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Monday, September 14, 2015

मधेसकी लड़ाई मधेसकी भुमि पर होगी

An eagle does not fight a snake on the ground. It picks it up and changes grounds, then releases it back to the ground. A snake has no stamina, no power, no balance in the air. It is useless, weak and vulnerable unlike on the ground where it is deadly, wise and powerful. Take your fight to the spirit realm (pray) and when you are in the spiritual realm God takes charge. Don't fight in the physical realm change grounds like an eagle. You will be assured of a clean victory.

लिम्बुवान बाट मधेस झरेको केपी ओली

लिम्बुवान बाट मधेस झरेको केपी ओली लाई हामी मधेस अलग देश को स्थापना सँगै वापस लिम्बुवान लाई सुपुर्द गरिदिन्छौं। अपना कुरा कचरा अपने साथ रखो।


Upendra Yadav

तीन व्यक्ति एक मत वाला खस लोकतंत्र मधेसी लाई मान्य छैन


१ करोड़ मधेसी। ४३ लाख लाई अनागरिक। अर्को ३० लाख लाई दोस्रो दर्जा को नागरिक। त्यो मान्य हुन्छ भनेर सोँच्नु हास्यास्पद छ।

Monday, August 31, 2015

मधेसी मोर्चा र मधेसी स्वराजी को सम्बन्ध



Dr. CK Raut
मधेशी पार्टी द्वारा स्वराजी अञ्‍जय मिश्रको फँसाकर जेल में बंद करवाना: मधेशी पार्टी द्वारा स्वराजियों को भीड में लपेटकर फँसाने, दमन करवाने, इन्काउन्टर करवाने और स्वराज अभियान को खत्म करने की साजिश
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कल शाम को प्रत्यक्षदर्शी से जानकारी प्राप्त हुई कि मोरंग विराटनगर से पकड़े गए स्वराजी अञ्‍जय मिश्र को अभी तक हिरासत में ही रखा गया है। मधेशी मोर्चा द्वारा घोषित श्रावण ३१/३२ के कार्यक्रम के दौरान एक मधेशी पार्टी के जिलाध्यक्ष, स्वराजी अञ्‍जय मिश्र और अजय नाम के एक साथी साथ-ही-साथ बजार से गुजर रहे थे। इतने में पुलिस वैन दिखाई दी और मधेशी पार्टी के जिलाध्यक्ष नें ईंट उठाकर पुलिस की गाडी पर फेंक दी, जिससे गाडी का शीशा टूट गया। जिलाध्यक्ष महोद्‍य तो भाग गए, पर सारी घटना से हक्का-बक्का हुए अञ्‍जय मिश्र और अजय वही पर खडे रहे। पुलिस ने उतरकर दोनों को गिरफ्तार कर के वैन में बिठाया, पर अजय वैन से कुदकर भाग गया जिसके कारण उसके पैर में मोच भी आई। अञ्‍जय को पुलिस ने हिरासत में लिया। शाम के मशाल जुलुस के दौरान मोर्चा के कुछ और कार्यकर्ताओं को भी पकडकर लाया गया। पर सभी कार्यकर्ताओं को मधेशी पार्टीयों ने छुडाकर ले गया, पर अञ्‍जय मिश्र को उन सबने हिरासत में ही छोड दिया। उल्टा मोरंग के पूर्वसभासद् तथा संघीय समाजवादी फोरम के नेता ने मकालु टेलिविजन से अन्तर्वार्ता में कहा कि उनके मशाल जुलुस में "विखण्डनकारी घुसपैठिया" घुस गया था जिसके कारण से आन्दोलन उग्र हो उठा।

बाद में जब श्री महन्त ठाकुर, श्री उपेन्द्र यादव, श्री राजेन्द्र महतो, श्री महेन्द्र राय यादव लगायत के नेता विराटनगर में सभा को सम्बोधन करने पहुँचे तो ईस्टर्न होटल में अञ्‍जय मिश्र के विषय में जीवन गुप्ता जी ने वृहत्त में बात रखी पर कोई सुनवाई नहीं हुई। विराटनगर के नागरिक समाज के सामने यह बात रखी गई वहाँ भी कोई परवाह नहीं किया गया। मधेशी मोर्चा के स्थानीय नेताओं के सामने बात रखी गई कि आपके कार्यक्रम के दौरान, आपके जिल्ला अध्यक्ष के कारण ऐसा हुआ है, तो जीवन गुप्ता जी को 'घटना में मारे जाओगे' कहके जान से मारने की धमकी दी गई। इसतरह से मोर्चा के कार्यक्रम के दौरान, मधेशी पार्टी के जिलाध्यक्ष के गैरजिम्मेबार करतूत के चलते गिरफ्तार हुए या षडयन्त्र पूर्वक गिरफ्तार कराए गए स्वराजी अञ्‍जय मिश्र पिछले १५ दिन से प्रहरी हिरासत में यातना भोग रहे हैं, और उनपर मुद्दा लगाने की तैयारी चल रही है।

उसी तरह, स्मरण रहे, तमलोपा के महामंत्री सर्वेन्द्रनाथ शुक्ला ने भी भैरहवा की घटना में सिके राउत के कार्यकर्ताओं का घुसपैठ होने का आरोप लगाया था।
(http://www.ratopati.com/2015/08/22/227596 )

इसतरह से जगह-जगह पर स्वराजियों को बदनाम करने की और नेपाली शासकों द्वारा स्वराजियों पर दमन करवाने की घटना सामने आ रही है, और इस ओर हम सबका ध्यान आकृष्ट हुआ है। पर हम सभी संयमता रखें क्योंकि यह इस भीड में लपेटकर स्वराजियों पर दमन कराके, स्वराजियों को बदनाम कराके, स्वराजियों का इन्काउन्टर करवाके स्वराज अभियान को खत्म करने की साजिश हो रही है। इसलिए हम सभी संयमता रखें, सावधान रहें।


बहुदल ले मात्र पुगेन। गणतंत्र पनि चाहियो। गणतन्त्रले मात्र पुगेन। संघीयता पनि चाहियो। बहुदलवादीले गणतन्त्रवादी लाई, गणतन्त्रवादी ले संघीयता वादी लाई शत्रु व्यवहार गर्नु इतिहासले गलत साबित गरेको छ।

संघीयता अझै मधेस ले पाइनसकेको कुरा। संविधान मा केही गरी संघीयता र समावेशीता पाइ हाले पनि त्यसको कार्यान्वयन को कुरा आउँछ। त्यहाँ पनि बेइमानी का ठाउँ प्रशस्त रहन्छन्।

सीके राउत को वाचडॉग (watchdog) रोल रहने हुन्छ। मधेसी क्रांति ले अंतरिम संविधान मा "स्वायत्त मधेस प्रदेश" स्थापित गरेको हो। त्यो स्वायत्त भन्ने शब्द को अर्थ के भन्ने कुरामा कुनै विवाद छैन। त्यो आत्म निर्णयको अधिकार नै हो। त्यसको अर्को कुनै अर्थ लाग्दैन।

मधेसी विरुद्ध को विभेद को औषधि संघीयता हो, संघीयता प्रयाप्त छ भन्ने मधेसी दल को त्यो अधिकार हो। अंतिम निर्णय गर्ने जनता हुन। मधेसी विरुद्ध को विभेद को औषधि संघीयता होइन मधेस अलग देश हो भन्ने हरु सँग वैचारिक असहमति लोकतान्त्रिक अभ्यास हो। तर तिन प्रति शत्रु व्यवहार मधेसी मानसिक दासता कै एउटा रूप हो। त्यो बाटो मा मधेसी दल हिँड्नु हुँदैन।

मधेस अलग देश को एजेंडा कंडीशनल हो। यदि संघीयता र समावेशीता को बाटो एउटा निश्चित समय भित्र मधेसी ले समानता पाऊँछ भने मधेस अलग देश को एजेंडा कायम रहँदैन। तर त्यो समय आइसकेको छैन मात्र होइन, त्यो समय आउन दिन्न भन्ने काठमाण्डु का बाहुन हरुको लिंडे ढिपी ले गर्दा होइन यत्रो आंदोलन गर्नु परेको?

त्यसैले मधेसी मोर्चा का दल हरुको, नेता र कार्यकर्ता को मधेसी स्वराजी संग respectful co-existence को सम्बन्ध हुनुपर्छ, hostility को होइन। दुबै ले लडेको मधेसी अस्मिता का लागि नै हो। मंजिल एक और राही दो।

भैरहवाको झडपमा सिके राउतका कार्यकर्ताको घुसपैठ?
सिके राउत पक्षको खण्डन
भैरहवा, भदौ ५– बिहिबार भैरहवामा भएको झडपमा सिके राउतका कार्यकर्ताले घुसपैठ गरि अराजकता फैलाएको भन्ने तराई मधेश लोकतान्त्रि पार्टीका महामन्त्री तथा रुपन्देही क्षेत्र नं. ६ का सभासद सर्वेन्द्रनाथ शुक्लाको भनाईको स्वतन्त्र मधेश गठबन्धनले बिरोध गरेको जनाएको छ । ...... गठबन्धनका जिल्ला संयोजक भोपेन्द्र यादवले प्रेस बिज्ञप्ती जारी गर्दै शुक्लाको भनाई कपोलकल्पित, गलत, निराधार तथा गैरजिम्मेवार रहेको बताए । शुक्ला जनताको मनोभवना र अकान्छालाई कुल्चेर सिके राउतको कार्यकर्तालाई दोसी देखाउनु खेदपुर्ण भएको बिज्ञप्तीमा उल्लेख छ । भैरहवामा सिके राउतको कार्यकर्ता वाट कुनै किसिमको सद्भाव बिग्रने खालको क्रियाकलाप नगरेको गठबन्धने जनाएको छ । मोर्चाको आन्दोलन भन्नु भन्दा पनि यो सम्पुर्ण मधेशी ,थारू ,आदिवासीजनजाति हरूको आन्दोलन भएको कारण यसमा गठबन्धनले नैतिक समर्थन गरेको संयोजक भोपेन्द्र यादवले बताए । बिहिबार रुपन्देहीका ग्रामीण क्षेत्रबाट आएका हजारौ प्रर्दशनकारीले भैरहवामा उगै रुप देखाउदै अस्पताल, निजि घर तथा बाटोमा सवारी साधन तोडफोड गरे पछि त्यसको सर्वत्र बिरोध भएको थियो । शुक्लले सो भिडमा सिके राउतका कार्यकर्ताले घुसपैठ गरि तोडफोड मच्चाएको आरोप लगाएका थिए ।

Friday, August 21, 2015

Goit To Modi


जयकृष्ण गोइत द्वारा लिखित भारतीय प्रधानमन्त्री लाई खुल्ला पत्र

सम्माननीय प्रधानमन्त्री , श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी, भारत सरकार
मार्फत
महामहिम राजदूत
भारतीय राजदूतावास
लैनचौर, काठमाण्डौं ।
तिथिः ९ अगस्त २०१५

श्रीमान् ,

हम, नेपाल अधीनस्थ तराई(मधेश) के मूल निवासियों के सच्चे प्रतिनिधि और तराई(मधेश) में जारी मुक्ति आन्दोलन के नेता के रुप में आपको भारत–नेपाल “शान्ति एवं मैत्री” सन्धि – १९५० की धारा – ८ का नेपाल में दोहरा मापदण्ड के सन्दर्भ में अवगत कराना अपना कत्र्तव्य समझतें हैं और आपका ध्यान इस ओर आकृष्ट करना चाहते हैं कि नेपालियों(पहाडियों) द्वारा भारतीय भू–भाग को सम्मिलित दिखाकर “वृहत्तर(गे्रटर) नेपाल” के एकतरफा अभियान से अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को गुमराह किया जा रहा हैं और तराई(मधेश) को औपनिवेशिक उत्पीडन में ही रखने की हताशापूर्ण कोशिशें की जा रही हैं ।

इतिहास की नींव पर ही वत्र्तमान का निर्माण होता है । इतिहास का संबंध सिर्पm अतीत से नहीं हैं, उसका संबंध वत्र्तमान और भविष्य से भी है । नेपाल के पाठ्यक्रम और अकादमिक चर्चा के रूप में इतिहास की विषयवस्तुओं के अनुसार नेपाल अधीनस्थ मेची नदी से महाकाली नदी तक का ‘तराई(मधेश)’ किसी शाहवंशी राजा, महाराजा वा नेपाली(पहाडी)का विजित भू–भाग नहीं रहा बल्कि ब्रिटिश स्वार्थ को पूरा करने के सहयोग के बदले नेपाल को हस्तान्तरित किया गया भू–भाग है ।

अतः भारत–नेपाल ‘संधि–१९५०’ की धारा– ८ के आधार पर मेची से लेकर महाकाली तक मधेश के ऊपर रही नेपाली अधीनता पूर्णतः अनाधिकृत और अवैध है । मेची से लेकर महाकाली तक मधेश वस्तुतः स्वतन्त्र भूभाग है । तराई(मधेश) के मूल निवासी(मधेशी) भारत–नेपाल संधि–१९५० की धारा– ८ के अनुसार नेपाल के अधीनस्थ मेची से लेकर महाकाली तक के भू–भाग को ‘स्वतन्त्र तराई(मधेश)’ मानते है जबकि नेपाली(पहाडी) मधेशियों की ऐसी धारणना को नेपाल का विखण्डन मानते हंै ।

दूसरी ओर पहाडियों के अनुसार उसी संधि–१९५० की धारा– ८ के अनुसार भारत के अधीनस्थ तिष्टा नदी से लेकर मेची नदी तक और महाकाली नदी से लेकर सतलज नदी तक का भू–भाग वृहत्तर(गे्रटर) नेपाल का अंग है, मगर ऐसी मान्यता को भारत का विखण्डन नहीं माना जाता है । २९ जून, १९९७ को “वृहत्तर(गे्रटर) नेपाल” के सन्दर्भ में नेपाल के सुप्रसिद्ध इतिहासविद् योगी नरहरिनाथ, अधिवक्ता रामजी विष्ट, अधिवक्ता श्याम प्रसाद ढुंगेल, नेपाली कांगे्रस सुवर्ण के अध्यक्ष प्रह्लाद प्रसाईं हुमागाईं, ‘विशाल नेपाल’ साप्ताहिक के सम्पादक तथा प्रकाशक प्रकाश देवकोटा, राष्ट्रीय जनजागरण पार्टी के अध्यक्ष अशोक लाल श्रेष्ठ, स्वतन्त्र पत्रकार राधेश्याम लेकाली आदि ने मंत्रिपरिषद्, मंत्रिपरिषद् सचिवालय, सम्माननीय प्रधान मंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय, परराष्ट्र मंत्री, परराष्ट्र मंत्रायल और साथ ही संसद सचिवालय सिंहदरबार को परिवादी बनाकर सर्वोच्च अदालत काठमाण्डू में एक रिट(याचिका) दायर की जिसका दर्ता नं. ३१९३ है ।

इसी प्रकार १९९९ में प्राध्यापक तथा “नेपाल ः टिस्टादेखि सतलजसम्म” के लेखक फणीन्द्र नेपाल, पूर्वी नेपाल के आदिवासी किरांत समुदाय के यमबहादुर कुलुङ, पत्रकार प्रकाश देवकोटा, समाजसेवी बाल कुमार अर्याल जैसे विभिन्न पेशा में संलग्न व्यक्तियों ने नेपाली जनता का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हुए सामूहिक रूप से नेपाल की सर्वोच्च अदालत काठमाण्डू में “वृहत्तर(गे्रटर) नेपाल” सम्बन्धी दूसरी रिट(याचिका) दायर की । इस रिट(याचिका) का दर्ता नं. ३९४० है और इसमें मंत्रीपरिषद् सचिवालय, सम्माननीय प्रधान मंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय, परराष्ट्र मंत्रायल, भूमि सुधार तथा व्यवस्था मंत्रायल के साथ—साथ रक्षा मंत्रायल सिंहदरबार को भी परिवादी बनाया गया है ।

सर्वोच्च अदालत के माननीय न्यायाधीश हरिप्रसाद शर्मा, दिलीप कुमार पौडेल और खिमराज रेगमी के विशेष इजलास ने नेपाल अधिराज्य का संविधान, १९९०(२०४७) की धारा २३ और ८८ (१) तथा (२) के अनुसार दायर दोनों याचिकाओं को २६ जून, २००३ के अपने फैसले में निरस्त कर दिया । उस फैसले को चुनौती देते हुए निवेदकओं ने सर्वोच्च अदालत के समक्ष पुनरावलोकन के लिए निवेदन नहीं पेश किया ।

गे्रटर नेपाल के उत्साही समर्थक अपने अभियान को व्यापक बनाने के प्रयासों में लगे रहे । उनलोगो ने सर्वसाधारण व्यक्ति से लेकर छोटे–छोटे बालक—बालिकाओं को भी अपने अभियान में आबद्ध करने हेतु ‘ग्रेटर नेपाल सिमानाको खोजीमा’ नामक एक वृत्तचित्र का निर्माण किया । ९ फरवरी, २००८ को नेपाल सरकार के सूचना तथा संचार मन्त्रालय के अन्तर्गत केन्द्रीय चलचित्र जाँच समिति से चलचित्र जाँच प्रमाण–पत्र लेकर वे पूरे नेपाल में इस वृत्तचित्र के प्रदर्शन एवं वितरण में लग गए ।

२०१० में नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचण्ड’ ने भी ‘गे्रटर नेपाल’ के लिए आवाज उठायी । गे्रटर नेपाल के अभियान में एकीकृत नेपाल राष्ट्रीय मोर्चा, नेपाल नेशलिस्ट फ्रन्ट, नेपाल भू–भाग संरक्षण मंच, राष्ट्रीय जागरण पार्टी आदि संगठित रूप से आवद्ध हैं ।

पुस्तक–पुस्तिकाओं, पत्र–पत्रिकाओं, सोशल मीडिया – फेसबुक आदि के माध्यम से अपने अभियान को व्यापक बनाने के प्रयासों में जुटे हैं । २० मई,२०१३ सुबह ९ .२५ बजे झापा जिले के सुमन श्रेष्ठ ने माउन्ट एवरेस्ट के शिखर पर गे्रटर नेपाल का नक्शा फहराया । राजधानी काठमाण्डू के एक समारोह में पहाडियों ने सुमन श्रेष्ठ का अभिनन्दन किया । इस अवसर पर सीमाविद् बुद्धिनारायण श्रेष्ठ ने पर्वतारोही सुमन श्रेष्ठ को माला पहनाया और अवीर लगाया ।

नए संविधान में गे्रटर नेपाल की सीमा और क्षेत्रफल का उल्लेख करने की मांग को लेकर ग्रेटर नेपाल राष्ट्रवादी मोर्चा ने नेपाली नया साल २०७१ बैशाख १ तदानुसार २०१४, अप्रैल १४ से देशव्यापी हस्ताक्षर अभियान चलाया । २० जनवरी, २०१५ को ग्रेटर नेपाल राष्ट्रवादी मोर्चा ने नए संविधान में गे्रटर नेपाल की सीमा और क्षेत्रफल का उल्लेख करने हेतु दबाव बनाने के उद्देश्य से काठमाण्डू के नयाँ बानेश्वर स्थित संविधान सभा भवन के आगे बैनर के साथ प्रदर्शन किया ।

आश्चर्य है कि १९५० की भारत–नेपाल संधि की धारा– ८ के आधार पर गे्रटर नेपाल बनाने के लिए पहाडियों द्वारा संचालित अभियान को संवैधानिक एवं कानूनी करार दिया जाता ह,ै जबकि उसी संधि की धारा– ८ के अनुसार “मुक्त तराई” के लिए मधेशियों द्वारा संगठित अभियान को असंवैधानिक और गैरकानूनी । कहने की जरूरत नही है कि नेपाल में १९५० की शान्ति एवं मैत्री सन्धि की धारा– ८ का बिल्कुल दोहरा मापदण्ड है ।

पूर्व के घटनाक्रम प्रमाणित करते है कि पहाडी शासकों द्वारा बडे सुनियोजित ढग से मधेशियों को मूलभूत नागरिक एंव मानव अधिकारों से वंचित रखा गया है और उनके न्यायपूर्ण आन्दोलन का भीषण नरसंहार कर दमन करने के लिए सभी पहाडी एकजुट रहते हैं ।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने प्रतिवेदन में तराई(मधेश) में नेपाली(पहाडी) अद्र्धसैनिक बलों द्वारा मधेशियों को गैरकानूनी रुप से गिरफ्तार कर उनकी नृशंस हत्याओं को सार्वजनिक किया है । सन् २०११ जनवरी ११ को जेनेवा में संयुक्त राष्ट्रसंघीय मानव अधिकार परिषद के विश्वव्यापी आवधिक समीक्षा (यूपीआर) में नेपाल के प्रतिनिधि तत्कालीन उपप्रधान तथा विदेश मन्त्री सुजाता कोइराला से तराईवासियों की गैरन्यायिक हत्याओं और दोषियों पर कारवाई के बारे में प्रश्न किए गए ।

अन्तर्राष्ट्रीय और नेपाल के मानवाधिकारवादी संस्थाओं के अनुसार भविष्य के होनहार लगभग ३०० मधेशी सपूतों की कायरतापूर्ण गैरन्यायिक हत्याए की जा चुकी हैं और यह क्रम जारी है, करीब डेढ हजार लोग गैरकानूनी बन्दी जीवन बिताने के लिए विवश किए गए हैं ।

ताजा स्थिति यह है कि पहाडी शासकों ने गांव—गांव में पहाडी पुलिस की चौकी, कुछ किलोमीटर पर पहाडी अद्र्धसैनिक सशस्त्र बल का कैम्प और जिले–जिले में पहाडी सैनिकों का बैरेक खडा कर मधेश को हिटलर के कैदखाना मे. परिणत कर दिया गया है और मधेशियों के विरोध की हर आवाज को बडी बेरहमी से कुचला जा रहा है ।

हम, आप से विनम्र आग्रह करते हैं कि आप अपने स्वतन्त्र स्रोत से सच्चाइयों का पत्ता लगाएं कि मधेश में नेपाली शासन के प्रति कितना विरोध एवं नफरत हैं । जब से नेपाली शासकों ने तराई मुक्ति आन्दोलन को बन्दूक की ताकत पर कुचलना शुरु किया, तभी से हमने बाध्यतावश प्रतिरोध की कारवाई का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सम्भाली है ।

अतः हम सम्माननीय प्रधानमन्त्री और भारत सरकार से अपील करते हैं कि वे मधेश को नेपाली औपनिवेशिक शासन से मुक्ति दिलाने एवं मधेशियों को स्वयं अपना राजनैतिक भविष्य निर्धारित करने में न्यायपूर्ण सहयोग करें

जयकृष्ण गोइत
संयोजक
अखिल तराई मुक्ति मोर्चा



२०६३ माघ १७: डा. सी. के. राउत

२०६३ साल के मधेश आन्दोलन के समय में डा. सी. के. राउत (आजाद) द्वारा दिया गया सार्वजनिक वक्तव्य भी देखिए और एक बार पुनर्विचार किजिए कि उस समय भी हमने क्या गलत कहा था
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वि. सं. २०६३ माघ १७ गते बुधवार जारी गरिएको सार्वजनिक-वक्तव्य

मधेशको अधिकार र स्वतन्त्रताका लागि हाल संघर्षरत मधेशका सम्पूर्ण वीर-सपूतहरू र समस्त मधेशवासीहरू,

सबभन्दा पहिला मधेश र मधेशीहरूको अधिकार र स्वतन्त्रताका लागि आफ्नो ज्यान पनि बलि दिन पछि नपर्ने मधेशका ती वीर-सपूतहरूलाई स्मरण गर्दै र उहाँहरूको बलिदानको कदर गर्दै हामी हार्दिक श्रद्धान्जलि अर्पण गर्न चाहन्छौं। हाम्रा वीर शहीदहरू सदाका लागि अमर रहनेछन् र सम्पूर्ण मधेश उहाँहरूको योगदानको सदैव आभारी रहनेछ। मधेश र मधेशीहरूको अधिकार र स्वतन्त्रताका लागि निर्भय भएर मधेशका विभिन्न ठाउँमा हाल संघर्षरत स्वतन्त्रता-क्रान्तिका तमाम योद्धाहरू समक्ष हामी आफ्नो आदर र एकवद्धताको सलाम टक्र्याउन चाहन्छौं।

आज इतिहासमा पु:न एक पटक मधेश र मधेशीहरूलाई नेपालका शासकवर्गले आफ्नो सुनियोजित षड्यन्त्रमा फसाउँने प्रयास गरेका छन्। देखावटी केही बुँदे सम्झौताका नाममा र त्यसलाई नाटकीय ढंगले के-के न दिए जस्तो प्रस्तुत गरी मधेशीहरूको आवाजलाई दबाउने षड्यन्त्र गरिएको छ। यथार्थमा

यो एउटा सम्झौता नभएर मधेशीहरूले एकजुट भई उठाइरहेको आवाजलाई दबाउने एउटा कुचाल मात्र हो। गोली बर्साउँदा‍-बर्साउँदा मधेशीहरूको आवाज दबाउन नसकी थाकिसकेका सरकार र यसका गठबन्धनहरूद्वारा गरिएको यो सम्झौता बोली फ्याँक्ने एक अर्को अदृष्य शस्त्र मात्र हो।

आज हामी सबै मधेशीहरू सावधान भई यस षडयन्त्रबाट बच्नु आवश्यक छ। आज हामी सबैले यस बारेमा सोच्नु जरूरी छ, आखिर यस सम्झौताले आम-मधेशीलाई के दिएको छ? मधेशीहरूको कुन समस्यालाई समाधान गरेको छ त? यसले मधेशका केही नेताहरूको समस्या समाधान गर्न सक्ला, तर आम-मधेशीहरूले के पाएको छ त? के परिवर्तन आएको छ त आम-मधेशीका लागि? सांसद्‌मा लड्न नपाएका केही नेताहरू थप केही ठाउँबाट लड्न पाउनेछन्, बढीमा थप केही नेताहरूलाई संसद्‌को आरामदायी सीटमा बसेर निदाउँने अवसर प्राप्त होला, तर त्यसले मधेशीको जीवनमा के परिवर्तन ल्याउने छ त?

के अहिले संसद्‌मा मधेशी सांसद्‌हरू छैनन्? अनि किन मधेशीहरूमाथि सरकारले अन्धाधून गोली चलाउँदा तिनीहरूले रोक्न सकेनन् त?

किन मधेशीहरूमाथि पहाडीहरू, सरकारका सशस्त्र-प्रहरीहरू र माओवादी जवानहरूले आक्रमण गरी लुटपाट गर्दा तिनीहरूले केही गर्न सकेनन् त?

केही मधेशी नेताहरू अब नयाँ पार्टी नै खोल्न पाइने भइयो, वा सांसद् बनेर भोट बटुल्न पाइने भइयो, वा थप केही सांसद्हरू उठाउन पाइने भयो भनेर सम्झौताबाट तत्काल अहिले खुशी पनि हुन सक्ला, श्रेय बटुल्न हतारिएका तिनीहरू आफ्नो विजय जुलुस पनि निकाल्न सक्ला, तर तिनीहरूको सांसद् बन्ने सपना पनि पूरा हुने भन्ने कुरा संदेहनीय नै छ। यस सम्झौतामा यस्ता शर्तहरू जोडिएका छन् कि सरकार र यसका गठबन्धनहरूले आफ्नो संविधान-सभा चुनावको काम निकाल्न खोजेको प्रष्टै देख्न सकिन्छ, र एक-पटक आफ्नो काम पुरा भएपछि यी सम्झौताहरूलाई पनि धोती लाउन के बेर? र, कसै-कसैले त मधेशीलाई प्रधानमन्त्री वा राष्ट्रपति बनाइदिनाले मधेशीहरूको समस्या समाधान हुने जस्ता हास्यास्पद कुराहरू पनि प्रस्तावित गर्छन्। त्यसले पनि कुनै एक मधेशी नेताको सपना पूरा होला, तर आम-मधेशीहरूको जीवनमा त्यसले कुनै परिवर्तन ल्याउने छैन। डिजेल र पेट्रोलको भाउमा एक रूपैयाँ बढाउँदा त व्यापक विरोध र दंगा हूने देशमा मधेशी प्रधानमन्त्री वा राष्ट्रपतिले मधेशीको लागि के निर्णय गर्न सक्ला त? सिटौला वा प्रचण्डलाई कारबाही गर्न सक्ला?

मधेशी मन्त्रीहरूलाई एउटा प्यूनले समेत नटेर्ने र गाली दिने ठाउँमा, मधेशीको लगभग शून्य समावेशी रहेको नेपाल सैनिकले मधेशी प्रधानमन्त्रीलाई टेर्ला त?

कुन चाहिं निर्णय लिन सक्ला त मधेशी प्रधानमन्त्रीले? याद रहोस् यसभन्दा अगाडि एउटा मधेशी उपप्रधानमन्त्रीले “गिरिजालाई कारबाही गर्ने” भन्दा गिरिजा प्रसाद कोइरालाले उक्त मधेशीलाई “आफ्नो हैसियत भित्र बसेर कुरा गर्ने” चेतावनी दिएका थिए, र यही मानसिकता शासक वर्गका प्यूनदेखि प्रधानमन्त्रीसम्म सबैमा लागू हुन्छ र यो कुरा तपाईंहरूले एउटा मधेशी अधिकारीका रूपमा दैनिक आफ्नै कार्यालयमा पनि अनुभव गर्न सक्नुहुन्छ। त्यही भएर कसैले एउटा मधेशीको प्रधानमन्त्री वा राष्ट्रपति बन्नाले मधेशीको समस्याको निवारण हूने दिवा-स्वप्न देख्दछ भने, उहाँहरूलाई त्यस स्वप्नबाट शीध्र नै ब्यूँझी मधेशी-सैनिक सहितको स्वतन्त्र मधेश बनाउने तर्फ अग्रसर हुनका लागि हामी सचेत गराउँदछौं।

र, मानौं सरकारले अहिले भने झैं संघीय-राज्य प्रणाली र निवार्चन क्षेत्रको पुनर्निधारणका कुराहरू लागू गरे तापनि यसले हामीद्वारा पूर्व उठाइएका मधेश र मधेशीहरूको कुन मूलभूत समस्याहरूको समाधान गर्दछ त? के यसले सम्पूर्ण मधेशलाई अखण्ड राखी एउटै राज्य हुने ग्यारेन्टी गर्दछ? के यसले मधेशीहरूको जमीन पुन: नखोसिने र पहाडीहरूलाई मधेशमा नबसाइने कुराको ग्यारेन्टी गर्दछ? स्मरण रहोस्, बाबुराम भट्टराई अहिले नै मधेशको जग्गा हदबन्दी गरेर पहाडीहरूलाई दिने योजना बनाइसकेको छ, विभिन्न अन्तर्वार्ताहरूमा हेर्नुस्। के यसले मधेशका सम्पूर्ण प्रशासकहरू मधेशी नै हुने कुराको ग्यारेन्टी गर्दछ? होइन भने, पछि पनि ती पहाडी अधिकारीहरूद्वारा यस्तै नै कर्फ्यू लगाई मधेशीमाथि आक्रमण गरिराखिनेछ, पहाडी शासकहरूद्वारा यसरी नै शोसन जारी नै रहनेछ। के यसले ऋतिक रोशन कांड र नेपालगंज घटना जस्ता सुनियोजित क्रियाकलापहरू गराई मधेशीहरूमाथि फेरि पनि लुटपाट र आक्रमण नहुने कुराको ग्यारेन्टी गर्छ? के यसले मधेशका काम-काज र जागिरका पदहरू मधेशीहरूलाई नै मिल्ने कुराको ग्यारेन्टी गर्छ? के यसले मधेशको सम्पूर्ण आय र दाता राष्ट्रहरूबाट प्राप्त अनुदानहरूको समुचित भाग मधेशमा लगानी हूने कुराको ग्यारेन्टी गर्छ? कि मधेशलाई खाली विश्वबैंक र ADB को ऋण मात्रै बोकाइने छ? के यसले देशभित्र र बाहिर रहेको मधेशीको पहिचानको समस्यालाई समाधान गर्छ? के यसले मधेशबाट पहाडी सैनिक अड्डाहरू हटाएर पूर्ण मधेशी सैनिक बनाउने कुराको ग्यारेन्टी गर्छ? होइन भने जतिबेला पनि ती सैनिकहरू परिचालन गरेर केन्द्रिय सरकारले जे पनि गर्न सक्छ, जे संविधान पनि लागू गर्न सक्छ, जे नियम पनि बनाउन सक्छ। केन्द्रिय सरकारले आपत्कालीन स्थितिको घोषणा गरी मधेशीहरूको सम्पूर्ण अधिकार मिनटभरिमै निलम्बन गर्न सक्छ। के यसलाई हामीले उपलब्धि ठान्ने? यसलाई हामीले सम्पूर्ण मधेशीहरूले दिएको बलिदान र संघर्षको मूल्य ठान्ने?

आज संयुक्त राष्ट्र-संघ लगायत सारा विश्वको ध्यान नेपालतिर रहँदा त नेपाल सरकार र नेताहरूले मधेशीविरुद्ध यसरी ज्यादती गर्न सक्छन्, आफ्नै प्रशासन र पुलिसद्वारा लुटपाट गराउन सक्छन्, सशस्त्र प्रहरी परिचालन गरी मधेशीहरूको नर-संहार गर्न सक्छन् भने भोलि विश्वको ध्यान पनि नेपालतिर नरहँदा मधेशीहरूमाथि कुन हदसम्मको आक्रमण गराउने होला?

कसैको जन-निर्वाचित बहुमत सरकार नरहँदाको आजको संक्रमणकालीन् स्थितिमा यिनीहरूले यसरी ज्यादती गर्न सक्छन् भने भोलि यिनीहरूको बहुमतको सरकार बन्यो भने मधेशीहरूविरूद्ध के-के निर्णय गर्ने होला?

अहिले यिनीहरूले आफूलाई तानाशाहको शक्ति प्रदान गर्ने संविधान बनाई लागू गर्न सक्छन् भने भोलि यिनीहरूबाट कस्तो कानून र राज्यको अपेक्षा गर्न सकिन्छ त? त्यसमाथि १३००० मान्छेहरूको निर्मम हत्या गरेका हिजोसम्मका माओबादी आतंककारीहरू सबै अब नेपाली सेना हुने कुरा छ, यी हत्यारा सत्ताधारी र सैनिकहरूमाथि कुन आधारमाथि विश्वास गर्न सकिन्छ?

अहिलेको स्थितिमा त प्रचण्ड, बाबुराम र अन्यनेताहरूले शान्तिप्रिय मधेशीहरूलाई आतंककारीको दर्जा दिँदै कुनै पनि वार्ता गर्नबाट साफ अस्वीकार गरी मधेशीविरूद्ध सैनिक परिचालन गर्ने कुरा सोच्छन् भने भोलि यिनीहरू सत्तामा भएको बेला के मात्र गर्न छोड्ला र?



त्यसैले, हामी सबै मधेशीहरू अहिलेका सत्ताधारी नेताहरूले आफ्नो काम निकाल्न गरेको यस घोर षड्यन्त्रबाट बची मधेशलाई स्वतन्त्र घोषित नगरेसम्म आफ्नो संघर्षलाई जारी राख्ने प्रतिबद्धताका साथ अगाडि बढौं। यसका लागि मधेशका सम्पूर्ण जनताहरू, पार्टीहरू, नेताहरू, कार्यकर्ताहरू र संघ-संस्थाहरू सबै एक जुट भई लागौं। हाम्रा पूर्वजहरू दासताविरुद्ध लडेनन्, दासतालाई स्वीकार गरे, जसको सजाइ हामीहरूले भोग्यौं र भोग्दैछौं;

एउटा दास भएर, दोश्रो-दर्जाको नागरिक भएर आफ्नै भूमिमा लाखौं अपमान र हेपाइसहितको गरिमारहित जिन्दगी विताइरह्यौं। तर के हामी आफ्ना भावी सन्ततिलाई, आफ्ना बच्चाहरूलाई पनि त्यही घृणामय जिन्दगी दिन चाहौंला?

आफ्ना बालबालिकाहरूको भविष्यलाई पनि त्यही पहाडी शासकवर्गका हातमा दिई तिनीहरूलाई अनेकौं ठक्कर खानका लागि छोड्न चाहौंला? आफ्ना बालबालिकाहरूको भविष्यलाई त्यही भेदभावपूर्ण अन्धकारमा धकेल्न चाहौंला? होइन भने, आज हामी सबै एकजुट भएर मधेशलाई स्वतन्त्र घोषणा नगरेसम्म आफ्नो आन्दोलन जारी राखौं।

हाम्रो सहपाठी मित्रले पहिला पनि भने झैं कसले कहाँ के वार्ता गर्यो र कुन नेताले के पायो भन्ने कुरातिर नलागी अब हामी आफैंलाई सोधौं, ‘के हामी स्वतन्त्र भइसक्यौं? के मधेश स्वतन्त्र भइसक्यो?’। र, यसको जवाफ ‘अँ’ भनेर सकारात्मक नआएसम्म हामी संघर्ष गर्दै जाऔं, आफ्नो अधिकार र स्वतन्त्रताका लागि लड्‌दै जाऔं। मधेशलाई २३८ वर्षको दासताबाट उन्मुक्त हुन अब कसैले रोक्न सक्ने छैन, मधेश र मधेशीहरूलाई स्वतन्त्र हुनबाट अब कसैले रोक्न सक्ने छैन।

जय मधेश!

आजाद, केन्द्रिय समिति सदस्य
मधेश अधिकार एवं स्वतन्त्रता गठबन्धन




वि. सं. २०६३ फाल्गुण ७ गते सोमबार जारी गरिएको सार्वजनिक-वक्तव्य

वार्ताका लागि उपयुक्त वातावरण बनाउन भनी रोकिएको मधेश आन्दोलनपछाडि बितेका यी दश दिनहरूमा नेपाल सरकार र यसका गठबन्धनहरूले देखाएको असंवेदनशीलता र लापरबाहीले सरकार र यसका गठबन्धनहरू मधेशीको कुनै पनि माँग प्रति गम्भीर नरहेको कुरा पु:न एकपटक पुष्टि गरेको छ। प्रधानमन्त्रीद्वारा जारी गरिएका सम्बोधनहरू र देखावटी संविधान संशोधन मधेशीहरूलाई अल्झाइराख्ने र मधेशीहरूको आवाज दबाउने एउटा षड्यन्त्र बाहेक केही नभएको कुरा यसले छर्लङ्ग पार्दछ। मधेशका वीर शहीदका रगतका टाटाहरू सडकमा सुक्न नपाउँदा-नपाउँदै, लाखौं-लाख मधेशीहरूद्वारा मधेशका गाउँ-गाँउ र शहरहरूमा गुञ्जाइएका ती आवाजका प्रतिध्वनिहरू साम्य हुन नपाउँदै मधेशीहरूको आन्दोलन र न्यायपूर्ण माँगहरू सरकार, यसका संयन्त्रहरू र संचार माध्यमहरूबाट ओझेल हुन पुगेका छन्। मधेशी आन्दोलनलाई रोक्न बन्दुकको भरमा गोली बर्साएर तीस जनाभन्दा बढीको ज्यान लिने र सयौं मधेशीहरूलाई गोलीले घायल बनाएका नर-संहारक हत्याराहरूलाई सरकारले अविलम्ब कडा-कारबाही गर्नु पर्नेमा सरकार र यसका गठबन्धनहरू हालसम्म उत्तरदायित्व लिन समेतबाट पन्छिँदै आई यस बारेमा कुरा गर्न पनि पन्छिँदै आएको छ। मधेशमा आन्दोलनरत समूहहरूसँग वार्ताका लागि हालसम्म पनि कुनै पनि पहल नगर्नुले सरकारको वार्ता प्रस्ताव अन्तर्राष्ट्रिय जगत र अन्य मानवअधिकारवादीma संस्थाहरूको आँखामा धूलो छर्ने र मधेशीहरूको आन्दोलन दबाउने कुचाल मात्र रहेको भन्ने कुरा अझ प्रष्ट पार्दछ। शासन-संयन्त्र निर्माणारत यस घडीमा यदि मधेशीहरूले तीन-हप्तासम्म अबिरल आफ्नो ज्यानसम्मको परवाह नगरी एक जुट भई उठाएका माँगहरू प्रति सरकार र यसका गठबन्धनहरू संवेदनशील हुन सक्दैनन्, र उल्टो आफ्ना सशस्त्र-प्रहरी र सैनिकहरू परिचालन गरी मधेशीका माँगहरूलाई शासकवर्गले आफ्नो पैताला मुनि सदाका लागि कुल्चन चाहन्छन् भने त्यस देश, सरकार र संयन्त्रसँग मधेशीहरूले फेरि‍-फेरि भिखारी बनेर आफ्नो हात फैलाउनु र सरकारका सैनिकहरूको गोली खाइराख्नुको के औचित्य छ र?

कसैको पनि बहुमतको सरकार नभएको र माओवादीहरू पूर्णसत्तामा नभएको बेला आजको यस घडीमा जब सरकारले सैनिक परिचालन गरी मधेशीहरूको आवाजलाई सदाका लागि दबाइदिन चाहन्छन् भने, भोलि पनि मधेशीहरू यसै संयन्त्रभित्र रहेमा दास बन्नु बाहेक अरु के विकल्प हुन आउँछ र?

आज प्रचण्ड सत्तामा नभएको बेला आफ्नो जनसेना लगाएर मधेशीको नरसंहार गराउन चाहन्छ भने भोलि ऊ राष्ट्रप्रमुख भएको बेला, उसले मधेशीहरूको नर-संहार गर्ने सरकारी लाइसेन्स प्राप्त गरेको बेला, उसका चालीस हजार जनसेनाहरू सरकारी अत्याधुनिक हतियारले सुसज्जित रहेको वेला मधेशीहरूसँग मर्नु वा दास बन्नु बाहेक अरु के नै विकल्प बाँकी रहन्छ र?

र यो कुनै अनुमान वा अड्कल होइन, यथार्थ हो; सम्पूर्ण मधेशीहरू एक जुट भई आफ्नो जायज माँग राख्दा

प्रचण्डले मधेशीहरूलाई आतंककारीको दर्जा दिदैं सैनिक र जनसेना परिचालन गर्ने भनेकै हो

, उसका चालीस हजार जनसेनाहरू सरकारी सेना हुने नै भएको छ, ढिलो-चाँडो माओवादीहरू सत्ता पनि कब्जा गर्ने नै छन्, र मधेशीहरूको जमीन खोस्ने र पहाडीहरूलाई मधेशमा सर्वेसर्वा बनाउने जस्ता नीतिहरू पनि उसले सार्वजनिक गर्दै नै आएको छ। यदि आजको तुलनात्मक-सहज परिस्थितिमा यदि मधेशीहरूले आफ्ना जायज माँग राख्दा सयौं गोली खानुपर्छ, आफ्नै घरमा पनि सशस्त्र प्रहरी र पहाडीहरूद्वारा आक्रमण खप्नु परेको छ, आफ्नै घर-जमीन छोडेर हजारौं मधेशीहरू अहिले नै शरणार्थी बन्न बाध्य हुनु परेको छ भने माओवादी वा अन्य पहाडी शासकहरूको सशक्त सत्ता भएको बेलामा मधेशीहरूको जमीन हड्पेर उनीहरूलाई शरणार्थी बनाउन बाध्य गराइयो भने मधेशीहरूले कसरी आफूलाई प्रतिरक्षा गर्न सक्ला त?

र, कसैले नयाँ राजनैतिक परिवेशमा चुनावद्वारा मधेशीको भाग्य फेर्ने स्वप्न देख्छ भने, उहाँहरूलाई पनि चाँडै नै उक्त दिवा-स्वप्नबाट ब्यूँझन आग्रह गर्दछु। नयाँ राजनैतिक परिवेशमा मधेशलाई कैयौं टुक्रामा विभाजित गरिने कुरा लगभग सुनिश्चित छ। सत्ताका गोली खाएर दर्जनौं मधेशीहरू मरिरहेका बेलामा त एकत्र हुन नसकेका मधेशका पार्टीहरू र नेताहरू राज्यसत्ताको अंशवंडाका वेलामा एक हुने कुरा सोच्नु व्यर्थ छ। यसरी नयाँ राजनैतिक परिवेशमा भौगोलिक र राजनैतिक रुपमा पनि छिन्न-भिन्न मधेशीहरू अहिलेको भन्दा पनि अप्रभावकारी स्थितिमा पुग्ने कुरा प्रष्ट देख्न सकिन्छ, र अहिलेको जस्तै पहाडी शासकहरूको चाकडी गरी आफ्नो लागि एक-दुईवटा मन्त्रीको कुर्सी हत्याउने बाहेक मधेशका नेताहरूले मधेशीका लागि केही गर्न सक्ने कुरामा आशावादी हुनु व्यर्थ छ। नयाँ राजनैतिक परिवेशमा प्रवेश गरेको २-३ वर्ष भित्रमा नै मधेशीहरूले नयाँ राज्य-संयन्त्र उनीहरूको कुनै पनि समस्या समाधान गर्न र उनीहरूको लागि कुनै पनि आमूल परिवर्तन ल्याउन कति असक्षम छ भने कुरा अनुभव गर्न सक्नेछन् र राज्य-संयन्त्रबाट शीध्र नै आजित हुनेछन्, र त्यतिबेला कुर्सीका लागी हतारिएका यी मधेशी नेताहरू र पार्टीहरूले मधेशीहरूको तिरस्कार भोग्नु बाहेक के नै बाँकी रहला र? त्यसैले मधेशका विभिन्न पार्टीहरू र नेताहरूलाई मधेशीहरूको आन्दोलनलाई सीट र कुर्सी हत्याउने साधनको रुपमा प्रयोग नगरी सबै मधेशीले आफ्नो अधिकार र स्वतन्त्रता पाउने सही दिशातिर नेतृत्व दिनका लागि प्रयत्न गर्न पनि अनुरोध गर्दछौं। मधेशीहरूले कुनै विजय पाएको छैन, केही थप सीटहरूमा आफ्नो उम्मेदबार उठाउन पाइयो भन्दैमा त्यसलाई झुठो रुपमा मधेशीको विजय भनेर चित्रित गरी आम मधेशीलाई भ्रममा पार्नु र मधेशीको बलिदान र संघर्षसँग खेलबाड़ गर्नु आफैंलाई आत्मघाती सावित हुन सक्छ। मधेशीहरूको विजय उनीहरूले पहाडी शासकबाट सधैंका लागि मुक्ति पाएपछि, आफ्नो दुई सय वर्षको दासताबाट मुक्ति पाएपछि, र मधेशलाई स्वतन्त्र घोषणा गरेपछि मात्र हुनेछ।

दुई सय वर्षदेखि पहाडी शासकहरूले आफ्नो शैक्षिक-प्रणाली, संचार माध्यम र अन्य संयन्त्रहरूद्वारा मधेशीहरूको ब्रेन-वास गरी कतिपय मधेशीहरूलाई आफ्नो पहिचान समेत बिर्सन बाध्य गराएका छन्, कुनै आधार वा तर्क विना नै अखण्डताको नारा दिएर त्यसको आडमा मधेशलाई सघैं शोसन गरिराख्न चाहन्छन्।

सम्झिनु पर्ने कुरा के हो भने मधेश केवल दुई सय वर्षअगाडि नेपालसँग गाँसिएको हो, र मधेशीहरू यसरी दास बनेर नेपालसँग सँधै गाँसिरहने न कुनै दायित्व छ न त त्यसको कुनै औचित्य नै।

ती मधेशी जनताहरू र नेताहरू जो अझै पनि शासकवर्गद्वारा गरिएको व्रेनवाशबाट मुक्त हुन सकेका छैनन्, अझै पनि मन्त्रमुग्ध सुसुप्त अवस्थामा रही होशमा आउन सकेका छैनन्, आफ्नो वास्तविक पहिचान, इतिहास र अधिकारबाट परिचित हुन सकेका छैनन्, र आफ्नो अधिकार र स्वतन्त्र मधेशका लागि अगाडि आउन सकेका छैनन्, तिनीहरू पनि चाँडै नै स्वतन्त्र मधेशका लागि संघर्षमा उत्रने भन्ने कुरामा हामी विश्वास मात्र राख्दैनौं, त्यो कुरा हामी ठोकुवा नै गर्न सक्छौं। केही मधेशीहरू नयाँ राजनैतिक परिवर्तनले केही आशावादी देखिएका हुन सक्छन्, तर त्यो भ्रम अब धेरै दिनसम्म टिक्नै सक्दैन। जसरी विगतका राजनैतिक परिवर्तनहरूले मधेशीहरूको जीवनमा कुनै फरक पार्न सकेनन्, त्यसरी नै यसले पनि मधेशीहरूको कुनै पनि समस्याको समाधान गर्ने छैन, बरु यसले कैयन् मधेश-विरोधी तानाशाहहरूलाई सत्तामा मात्र पुर्‍याउनेछ र त्यसबाट आजित ती मधेशीहरू एक-न-एक दिन स्वतन्त्रता-संग्राममा उत्रन बाध्य हुने नै छन्। फरक यति हो, ती कट्टर मधेश-विरोधी तानाशाहहरू आउनुपूर्व अहिले नै सम्पूर्ण मधेशीहरू स्वतन्त्रताका लागि अगाडि बढछन् भने तुलनात्मक ढंगले शान्तिपूर्ण तरिकाले र कम क्षतिका साथ मधेशीहरूले आफ्नो अधिकार पाउन सक्छन्। त्यसैले, हामी सम्पूर्ण मधेशी जनताहरू, पार्टीहरू र नेताहरूलाई यस कुराको बोध गराउदैं मधेशको अधिकार र स्वतन्त्रताका लागि अहिलेको तुलनात्मक रुपले अनुकूल र उपयुक्त परिस्थितिमा नै संघर्षमा उत्रन आह्वान गर्दछौं।

मधेशको स्वतन्त्रता निर्विकल्प छ। मधेशीहरू पटक‍-पटक यी पहाडी शासकहरूको गोलीको निशाना बनेर भुटिनुभन्दा, मधेशीहरू पहाडी शासकवर्गको हरेक निर्णय पिच्छे संघर्षमा होमिनुभन्दा, एक पटक नै त्यस्तो संघर्ष गर्नु आवश्यक छ, जसले यी पहाडी शासक र उसका गोलीहरूबाट सँधैंका लागि छुटाकार दिलाओस्, जसले गर्दा मधेशीहरू आफ्नो अधिकार फेरि नखोसिने गरी सधैंका लागि पाओस्, जसले मधेशीहरूको गौरवमय इतिहास, पहिचान र संस्कृतिलाई पहाडीहरूको अतिक्रमणबाट सदाका लागि रोकोस्, जसले दुई सय वर्षदेखि बिताइरहेको दासताको जीवनबाट सदाका लागि उन्मुक्त गराओस्, र जसले पहाडी शासकहरूको हरेक षड्यन्त्रलाई सदाका लागि समाप्त पारोस्। एक मात्र र अंतिम निर्णायक संघर्ष, स्थायी स्वतन्त्रता, स्थायी शान्तिका लागि। जय मधेश!!

आजाद, केन्द्रिय समिति सदस्य
मधेश अधिकार एवम् स्वतन्त्रता गठबन्धन

१००  डिग्री फ्यारेन्हाइट 

५०० वर्ष अगाडि को समृद्ध कर्णाली आज विज्ञानं प्रवृद्धि को युगमा गरीब किन?

५०० वर्ष अगाडि को समृद्ध कर्णाली आज विज्ञानं प्रवृद्धि को युगमा, यो २१ औं शताब्दीमा गरीब किन? गरीब भएको होइन, जानी जानी गरीब बनाइएको हो। कर्णाली को गरीबी नितांत कृत्रिम हो। दबाएर राखेको जनता गरीब भएको हो। होइन भने ५०० वर्ष अगाडि कुन बाटो घाटो थियो होला? कुन बिजुली बत्ती थियो होला?

गौरवशाली इतिहास बोकेको कर्णाली ले आज देश भरिका मधेसी जनजाति लाई मार्ग निर्देशन गरेको छ। संघीयता र स्वायत्तता हामी बुझछौं भन्ने सन्देश दिएको छ।

स्वायत्त कर्णाली प्रदेश बिना संघीय नेपालको कल्पना गर्न सकिँदैन।

कर्नालीमा किन हुँदैछ आन्दोलन?
संघीयताको प्रवक्ता बनेको माओवादीले गणतन्त्रसँग संघीयता साट्दा मधेश आन्दोलनले उग्ररुप लिएपछि संघीयताको मुद्दा पुनः स्थापित भएको थियो । ...... यहीबेला संघीयता सम्बन्धमा कर्नालीमा शुरु भएको आन्दोलनले राजधानीमा समेत जुलुश निकाली सकेको छ । ......

राजधानीका धेरै मान्छे कर्नालीका जाहेज मागको नजरअन्दाज लगाउने गर्दछन् । उनीहरु संधै ‘विचारा’ को उपमा दिन चाहन्छन् र पिछडिएको क्षेत्रको रुपमा मात्र चर्चा गराउन चाहन्छन् । अनि भन्छन्, कर्नालीमा आन्दोलन भयो भने पनि राज्यलाई केही फरक पर्दैन ।

..... कर्नाली २००७ सालमा पनि जाग्दो अवस्थामा थियो । त्यतिबेला सचेत पहलकदमी र वैचारिक परिपक्वता भएको भए कर्नालीको हुम्ला र जुम्लामा स्वायक्त क्षेत्र घोषणा गर्न सकिने अवस्था थियो । किनभने हुम्लाको सिमकोटमा किसान जुलुश निस्कदा अड्डामा बसेका गोर्खालीहरु भागेर जुम्ला पुगेका थिए । .....

६ महिना दिन हुम्ला गोर्खालीविहिन भएको थियो । जुम्लामा शेरसिंह नाम गरेका काँग्रेस नेताले प्रशासनमा गर्न थालेको हस्तक्षेप र मनपरीबिरुद्ध अदानसिंह कठायतहरुले प्रशासनलाई नियन्त्रणमा लिई सकेका थिए । यो इतिहास बनी सकेको कुरा हो ।

...... इतिहास बनेको अर्को घटना हो, नेकपा (माओवादी) ले जनयुद्धको नाममा शुरु गरेको आन्दोलनले कर्नालीका सबै जिल्लामा जिल्ला जनसरकार घोषणा गरी सञ्चालनमा ल्याएको तथ्य । ....... जुम्ला, हुम्ला, मुगु र त्यस आसपासका जिल्लाहरुमा आन्दोलन चर्किदै गएको छ । सबैजसो कार्यालयहरु बन्द छन् । उनीहरुको माग स्पष्ट छ– कर्नाली विशेष स्वायत्त राज्य बन्नु पर्दछ । ........ चार दलको राजनीतिक आयोगले बाहिर ल्याएको प्रदेशको खाका राजा महेन्द्रका विज्ञहरुभन्दा घटिया सोचको छ । ...... यस आन्दोलनको अगुवाई यो वा त्यो पार्टीभन्दा पनि स्वतः स्फुर्त रुपमा भएको छ । जनता जाग्दै गएपछि राज्यका सबैखाले हथकण्डा नकामसिद्ध हुने हुन्छ ।


कर्णाली र महोत्तरी: गरीब बनाइएका दुबै
कर्णाली ले पैसा पाउने कुरा
स्वायत्त कर्णाली प्रदेश ले कति पैसा पाऊँछ?
कर्णाली को आंदोलन लाई सम्बोधन गरेको खोइ?
कर्णाली को जायज माग र त्यस माथि दमन
थारु, मगर, कर्णाली का खस ले "अखंड मध्य पश्चिम" मागेका छैनन्
कर्णाली को जनसंख्या ४ लाख
स्वायत्त कर्णाली प्रदेश को माग जायज छ
सुर्खेत र कर्णाली ले खस नेता हरु लाई पढाएको पाठ
कर्णाली

Thursday, August 20, 2015

CK Raut: स्वराजीहरूसंग अपेक्षा र हाम्रो स्थिति बारे

मधेस बन्दको बिशाल प्रदर्शन, कपिलवस्तु

कपिलवस्तुको सदरमुकाम तौलिहवामा संयुक्त मधेशी मोर्चा द्वारा मधेश आन्दोलनको एक दृश्य |Credit: Sanjay Verma JiOriginal Link- https://video-sin1-1.xx.fbcdn.net/hvideo-xpf1/v/t42.1790-2/11917063_926141560777140_1414077937_n.mp4?efg=eyJybHIiOjEzNTAsInJsYSI6NjIwfQ%3D%3D&rl=1350&vabr=750&oh=72635891752f40758889e80f882fa929&oe=55D50B2F

Posted by Madhesi Community on Thursday, August 20, 2015


कपिलवस्तुको सदरमुकाम तौलिहवामा संयुक्त मधेशी मोर्चा द्वारा मधेश आन्दोलनको एक दृश्य |

Dr. CK Raut: स्वराजीहरूसंग अपेक्षा र हाम्रो स्थिति बारे (सके पूरा पढनुहोस्)

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हो, स्वराजीहरूसँग मधेशी जनताका धेरै अपेक्षाहरू छन्। अहिले त मधेशमा कतै केही भयो भने त्यसमा केही गर्नुपर्ने, आगो लागेपनि केही गर्नुपर्ने, बाढी आएपनि केही गर्नुपर्ने, कतै कार्यक्रम हुँदा पनि त्यसमा सहभागी हुनुपर्ने आदि। त्यो स्वाभाविक नै हो, त्यो जनताद्वारा दिइएको जिम्मेबारी हो, त्यो विश्वासका लागि मधेशी जनतालाई हामी धन्यवाद दिन्छौं। त्यो जिम्मेबारीबाट हामी पन्छिने कुरो हुँदै-हुँदैन, बरु हामी त्यो जिम्मेबारी सफलताका साथ निभाउनका लागि दिनरात संघर्षरत छौं, त्यहाँबाट टाढा रहे पनि त्यही दिशातिर अग्रसर छौं।

त्यही सन्दर्भमा, बिगत २-३ हप्तादेखि एउटा प्रश्न हामी समक्ष बारम्बार आइरहेको छ: तपाईंहरू अन्तर्क्रिया, सभा, सम्मेलनम, गोष्ठी, शोकसभा जस्ता कार्यक्रममा बोलाएपनि किन त्यति देखिनुहुन्न ?कुनै अन्तर्क्रिया, सभा-सम्मेलन, गोष्ठी, शोकसभा आदि हुँदा अधिकांश पार्टीका नेताहरू वा अधिकारकर्मीहरू खुर्र हवाईजहाज चढेर पुग्छन्, एकै दिनमा वीरंगज र धनगढी पनि भ्याइदिन्छन्, ४०-५० जना मान्छे जम्मा हुने शायदै कुनै अवसर हातबाट निस्कन दिन्छन्, तर तपाईंहरूको केन्द्रिय स्तरका नेताहरू न त काठमाडौंको कुनै अन्तर्क्रियामा देखा पर्छन्, बाहिर ठूलै सभामा बोलाए पनि जाँदैनन्, किन ? यस सन्दर्भमा केही गुनासाहरू पनि विभिन्न आयोजकहरूबाट सुन्नु परिरहेको छ।

केही दिन अगाडि कैलालीमा थारुहरूको आन्दोलन शुरु हुन लाग्दा गठबन्धनका सहसंयोजकलाई त्यहाँका स्थानीय कार्यकर्ताहरूले बोलाए र उहाँलाई कैलाली जान निर्देश दिइयो, तर उहाँसंग बसको भाडाको लागि ४-५ सय रुपैया न हुँदा र तुरुन्तै कतैबाट त्यति ऋणको रुपमा पनि चांजो मिलाउन न सक्दा, उहाँ कैलाली जान सक्नु भएन। पछि कैलाली नजिकै बर्दिया घर भएको गठबन्धनको प्रवक्ता अब्दुल खानलाई त्यहीं जान भनियो, तर उहाँको हालत पनि त्यस्तै नै रहँदै आएको छ, जसले गर्दा बर्दिया र बांकेमै उहाँले काम जारी राख्नु भयो, तर २-४ सय रुपैयाको अभावमा कैलाली जान सक्नु भएन। र त्यसरी आफ्नो आर्थिक मजबूरीको कारणले काम पूरा गर्न न सके पछि उहाँले २-३ दिन सम्म मेरो फोन समेत उठाउन अप्ठ्यारो मानिराख्नु भयो। र त्यही व्यग्रताको हालतमा उहाँले फोन उठाउनुको सट्टा फेसबुकमा एउटा नोट लेखेर सार्वजनिक रुप मैं जानकारी गराउनु भयो। त्यो यहीं छ। हाम्रो यथार्थ यही नै हो। अब्दुलको प्रतिक्रियाले निकै भावुक बनाएको हुनाले नै सार्वजनिक रुपमा यसबारे केही भन्न खोजेको हुँ कि यो हामी सबै स्वराजीको साझा समस्या हो, साझा दु:ख हो र यसलाई हामी सबैले डटेर सामना गर्दै आफ्नो लक्ष्य तिर बढि राख्नेछौं र अवश्य सफलता हासिल गर्ने छौं। त्यही भएर सबै स्वराजीहरूले आफ्नो हौसला बुलन्द राखौं, उतारचढाव आइराख्छन् तर दृढनिश्चय भएर संघर्ष गर्नाले हामी सफल अवश्य हुनेछौं।

२०७१ साल भदौमा गिरफ्तार हुन भन्दा केही अगाडि झापा देखि बर्दिया सम्म कार्यक्रम गर्ने बेलामा स्वयं मलाई पनि तपाईंहरूले हेर्नु भएकै हो। त्यस चरणको कार्यक्रममा सहभागी भएका र मलाई देखेका स्वराजी मित्रहरूलाई राम्ररी थाहा छ, म कसरी एउटा काँधमा/हाथमा घोषणापत्रको बोरा/कार्टून बोकेर र अर्को हाथमा ब्याग झुन्डयाएर कहाली लाग्दो घाममा कहिले लोकल-बस त कहिले टेम्पु समाउँदै तपाईंहरू समक्ष जिल्ला-जिल्ला पुगेको थिएँ। कहिले कुनै गाउँमा कसैकहाँ गएर बस्थें त कहिले कुनै धर्मशालामा। कहिले कसैले बाइकमा लगिदिन्थ्यो त कहिले कति किलोमीटर घाममा पैदल नै हिँडथे। कहिले दिनको खाना नसीब हुँदैनथ्यो त कहिले खुलामा सुत्दा राती लामखुट्टेले सुत्न दिंदैनथ्यो।

शुरुतिर, २०६८ सालमा स्वराज अभियानको प्रथम-चरणको कार्यक्रम झापा देखि कंचनपुर जिल्ला सम्म गर्दा सँधै त होइन, तर प्राय: रिजर्व गरेको गाडी हुन्थ्यो किनकि त्यतिबेला अमेरिकाबाट भर्खरै फर्केको हुनाले जागिरबाट बचाएको केही पैसा थियो। तर आफूले बचत गरेको सबै पैसा स्वराज आन्दोलन र जनचेतना अभियान मै खर्चि सके पछि विस्तारै त्यो स्थिति बदलिंदै गयो। मसँगको पैसा सकी सके पछि केही दिन 'मधेश को इतिहास' किताबबाट उठेको पैसाले कामलाई सुचारु राखियो। पछि यसमा लागेका साथीहरूले पनि आ-आफ्नो खर्च आफैंले उठाउँदै गए र त्यसरी नै यो आन्दोलन चलिरहेको छ।

अहिले स्वराजीहरूले आफ्नो खर्च आफैं धान्धै आएका छन्। कहिलेकाहीं सक्ने स्वराजी मित्रले नसक्ने स्वराजी मित्रलाई मद्दत गर्छन्। कोही संग बाइक छ भने, आफ्नो बाइक लिएर जान्छन् , नभए साइकल र पैदल नै जागरण अभियान चलाउन हिंडछन्। दिउँसोको खानाको कुनै ठेगान हुँदैन, कहिले हुन्छ त कहिले हामी भोकै खटिराख्छौं। हामी एक-अर्कालाई मद्दत गर्छौ, दु:ख र कठिनाईलाई सँगै हांसेर उडाइदिन्छौं र अगाडी बढिरहन्छौं। किनकि यो आन्दोलन स्वावलम्बनको आन्दोलन हो, आफ्नो स्वतन्त्रताको आन्दोलन हो।

यसले हामीलाई केही महत्त्वपूर्ण फाइदाहरू पनि गरेका छन्: पैसाको लागि पार्टीमा काम गर्ने, पैसा लिएरै झंडा बोक्ने, पैसा लिएर सडकमा आन्दोलन गर्ने आदत लागि सकेकाहरूबाट हामीलाई छुटकारा मिल्छ र जसलाई साँच्चिकै स्वतन्त्र मधेश चाहिएको हो, आफ्नो स्वतन्त्रता चाहिएको हो, त्यही मित्रहरू नै यसमा लाग्छन्। त्यही भएर विभिन्न प्रलोभनका लागि लाग्ने सम्भावना यस आन्दोलनमा छैन। यो नीतिले हाम्रो लागि निस्वार्थ योद्धा कार्यकर्ताहरूलाई ल्याउने 'फिल्टर' को रुपमा गरिरहेको छ, जुन हाम्रो लागि एकदमै आवश्यक छ।

प्राय: अहिले छापिने हाम्रा पर्चा र किताबहरू मधेशको स्वतन्त्रता चाहने मधेशीहरूले छपाई दिएको हो वा आफैं छपाएर बाँटेको हो। हामी सोफ्टकपी उपलब्ध गराईदिन्छौं, स्वराज आन्दोलनमा लागेकाहरू वा सहानूभूति राख्ने आम मधेशी जनताहरूले आफैं छपाउँछन्। त्यो आफैं पनि वितरण गर्छन्, हामीलाई वितरण गर्न पनि उपलब्ध गराउँछन्। अहिले सम्मको रेकर्ड हेर्ने हो भने एउटा कुरा उल्लेखनीय छ: त्यसरी छपाइदिने कुनै ठुलो पैसावाला मधेशी वा व्यापारीहरू वा उद्दोगी होइनन्, सामान्य मधेशी हुन्, जसले आफ्नो परिवार खर्चबाट काटेर भए पनि ५-१० हजार लगाएर मधेशीको उत्थान चाहन्छन्, आफ्नो छोरा-छोरीको लागि दासता र रंगभेद अन्त भएको हेर्न चाहन्छन्। किनकि यस आन्दोलनमा पैसा लगाएर कसैको नेपालमा सांसद् वा मंत्री हुने लक्ष्य पूरा हुन सक्दैन, कुनै उद्योगपतिको वा धनी व्यक्तिको टैक्समा छूट दिलाउने वा स्कूल/कलेज/उद्योग/व्यापार दर्ता गराइदिने, वा अन्य फायदा पुग्ने कुरो छैन, त्यसैले यसमा पैसावालहरूले लगानी गर्ने आधार देख्दैनन्। बरू पीडित, गरीब वा संघर्षशील मधेशीहरूले नै सहानूभूति राखेका छन्, पाँच सय वा हजार रुपैयांको पर्चा भए पनि छपाएर बाँटेका छन्।

र यस्तो स्थितिमा 'हामी पुगे पनि नपुगे पनि, हाम्रो विचार पुगोस्' भन्ने सिद्धान्तमा रहेर हामी स्वराजी काम गर्छौं। त्यही भएर कुनै ठाउँमा जानका लागि पैसा खर्चिनु भन्दा आफ्नो आफ्नो किताब र पर्चा छपाउनमा हामी खर्चिन्छौं। त्यसैगरि हाम्रा कार्यक्रमहरू प्राय: कुनै हल बुक गरेर हैन, जहाँसुकै खाली ठाउँ पायो, त्यही नै गर्छौं - कहिले खुला चौरमा , कहिले कुनै स्कूलमा, कहिले कसैको दलानमा। अन्तर्क्रिया, सभा, सम्मेलनमा जान निकै महँगो छ, धनगढी वा विर्तामोडमा कुनै केन्द्रिय स्तरको नेतालाई पठाउन, खास गरेर बन्दको समयमा, निकै खर्चिलो हुन्छ। बन्दको समयमा हवाईजहाजबाट आउनजान १५-१६ हजार खर्च हुन्छ, त्यति हामी संग यस प्रयोजनको लागि उपलब्ध नै हुँदैन, यदि भए हाले पनि त्यस रकमबाट जहिले पनि हामी किताब र पर्चा छपाउनमा खर्चिन्छौं, DVD बनाउन खर्चिन्छौं ताकि मधेश को इतिहास मधेशी जनता सम्म पुग्न सकोस्, मधेश स्वतन्त्रताको विचार मधेशी जनता सम्म पुग्न सकोस्, मधेशीहरू दासताको सोचबाट उन्मुक्त भई गौरवाशाली वीर मधेशी भनेर गर्व गर्न सकून, मधेशीहरूले आफ्नो भाग्य आफैंले लेख्न सकून्। जुन पार्टी, संघ-संगठन वा NGOहरू संग पैसा छ तिनीहरू हवाईजहाजबाट दिनमै २-३ ठाउँमा पुग्छन्, धनगढी, भैरहवा देखि विराटनगरको कार्यक्रम भ्याउछन् , फोटो खिचाउँछन् शेयर गर्छन्, तर हाम्रो स्थिति फरक छ। त्यही भएर कृपया दु:ख न मानी त्यतिमात्रै बुझिदिनुहोला।

वीर स्वराजी परिचय: अब्दुल खान र इरफान शेख

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(अब देखि यस पेजमा केही स्वराजीहरूको परिचय र उनीहरूको आफ्नो अनुभव पनि समेटने प्रयास हुनेछ )

इरफान नेपालगंजमा डेरा लिएर एउटा सानो पसल खोलेर जीविका चलाउँदै आएका थिए। म मंसीरमा जेलबाट निस्केपछि नेपालगंजमा पनि आमसभा गर्न खोज्दा प्रचार-प्रसार गर्ने क्रममा नेपाल प्रहरीले अब्दुलसँगै उनलाई पनि पक्रे। एक हप्ता भन्दा बढी हिरासतमा अनेकौं यातना दिएर राख्दा पनि दुबैजना अलिकति पनि विचलित भएनन्, बरू अनुसन्धानकर्त्ता र हिरासतमा रहेका अरु बन्दीहरूलाई समेतलाई 'वैरागदेखि बचावसम्म' र 'मधेश स्वराज' किताबका अंश पढाइरहे। बांके प्रशासनले सार्वजनिक अपराध मुद्दा दायर गरे पछि मात्रै धरौटीमा छोडयो। त्यसपछाडि पुन: चैतमा मुखमा कालोपट्टी बाँधेर नेपालगंजमा प्रदर्शन गर्ने बेलामा इरफान र अब्दुल लगायत थप दुईजनालाई प्रहरीले समात्यो। पुन: उनीहरू स्वतन्त्र मधेशका सच्चा सिपाही भएर अडिग भएर लागिरहे। नेपाल प्रहरीले फेरि पनि उनीहरूमाथि सार्वजनिक मुद्दा दायर गर्यो।

त्यतिमात्रै हैन पहाडी घरबेटीले नेपालगंजबाट इरफानको पसल बंद गरेर हटाउन लगायो। त्यसको केही महिनापछि डेरा पनि खाली गर्न इरफानलाई दबाब दिइराख्यो। अंतमा पहाडी घरबेटीले इरफानको सबै सामानहरू डेराबाट बाहिर फालिदिए र उनी नेपालगंजबाट विस्थापित भएर बांकेको गाउँमै बस्न थाले। यतिहुँदा पनि संयमताले काम लिंदै स्वराज अभियानलाई अगाडि बढाइ रहे।

त्यस्तै, अब्दुल शुरु देखि नै मेरो उतारचढाव नजीकबाट नियालेका साथी हुन्। २०६८ सालमा झापादेखि कंचनपुरसम्म गाउँ-गाउँ गएर पहिलो चरणको अभियान संगै सम्पन्न गरेका हुन्। त्यसक्रममा नै अमेरिकाको 'विलासीपूर्ण' जीवनदेखि बाटोको धूलो सम्मको हैसियतमा म कसरी पुगें भनेर नियालेका हुन्, भोक-भोकै कडा घाममा दिनभरि दुर्गम गाउँ तिर सँगै बरालिएका हुन्, पानी परिरहेको रातमा बाहिर संगै रुझ्दै हिंडेका हुन्। त्यही भएर कसैले मेरो बारेमा नराम्रो टिप्पणी गरिदिंदा उसलाई सहन अलि गार्‍हो हुन्छ। आफ्नो जीविका धान्न धौ-धौ पर्दा समेत, नेपाल प्रहरी र प्रशासनले अनेकौं यातना दिंदा समेत विचलित न हुने साथी हुन्। पैदल नै हिंडेर भए पनि, भोक-भोकै बसेर भए पनि स्वराज आन्दोलनलाई निरन्तर अगाडि बढाइ रहेका छन्।








भदौ १ गते प्रहरीले छातीमा गोली हानी राजिव राउतको हत्याको बिरोधमा भोलि पल्ट भारदह, सप्तरीमा निस्केको जनसागर |
सप्तरीमा राउत हत्या बिरोधमा जनसागर

भदौ १ गते प्रहरीले छातीमा गोली हानी राजिव राउतको हत्याको बिरोधमा भोलि पल्ट भारदह, सप्तरीमा निस्केको जनसागर |भिडियो साभार: बिक्रम मण्डल जी Original Link-https://fbcdn-video-m-a.akamaihd.net/hvideo-ak-xft1/v/t42.1790-2/11864663_1619137705023150_1544556558_n.mp4?efg=eyJybHIiOjEzNTksInJsYSI6MjY1N30%3D&rl=1359&vabr=755&oh=4ad7a1da02abc5e69659b4c32d326a98&oe=55D5A24A&__gda__=1440063100_0bab53fdfb2a1fa513d2e86c893f70aa

Posted by Madhesi Community on Thursday, August 20, 2015

Friday, August 14, 2015

स्वायत्त कर्णाली प्रदेश को माग जायज छ

आन्दोलनकारीको नियन्त्रणमा प्रहरी
जुम्ला, श्रावण २८ - ढुंगा हानेको भन्दै आन्दोलनकारीले चार प्रहरीलाई नियन्त्रणमा लिएका छन् । ...... विशेष अधिकार सहितको कर्णाली राज्यको माग गर्दै आन्दालनमा उत्रिएका आन्दोलनकारीहरुलाई जिल्ला प्रशासन अगाडि बसेका ४ प्रहरीले ढुंगा प्रहार गरेका थिए । ..... छतमा बसि ढुंगा प्रहार गर्ने प्रहरीलाई आन्दोलनकारीले नियन्त्रणमा लिएर
स्वायत्त कर्णाली प्रदेश मा
  • प्रहरी कर्णाली को स्थानीय हुन्छ, अहिले रहेको उपनिवेशी प्रहरी झिक्नु पर्ने हुन्छ 
  • कर्णाली को आफ्नै लोक सेवा आयोग हुन्छ 
  • कर्णाली प्रदेश को आफ्नै सर्वोच्च अदालत हुन्छ 
  • नागरिकता पासपोर्ट बनने प्रदेश स्तरमा हुन्छ 
  • जनता सरकारी कार्यालय धाउनु पर्ने सम्पुर्ण प्रदेश भित्र हुन्छ, केंद्र को राजधानी जाने सांसद हरु मात्र हो 
  • यार्चागुम्बा बाट हुने कमाइ मा, डोल्पा आदि ठाउँ मा हुने पर्यटन बाट हुने कमाइ मा प्रमुख रुपले स्थानीय हक़ रहन्छ, केही मात्र केंद्र पुग्छ 
  • १६ प्रदेश बनाउने अनि प्रति व्यक्ति आय का हिसाबले सबै भन्दा पछाडि पर्ने ४ प्रदेश लाई वर्षेणी विशेष पैकेज को व्यवस्था हुनुपर्ने केंद्र सरकार बाट, त्यो कुरा संविधान मैं लेख्ने 
  • सुर्खेत लाई थरुहट प्रदेश को राजधानी र समस्त सुदुर पश्चिम मध्य पश्चिम को व्यापारिक राजधानी (मुंबई) को रुपमा विकास गर्ने 
कर्णाली का जनता ले संघीयता बुझेको सिंघम देउबा र परवेश रावल ले नबुझेको। 

Tharu In Banke
Kailali
Hulaki Rajmarga?
गलत सीमांकन Symptom मात्र हो, रोग गहिरो छ
लिम्बुवान नाम
नेपाल बंद
अमरेश, राजेन्द्र, उपेन्द्र
पश्चिम तराई बंद
Dolpa
आउ हेर्न सड़कमा "शक्ति समीकरण"
सुर्खेत र कर्णाली ले खस नेता हरु लाई पढाएको पाठ
कर्णाली
सुर्खेत: राजनीतिक राजधानी र व्यापारिक राजधानी
सिंघम देउबा र परवेश रावल र तथाकथित सुदूर पश्चिम
नेता लाई नक्शा कोर्न दिनै हुन्न
स्विट्ज़रलैंड मा संघीयता
भारत अमेरिका जस्तो हुँदा मधेस कनाडा बन्ने

छैठौं दिन पनि जुम्ला बन्द

बिशेष अधिकारसहितको कर्णाली राज्यको माग गर्दै सुरु भएको आन्दोलनको छैटौं दिन पनि पुरै कर्णाली बन्द छ । बन्दका कारण जनजीवन कष्टकर बन्दै गएको छ । छ दिन यता हवाइ सेवा सञ्चालन भएको छैन भने आज बिहान गाउँगाउँबाट आन्दोलनकारीहरुलाई सदरमुकाम ल्याउन विहान ५ बजे देखि ९ वजे सम्म छोटो दुरीका यातायात संचालनमा आएका थिए । आन्दोलनका लागि खलंगामा आउनेको संख्या वढ्दै गएको छ ।

...... सरकारी कर्मचारीले मौन जुलुस निकाली रहेका छन् भने गैर सरकारी संस्थाले सिठ्ठी जुलुस गरिरहेको छ । ..... कर्णाली स्वास्थ्य विज्ञान प्रतिष्ठान शिक्षण अस्पतालको ओपीडी सेवा छ दिनदेखि बन्द छ । विशेष अधिकारसहितको स्वायत्त कर्णाली प्रदेशको माग गर्दै आन्दोलन जारी भएको दिनदेखि अस्पतालले दिने सेवा समेत बन्द गराएको छ । ..... अस्पतालको ओपीडी सेवा बन्द भएपछि दैनिक दुई सय भन्दा बढी बिरामीहरु प्रभावित बनेका छन् । ओपीडी सञ्चालन भइरहेको बेला दैनिक दुई सय भन्दा बढी विरामी उपचारका लागि शिक्षण अस्पताल आउने गरेको अस्पतालका प्रशासकीय अधिकृत द्वन्द्वबहादुुर शाहीले बताए । बिशेष अधिकारसहितको स्वायत्त कर्णाली प्रदेश माग गर्दै स्वास्थ्यकर्मीहरु समेत आन्दोलित बनेका छन् ।




Saturday, August 08, 2015

मधेशमा छ प्रदेश होइन, छ प्रदेशमा मधेश बाँडियो

अम्बेडकर को निष्कर्ष

आफ्नो जीवन को उत्तरार्ध मा आएर अम्बेडकर ले भने, "मैले जीवन भर हिन्दु धर्म भित्र दलित को उत्थान को बाटो खोजें। गलत ठाउँ मा खोजें। दलित को उत्थान धर्म परिवर्तन मा छ। " तिनी आफैले हिन्दु धर्म छाड़े, बौद्ध धर्म अपनाए। त्यो दलित लाई स्पष्ट सन्देश हो। गांधी भन्दा अम्बेडकर महान भन्ने हरु टन्न छन।

सीके राउत को अडान अम्बेडकर संग मिल्छ। मधेसी को उत्थान नेपाल भित्र संभव नै छैन भन्ने न हो सीके को अडान?

सीके राउत लाई गैर कानुनी र गैर संवैधानिक किसिम ले हाउस अरेस्ट मा राखिएको छ। त्यस बारे सारा देश मौन छ। त्यसलाई rule of law, अथवा लोकतंत्र र मानव अधिकार को मुद्दा नमान्ने हरु ले लोकतंत्र र मानव अधिकार नमानेको नबुझेको भन्ने स्पष्ट छ। नेपाल अहिले फ़ासिस्ट प्रतिक्रांतिकारी हरुको पकड़ मा छ। तिनले खस समुदाय को प्रतिनिधित्व गर्छ भन्नु खस समुदाय एउटा फ़ासिस्ट प्रतिक्रांतिकारी समुदाय हो भन्नु हो।


First they came for the Socialists, and I did not speak out— Because I was not a Socialist. Then they came for the Trade Unionists, and I did not speak out— Because I was not a Trade Unionist. Then they came for the Jews, and I did not speak out— Because I was not a Jew. Then they came for me—and there was no one left to speak for me.

Wednesday, August 05, 2015

देश मधेसी क्रांति ३ तर्फ लम्केको हो?

सुन्नमा आएको छ कि मस्यौदा संविधानमा रहेको प्रत्यक्षतर्फको १६५ सिटलाई ७५ जिल्लाको ७५ वटा सिट र बाँकी ९० वटालाई जनसंख्याको आधारमा बाँडिने छ । यसरी बाँडिदा मधेशमा २० जिल्लाको २० सिट र बाँकी ९० सिटको जनसंखयाको आधारमा ५० प्रतिशत गर्दा ४५ सिट हुन्छ यसरी मधेसमा ६५ सिट अधिकत्तम पर्नेछ । जुन सरासर जनसंख्याका आधारमा जनप्रतिनिधित्वको सिद्धान्तको विपरित हुन्छ । मस्यौदा सँविधानलले देशको संरचनालाई तीन तहमा विभाजन गरेको छ स्थानीय निकाय, प्रदेश र संघ (केन्द्र) । भनेपछि संविधानले नचिनेको संरचनाको आधारमा सिट वाँडफाँड गर्न पाइन्छ ? जिल्लाको अवधारणा नै नभएको संविधानमा जिल्लालाई आधार मान्दा काठमाडौ र ललितपुर जिस्ता जिल्लालाई समेत १ सिट मात्र दिँदा यँहाको जनसंख्या माथि पनि ठुलो अन्याय हुन्छ । भोली प्रदेशले जिल्लाको संरचना प्रदेशमा नराख्न पनि सक्छ । भारतमा पनि लोकसभाले प्रत्यक्षतर्फको सिट प्रदेशको जनसंख्याको आधारमा बाँडेको छ । जस्तै उत्तर प्रदेशमा ८० विहारमा ४० झारखण्डमा १४ उत्तराखण्डमा ५, सिक्किममा १, नागालैण्ड र मिजरिममा १ सिट रहेको छ । १ सिट न्युनतम मानी बाँकी प्रदेशको जनसंख्याको आधारमा बाँडिन्छ । त्यस्तै नेपालमा न्युनतम एक प्रदेशमा एक सिट रहने गरी बाँड्नु पर्दछ । जिल्लालाई मानी बाँडिएको प्रत्यक्ष तर्फको १६५ सिट अलोकतान्त्रिक, मधेश र काठमाडौमाथि अन्याय र द्घन्द्घको बिउ रोप्ने हुन्छ ।



१५ दिन लाठी जुलुस निकालो और अपना देश बनाओ
The Splitting Of Czechoslovakia
मधेसी क्रांति को कार्यतालिका
मधेस सरकारको अंतरिम संविधान
अहिंसात्मक क्रांति नै हुन लागेको हो
नेपालभित्र समानता को संभावना देखिएन, मधेस अलग देश बन्छ अब

कदम हरु
  • मधेसी सभासद हरु बाट संविधान सभा बाट सामुहिक राजीनामा 
  • बीरगंज अथवा जनकपुर मा भेला र मधेस अलग देश को घोषणा 
  • १५ दिन लाठी जुलुस को कार्यक्रम -- गाउँ गाउँ शहर शहर क़स्बा क़स्बा 
  • दिल्ली तथा विश्व का अन्य राजधानी हरु सँग मान्यता प्राप्ति का लागि पत्राचार 
  • उत्तरी छिमेकी सँग राजदुत आदान प्रदान र द्वैध नागरिकता सन्धि नभएसम्म उत्तरी छिमेकी का सम्पुर्ण नाका बंद 
  • मधेस का सम्पुर्ण सरकारी कार्यालय, प्रहरी चौकी, ब्यारेक कब्ज़ा 
  • अंतरिम सरकार को स्थापना, अंतरिम संविधान को घोषणा, संविधान सभा निर्वाचन को तिथि घोषणा 
  • मधेस को मुद्रा भारत को मुद्रा बराबर 
तर योभन्दा पहिला 
  • संविधान सभा भित्र अंक गणित को लडाइ 
  • त्यस पछि सर्वोच्च र शीतल निवास को लडाइ 
  • अनि मात्र मधेसी क्रान्ति ३ को घोषणा 
मधेस, कोशी, कर्णाली: नारायणघाट, काठमाण्डु, पोखरा: तीन प्रदेश

Tuesday, August 04, 2015

सीके राउत ले लिन सक्ने मोड़ हरु

सीके राउत यस संविधान सभा सँग जुड़ेका मानिस होइनन्। बरु यो प्रक्रिया को आलोचक हुन। यो प्रक्रिया एउटा भुल भुलैया हो, पहाड़ी शासक वर्ग ले समानता दिने कुनै संभावना छैन त्यसै ले नजाने गाउँ को बाटै नसोध्नु भन्ने आलोचना हो सीके को। कंस सिटौला को संविधान मस्यौदा ले त्यस आलोचनालाई १००% साँचो ठहरयायो। मधेसी लाई हतार हतार मा समानता दिएर मधेस अलग देश को एजेंडा लाई निस्तेज पार्नु कता कता पहाड़ी पार्टी का दिग्गज हरुले झन संविधान र कानुन तोड़मरोड़ गरेर  २०१९ साल को महेंद्र पथ वाला नागरिकता कानुन र २०४७ को जस्तो घटिया संविधान र २०३६ को जस्तो "सुधारिएको" एकात्मक व्यवस्था लादन खोजे। अगोमा घ्यु थप्ने काम भएको छ।

मधेसी मात्र होइन, दलित, जनजाति, महिला ले केही नया पाउनु पर्ने बाँकी नै छैन। अब लेखनदास ले भनेको कुरा लेखे जस्तै लेख्ने काम मात्र बाँकी छ। अंतरिम संविधान, पहिलो संविधान सभा मा भइसकेका सहमति हरु, दोस्रो संविधान सभा मा भइसकेका सहमति हरु, ५१% खुला प्रतिस्प्रधा र ४९% आरक्षण को आधारमा राज्य संरचना (state structure) लाई समावेशी बनाउने कानुन -- काम त सबै भइसकेको छ। नया सहमति निर्माण गर्नु पर्ने खासै बाँकी छ जस्तो मलाई लाग्दैन। प्रदेश हरु को नामांकन र सीमांकन मात्र बाँकी हो, थियो। १६ बुँदे सम्झौता ले त्यसको पनि समाधान निकालेको हो। ५ + ४ का आधारमा एउटा संघीय आयोग बनाउने, त्यो विज्ञ हरु रहेको आयोगले सीमांकन गर्ने -- राम्रो रोडमैप हो त्यो। मेरो सुझाव: त्यस आयोग मा एक जना अमरकान्त झा राख्ने। सीमांकन हुन्छ। त्यस पछि प्रदेश सभा को चुनाव र स्थानीय चुनाव एकै चोटि गराइदिहाल्ने। अनि १६ बुँदे सम्झौता अनुसार प्रदेश सभा हरु ले नामांकन गर्ने। अनि त्यसरी सीमांकन र नामांकन सकिए पछि संविधान सभा को काम सकिन्छ।

यहाँ बदमाशी के गर्यो कंस सिटौला ले भन्दा मध्य रातमा डकैती गर्यो। उसले गरेको कुरा गैर कानुनी हो, गैर संवैधानिक हो। एक किसिमको यो कु कै प्रयास हो, कु: बाहुन स्टाइल। प्रदेश हरु को सीमांकन र नामांकन बाहेक सबै काम सकियो भनेको केही पनि काम भएकै छैन जस्तो अवस्था मा पुर्याईदियो कंसे ले। त्यो उसले भित्ता मा टाउको ठोकेको हो। भित्ता फुट्ने होइन, टाउको फुट्ने हो।

अंतरिम संविधान, पहिलो संविधान सभा मा भइसकेका सहमति हरु, दोस्रो संविधान सभा मा भइसकेका सहमति हरु, ५१% खुला प्रतिस्प्रधा र ४९% आरक्षण को आधारमा राज्य संरचना (state structure) लाई समावेशी बनाउने कानुन ---- यति लाई लिपिबद्ध गर्ने हो भने र ५ वर्ष भित्र समावेशी राज्य (state) बनाउने अठोट का साथ संघीयता वादी पार्टी हरुले चुनाव जितेर काम फत्ते गर्ने हो भने मधेस अलग देश को एजेंडा निकै कमजोर भएर जान्छ। मधेसी ले मधेसी क्रांति द्वारा आर्जन गरिसकेको समानता र समावेशीता दोगलाबाजी भएर नपाए त हो मधेस अलग देशको एजेंडा। तर दोगला काम हुँदैन भने त्यो एजेंडा त रहि रहने होइन।

अनि त्यस अवस्थामा सीके राउत को के त? विशुद्ध गांधीवादी बाटो मा हिंडेको सीके राउत, मधेस अलग देश को एजेंडा conditional नै हो, यिनी हरुले समानता र समावेशीता मा दोगलाबाजी गर्छ, यिनी हरुको भर छैन, त्यसैले चलो रे भैया चलो रे बहना ले लो अपना देश भन्ने नारा हो। त्यो नारा conditional नै हो। तर अंतरिम संविधान, पहिलो संविधान सभा मा भइसकेका सहमति हरु, दोस्रो संविधान सभा मा भइसकेका सहमति हरु, ५१% खुला प्रतिस्प्रधा र ४९% आरक्षण को आधारमा राज्य संरचना (state structure) लाई समावेशी बनाउने कानुन --- इनका आधारमा नया संविधान आउँछ र ५ वर्ष भित्र नेपाल सेना, नेपाल प्रहरी, प्रशासन, निजामती सेवा, सम्पुर्ण राज्य संरचना (state structure) लाई समावेशी बनाउने काम हुन्छ भने ----- एजेंडा शिफ्ट हुन्छ।

पृथ्वी नारायण शाह को समयमा सामन्ती व्यवस्था थियो। सेना जो संग छ उ संग शक्ति हुने भन्ने थियो। आफ्नो समय भन्दा अगाडि माओवादी त्यो पृथ्वी नारायण। त्यस सेना को बलमा पृथ्वी नारायण शाह र उसका सन्तानले मधेस आफ्नो हातमा पारे। तर अहिले लोकतंत्र को जमाना हो। अहिले ताकत भनेको संगठन हो। मधेसी ले आफ्नो सीमाना चुरिया पहाड़ सम्म मात्र किन मानने? के मधेसी को संगठन क्षमता त्यति मात्र छ? के मधेसी को संगठन क्षमता को त्यो ceiling हो? राजा जनक ले हिमालय सम्मै राज गरेका। आज को मधेसी ले आफ्नो उत्तरी सीमाना चुरिया पहाड़ लाई किन मानने? पृथ्वी नारायण शाह ले म चुरिया पहाड़ दक्षिण जान्न भनेर कहिले भनेन। राजा जनकले म चुरिया पहाड़ उत्तर जान्न भनेर कहिले भनेनन्। राजा जनक का सन्तति ले आज आफुलाई उत्तर मा चुरिया पहाड़ र दक्षिण मा नेपाल भारत को अप्राकृतिक र कृत्रिम बॉर्डर सम्म सीमित गर्नु हुँदैन। सारा नेपाल माथि शासन गरेर दक्षिण एशिया को आर्थिक एकीकरण गर्नु पर्छ। र त्यहाँ सम्म पुग्ने बाटो हो superior organization र superior vision र superior political program र superior execution of that political program.

सीके राउत ले लिन सक्ने मोड़ हरु बिभिन्न छन।
(४) गोरखालीहरूको आक्रमणपूर्व कोच क्षेत्रमा मोरंग राज्य थियो जहाँ सेनवंशीय राजा कामदत्तसेनको शासन थियो। मोरंग राज्यको आन्तरिक सैनिक विद्रोहमा कामदत्तसेन मारिए पछि चौदण्डी (सप्तरी, सिरहा, उदयपुर) का राजा कर्णसेनले नै मोरंगको राजगद्दी पनि संभाले। गोरखाली संग यिनै कर्णसेनको युद्ध भएको थियो, तर यिनको प्राकृतिक रुपमा नै ई. १७७४ मा अन्यत्र स्वर्गवास भएपछि कर्णसेनका ५ वर्षका नाबालक छोरा राजगद्दीमा बसे। त्यस नाबालकलाई पृथ्वीनारायण शाहले पठाएको दुई जना व्राह्मणले 'खोप' दिने नाममा बिष दिएर षड्यन्त्र पूर्वक मारे र गद्दीको उत्तराधिकारी कोही नभए पछि पृथ्वीनारायण शाहले सेन राजाले बुझाए जतिकै कर बुझाउने शर्तमा अंग्रेजबाट *मोरंगको जमीन्दारी* (याद रहोस् जमीन्दारी) प्राप्त गरे (कहीं कतै जितेका हैनन्)।
(५) गोरखालीहरूको शासन मोरंगमा कायम भएपछि उनीहरूको उग्रदमन कोचहरूमाथि हुन थाल्यो, जसले गर्दा व्यापक रूपमा कोचका मूलवासीहरू विस्थापित भए। यसको विवरण लगभग त्यही समयतिर लेखिएका अंग्रेजी कर्णेल कर्कपैट्रिक र हेमिल्टनका किताबहरूमा देख्न सकिन्छ। गोरखालीहरूद्वारा भएको यही दमनको कारणले नै सन् १८१४-१६ को एंग्लो-गोरखा युद्धमा मधेशीहरूले अंग्रेजको पक्षमा लडेर गोरखालीहरूलाई मधेशबाट खेदेका थिए र अन्तत: सुगौली संधी भएको थियो जस अनुसार नेपालको मधेशमा रहेको सम्पूर्ण जमीन्दारी समेत खोसिएको थियो। पछि १८१६ को दिसम्बरमा पुन: अंग्रेजले २ लाख रूपैयाको साटो पूर्वी मधेश नेपालका राजालाई हस्तान्तरण गरेका थिए।


सीके राउत को राजनीतिक उर्जा लाई मधेस मात्र होइन समस्त देश सम्म पुर्याउन अंतरिम संविधान, पहिलो संविधान सभा मा भइसकेका सहमति हरु, दोस्रो संविधान सभा मा भइसकेका सहमति हरु, ५१% खुला प्रतिस्प्रधा र ४९% आरक्षण को आधारमा राज्य संरचना (state structure) लाई समावेशी बनाउने कानुन, यी सबै लाई लिपिबद्ध गरेर नया संविधान लेख्ने हो। मधेस अलग  देशको जायज एजेंडा मा खर्च भैरहेको राजनीतिक उर्जा समस्त नेपाल को आर्थिक क्रान्ति मा खर्च हुने बाटो खुल्छ।

मजाको कुरा के छ भन्दा सीके राउत को संगठन ले मधेस मात्र खाए सारा देश आफसेआफ थाप्लो मा आइपुग्छ। 

Saturday, August 01, 2015

मंत्री ले हिंसा को धम्की दिने माफियावादी पार्टी मा मात्र हुन्छ

मंत्री ले हिंसा को धम्की दिने माफियावादी पार्टी मा मात्र हुन्छ।

Rudra Pandey: लाल बाबुको संकुचित विचारधारा
Rudra Pandey Would Be An Excellent Directly Elected Prime Minister



देश टुक्रयाउँछु भन्नेहरुको टाउको पनि टुक्रिन सक्छ : मन्त्री पण्डित
कार्यक्रममा बोल्दै मन्त्री पण्डितले नागरिकता लिदैमा कुनै पनि व्यक्ति देशको नागरिक हुन नसक्ने र नागरिक हुनको लागि देश भक्त हुनु पर्ने बताए । .... कुनै पनि नेता, कर्मचारीहरुमा देश भक्त छैन भने तिनीहरु नेपालका नागरिक होईनन् । भाषणकै क्रममा

मन्त्री पण्डितले भने, ‘देश टुक्रयाउँछु भन्नेहरुको टाउको पनि टुक्रिन सक्छ ।’

दलितका आन्दोलन कार्यक्रम तय
दलित अगुवा र नागरिक समाज मिलेर बनेको दलित अधिकार संघर्ष समितिले सभासद र शीर्ष नेताहरूलाई हुलाकबाट ‘प्रेमपत्र’ पठाउने भएको छ । मस्यौदामा दलित हक बदनियतपूर्वक काटिएको भन्दै संघर्ष समितिले पत्र पठाउने निर्णय गरेको हो । .... शनिबार दिउँसो ४ बजे माइतीघरदेखि नयाँ बानेश्वरसम्म आँखामा पट्टी बाँधी जुलुस प्रदर्शन गर्ने, आइतबार उक्त स्थानमा लाल्टिन जुलुस गर्ने, सोमबार सिठी जुलुस, मंगलबार संविधानसभाअगाडि धर्ना र विरोधसभा आयोजना गर्ने संघर्ष समिति संयोजक विनोद पहाडीले कान्तिपुरलाई जानकारी दिए । साउन १९ र २० गते विरोधसभा जारी राख्दै सबै दलका शीर्ष नेता र

६ सय १ सभासदलाई हुलाकमार्फत ‘प्रेमपत्र’ पठाएर विरोध गर्ने

उनले बताए ।
देउवालाई मोदीको यस्तो सुझाव



योभन्दा अर्को नौटंकी के होला?
‘जनतालाई सहभागी गराइएको छ, उनीहरुबाट सुझाव लिएका छौं’ भन्ने नाममा मूलतः आफ्नो एजेन्डालाई वैधता प्रदान गर्ने माध्यमको रुपमा सहभागितालाई अहिले व्यापक रुपमा प्रयोग गर्न थालिएको छ । तर साँच्चैको सहभागिता यसलाई भनिँदैन । ..... वास्तवमा सहभागिता भनेको जनताको ‘इन्पुट’बाट जनताले एजेन्डा तय गर्न पाउनुपर्छ, जनताले छलफल गर्न पाउनुपर्छ र जनताले निर्णय गर्न पाउनुपर्छ भन्ने हो । यस किसिमको सार्थक सहभागिताले चाहिँ परिवर्तन सम्भव हुन्छ तर देखाउनका लागि गरिने ‘सहभागिता’ आफ्नो एजेन्डालाई वैधता मात्र प्रदान गरिने हो । ..... केवल सभासद र कर्मचारीले टिपेको भरमा, आफ्नो अनुकूलताका सुझावलाई ग्रहण गर्ने, अरु सुझावलाई रद्दीको टोकरीमा फाल्ने कार्य वास्तविक सहभागिता हुन सक्दैन । ..... साउन ४ र ५ गते सुझाव लिने क्रममा भएको व्यापक विरोधलाई एकछिन बिर्सने हो भने इमेल, चिठी, फोन आदिबाट आएका सुझावलाई कसरी विश्लेषण गर्ने त ? त्यसका लागि त समय लाग्छ, संरचना जरुरी हुन्छ र वैधानिक प्रक्रिया आवश्यक हुन्छ । ...... अहिले त दुई दिनमा आएका सुझावका आधारमा संविधानसभामा प्रतिवेदन बुझाइएको छ, सुझावका बोराहरु पनि नखोल्दै । जनताबाट आएका सुझाव विश्लेषण गर्नका लागि पाँच दिन पर्याप्त समय होइन ..... राज्य र समाजमा हालीमुहाली गरिरहेको जुन वर्ग छ उसले जनताको राय सुझाव लिएको नौटंकी मात्र गरिरहेको हो यो । जनताबाट दुई दिन राय सुझाव लिने कुरा आफैमा अति अपर्याप्त समय हो, नत यस्तो झरा टार्ने काम लोकतान्त्रिक प्रक्रिया नै हो । ..... राय सुझाव संकलनका क्रममा गाउँगाउँ गइएको छैन, सदरमुकाम अथवा सहरकेन्द्रित भएर सुझाव संकलन गरिएको छ । गाउँमा भुइँचालो, बाढीपहिरो, खेतीपातीले आक्रान्त पारेको बेला गरिएको यस्तो सुविधाभोगी अभ्यासले जनसहभागितालाई बेवास्ता गरेको छ । ..... राष्ट्रपति डा. रामवरण यादवका दाजुले पनि खस नेपाली भाषामा लेखिएको संविधान राम्ररी बुझेनन् रे । भनेपछि गैरखसभाषी अन्य जनताले संविधानका बारेमा कति बुझे र के सुझाव दिए होलान् ? ..... सीमान्तकृत जनताले सुझावै दिन पाएका छैनन् । दिइएका सुझाव पनि ठूला दलहरुले ग्रहण गर्ने छाँट देखाइरहेका छैनन् । ......

के गाउँका जनताका लागि यो संविधान होइन ? हो भने उनीहरुबाट किन सुझाव संकलन गरिएन ? वास्तविक जनमत संकलन नगरिएकै कारण तराई–मधेश र पहाडका थुप्रै जिल्लामा प्रतिकार पनि भयो । खास जनमत त्यहाँ देखिएको छ ।

..... स्वयं सत्ताधारी दलकै केही नेताले यसलाई नौटंकीको संज्ञा दिइसकेका छन् । ....... जनताले बोल्ने सबैजसो मातृभाषामा मस्यौदा गाउँगाउँ पठाउनुपर्थ्यो । संविधानमा भएका कानुनी भाषालाई सरलीकृत गरेर मस्यौदाबारे जनतालाई बुझाउनुपर्थ्यो । तर अहिले त जनताले मस्यौदा नै देख्न नपाउने अवस्था रह्यो ।

कस्तोसम्म भने ९० प्रतिशतभन्दा बढीले निर्वाचित कार्यकारीका पक्षमा दिएको अभिमतलाई सत्तारुढ दुई दलले अस्वीकार गरिरहेका छन् । योभन्दा अर्को नौटंकी के होला ?

Wednesday, July 29, 2015

In The News: Balwa Bazar, Mahottari

सीमाङ्कनसहितको संविधान जारी हुन्छः देउवा
उनी दिल्लीका साथै उत्तराखण्डको पनि भ्रमण गर्नेछन्।


महोत्तरी दिनभर तनावग्रस्त, सात वटा गाडीमा तोडफोड र आगजनी
गाडी तोडफोड र ढुङ्गामुढा गर्नमा संलग्न रहेका महोत्तरी पडौलका सञ्जयकुमार यादव र बलवा २ का सत्यनारायण यादवलाई मंगलवार राति प्रहरीले पक्राउ गरिएपछि उनको रिहाईको माग गर्दै प्रर्दशन गरी प्रहरीमाथि ढुङ्गामुढा प्रहार गर्न थालेपछि बुधवार दोहोरो झडप शुरु भएको हो । ...... प्रहरीले भीडलाई नियन्त्रणमा लिन ६ सेल अश्रुग्यास,३ राउण्ड हवाई फायर र पटकपटक लाठीचार्ज गरेको थियो। प्रर्दशनकारीको भीड बढ्दै गएपछि थप मदतका लागि दंगा नियन्त्रण कार्यालय ढल्केवरबाट आईरहेका दंगा प्रहरीको बा.१ग.२१०३, बा.१ग.२०९३ नम्बरको दुईवटा वनटन गाडी र ईलाका प्रहरी कार्यालय बलवाको बा.१झ.६१९ नम्बरको जीपमा तोडफोड गरका छन्। जलेश्वर बर्दिबास सडकखण्डमा चल्ने २ वटा बसमा पनि तोडफोड र ३ वटा मोटरसाईकलमा आगजसमेत गरेका छन्। ..... झडपका कारण दिनभरि बलवा बजार बन्द भयो। बलवाको स्थिति तनावग्रस्त रहेको छ। जलेश्वर बर्दिवास सडक खण्डमा चल्ने यातायातसमेत ठप्प भएको थियो। इलाका प्रहरी कार्यालय बलवा अगाडि दुई जनालाई छाडिनुपर्ने माग राख्दै प्रहरी र स्थानीय प्रशासन विरुद्र आन्दोलनकारीहरूले नारा लगाइरहेका थिए। ...... यस अघि मंगलवार राति प्रहरी र स्थानीयबीच बलवाबजारमा झडप हुँदा ५ प्रहरीसहित २५ सर्वसाधारण घाइते भएका थिए। बलवा चौकी अघि सवा ९ बजेतिर भएको झडपमा प्रहरी हवल्दार अनिरुद्र गुप्ता घाइते भएको स्थानीयले बताए। .... बलवा ६ का ५५ वर्षीय रामसुन्दर यादवको अवस्था गम्भीर छ । टाउकोमा चोट लागेका यादवको उपचार जनकपुर अञ्चल अस्पतालमा भइरहेको छ। ......

जिल्ला प्रहरी कार्यालय महोत्तरीका प्रहरी उपरीक्षक सौरभ राणाका अनुसार सिके राउतको श्रव्यदृश्य सार्वजनिक स्थलमा प्रदर्शन गर्न लाग्दा तनाव भएको हो। सो दृश्य चौकी अगाडि नदेखाउन प्रहरीले आग्रह गर्दा ढुंगामुढा भएको थियो।

....... एक्कासि ढुंगामुढा गर्न थालेपछि आत्मरक्षाका लागि प्रहरीले चार एक राउण्ड गोली चलाइएको हो। केही सेल अश्रुग्यास पनि छाडिएको थियो। सामाजिक परिस्थिति भड्काउने खालको सिके राउतको भाषणको दृश्य सार्वजनिक स्थलमा देखाउन खोजिएको अनुमान प्रहरीको छ। ...... प्रहरीले सी.के.राउतको भिडियो बन्द गराएर प्रोजेक्टर र सीडि नियन्त्रणमा लिएपछि आक्रोशित भीडले ईलाका प्रहरी कार्यालय बलवामा ढुंगामुढा गरेका थिए। ..... पटकपटक स्थानीयवासी र प्रहरीबीचमा झडप भएपछि सो गाउँमा ब्यापक रुपमा सशस्त्र र नेपाल प्रहरी परिचालन गरिएको छ। इलाका प्रहरी कार्यालय बलवाका इन्चार्ज सहायक प्रहरी नायब निरीक्षक एकराज सुवेदीले अनुमति बिना सिडी क्यासेट चलाइरहेकाले रोक्न जाँदा स्थानीयवासीले विरोध जनाएको र प्रहरीमाथि ढुङ्गामुढा गर्न थालेपछि स्थितिलाई नियन्त्रणमा लिनका लागि लाठीचार्ज र हवाई फायर गर्नुपरेको बताए ।
सिके राउतको भाषणको भिडियो हेर्दा प्रहरी र स्थानीयवासीबीच झडप
२५ घाइते, एकजनाको अवस्था गम्भीर ...... झडपमा परी करिब २५ जना स्थानीयवासी घाइते भएका छन् भने एक जनाको अवस्था गम्भीर रहेको छ। मङ्गलबार राति बलुवा बजारको

विद्यालय प्रांगणमा डा सिके राउतको भाषणको भिडियो प्रदर्शन क्रममा

सो झडप भएको हो। भिडियो देखाइरहेको अवस्थामा प्रहरीले स्थानीयवासीलाई रोक्न खोज्दा स्थानीयवासीले प्रहरीमाथि ढुङ्गामुढा गरेका थिए। ......... प्रहरीमाथि ढुङ्गामुढा गर्न थालेपछि स्थितिलाई नियन्त्रणमा लिने क्रममा प्रहरीले स्थानीयवासीमाथि लाठीचार्ज गर्नुका साथै एक राउन्ड हवाई फायर गरेको थियो । प्रहरीको लाठीचार्जबाट करिब २५ जना स्थानीयवासी घाइते भएका छन् भने बलुवा–६ का ६० वर्षीय रामसुन्दर यादवको अवस्था गम्भीर रहेको छ । टाउकोमा चोट लागेका यादवको उपचार जनकपुर अञ्चल अस्पतालमा भइरहेको छ । ........ सो गाउँको अवस्था तनावग्रस्त रहेको स्थानीयवासीले बताएका छन्। पटकपटक स्थानीयवासी र प्रहरीबीचमा झडप भएपछि आवश्यक सहयोगका लागि जिल्ला प्रहरी कार्यालय महोत्तरीबाट थप सुरक्षाकर्मी बोलाइएको छ। ...... स्थानीयवासीले प्रहरीको एउटा भ्यानमा तोडफोड गरेका छन् भने ढुङ्गामुढा गर्नमा संलग्न रहेका महोत्तरी परौलथानका सञ्जयकुमार यादव र बलुवाका सत्यनारायण यादवलाई पक्राउ गरिएको स्थानीयवासी रामदेव यादवले जनाएका छन्। ...... इलाका प्रहरी कार्यालय बलुवाका इन्चार्ज सहायक प्रहरी नायब निरीक्षक योगकुमार सुवेदीले अनुमति बिना सिडी क्यासेट चलाइरहेकाले रोक्न जाँदा स्थानीयवासीले विरोध जनाएको र प्रहरीमाथि ढुङ्गामुढा गर्न थालेपछि स्थितिलाई नियन्त्रणमा लिनका लागि लाठीचार्ज र हवाई फायर गर्नुपरेको जानकारी दिए।

Tuesday, July 28, 2015

महोत्तरीमा डा. सी. के. राउतको डिविडी हेरिरहेका मधेशी जनतामाथि प्रहरीले गोली चलायो

बामे हेग जाने बाटो यही हो। मानव अधिकार को हनन गर्ने अनि हेग जाने। Freedom of speech, right to peaceful assembly लाई अवहेलना गर्ने, अनि हेग जाने।



महोत्तरीमा डा. सी. के. राउतको डिविडी हेरिरहेका मधेशी जनतामाथि प्रहरीले गोली चलायो, ३ स्थानीय गिरफ्तार, प्रहरी दमनमा ६० वर्षका वृद्ध गम्भीर घाइते भएर अंचल अस्पतालमा भर्ना २०७२ साउन १२ गते मंगलबार, जलेश्वर। महोत्तरीको बलुवा बजारमा करीब ८ बजे बेलुका डा. सी. के. राउतको डिविडि हेरिरहका जनतामाथि नेपाल प्रहरीले एक्कासि आएर कुनै कुरै नगरी सीधै लाठी चार्ज गर्दै पर्दा तथा डिविडि समेत तोडफोड गरेको छ। ४-५ जना प्रहरीले घेरा हाली अंदानी ६० वर्षका नाथु यादवको कुटपीट गर्दा उहाँको टाउको फुटेर गम्भीर घाइते भई अंचल अस्पतालमा भर्ना समेत हुनु परेको छ भने संजय यादव लगायत थप २ जना स्थानीयलाई प्रहरीले पक्राऊ गरी जलेश्वर लगेको छ। प्रहरीको दमन पछि करीब पाँच सय जना स्थानीयले आएर प्रतिकार गर्ने क्रममा प्रहरीले १ राउन्ड हवाई फायर गर्नुका साथै अश्रुग्यांस समेत छोडनु परेको थियो। राती ११ बजे सम्मै पनि करीब १५०-२०० को संख्यामा उपस्थित जनता र प्रहरीबीच झडप र नाराबाजी जारी रहेको थियो। स्थानीय र प्रहरीबीच वार्ता समेत भइरहेको समाचार आएको छ।

त्यसैगरि मंगलबार नै बांकेको हिर्मिनियामा समेत नेपाल प्रहरीले स्वतन्त्र मधेश गठबन्धनको अन्तरक्रिया कार्यक्रम बिथोलेको छ। कार्यक्रममा उपस्थित करीब ५०० जनालाई तितरबितर पारे पछि सो कार्यक्रम अन्यत्रै लगेर गरिएको थियो।

पक्राऊ परेकाहरूलाई अविलम्ब रिहा गर्न मांग गर्दै गठबन्धन शान्तिपूर्ण कार्यक्रममा भएको प्रहरी दमनको घोर-भर्त्सना गर्दछ। साथै अभिव्यक्ति स्वतन्त्रता, शान्तिपूर्ण भेला हुने स्वतन्त्रता तथा संगठित हुने अधिकारको नेपाल सरकारद्वारा बारम्बार हनन भइरहेको कुरा सम्पूर्ण मानवअधिकारवादी, नागरिक समाज, पत्रकार तथा कुटनितिज्ञहरूलाई ज्ञात गराउन चाहन्छौं र सोको रक्षाको लागि पहल गर्नुहुन अनुरोध पनि गर्दछौं।

तस्वीर: गिरफ्तार भएका संजय यादव
कैलाश महतो, सहसंयोजक
स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन
फोन: +977-9847038322
इमेल: save.madhesh@gmail.com


















Thursday, July 23, 2015

बीपी कोइराला ले गरेको सबैभन्दा ठुलो गलती

बीपी कोइराला को अर्को पक्ष
सिक्किमका मुख्यमन्त्री नरबहादुर भण्डारीजस्तै बीपीलाई नेपालमा स्थापना गराउने कुरो तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गान्धीबाट आएको र भारतमै बसेर नेपालको प्रजातन्त्र स्थापनाको लडाइँ लडिरहेका बीपी त्यसपछि भारतको नियतबाट झस्केको अनुमान पनि गरिन्छ।

सिक्किम भारत को उपनिवेश होइन। भारत लोकतन्त्र हो। सिक्किम त्यस लोकतंत्र को एक हिस्सा हो। सिक्किम को सांसद यदि त्यति नै सक्षम छ भने भोलि त्यो सारा भारतको प्रधान मंत्री सम्म बन्न सक्ने हुन्छ। त्यसो भएको खण्डमा सिक्किमले सारा भारत माथि शासन गर्यो भन्ने अर्थ लाग्दैन। त्यस व्यक्तिले सिक्किम लाई मात्र होइन सारा भारत लाई हेर्नु पर्ने हुन्छ। सारा भारत का लागि राम्रो गर्नु पर्ने हुन्छ।

नेपालमा लोकतंत्र फर्काउने बाटो सबैभन्दा राम्रो त्यही थियो जुन इंदिरा गांधी ले देखाइन। नेपालमा त्यति बेला नै राजतन्त्र समाप्त हुन्थ्यो। तर बीपी लाई कम्निष्ट हरुले अर्ध सामन्ती भनेर त्यसै भनेका होइनन्। राजा सामन्ती, बीपी अर्ध सामन्ती। राजसँग मेरो घाँटी जोडिएको छ भन्नु अर्ध सामन्ती ले बोल्ने भाषा हो।

नेपाल भारतको एउटा राज्य हुन्थ्यो। नेपाल ले दिल्ली मा १३ वटा सांसद पठाउँथ्यो। बीपी कोइराला ले जय प्रकाश नारायण जस्ता सँग क्रियाशील राजनीतिक सहकार्य गर्न पाउने थिए। आखिर प्रवासमा बनारसमा बीपीले गर्ने गरेको त्यही होइन?

नेपाली काँग्रेस भित्र का बीपी का फैन हरु ले बीपी लाई विश्व नेता को रुपमा जुन आकास्ने गर्छन --- त्यस कुरामा दम छ अथवा थियो भने बीपी कोइराला नेपालका मुख्य मंत्री होइन सारा भारत कै प्रधान मंत्री हुन सकथे --- क्षमता को कुरो। लोकतन्त्रमा क्षमता को कुरो हुन्छ।

बीपी कोइराला ले गणतंत्र बिनाको लोकतंत्र को कुरा गरे। त्यो लोकतंत्र नबुझेको कुराको प्रमाण हो। बीपीले लोकतंत्र नबुझेको कुराको अर्को प्रमाण के भन्दा नेपाल लाई सिक्किम बनाउने कुरा नमान्नु। त्यो चीनले तिब्बत खाए जस्तो हुने थिएन, र अहिले पनि हुँदैन।

अहिले पनि नेपाल लाई भारतको राज्य बनाउनु नै नेपालको आर्थिक विकास का लागि सबै भन्दा राम्रो हो।  होइन भने भारत अमेरिका बन्छ, नेपाल छेउ मा भएर पनि अझै दुई चार पुस्ता हेटी भएर बस्छ। 

बीपी कोइराला, प्रचण्ड र नेपालको राष्ट्रियता
राष्ट्रियता भनेको के?
बीपी को संवैधानिक राजतन्त्र प्रतिको रटान गलत थियो
लोकतंत्र, बीपी, संघीयता, गजेन्द्र नारायण सिंह
गिरिजा लोकतंत्र प्रति गद्दार मान्छे
लोकतंत्र र संघीयता: Atom र Molecule
नेपाली काँग्रेस मा राणा शासन
नेपाली काँग्रेस र मधेसी समुदाय
मधेसी किल्ला र मधेसका २२ जिल्ला र अमरेश
मधेसी क्रान्ति ३ कति बेला र केका लागि?