अध्याय 4: सरकार द्वारा संचालित बैंकिंग प्रणाली
निजी बैंकों का उन्मूलन और सरकारी बैंकिंग मॉडल
वर्तमान वैश्विक बैंकिंग प्रणाली में निजी और सार्वजनिक बैंकों का मिश्रण देखने को मिलता है। लेकिन, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकारें पूरी तरह से बैंकिंग प्रणाली का नियंत्रण अपने हाथों में ले लें, तो वित्तीय स्थिरता और आर्थिक समावेशन में वृद्धि हो सकती है।
निजी बैंकों का उन्मूलन
निजी बैंकों को समाप्त कर केवल सरकारी बैंकिंग मॉडल अपनाने की अवधारणा एक क्रांतिकारी परिवर्तन होगा। इस मॉडल के तहत:
- सभी बैंकिंग सेवाएँ केवल सरकारी संस्थानों के माध्यम से संचालित होंगी।
- ऋण वितरण और वित्तीय सेवाएँ सरकारी नियंत्रण में होंगी, जिससे वित्तीय संकट और अस्थिरता की संभावनाएँ कम होंगी।
- लाभ-आधारित निजी बैंकिंग प्रणाली के स्थान पर सेवा-आधारित बैंकिंग प्रणाली को बढ़ावा दिया जाएगा।
सरकारी बैंकिंग मॉडल के प्रमुख तत्व
- केंद्रीकृत वित्तीय नियमन: सरकार सभी बैंकिंग गतिविधियों को नियंत्रित करेगी और मॉनीटर करेगी।
- सार्वजनिक हित पर केंद्रित बैंकिंग: मुनाफे से अधिक नागरिकों की वित्तीय आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी जाएगी।
- न्यूनतम ब्याज दरें: सरकारी बैंकिंग मॉडल में ऋण पर ब्याज दरें नियंत्रित होंगी ताकि ऋण भार कम किया जा सके।
- सभी के लिए बैंकिंग सेवाएँ: ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए विशेष योजनाएँ लागू की जाएंगी।
वित्तीय स्थिरता और सरकार की भूमिका
सरकारी बैंकिंग प्रणाली के समर्थकों का मानना है कि यह मॉडल वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा दे सकता है और आर्थिक अस्थिरता को कम कर सकता है।
वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के उपाय
- बैंकिंग संकट से बचाव: निजी बैंकों की असफलता से उत्पन्न वित्तीय संकट से बचने के लिए सरकार सीधे तौर पर बैंकिंग को नियंत्रित कर सकती है।
- मुद्रा नीति का प्रभावी कार्यान्वयन: सरकारी बैंकिंग के माध्यम से केंद्रीय बैंक द्वारा मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित किया जा सकता है।
- अस्थिरता और अनिश्चितता की रोकथाम: सरकार के नियंत्रण में होने से अति-जोखिम भरी बैंकिंग गतिविधियों को रोका जा सकता है।
- कर्ज माफी और राहत योजनाएँ: संकट के समय नागरिकों को राहत देने के लिए विशेष सरकारी योजनाओं को लागू करना आसान होगा।
संभावित जोखिम और सरकारी बैंकिंग की सीमाएँ
हालांकि, सरकारी बैंकिंग मॉडल को अपनाने के कई फायदे हैं, लेकिन इसके साथ कुछ जोखिम और सीमाएँ भी जुड़ी हुई हैं।
संभावित जोखिम
- नवाचार में कमी: निजी बैंकिंग प्रतिस्पर्धा बढ़ाती है, जिससे नवाचार को बढ़ावा मिलता है। सरकारी बैंकों के प्रभुत्व से यह नवाचार धीमा हो सकता है।
- अधिकारियों का दुरुपयोग: यदि समुचित पारदर्शिता और जवाबदेही नहीं हो, तो सरकारी नियंत्रण वाले बैंकिंग संस्थान भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का शिकार हो सकते हैं।
- ब्याज दर निर्धारण में जटिलता: एक संतुलित ब्याज दर निर्धारित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि सरकारी बैंकिंग नीतियाँ राजनीतिक दबावों के अधीन हो सकती हैं।
- सुधार और अनुकूलन की गति: सरकारी प्रक्रियाएँ अक्सर धीमी होती हैं, जिससे तेजी से बदलते वित्तीय परिवेश में अनुकूलन कठिन हो सकता है।
सरकारी बैंकिंग की सीमाएँ
- पूंजी की कमी: सरकार द्वारा सभी बैंकिंग गतिविधियों को वित्तपोषित करना कठिन हो सकता है।
- ग्राहक सेवा में कमी: निजी बैंकों की तुलना में सरकारी बैंकों की ग्राहक सेवा कम प्रभावी हो सकती है।
- अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का प्रभाव: वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धात्मकता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- प्रबंधकीय कुशलता की जरूरत: सरकारी बैंकिंग प्रणाली को प्रभावी ढंग से चलाने के लिए कुशल प्रबंधन और प्रशासनिक दक्षता आवश्यक होगी।
निष्कर्ष
सरकारी बैंकिंग प्रणाली एक महत्वाकांक्षी विचार है जो वित्तीय स्थिरता, पारदर्शिता, और समावेशन को बढ़ावा दे सकता है। हालांकि, इस मॉडल को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए मजबूत नीतिगत ढाँचे, कुशल प्रशासन, और तकनीकी नवाचार की आवश्यकता होगी।
सरकार द्वारा संचालित बैंकिंग प्रणाली, यदि पारदर्शी और कुशल रूप से लागू की जाए, तो यह एक संतुलित और स्थायी आर्थिक प्रणाली बना सकती है। लेकिन, इसके लिए एक लचीली और नवाचार-समर्थक दृष्टि अपनाने की जरूरत होगी ताकि यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ तालमेल बनाए रख सके।
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