वा अड्कल होइन, यथार्थ हो; सम्पूर्ण मधेशीहरू एक जुट भई आफ्नो जायज माँग राख्दाप्रचण्डले मधेशीहरूलाई आतंककारीको दर्जा दिदैं सैनिक र जनसेना परिचालन गर्ने भनेकै हो
, उसका चालीस हजार जनसेनाहरू सरकारी सेना हुने नै भएको छ, ढिलो-चाँडो माओवादीहरू सत्ता पनि कब्जा गर्ने नै छन्, र मधेशीहरूको जमीन खोस्ने र पहाडीहरूलाई मधेशमा सर्वेसर्वा बनाउने जस्ता नीतिहरू पनि उसले सार्वजनिक गर्दै नै आएको छ। यदि आजको तुलनात्मक-सहज परिस्थितिमा यदि मधेशीहरूले आफ्ना जायज माँग राख्दा सयौं गोली खानुपर्छ, आफ्नै घरमा पनि सशस्त्र प्रहरी र पहाडीहरूद्वारा आक्रमण खप्नु परेको छ, आफ्नै घर-जमीन छोडेर हजारौं मधेशीहरू अहिले नै शरणार्थी बन्न बाध्य हुनु परेको छ भने माओवादी वा अन्य पहाडी शासकहरूको सशक्त सत्ता भएको बेलामा मधेशीहरूको जमीन हड्पेर उनीहरूलाई शरणार्थी बनाउन बाध्य गराइयो भने मधेशीहरूले कसरी आफूलाई प्रतिरक्षा गर्न सक्ला त?
र, कसैले नयाँ राजनैतिक परिवेशमा चुनावद्वारा मधेशीको भाग्य फेर्ने स्वप्न देख्छ भने, उहाँहरूलाई पनि चाँडै नै उक्त दिवा-स्वप्नबाट ब्यूँझन आग्रह गर्दछु। नयाँ राजनैतिक परिवेशमा मधेशलाई कैयौं टुक्रामा विभाजित गरिने कुरा लगभग सुनिश्चित छ। सत्ताका गोली खाएर दर्जनौं मधेशीहरू मरिरहेका बेलामा त एकत्र हुन नसकेका मधेशका पार्टीहरू र नेताहरू राज्यसत्ताको अंशवंडाका वेलामा एक हुने कुरा सोच्नु व्यर्थ छ। यसरी नयाँ राजनैतिक परिवेशमा भौगोलिक र राजनैतिक रुपमा पनि छिन्न-भिन्न मधेशीहरू अहिलेको भन्दा पनि अप्रभावकारी स्थितिमा पुग्ने कुरा प्रष्ट देख्न सकिन्छ, र अहिलेको जस्तै पहाडी शासकहरूको चाकडी गरी आफ्नो लागि एक-दुईवटा मन्त्रीको कुर्सी हत्याउने बाहेक मधेशका नेताहरूले मधेशीका लागि केही गर्न सक्ने कुरामा आशावादी हुनु व्यर्थ छ। नयाँ राजनैतिक परिवेशमा प्रवेश गरेको २-३ वर्ष भित्रमा नै मधेशीहरूले नयाँ राज्य-संयन्त्र उनीहरूको कुनै पनि समस्या समाधान गर्न र उनीहरूको लागि कुनै पनि आमूल परिवर्तन ल्याउन कति असक्षम छ भने कुरा अनुभव गर्न सक्नेछन् र राज्य-संयन्त्रबाट शीध्र नै आजित हुनेछन्, र त्यतिबेला कुर्सीका लागी हतारिएका यी मधेशी नेताहरू र पार्टीहरूले मधेशीहरूको तिरस्कार भोग्नु बाहेक के नै बाँकी रहला र? त्यसैले मधेशका विभिन्न पार्टीहरू र नेताहरूलाई मधेशीहरूको आन्दोलनलाई सीट र कुर्सी हत्याउने साधनको रुपमा प्रयोग नगरी सबै मधेशीले आफ्नो अधिकार र स्वतन्त्रता पाउने सही दिशातिर नेतृत्व दिनका लागि प्रयत्न गर्न पनि अनुरोध गर्दछौं। मधेशीहरूले कुनै विजय पाएको छैन, केही थप सीटहरूमा आफ्नो उम्मेदबार उठाउन पाइयो भन्दैमा त्यसलाई झुठो रुपमा मधेशीको विजय भनेर चित्रित गरी आम मधेशीलाई भ्रममा पार्नु र मधेशीको बलिदान र संघर्षसँग खेलबाड़ गर्नु आफैंलाई आत्मघाती सावित हुन सक्छ। मधेशीहरूको विजय उनीहरूले पहाडी शासकबाट सधैंका लागि मुक्ति पाएपछि, आफ्नो दुई सय वर्षको दासताबाट मुक्ति पाएपछि, र मधेशलाई स्वतन्त्र घोषणा गरेपछि मात्र हुनेछ।दुई सय वर्षदेखि पहाडी शासकहरूले आफ्नो शैक्षिक-प्रणाली, संचार माध्यम र अन्य संयन्त्रहरूद्वारा मधेशीहरूको ब्रेन-वास गरी कतिपय मधेशीहरूलाई आफ्नो पहिचान समेत बिर्सन बाध्य गराएका छन्, कुनै आधार वा तर्क विना नै अखण्डताको नारा दिएर त्यसको आडमा मधेशलाई सघैं शोसन गरिराख्न चाहन्छन्।
सम्झिनु पर्ने कुरा के हो भने मधेश केवल दुई सय वर्षअगाडि नेपालसँग गाँसिएको हो, र मधेशीहरू यसरी दास बनेर नेपालसँग सँधै गाँसिरहने न कुनै दायित्व छ न त त्यसको कुनै औचित्य नै।
ती मधेशी जनताहरू र नेताहरू जो अझै पनि शासकवर्गद्वारा गरिएको व्रेनवाशबाट मुक्त हुन सकेका छैनन्, अझै पनि मन्त्रमुग्ध सुसुप्त अवस्थामा रही होशमा आउन सकेका छैनन्, आफ्नो वास्तविक पहिचान, इतिहास र अधिकारबाट परिचित हुन सकेका छैनन्, र आफ्नो अधिकार र स्वतन्त्र मधेशका लागि अगाडि आउन सकेका छैनन्, तिनीहरू पनि चाँडै नै स्वतन्त्र मधेशका लागि संघर्षमा उत्रने भन्ने कुरामा हामी विश्वास मात्र राख्दैनौं, त्यो कुरा हामी ठोकुवा नै गर्न सक्छौं। केही मधेशीहरू नयाँ राजनैतिक परिवर्तनले केही आशावादी देखिएका हुन सक्छन्, तर त्यो भ्रम अब धेरै दिनसम्म टिक्नै सक्दैन। जसरी विगतका राजनैतिक परिवर्तनहरूले मधेशीहरूको जीवनमा कुनै फरक पार्न सकेनन्, त्यसरी नै यसले पनि मधेशीहरूको कुनै पनि समस्याको समाधान गर्ने छैन, बरु यसले कैयन् मधेश-विरोधी तानाशाहहरूलाई सत्तामा मात्र पुर्याउनेछ र त्यसबाट आजित ती मधेशीहरू एक-न-एक दिन स्वतन्त्रता-संग्राममा उत्रन बाध्य हुने नै छन्। फरक यति हो, ती कट्टर मधेश-विरोधी तानाशाहहरू आउनुपूर्व अहिले नै सम्पूर्ण मधेशीहरू स्वतन्त्रताका लागि अगाडि बढछन् भने तुलनात्मक ढंगले शान्तिपूर्ण तरिकाले र कम क्षतिका साथ मधेशीहरूले आफ्नो अधिकार पाउन सक्छन्। त्यसैले, हामी सम्पूर्ण मधेशी जनताहरू, पार्टीहरू र नेताहरूलाई यस कुराको बोध गराउदैं मधेशको अधिकार र स्वतन्त्रताका लागि अहिलेको तुलनात्मक रुपले अनुकूल र उपयुक्त परिस्थितिमा नै संघर्षमा उत्रन आह्वान गर्दछौं।
मधेशको स्वतन्त्रता निर्विकल्प छ। मधेशीहरू पटक-पटक यी पहाडी शासकहरूको गोलीको निशाना बनेर भुटिनुभन्दा, मधेशीहरू पहाडी शासकवर्गको हरेक निर्णय पिच्छे संघर्षमा होमिनुभन्दा, एक पटक नै त्यस्तो संघर्ष गर्नु आवश्यक छ, जसले यी पहाडी शासक र उसका गोलीहरूबाट सँधैंका लागि छुटाकार दिलाओस्, जसले गर्दा मधेशीहरू आफ्नो अधिकार फेरि नखोसिने गरी सधैंका लागि पाओस्, जसले मधेशीहरूको गौरवमय इतिहास, पहिचान र संस्कृतिलाई पहाडीहरूको अतिक्रमणबाट सदाका लागि रोकोस्, जसले दुई सय वर्षदेखि बिताइरहेको दासताको जीवनबाट सदाका लागि उन्मुक्त गराओस्, र जसले पहाडी शासकहरूको हरेक षड्यन्त्रलाई सदाका लागि समाप्त पारोस्। एक मात्र र अंतिम निर्णायक संघर्ष, स्थायी स्वतन्त्रता, स्थायी शान्तिका लागि। जय मधेश!!
आजाद, केन्द्रिय समिति सदस्य
मधेश अधिकार एवम् स्वतन्त्रता गठबन्धन
१०० डिग्री फ्यारेन्हाइट
५०० वर्ष अगाडि को समृद्ध कर्णाली आज विज्ञानं प्रवृद्धि को युगमा गरीब किन?
गौरवशाली इतिहास बोकेको कर्णाली ले आज देश भरिका मधेसी जनजाति लाई मार्ग निर्देशन गरेको छ। संघीयता र स्वायत्तता हामी बुझछौं भन्ने सन्देश दिएको छ।
स्वायत्त कर्णाली प्रदेश बिना संघीय नेपालको कल्पना गर्न सकिँदैन।
कर्नालीमा किन हुँदैछ आन्दोलन?
संघीयताको प्रवक्ता बनेको माओवादीले गणतन्त्रसँग संघीयता साट्दा मधेश आन्दोलनले उग्ररुप लिएपछि संघीयताको मुद्दा पुनः स्थापित भएको थियो । ...... यहीबेला संघीयता सम्बन्धमा कर्नालीमा शुरु भएको आन्दोलनले राजधानीमा समेत जुलुश निकाली सकेको छ । ......
राजधानीका धेरै मान्छे कर्नालीका जाहेज मागको नजरअन्दाज लगाउने गर्दछन् । उनीहरु संधै ‘विचारा’ को उपमा दिन चाहन्छन् र पिछडिएको क्षेत्रको रुपमा मात्र चर्चा गराउन चाहन्छन् । अनि भन्छन्, कर्नालीमा आन्दोलन भयो भने पनि राज्यलाई केही फरक पर्दैन ।
..... कर्नाली २००७ सालमा पनि जाग्दो अवस्थामा थियो । त्यतिबेला सचेत पहलकदमी र वैचारिक परिपक्वता भएको भए कर्नालीको हुम्ला र जुम्लामा स्वायक्त क्षेत्र घोषणा गर्न सकिने अवस्था थियो । किनभने हुम्लाको सिमकोटमा किसान जुलुश निस्कदा अड्डामा बसेका गोर्खालीहरु भागेर जुम्ला पुगेका थिए । .....
६ महिना दिन हुम्ला गोर्खालीविहिन भएको थियो । जुम्लामा शेरसिंह नाम गरेका काँग्रेस नेताले प्रशासनमा गर्न थालेको हस्तक्षेप र मनपरीबिरुद्ध अदानसिंह कठायतहरुले प्रशासनलाई नियन्त्रणमा लिई सकेका थिए । यो इतिहास बनी सकेको कुरा हो ।
...... इतिहास बनेको अर्को घटना हो, नेकपा (माओवादी) ले जनयुद्धको नाममा शुरु गरेको आन्दोलनले कर्नालीका सबै जिल्लामा जिल्ला जनसरकार घोषणा गरी सञ्चालनमा ल्याएको तथ्य । ....... जुम्ला, हुम्ला, मुगु र त्यस आसपासका जिल्लाहरुमा आन्दोलन चर्किदै गएको छ । सबैजसो कार्यालयहरु बन्द छन् । उनीहरुको माग स्पष्ट छ– कर्नाली विशेष स्वायत्त राज्य बन्नु पर्दछ । ........ चार दलको राजनीतिक आयोगले बाहिर ल्याएको प्रदेशको खाका राजा महेन्द्रका विज्ञहरुभन्दा घटिया सोचको छ । ...... यस आन्दोलनको अगुवाई यो वा त्यो पार्टीभन्दा पनि स्वतः स्फुर्त रुपमा भएको छ । जनता जाग्दै गएपछि राज्यका सबैखाले हथकण्डा नकामसिद्ध हुने हुन्छ ।
कर्णाली र महोत्तरी: गरीब बनाइएका दुबै
कर्णाली ले पैसा पाउने कुरा
स्वायत्त कर्णाली प्रदेश ले कति पैसा पाऊँछ?
कर्णाली को आंदोलन लाई सम्बोधन गरेको खोइ?
कर्णाली को जायज माग र त्यस माथि दमन
थारु, मगर, कर्णाली का खस ले "अखंड मध्य पश्चिम" मागेका छैनन्
कर्णाली को जनसंख्या ४ लाख
स्वायत्त कर्णाली प्रदेश को माग जायज छ
सुर्खेत र कर्णाली ले खस नेता हरु लाई पढाएको पाठ
कर्णाली
Thursday, August 20, 2015
CK Raut: स्वराजीहरूसंग अपेक्षा र हाम्रो स्थिति बारे
मधेस बन्दको बिशाल प्रदर्शन, कपिलवस्तुकपिलवस्तुको सदरमुकाम तौलिहवामा संयुक्त मधेशी मोर्चा द्वारा मधेश आन्दोलनको एक दृश्य |Credit: Sanjay Verma JiOriginal Link- https://video-sin1-1.xx.fbcdn.net/hvideo-xpf1/v/t42.1790-2/11917063_926141560777140_1414077937_n.mp4?efg=eyJybHIiOjEzNTAsInJsYSI6NjIwfQ%3D%3D&rl=1350&vabr=750&oh=72635891752f40758889e80f882fa929&oe=55D50B2F
Posted by Madhesi Community on Thursday, August 20, 2015
कपिलवस्तुको सदरमुकाम तौलिहवामा संयुक्त मधेशी मोर्चा द्वारा मधेश आन्दोलनको एक दृश्य |
Dr. CK Raut: स्वराजीहरूसंग अपेक्षा र हाम्रो स्थिति बारे (सके पूरा पढनुहोस्)
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हो, स्वराजीहरूसँग मधेशी जनताका धेरै अपेक्षाहरू छन्। अहिले त मधेशमा कतै केही भयो भने त्यसमा केही गर्नुपर्ने, आगो लागेपनि केही गर्नुपर्ने, बाढी आएपनि केही गर्नुपर्ने, कतै कार्यक्रम हुँदा पनि त्यसमा सहभागी हुनुपर्ने आदि। त्यो स्वाभाविक नै हो, त्यो जनताद्वारा दिइएको जिम्मेबारी हो, त्यो विश्वासका लागि मधेशी जनतालाई हामी धन्यवाद दिन्छौं। त्यो जिम्मेबारीबाट हामी पन्छिने कुरो हुँदै-हुँदैन, बरु हामी त्यो जिम्मेबारी सफलताका साथ निभाउनका लागि दिनरात संघर्षरत छौं, त्यहाँबाट टाढा रहे पनि त्यही दिशातिर अग्रसर छौं।
त्यही सन्दर्भमा, बिगत २-३ हप्तादेखि एउटा प्रश्न हामी समक्ष बारम्बार आइरहेको छ: तपाईंहरू अन्तर्क्रिया, सभा, सम्मेलनम, गोष्ठी, शोकसभा जस्ता कार्यक्रममा बोलाएपनि किन त्यति देखिनुहुन्न ?कुनै अन्तर्क्रिया, सभा-सम्मेलन, गोष्ठी, शोकसभा आदि हुँदा अधिकांश पार्टीका नेताहरू वा अधिकारकर्मीहरू खुर्र हवाईजहाज चढेर पुग्छन्, एकै दिनमा वीरंगज र धनगढी पनि भ्याइदिन्छन्, ४०-५० जना मान्छे जम्मा हुने शायदै कुनै अवसर हातबाट निस्कन दिन्छन्, तर तपाईंहरूको केन्द्रिय स्तरका नेताहरू न त काठमाडौंको कुनै अन्तर्क्रियामा देखा पर्छन्, बाहिर ठूलै सभामा बोलाए पनि जाँदैनन्, किन ? यस सन्दर्भमा केही गुनासाहरू पनि विभिन्न आयोजकहरूबाट सुन्नु परिरहेको छ।
केही दिन अगाडि कैलालीमा थारुहरूको आन्दोलन शुरु हुन लाग्दा गठबन्धनका सहसंयोजकलाई त्यहाँका स्थानीय कार्यकर्ताहरूले बोलाए र उहाँलाई कैलाली जान निर्देश दिइयो, तर उहाँसंग बसको भाडाको लागि ४-५ सय रुपैया न हुँदा र तुरुन्तै कतैबाट त्यति ऋणको रुपमा पनि चांजो मिलाउन न सक्दा, उहाँ कैलाली जान सक्नु भएन। पछि कैलाली नजिकै बर्दिया घर भएको गठबन्धनको प्रवक्ता अब्दुल खानलाई त्यहीं जान भनियो, तर उहाँको हालत पनि त्यस्तै नै रहँदै आएको छ, जसले गर्दा बर्दिया र बांकेमै उहाँले काम जारी राख्नु भयो, तर २-४ सय रुपैयाको अभावमा कैलाली जान सक्नु भएन। र त्यसरी आफ्नो आर्थिक मजबूरीको कारणले काम पूरा गर्न न सके पछि उहाँले २-३ दिन सम्म मेरो फोन समेत उठाउन अप्ठ्यारो मानिराख्नु भयो। र त्यही व्यग्रताको हालतमा उहाँले फोन उठाउनुको सट्टा फेसबुकमा एउटा नोट लेखेर सार्वजनिक रुप मैं जानकारी गराउनु भयो। त्यो यहीं छ। हाम्रो यथार्थ यही नै हो। अब्दुलको प्रतिक्रियाले निकै भावुक बनाएको हुनाले नै सार्वजनिक रुपमा यसबारे केही भन्न खोजेको हुँ कि यो हामी सबै स्वराजीको साझा समस्या हो, साझा दु:ख हो र यसलाई हामी सबैले डटेर सामना गर्दै आफ्नो लक्ष्य तिर बढि राख्नेछौं र अवश्य सफलता हासिल गर्ने छौं। त्यही भएर सबै स्वराजीहरूले आफ्नो हौसला बुलन्द राखौं, उतारचढाव आइराख्छन् तर दृढनिश्चय भएर संघर्ष गर्नाले हामी सफल अवश्य हुनेछौं।
२०७१ साल भदौमा गिरफ्तार हुन भन्दा केही अगाडि झापा देखि बर्दिया सम्म कार्यक्रम गर्ने बेलामा स्वयं मलाई पनि तपाईंहरूले हेर्नु भएकै हो। त्यस चरणको कार्यक्रममा सहभागी भएका र मलाई देखेका स्वराजी मित्रहरूलाई राम्ररी थाहा छ, म कसरी एउटा काँधमा/हाथमा घोषणापत्रको बोरा/कार्टून बोकेर र अर्को हाथमा ब्याग झुन्डयाएर कहाली लाग्दो घाममा कहिले लोकल-बस त कहिले टेम्पु समाउँदै तपाईंहरू समक्ष जिल्ला-जिल्ला पुगेको थिएँ। कहिले कुनै गाउँमा कसैकहाँ गएर बस्थें त कहिले कुनै धर्मशालामा। कहिले कसैले बाइकमा लगिदिन्थ्यो त कहिले कति किलोमीटर घाममा पैदल नै हिँडथे। कहिले दिनको खाना नसीब हुँदैनथ्यो त कहिले खुलामा सुत्दा राती लामखुट्टेले सुत्न दिंदैनथ्यो।
शुरुतिर, २०६८ सालमा स्वराज अभियानको प्रथम-चरणको कार्यक्रम झापा देखि कंचनपुर जिल्ला सम्म गर्दा सँधै त होइन, तर प्राय: रिजर्व गरेको गाडी हुन्थ्यो किनकि त्यतिबेला अमेरिकाबाट भर्खरै फर्केको हुनाले जागिरबाट बचाएको केही पैसा थियो। तर आफूले बचत गरेको सबै पैसा स्वराज आन्दोलन र जनचेतना अभियान मै खर्चि सके पछि विस्तारै त्यो स्थिति बदलिंदै गयो। मसँगको पैसा सकी सके पछि केही दिन 'मधेश को इतिहास' किताबबाट उठेको पैसाले कामलाई सुचारु राखियो। पछि यसमा लागेका साथीहरूले पनि आ-आफ्नो खर्च आफैंले उठाउँदै गए र त्यसरी नै यो आन्दोलन चलिरहेको छ।
अहिले स्वराजीहरूले आफ्नो खर्च आफैं धान्धै आएका छन्। कहिलेकाहीं सक्ने स्वराजी मित्रले नसक्ने स्वराजी मित्रलाई मद्दत गर्छन्। कोही संग बाइक छ भने, आफ्नो बाइक लिएर जान्छन् , नभए साइकल र पैदल नै जागरण अभियान चलाउन हिंडछन्। दिउँसोको खानाको कुनै ठेगान हुँदैन, कहिले हुन्छ त कहिले हामी भोकै खटिराख्छौं। हामी एक-अर्कालाई मद्दत गर्छौ, दु:ख र कठिनाईलाई सँगै हांसेर उडाइदिन्छौं र अगाडी बढिरहन्छौं। किनकि यो आन्दोलन स्वावलम्बनको आन्दोलन हो, आफ्नो स्वतन्त्रताको आन्दोलन हो।
यसले हामीलाई केही महत्त्वपूर्ण फाइदाहरू पनि गरेका छन्: पैसाको लागि पार्टीमा काम गर्ने, पैसा लिएरै झंडा बोक्ने, पैसा लिएर सडकमा आन्दोलन गर्ने आदत लागि सकेकाहरूबाट हामीलाई छुटकारा मिल्छ र जसलाई साँच्चिकै स्वतन्त्र मधेश चाहिएको हो, आफ्नो स्वतन्त्रता चाहिएको हो, त्यही मित्रहरू नै यसमा लाग्छन्। त्यही भएर विभिन्न प्रलोभनका लागि लाग्ने सम्भावना यस आन्दोलनमा छैन। यो नीतिले हाम्रो लागि निस्वार्थ योद्धा कार्यकर्ताहरूलाई ल्याउने 'फिल्टर' को रुपमा गरिरहेको छ, जुन हाम्रो लागि एकदमै आवश्यक छ।
प्राय: अहिले छापिने हाम्रा पर्चा र किताबहरू मधेशको स्वतन्त्रता चाहने मधेशीहरूले छपाई दिएको हो वा आफैं छपाएर बाँटेको हो। हामी सोफ्टकपी उपलब्ध गराईदिन्छौं, स्वराज आन्दोलनमा लागेकाहरू वा सहानूभूति राख्ने आम मधेशी जनताहरूले आफैं छपाउँछन्। त्यो आफैं पनि वितरण गर्छन्, हामीलाई वितरण गर्न पनि उपलब्ध गराउँछन्। अहिले सम्मको रेकर्ड हेर्ने हो भने एउटा कुरा उल्लेखनीय छ: त्यसरी छपाइदिने कुनै ठुलो पैसावाला मधेशी वा व्यापारीहरू वा उद्दोगी होइनन्, सामान्य मधेशी हुन्, जसले आफ्नो परिवार खर्चबाट काटेर भए पनि ५-१० हजार लगाएर मधेशीको उत्थान चाहन्छन्, आफ्नो छोरा-छोरीको लागि दासता र रंगभेद अन्त भएको हेर्न चाहन्छन्। किनकि यस आन्दोलनमा पैसा लगाएर कसैको नेपालमा सांसद् वा मंत्री हुने लक्ष्य पूरा हुन सक्दैन, कुनै उद्योगपतिको वा धनी व्यक्तिको टैक्समा छूट दिलाउने वा स्कूल/कलेज/उद्योग/व्यापार दर्ता गराइदिने, वा अन्य फायदा पुग्ने कुरो छैन, त्यसैले यसमा पैसावालहरूले लगानी गर्ने आधार देख्दैनन्। बरू पीडित, गरीब वा संघर्षशील मधेशीहरूले नै सहानूभूति राखेका छन्, पाँच सय वा हजार रुपैयांको पर्चा भए पनि छपाएर बाँटेका छन्।
र यस्तो स्थितिमा 'हामी पुगे पनि नपुगे पनि, हाम्रो विचार पुगोस्' भन्ने सिद्धान्तमा रहेर हामी स्वराजी काम गर्छौं। त्यही भएर कुनै ठाउँमा जानका लागि पैसा खर्चिनु भन्दा आफ्नो आफ्नो किताब र पर्चा छपाउनमा हामी खर्चिन्छौं। त्यसैगरि हाम्रा कार्यक्रमहरू प्राय: कुनै हल बुक गरेर हैन, जहाँसुकै खाली ठाउँ पायो, त्यही नै गर्छौं - कहिले खुला चौरमा , कहिले कुनै स्कूलमा, कहिले कसैको दलानमा। अन्तर्क्रिया, सभा, सम्मेलनमा जान निकै महँगो छ, धनगढी वा विर्तामोडमा कुनै केन्द्रिय स्तरको नेतालाई पठाउन, खास गरेर बन्दको समयमा, निकै खर्चिलो हुन्छ। बन्दको समयमा हवाईजहाजबाट आउनजान १५-१६ हजार खर्च हुन्छ, त्यति हामी संग यस प्रयोजनको लागि उपलब्ध नै हुँदैन, यदि भए हाले पनि त्यस रकमबाट जहिले पनि हामी किताब र पर्चा छपाउनमा खर्चिन्छौं, DVD बनाउन खर्चिन्छौं ताकि मधेश को इतिहास मधेशी जनता सम्म पुग्न सकोस्, मधेश स्वतन्त्रताको विचार मधेशी जनता सम्म पुग्न सकोस्, मधेशीहरू दासताको सोचबाट उन्मुक्त भई गौरवाशाली वीर मधेशी भनेर गर्व गर्न सकून, मधेशीहरूले आफ्नो भाग्य आफैंले लेख्न सकून्। जुन पार्टी, संघ-संगठन वा NGOहरू संग पैसा छ तिनीहरू हवाईजहाजबाट दिनमै २-३ ठाउँमा पुग्छन्, धनगढी, भैरहवा देखि विराटनगरको कार्यक्रम भ्याउछन् , फोटो खिचाउँछन् शेयर गर्छन्, तर हाम्रो स्थिति फरक छ। त्यही भएर कृपया दु:ख न मानी त्यतिमात्रै बुझिदिनुहोला।
वीर स्वराजी परिचय: अब्दुल खान र इरफान शेख
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(अब देखि यस पेजमा केही स्वराजीहरूको परिचय र उनीहरूको आफ्नो अनुभव पनि समेटने प्रयास हुनेछ )
इरफान नेपालगंजमा डेरा लिएर एउटा सानो पसल खोलेर जीविका चलाउँदै आएका थिए। म मंसीरमा जेलबाट निस्केपछि नेपालगंजमा पनि आमसभा गर्न खोज्दा प्रचार-प्रसार गर्ने क्रममा नेपाल प्रहरीले अब्दुलसँगै उनलाई पनि पक्रे। एक हप्ता भन्दा बढी हिरासतमा अनेकौं यातना दिएर राख्दा पनि दुबैजना अलिकति पनि विचलित भएनन्, बरू अनुसन्धानकर्त्ता र हिरासतमा रहेका अरु बन्दीहरूलाई समेतलाई 'वैरागदेखि बचावसम्म' र 'मधेश स्वराज' किताबका अंश पढाइरहे। बांके प्रशासनले सार्वजनिक अपराध मुद्दा दायर गरे पछि मात्रै धरौटीमा छोडयो। त्यसपछाडि पुन: चैतमा मुखमा कालोपट्टी बाँधेर नेपालगंजमा प्रदर्शन गर्ने बेलामा इरफान र अब्दुल लगायत थप दुईजनालाई प्रहरीले समात्यो। पुन: उनीहरू स्वतन्त्र मधेशका सच्चा सिपाही भएर अडिग भएर लागिरहे। नेपाल प्रहरीले फेरि पनि उनीहरूमाथि सार्वजनिक मुद्दा दायर गर्यो।
त्यतिमात्रै हैन पहाडी घरबेटीले नेपालगंजबाट इरफानको पसल बंद गरेर हटाउन लगायो। त्यसको केही महिनापछि डेरा पनि खाली गर्न इरफानलाई दबाब दिइराख्यो। अंतमा पहाडी घरबेटीले इरफानको सबै सामानहरू डेराबाट बाहिर फालिदिए र उनी नेपालगंजबाट विस्थापित भएर बांकेको गाउँमै बस्न थाले। यतिहुँदा पनि संयमताले काम लिंदै स्वराज अभियानलाई अगाडि बढाइ रहे।
त्यस्तै, अब्दुल शुरु देखि नै मेरो उतारचढाव नजीकबाट नियालेका साथी हुन्। २०६८ सालमा झापादेखि कंचनपुरसम्म गाउँ-गाउँ गएर पहिलो चरणको अभियान संगै सम्पन्न गरेका हुन्। त्यसक्रममा नै अमेरिकाको 'विलासीपूर्ण' जीवनदेखि बाटोको धूलो सम्मको हैसियतमा म कसरी पुगें भनेर नियालेका हुन्, भोक-भोकै कडा घाममा दिनभरि दुर्गम गाउँ तिर सँगै बरालिएका हुन्, पानी परिरहेको रातमा बाहिर संगै रुझ्दै हिंडेका हुन्। त्यही भएर कसैले मेरो बारेमा नराम्रो टिप्पणी गरिदिंदा उसलाई सहन अलि गार्हो हुन्छ। आफ्नो जीविका धान्न धौ-धौ पर्दा समेत, नेपाल प्रहरी र प्रशासनले अनेकौं यातना दिंदा समेत विचलित न हुने साथी हुन्। पैदल नै हिंडेर भए पनि, भोक-भोकै बसेर भए पनि स्वराज आन्दोलनलाई निरन्तर अगाडि बढाइ रहेका छन्।
सप्तरीमा राउत हत्या बिरोधमा जनसागरभदौ १ गते प्रहरीले छातीमा गोली हानी राजिव राउतको हत्याको बिरोधमा भोलि पल्ट भारदह, सप्तरीमा निस्केको जनसागर |भिडियो साभार: बिक्रम मण्डल जी Original Link-https://fbcdn-video-m-a.akamaihd.net/hvideo-ak-xft1/v/t42.1790-2/11864663_1619137705023150_1544556558_n.mp4?efg=eyJybHIiOjEzNTksInJsYSI6MjY1N30%3D&rl=1359&vabr=755&oh=4ad7a1da02abc5e69659b4c32d326a98&oe=55D5A24A&__gda__=1440063100_0bab53fdfb2a1fa513d2e86c893f70aa
Posted by Madhesi Community on Thursday, August 20, 2015
Sunday, August 16, 2015
कर्णाली को जायज माग र त्यस माथि दमन
दुर्गम ठाउँ लाई झन बढ़ी जरुरी छ स्वायत्तता र संघीयता। कर्णाली ले त्यो देखाएको छ। स्थानीय स्वायत्त शासन को स्थापना हुनुपर्यो। उपनिवेश को अन्त्य हुनु पर्यो। बाहिर का ले आएर शासन गर्ने प्रथा समाप्त हुनु पर्यो। स्वायत्त शासन ले नै स्थानीय संस्कृति को संरक्षण गर्न सक्छ। स्वायत्त शासन ले नै स्थानीय विकास गर्न सक्छ।
कर्णाली मा त्यत्रो आंदोलन भइ राखेको छ। सुशील र बामे काठमाण्डु मा निदाइ रहेका छन। एकात्मक व्यवस्था का धरोहर हरु। अहिले सम्म काठमाण्डु ले कर्णाली लाई उपनिवेश बनाएर राखेको अवस्था छ। त्यस लाई शेर बहादुर देउबा र भीम रावल र बामदेव गौतम र सुशील कोइराला कायम राख्न चाहन्छन्। त्यो संभव छैन।
कर्णाली को जायज माग पुरा गर। त्यस माथि को दमन बंद गर।
कर्णाली ले अहिले सारा देश लाई पथ प्रदर्शन गर्ने काम गरेको छ। २००६ को अप्रिल क्रांति मा सड़क मा आएका जनता लाई कुन NGO ले मानव अधिकार को ट्रेनिंग दिएको थियो? अहिले प्रधान मंत्री ले नबुझेको संघीयता कर्णाली का जनता ले कसरी बुझे? जनता जनार्दन त्यसै भनिँदैन।
हतियार बन्दैनौँ : थारु सभासद्हरू
दुई दर्जनभन्दा बढी थारु सभासद्हरू नेपालगञ्जमा भेला भएका छन् र आइतबार बिहान उनीहरूले समग्र परिस्थितिमा आफ्नो सामूहिक धारणा बनाउने जानकारी प्राप्त भएको छ । ..... साथै थारु समुदायका विजय गच्छदारले आफूले कांग्रेस, एमाले र एमाओवादीका शीर्ष नेतृत्वसँगै सीमाकंनको समर्थनसहित तत्काल संविधान जारी गर्न हस्ताक्षर गरे पनि आफ्ना पार्टी कार्यकर्ताहरूलाई आन्दोलनमा भाग लिन उक्साएको खुलासा भएपछि उनीविरुद्ध पनि थारु सांसदहरू गोलबद्ध भएका छन् । ...... शनिबार कांग्रेस सभासद् अमरेशकुमार सिंह पश्चिम नेपालका मधेसी, थारू र मुस्लिमलाई एकजुट भएर लड्न ....... नेपालगन्जमा शनिबार डाकेको गोप्य बैठकमा अमरेशले बाँके कांग्रेसका कार्यवाहक सभापति लाहुराम थारूलगायत एमाले, एमाओवादी, फोरम लोकतान्त्रिकका थारू नेतालाई एकै ठाउँमा राखी आन्दोलनमा एक भएर जान सुझाएका थिए । ....... अमरेशले संघीय समाजवादी फोरमका असन्तुष्ट पूर्वमन्त्री मोहमद इस्तियाक राईलाई थारू, मुसलमान र मधेसी आन्दोलनको नेतृत्वका लागि अगाडि सारेका छन् । राईको संयोजकत्वमा थरुहट मधेस संघर्ष समिति गठन गरिएको छ । अमरेशले मधेसलाई कुनै पनि हालतमा पहाडमा मिसाउन नहुने उल्लेख गर्दै यसका लागि जस्तोसुकै कडा आन्दोलन गर्न पनि तयार रहन निर्देशन दिएको ....... ‘चितवनदेखि कञ्चनपुरसम्म भूभागलाई पहाडमा मिसाउन नदिन जस्तोसुकै आन्दोलन गर्न मधेसी, थारू र मुस्लिम एकीकृत भएर तयार हुनैपर्छ ।’ उनले थारू, मुस्लिम र मधेसीलाई एकजुट भएर सशक्त आन्दोलन गर्न सल्लाह दिए । ...... गोप्य भेलामा सहभागी थरुहट संघर्ष समितिका प्रवक्ता फुलाराम थारूले भने, ‘उहाँले थारू नेतालाई छुट्टै गोप्य रुपमा भेट्नुभयो ।गृहमन्त्री–आइजिपी द्वन्द्व चुलिँदै
थारू, मधेसी र मुस्लिम
एक भएर जान सल्लाह दिनुभयो ।’
गृहमन्त्री वामेदव गौतम र नेपाल प्रहरीका आइजिपी उपेन्द्रकान्त अर्यालबीच ‘भुसको आगो’झैं सल्किएको द्वन्द्व सतहमा आएको छ । अनुशासनको कमी रहेको भन्दै शुक्रबार फेरि एकपटक प्रहरीकै कार्यक्रममा गौतमले प्रहरी नेतृत्वको चर्को आलोचना गरे । सशस्त्र प्रहरीलाई पक्राउ पुर्जी दिने सरकारको निर्णयमा प्रहरीले मिडियाबाजी गरेर आफूलाई बदनाम गरेको भन्दै गृहमन्त्री गौतमले प्रहरी नेतृत्वको आलोचना गरे ।राप्तीलाई कसैले टुक्राउन सक्दैन : एमाले अध्यक्ष ओली
‘मैले भनैको हो, साथीहरुले मान्नुभएन’
राप्तीको सल्यान र पश्चिम रुकुमलाई प्रदेश नम्वर ६ मा गाभ्नु अबैज्ञानिक भएको भन्दै ओलीले सिमाङ्कनको विषयमा छिट्टै पुनर्विचार गरिने बताए । .... दाङलाई राजधानी बनाउन सहयोग गर्नुप¥योे भन्ने डेलीगेसन टोलीको अनुरोधमा अध्यक्ष ओलीले सिमाङ्कनको विवाद नटुंग्याई राजधानीको विषयमा बोलियो भने त्यसले अर्को द्वन्द्व निम्त्याउने खतरा औंल्याए ।जुम्लामा आन्दोलनकारीलाई प्रहरीले गोली ठोक्यो, पाँचको अवस्था गम्भीर
५ः३० बजेबाट अनिश्चितकालीन निषेधाज्ञा
आजको प्रर्दशनमा जिल्ला वन कार्यालय, शिक्षा कार्यालय, स्याउ प्रशोधन केन्द्रलगायत विभिन्न सरकारी कार्यालयमा तोडफोड र आगजनी भएको छ । ..... विशेष अधिकारसहितको कर्णाली स्वायत्त प्रदेशको माग गर्दै सङ्घर्षमा उत्रेका आन्दोलनकारीले जुम्लाका झन्डै तीन दर्जन सरकारी कार्यालय तोडफोड गरिसकेका छन् । ......
आन्दोलनको आठौँ दिनसम्म पनि सरकारले कर्णालीवासीको मागप्रति कुनै चासो नराखेको भन्दै आक्रोशमा आएका आन्दोलनकारीले कर्णाली प्रदेश अङ्कित बोर्ड टाँस्न आह्वान गर्दै विभिन्न सरकारी कार्यालयका साइनबोर्ड तोडफोड गरेका छन् ।
........ उत्तेजित भीडले जिल्ला प्रहरी कार्यालयको साइनबोर्ड तोडफोड गर्न खोज्दा आन्दोलनकारी र प्रहरीबीच झडप भएको थियो ।
Friday, August 14, 2015
स्वायत्त कर्णाली प्रदेश को माग जायज छ
जुम्ला, श्रावण २८ - ढुंगा हानेको भन्दै आन्दोलनकारीले चार प्रहरीलाई नियन्त्रणमा लिएका छन् । ...... विशेष अधिकार सहितको कर्णाली राज्यको माग गर्दै आन्दालनमा उत्रिएका आन्दोलनकारीहरुलाई जिल्ला प्रशासन अगाडि बसेका ४ प्रहरीले ढुंगा प्रहार गरेका थिए । ..... छतमा बसि ढुंगा प्रहार गर्ने प्रहरीलाई आन्दोलनकारीले नियन्त्रणमा लिएरस्वायत्त कर्णाली प्रदेश मा
- प्रहरी कर्णाली को स्थानीय हुन्छ, अहिले रहेको उपनिवेशी प्रहरी झिक्नु पर्ने हुन्छ
- कर्णाली को आफ्नै लोक सेवा आयोग हुन्छ
- कर्णाली प्रदेश को आफ्नै सर्वोच्च अदालत हुन्छ
- नागरिकता पासपोर्ट बनने प्रदेश स्तरमा हुन्छ
- जनता सरकारी कार्यालय धाउनु पर्ने सम्पुर्ण प्रदेश भित्र हुन्छ, केंद्र को राजधानी जाने सांसद हरु मात्र हो
- यार्चागुम्बा बाट हुने कमाइ मा, डोल्पा आदि ठाउँ मा हुने पर्यटन बाट हुने कमाइ मा प्रमुख रुपले स्थानीय हक़ रहन्छ, केही मात्र केंद्र पुग्छ
- १६ प्रदेश बनाउने अनि प्रति व्यक्ति आय का हिसाबले सबै भन्दा पछाडि पर्ने ४ प्रदेश लाई वर्षेणी विशेष पैकेज को व्यवस्था हुनुपर्ने केंद्र सरकार बाट, त्यो कुरा संविधान मैं लेख्ने
- सुर्खेत लाई थरुहट प्रदेश को राजधानी र समस्त सुदुर पश्चिम मध्य पश्चिम को व्यापारिक राजधानी (मुंबई) को रुपमा विकास गर्ने
Kailali
Hulaki Rajmarga?
गलत सीमांकन Symptom मात्र हो, रोग गहिरो छ
लिम्बुवान नाम
नेपाल बंद
अमरेश, राजेन्द्र, उपेन्द्र
पश्चिम तराई बंद
Dolpa
आउ हेर्न सड़कमा "शक्ति समीकरण"
सुर्खेत र कर्णाली ले खस नेता हरु लाई पढाएको पाठ
कर्णाली
सुर्खेत: राजनीतिक राजधानी र व्यापारिक राजधानी
सिंघम देउबा र परवेश रावल र तथाकथित सुदूर पश्चिम
नेता लाई नक्शा कोर्न दिनै हुन्न
स्विट्ज़रलैंड मा संघीयता
भारत अमेरिका जस्तो हुँदा मधेस कनाडा बन्ने
छैठौं दिन पनि जुम्ला बन्द
बिशेष अधिकारसहितको कर्णाली राज्यको माग गर्दै सुरु भएको आन्दोलनको छैटौं दिन पनि पुरै कर्णाली बन्द छ । बन्दका कारण जनजीवन कष्टकर बन्दै गएको छ । छ दिन यता हवाइ सेवा सञ्चालन भएको छैन भने आज बिहान गाउँगाउँबाट आन्दोलनकारीहरुलाई सदरमुकाम ल्याउन विहान ५ बजे देखि ९ वजे सम्म छोटो दुरीका यातायात संचालनमा आएका थिए । आन्दोलनका लागि खलंगामा आउनेको संख्या वढ्दै गएको छ ।
...... सरकारी कर्मचारीले मौन जुलुस निकाली रहेका छन् भने गैर सरकारी संस्थाले सिठ्ठी जुलुस गरिरहेको छ । ..... कर्णाली स्वास्थ्य विज्ञान प्रतिष्ठान शिक्षण अस्पतालको ओपीडी सेवा छ दिनदेखि बन्द छ । विशेष अधिकारसहितको स्वायत्त कर्णाली प्रदेशको माग गर्दै आन्दोलन जारी भएको दिनदेखि अस्पतालले दिने सेवा समेत बन्द गराएको छ । ..... अस्पतालको ओपीडी सेवा बन्द भएपछि दैनिक दुई सय भन्दा बढी बिरामीहरु प्रभावित बनेका छन् । ओपीडी सञ्चालन भइरहेको बेला दैनिक दुई सय भन्दा बढी विरामी उपचारका लागि शिक्षण अस्पताल आउने गरेको अस्पतालका प्रशासकीय अधिकृत द्वन्द्वबहादुुर शाहीले बताए । बिशेष अधिकारसहितको स्वायत्त कर्णाली प्रदेश माग गर्दै स्वास्थ्यकर्मीहरु समेत आन्दोलित बनेका छन् ।
Thursday, June 11, 2015
१५ दिन लाठी जुलुस निकालो और अपना देश बनाओ
मधेसके गाओं गाओं में शहर शहर में टोल टोल में कस्बे कस्बे में जब १५ दिन के लिए एक स्पष्ट नारे के साथ जुलुस निकल जाती है तो मधेस अलग देश के घोषणा के बाद दिल्ली को उस देशको मान्यता देने के लिए जगह बन जाती है। एक बार दिल्ली ने अलग देश का मान्यता दे दिया और राजदुत आदान प्रदान की प्रक्रिया शुरू हो गयी तो पर्वते सेना प्रहरी सब neutralize हो जायेंगे।
ये हिंसा के लिए आह्वान नहीं है ---- ये स्वतंत्रता के लिए आह्वान है।
मधेस अलग देश: अब एक मात्र गोल, एक मात्र लक्ष्य
The Splitting Of Czechoslovakia
मधेसी क्रांति को कार्यतालिका
मधेस सरकारको अंतरिम संविधान
अहिंसात्मक क्रांति नै हुन लागेको हो
हिंसा र राज्य (State)
संघीयता या अलग देश
नेपालभित्र समानता को संभावना देखिएन, मधेस अलग देश बन्छ अब
क्रांतिको समय आइसक्यो
सीके राउत र नेपालको न्यायपालिका
Nationalities And Citizenship
सीके राउत र अंतरिम संविधान
कुरुक्षेत्रमा जाने बेला आयो
Madhesh And Nuclear Power And Solar Power
The Tamils Of Sri Lanka And Me
Janakpur Patna Kolkata Industrial Corridor
मोदी के चाय दोकान पे चर्चा
बिहार के लिए फोर्मुला
World Government And Federal States
Does The World Government Have To Await A Total Spread Of Democracy?
Sushil Modi In Janakpurdham
मधेस स्वराज की क्रान्ति शहीद पैदा करने वाली क्रांति नहीं है। घर घर से लाठी ले के लोग निकलेंगे। क्रांति अहिंसात्मक होगी। लेकिन ईंट का जवाब पत्थर। काठमाण्डु के खस लोगों को सुझाव: भुखे मरने की रास्ते पर चल्ने की जुर्रत मत करना। हिंसा पर उतरे तो तुम्हारा भविष्य नाकाबंदी का है।
मधेसी क्रांति पर हिंसा का प्रयोग करने वाले किसी भी पर्वते सेना प्रहरी प्रशासक के लिए मधेस देश में कोइ स्थान नहीं रहेगा। तटस्थ रहने वालों के लिए स्थान रहेगा। किसी एक समुदाय का देश नहीं बन रहा ये।
Tuesday, November 18, 2014
सीके जनताके अदालतमें आ रहे हैं
मुद्दा तो खेपेंगे ही, मुद्दा अभी बाँकी है। लेकिन वामदेवके अदालतमें नहीं, जनताके अदालतमें। मधेश स्वराज का मतलब हुवा उपनिवेशका खात्मा। मधेसी जिल्लामें पहाड़ी CDO क्यों? पहाड़ी DSP? पहाड़ी पुलिस? पहाड़ी प्रशासन? ये उनका व्यक्तिगत मुद्दा नहीं है, सारे मधेसीका है। फैसला जनता करे, मधेसी जनता करे। मधेसी जनता जो निर्णय करेंगे वो सीके को कबुल रहेगा। बहस शुरू किया जाए।
बोलिए स्वायत्त मधेश चाहिए कि नहीं? लेंगे कि नहीं? मधेश स्वराज चाहिए कि नहीं?
सिके राउत मंसिर १० गते काठमाडौंमा आमसभा गर्ने
काठमाडौंस्थित डिल्लीबजार कारागारमा जेल जीवन विताइ रहेका राउतले मंगलबार सप्तरी जागरण अनलाइनसँग संक्षिप्त कुरा गर्दै आफु अदालतले तोकेको धरौटी रकम बुझाएर रिहा हुने बताएको छ । छुट्टै तराइ राज्यको माग गर्र्दै आइरहेका राउत गत भदौ २८ गते मोरङको रंगेलीबाट पक्राउ परेको हो । उनिमाथि सरकारले राज्य विप्लपको मुद्दा दायर गरेको थियो । विशेष अदालतले गत असोज २२ गते ५० हजार धरौटी माग गरेका थिए । राउतले धरौटी रकम नबुझाएपछि जेल परेका हुन् । ..... सरकारले मंसिर ३ गतेदेखि राउतलाई परिवारको सदस्य बाहेक अन्यलाई भेटघाटमा प्रतिवन्ध् लगाएको छ । कारागारमा राउतले आपूm मंसिर १० गते रिहा भई काठमाडौंको रत्नपार्कमा १२ बजेदेखि आमसभा गर्ने उद्घोष गर्नुभयो । उहाँले उक्त सभामा उपस्थित हुन मधेशी समुदायलाई आग्रह गरेका छन् । आफु मधेशबाट माटो ल्याउन खोज्दा राज्यले रोकेकोमा आक्रोश प्रकट गर्दै भने ‘जेलमा बस्ने अरु सबैले पिजा र मःम ल्याउन पाइने तर आपूmले मधेशको माटो पनि ल्याउन नपाउने कस्तो विडम्वना !!’ ..... अनलाइनका सम्पादक वैद्यनाथ यादवसँगै कारागार पुगेका सप्तरीका नागरिक समाजका अगुवा शशीकुमार यादवले राउतलाई जेलबाट बाहिर निस्केर आप्mनो कुरा जनताबीच राख्न सुझाव दिएका थिए । यादवले राष्ट्रपतिबाट प्रथम गणतन्त्र दिवसको अवसरमा विकासोन्मुख रत्नबाट सम्मानित यादवले भने ‘सिके जस्तो विद्वानको खाँचो यो राष्ट्रलाई छ’ । ... प्रतिउत्तरमा राउतले आपूm रिहा भई काठमाडौंबाट नै मधेशलाई सम्वोधन गर्ने बताए । आप्mनो सभालाई कसैले विथोल्न खोजे त्यो नेपाली शाषकवर्गलाई घातक हुने राउतको दावी छ ।