Saturday, February 27, 2021

संसद अधिवेशन शुरू हुँदा

संसद पुनर्स्थापना पछि अब के हुन्छ भन्ने प्रश्न खड़ा भएको छ। 

जसरी नेपालको संविधानले संसद विगठन गर्न नमिल्ने ठोस प्रावधान राखेको छ त्यसै गरी पार्टी फुटाउन नपाउने ठोस प्रावधान राखेको छ। पार्टी भित्र गुटबंदी होला, भएको पनि छ। तर पार्टी फुटाउन बड़ा गारहो पारिएको छ। मधेसी पार्टी हरु फुटेर पहाड़ी सत्ताधारीहरु त्यति सारहो चिन्तित भएका रहेछन। 

पार्टी फुटाउन चाहनेले संसदीय दलमा पनि र पार्टी केन्द्रीय समितिमा पनि कमसेकम ४०% देखाउनु पर्ने भनिएको छ। पुरानो संविधानमा संसदीय दलको ४०% भए पुग्ने भन्ने थियो। त्यही पुरानो नियम ल्याउन ओली ले अध्यादेश ल्याएका हुन र व्यापक विरोध भए पछि फिर्ता पनि लिएका हुन। भन्ने बेलामा मधेसी पार्टी फ़ोड़न ल्याएको भनेका थिए। तर मुख्य रूपले आफ्नै पार्टी फोड़न सजिलो होस भनेर ल्याउन खोजेका हुन। पुर्व प्रहरी प्रमुख देखि "म महेश" किताबका लेखक महेश जनकपुर पुगेर एउटा सांसदलाई अपहरण शैलीमा काठमाण्डु ल्याउन भ्याए। कत्रो खैलबैला भएथ्यो। पुर्व प्रधान मंत्री प्रहरी चौकी पुग्दा पनि प्रहरीले उजुरी लिन नमानेको। यो त पुर्व प्रधान न्यायधीश (सुशीला) न्याय का लागि सड़क जुलुसमा निस्के जस्तो। 

ओली ले महिनौं अगाडि प्रचण्डलाई "म ८-१० जना सांसद त मिलाइहाल्छु" भनेर धम्क्याएका थिए। अब त्यो धमकी कार्यान्वयन गर्न लागेको देखिन्छ। भनेको किनबेच नै भनिएको हो। 

नेपालको कानुन अनुसार जसलाई प्रचंड-माधव समुह भन्ने गरिएको छ त्योसँग बहुमत छ। त्यसैले त्यो नै पार्टी भयो। केन्द्रीय समितिमा दुई तिहाई बढ़ी र ९० जना सांसदले त अविश्वास प्रस्ताव नै दर्ता गर्न भ्यायेका। तर ओली ले संसद विगठन को सिफारिस गरेकोले त्यो पार्टीले ओली लाई साधारण सदस्य समेत बाट निकालेको अवस्था छ। कानुनतः ओली अब सांसद रहेनन। झापामा उप चुनाव हुने त भइसक्यो। 

ओली गुट भनेर चिनिने समुहले नया नेतृत्वमा आफ्नो गुट कायम राख्न सक्छ, त्यो गैर कानुनी हुने छैन। तर पार्टी फोड़ने अवस्था छैन। पार्टी छोड़ेर जानु भनेको आ-आफ्नो संसदीय सीट गुमाउनु हो। त्यसरी सीट गुमाउने गरी ८० जना ओली को पछि लाग्ने संभावना म देख्दिन। 

ओली ले हठ गरेका छन, म संसदीय दलको बैठक नै डाक्दिन, अनि कसरी हटाउँछौ मलाई संसदीय दल नेता बाट भनेका छन। यो त बड़ा अचम्मको सोच हो। हताश मानसिकता हो। नेकपा को संसदीय दलको बहुमतले नया नेता हप्तौं अगाडि चुनिसक्यो। बहुमत दलको संसदीय दलको नेता नै नरहे पछि ओली प्रधान मंत्री कसरी रहन सक्छन? 

यो पार्टी नफुट्ने प्रावधान थुप्रै कांग्रेसी हरुले पनि नबुझे जस्तो देखियो। हामीले प्रचंड-माधव लाई सहयोग नगरे कसैको सरकार बन्दैन, नेकपा दुई फ्याक हुन्छ र कांग्रेस लाई चुनाव भएर फाइदा हुन्छ भन्ने सोंच देखिन्छ। चुनाव त अहिले कसरी पो हुन्छ र? चुनाव नहुने निर्णय भर्खर सर्वोच्चले गरेको होइन र? 

ओली ले ८-१० जना सांसद आफुतिर मिलाउने कुरा पनि संभव छैन। जो मान्छे नेकपा को साधारण सदस्य पनि होइन उसले नेकपा संसदीय दलको सदस्यता गुमाएको होइन र? 

भने पछि ओली ले बाजी हारे। 

संसद बैठक को पहिलो दिन अविश्वास प्रस्ताव दर्ता गर्दा प्रधान मंत्री को नाम दिँदा देउबा  नाम न देउ भन्छन भने प्रम प्रचंड नै बन्ने देखियो। कटुवाल प्रकरणमा प्रचण्डले थुप्रैलाई तर्साएकै हुन। नेपाली सेना कब्ज़ा गरेर राज्य सत्ता कब्ज़ा गर्ने प्रयासको रुपमा थुप्रैले बुझे। पार्टी भित्र वैद्य समुह्को प्रेशर थाम्न नसकेर त्यो कदम चालेका थिए होलान। तर त्यस एक कदमले प्रथम संविधान सभा नै क्षत बिक्षत पारिदियो। दुई महिना पछि उसै पनि रिटायर हुन लागेका कटुवाल लाई दुई महिना अगाडि फाल्ने अनावश्यक प्रयास नगरेको भए प्रथम संविधान सभाले निर्धारित समय मैं एउटा प्रगतिशील संविधान दिंदो हो। सन २००६ को अप्रिल क्रान्ति पछि अहिले सम्मको सबै भन्दा प्रतिगामी कदम नै त्यही कटुवाल प्रकरण थियो। नितान्त अनावश्यक कदम। 

जेल बस्न सक्ने, जंगल पस्न सक्ने, तर सत्ता चलाउन नसक्ने नेताजी हरु। 

ओली चंद दिनका पाहुना हुन। नेपाली कांग्रेस भित्र देउबा अहिले प्रधान मंत्री भयो भने महाधिवेशन ताका फाल्न गारहो हुन्छ भन्ने तबका ले जितिरहे जस्तो देखिन्छ। भने पछि नेका भित्र पुस्ता हस्तांतरण हुन लागेको हो त? 

देउबा ले बन्दिन भने जस्तो देखियो, उपेन्द्र यादव लाई ऑफर गरेका छैनन। ऑफर आए जसपा ले लिनुपर्छ। आफुले चाहेको संविधान संसोधन आफैले गर्ने। 

तत्काल लाई प्रचंड नै प्रधान मंत्री बन्ने जस्तो देखियो। 

ओली ठुलो पार्टी अध्यक्ष, दुई तिहाई वाला प्रधान मंत्री लाई यसरी प्रचंड ले पछारेको देख्दा दाद नै दिनुपर्छ। खेलाड़ी नै हुन। संसदीय अभ्यासमा पनि प्रखर देखिए। 

बहुदलीय लोकतंत्र लाई खतरा म देख्दिन। अर्को संसदमा कसैको बहुमत आउने संभावना छैन। दुई बर्ष चाहिं प्रचण्डले खाने भए। 



सीके राउत: एक आलोचना

सीके राउत जी। 

अपने प्रवास से शुरू कइली। नेपाल गेला के बाद भी अपने के लक्ष रहे जे १० साल पहले गृह कार्य करब। लेकिन अपने के बार बार जेल में ध के अपने के उ समयतालिका फ़ास्ट फॉरवर्ड क देल गेलै। अपने के आत्म जीवनी पढ़लि। अपने के विश्लेषण पढ़लि। बहुत सटिक। अपने के कहब जे नेपाल के भितर मधेसी के प्रति अतेक ज्यादा भेदभाव छै कि मधेस अलग देश के अलाबे औरो कोनो रास्ता नै छै। अपने के ओइ बात पर मनन नै कइली आ चाहे आजकल नै करै छि से बात नै छै। सिद्धांत और आदर्श एक चीज भेलै। लेकिन राजनीतिक रणनीति त भी कुछ होइ छै। नेपाल के भितर मधेसी के प्रति भेदभाव छै और ओकर समाधान छै संघीयता कहेवाला लोग सब के बात पर भी त मनन करे के पड़तै। करैत आ रहल छियै। लेकिन अपने के इ कथन जे मधेसी के प्रति बहुत ज्यादा भेदभाव छै तै से त असहमत कहियो नै भेलौं। दुर भविष्य में मधेस अलग देश भ भी सकै छै। आ चाहे नेपाल और भारत के राजनीतिक एकीकरण भी भ सकै छै। नेपाल के और दक्षिण एशिया के विगत २०० आ चाहे २,००० साल के नक्शा देखियौ। सदा गतिशील। 

लेकिन निकट भविष्य के आधार पर निर्णय सब लेबे के बखत छलै और अभी छै। मधेस प्रति भेदभाव छै लेकिन अभी के अवस्था में मधेस अलग देशके नारा प्रत्युत्पादक भ जाइ छै, तै किसिम के असहमति प्रकट करितो हम हर समय इ कहलि कि सीके राउत अगर कहै छै मधेस अलग देश त उ वाक स्वतंत्रता भेलै। शांतिपुर्वक अपन बात कोइ राखि सकैय। संविधान प्रदत अधिकार भेलै उ। लेकिन अपने के तंग करिते रहि गेल। 

भु-राजनीति देखियौ। भारत और चीन के बीच ओतेक ज्यादा टेंशन रहै छै लेकिन मधेस अलग देश के मुद्दा पर दुन्नु एक रहतै। कोनो भी हालत में नै होबे देतै। नेपाल एक से दु होबे के मतलब चीन एक से पाँच, भारत एक से २० के रास्ता पर चलनाइ शुरू। उ डर रहतै। और चीन और भारत के नेपाल के भितर चलै छै। सिर्फ चीन अथवा सिर्फ भारत से सीधा मुठभेड़ क के नेपाल के भितर आगे बढना संभव न। दुन्नु से एक्के बेर सीधा मुठभेड़ सही रणनीति नै रहै। त उ विश्लेषण क के खुद से मधेस अलग देश के नारा से हट के संघीयता के रास्ता पर अबिती त कतेक अच्छा होइतै? लेकिन अभी केपी ओली सन आदमी सब कहेवाला जे सीके राउत के जेल में ठुंस के ही सही मध्य मार्ग में ला के छोड़लि। 

बीपी कोइराला राजतन्त्र के आजीवन न छोड़लकै लेकिन नेपाली कांग्रेस अंततः गणतंत्र के लाइन पर अलै जे कि कोनो पार्टी महाधिवेशन से पारित लाइन न। तहिना संघीयता नेका और नेकपा के एजेंडा कहियो न। लेकिन नाक मुँह झाँपि के स्वीकार कलकै। राजनीतिक यथार्थ फेस कलकै। देखलकै पैर तले जमीन खिसैक गेल। माओवादी १० साल जनयुद्ध कलकै एक पार्टी शासन स्थापित करे के लेल लेकिन समाजिक राजनीतिक यथार्थ के अध्ययन क के सात पार्टी से मिललै। बहुदल मानले हइ। 

अभी आहाँ के लाइन हबे अगला चुनाव में १० लाख भोट लाबि। त जनता के इमानदारीपूर्वक स्पष्ट ढंग से कहियौ हमरा १० लाख भोट दिय ताकि हम पाँच साल हाथ पर हाथ ध के बैठ सकु। जै देश में संघीयता सिर्फ देखावटी छै और सब अधिकार अभी भी काठमाण्डु में केंद्र सरकार के पास छै, मतदाता डेढ़ करोड़, भोट खसाबेवाला एक करोड़ छै, जहाँ सबसे नमहर पार्टी ४५ लाख और दोसर पार्टी ३५ लाख भोट लाबै छै, और दुन्नु मधेस के अधिकार और अस्मिता के सख्त विरोधी होबे वहाँ अपने १० लाख भोट ला के कथि करबै? राजनीति के लक्ष सत्ता ही होइ छै। भोट दिय ताकि हम सत्ता में पहुँच के अपने के लेल काम करि। सेहे अनुरोध नै रहै छै? 

प्रथम प्रश्न त उठत आहाँ उ १० लाख भोट लबै कि न लबै? ओहु से पहले प्रश्न उठत राष्ट्रिय पार्टी भी बनबै कि न? आहाँ खुद चुनाव जितबै कि न? जितबै त कोन जगह से? जहाँ जम्मा एक करोड़ भोट के बात छै वहाँ १० लाख भोट लाबे वाला पार्टी या त विपक्ष में बैठत या त मिलीजुली सरकार बनावे के प्रयास करत। भाजपा छोट रहै त जनता दल से मिल के सरकार बनलकै। भाजपा के जनता दल से बहुत बात न मिलै छै। नेपाले में कांग्रेस कम्युनिस्ट मिल के पंचायत के गिरलकै। बाद में सात पार्टी और माओवादी तहिना मिल के राजतन्त्र के ख़तम कयलक। यथास्थिति के अध्ययन क के तेना रणनीति तय करे के होइ छै। 

दु नम्बर प्रदेश में कोन पार्टी के सरकार बनत आ चाहे दु नंबर भितर स्थानीय तह पर कोन पार्टी के सरकार बनत तहि से मधेसी के अधिकार, अस्मिता और समृद्धि के मुद्दा समाधान भ जतै से नै छै। अभी भी प्रमुख लड़ाइ केंद्र में छै। 

या त भ्रष्टाचार के मुद्दा पर लेजर फोकस क के कमसेकम मधेस के २२ जिल्ला में आंदोलन करू अन्ना हजाड़े और अरविन्द केजरीवाल जिका और तै २२ जिल्ला में १० लाख भोट न बल्कि स्वीप क के देखाउ। जेना दिल्ली स्वीप कलकै केजरीवाल। आ न त अइ बात के मानु कि जनता के लेल काम करे के लेल सत्ता में जाए के पड़बे करतै, १० लाख वाला पार्टी के लेल से रास्ता गठबंधन के रास्ता ही भेलै, और चुनाव के बाद के गठबंधन से ज्यादा फायदा चुनाव से पहले के गठबंधन से होइ छै, और मुद्दा के हिसाब से अपने के जनमत पार्टी से मिल्दोजुल्दो पार्टी जसपा ही भेलै, कियक त दुन्नु अपन पहिचान बनएले छै मधेशीके अधिकार और अस्मिता के मुद्दा के पकड़ि के। मधेस के २२ जिल्ला में ५०-५० सीट बाड़ी के लड़े के सोचु। तै आधार पर भी स्वीप कयल जा सकै छै। जसपा और जपा दुन्नु १०-१० लाख भोट अगर ललकै त केंद्र में दुन्नु पार्टी निर्णायक भ जतै। तै अवस्था में शायद केंद्र में केकरो बहुमत न रहत। 

समय भी त कम छै। एक साल में शायद स्थानीय चुनाव होतइ। दु साल में केंद्र के चुनाव। अभी आहाँ के पार्टी महाधिवेशन भी बाँकी हबे। फेसबुक पर देख रहल छि आहाँ बराबर दौड़ाहा में रहै छि और आहाँ के पार्टी के कार्यक्रम सब में काफी संख्या में लोग उपस्थित रहैय। सराहनीय बात छै। 

लेकिन जेना बहुत लोग कहैय ओली जेल में ठुंस के सीके के मध्य मार्ग पर ललकै तेना लोग इ न कहे जे सीके कहौ इ क देबौ उ क देबौ लेकिन हाथ पर हाथ ध के बइठल हउ, कहाँ गेलै १० लाख के रोजगारी? आ चाहे इ न कहे जे आब नेका, नेकपा, जसपा सबसे मिले चाहै छै आ पहले कहौ सब के जे म्याद गुजरि गेल औषधि छौ बलु। 

रणनीतिक गलती न करू। या त अन्ना हजाड़े और अरविन्द केजरीवाल वाला रास्ता पकडु आ १० न २० अथवा २५ लाख भोट लाबे के सोचु। आ न त जसपा के साथ चुनावी गठबंधन करू। से कहब। 



Thursday, February 25, 2021

ओली को राजीनामा नदिने निर्णय

सर्वोच्च्को संसद पुनर्स्थापना पछि ओली को राजीनामा नदिने निर्णय बड़ा अचम्मको छ। यहाँ बहुमतको होइन नैतिकताको कुरा छ। संविधान पढ्ने साक्षरता मसँग छैन भनेर राजीनामा दिने हो। संसद विगठनको गलत सिफारिस प्रयाप्त कारण हो राजीनामा दिने। 

त्योभन्दा उदेकलाग्दो छ अबको प्रधान मंत्री पनि ओली नै हुन्छन् भन्ने ओली को आसेपासे हरुको तर्क। एक छिन त म घोतलियेको पनि। सर्वोच्च्को निर्णयमा सेटिंग देखिएन, सेटिंग अब पो हुने हो कि भने जस्तो। 

राजनीतिक अस्थिरता बाट निकै चेतेका मानिसहरुले लेखेको संविधान जस्तो देखिन्छ। संसद विगठन गर्न नपाउने भने जस्तै अर्को कड़ा प्रावधान छ पार्टी फुटाउन नपाउने प्रावधान। पार्टीको केन्द्रीय समितिमा पनि र संसदीय दलमा पनि कमसेकम ४०% छैन भने पार्टी फुटाउन पाइएन। ओली को केन्द्रीय समितिमा २५% पनि छैन। संसदीय दलमा ४०% जति देखिन्छ तर त्यो कति दिन सम्म? 

नेकपाले संसदीय दलको बहुमतले आफ्नो नेता फेरि सक्यो। संसद जब बस्छ तब अविश्वासको प्रस्ताव दर्ता हुन्छ। व्हिप जारी गर्ने नया नेताले हो, अर्थात प्रचण्डले। नेकपा, नेका, जसपा सबैले अविश्वास प्रस्तावको समर्थन गर्ने पुर्ण संभावना छ। ओली को त संसदीय सीट नै जान्छ र उपनिर्वाचन हुन्छ झापामा। ओली गुट भनेर चिनिएका सांसद हरु या त पार्टी फुटेन भनेर माउ पार्टीमा आउनु पर्यो (चाहे त्यहाँ भित्र गुट चलाएर नै किन नबसुन) होइन भने ८० जना जतिको संसदीय सीट गुम्छ र ती सबै ठाउँमा उप निर्वाचन हुन्छ। मध्यावधि निर्वाचन त भएन भएन तर ८० सीट मा मात्र उप निर्वाचन हुन्छ भने त्यसलाई सानोतिनो मध्यावधि निर्वाचन नै भन्नुपर्ने हुन्छ। हो न हो यो ओली ले सानो भए पनि मध्यावधि निर्वाचन गराएरै छाड़े भन्ने हुन्छ। 

तर कुरा त्यहाँ सम्म शायद नपुग्ला। अहिले लाई नेकपा भित्र नै बसौं, पछि चुनाव नजिक पुगेपछि अर्को पार्टी दर्ता गरौंला ओली को नेतृत्वमा भनेर बस्न पनि सक्छन। तर त्योभन्दा ओली एकलिने संभावना बढ़ी छ। 

अविश्वास प्रस्ताव दर्ता गर्नेले वैकल्पिक प्रधान मंत्री को नाम पनि दिनैपर्ने प्रावधान रहेछ। देउबाले मोही माग्ने ढुङ्ग्रो लुकाउने गर्नु हुँदैन। आफ्नो नाम प्रयोग गर्न दिनुपर्छ। होइन भने जसपा कै उपेन्द्र यादव को नाम सारे भो। नेकपा, नेका, जसपा तीन वटा पार्टीले मिलेर अविश्वास प्रस्ताव दर्ता गर्दा। 

संसद बसेको प्रथम दिन नै अविश्वास प्रस्ताव दर्ता भएन भने ओली ले चलखेल गर्न पाउने देखिन्छ। फेरि संसद अधिवेशन समाप्त गरिदिन सक्छन। समय त खेर जान्छ। तुरुन्त ओली लाई पदच्युत नगरिकन नेकपा, नेका र जसपाको नया सरकार बनाइँदैन भने देश अर्को भुमरीमा फँसछ। तीन पार्टीको सरकारको प्रमुख एजेंडा नै मधेसले खोजेको संविधान संसोधन हुनुपर्छ।

नेपाली कांग्रेस लाई लाग्ला नेकपा दुई फ्याक भएको राम्रो। त्यो त भइसक्यो। राजनीतिक रुपमा। तर कानुनी रुपमा दुई हुने बाटो तत्काल छैन। संसद बसेको प्रथम दिन अविश्वास प्रस्ताव दर्ता नहुने अवस्था आउन दिनु हुँदैन कांग्रेस ले। 



खिचड़ी

Wednesday, February 24, 2021

आगामी चुनावमा जसपा र जपा का लागि उत्तम बाटो के होला?

सीके राउत को नेतृत्व को जनमत पार्टीले आगामी चुनावमा १० लाख भोट ल्याउने लक्ष्य रहेको पटक पटक भनेको छ। त्यस पार्टीको प्रवासी संगठनको दुई लाख सदस्य रहेको र एक वर्ष अगाडि नै देश भित्र एक लाख सदस्य रहेकोमा त्यसलाई पाँच लाख पुर्याउने लक्ष्य घोषणा गरिएको हो। जपा को फेसबुक पृष्ठ फॉलो गर्ने पाँच लाख छन। 

सन २०१७ को चुनावमा तत्कालीन एमाले ले ३० लाख र माओवादीले १५ लाख भनेको नेकपा ले ४५ लाख भोट ल्याएको हो। नेपाली कांग्रेस ले ३५ लाख भोट ल्यायो। अर्थात एक्लो एमाले भन्दा बढ़ी नै ल्यायो। तत्कालीन राजपा र सपा ले पाँच पाँच लाख मत बटुले। दुबै जोड्दा १० लाख हुन पुग्छ। देश भरिमा एक करोड़ मत खसेको हो। मतदाता डेढ़ करोड़ रहेको देखिन्छ। 

नेकपा फेरि एक नै हुने भएछ भने अर्को चुनावमा भोट घटेर ४० लाख सम्म पुग्छ कि? नेका ३५ बाट ३० लाख तिर पुग्छ कि? जपा ले १० लाख भोट यदि ल्याउँछ भने त्यो १० लाख मध्ये नेकपा को कति भोट काट्छ, नेका को कति, जसपा को कति? ५० लाख मत नै नखसालेका मध्ये २५ लाख मधेसमा छन भने ती मध्ये कतिलाई भोट खसाल्न उत्प्रेरित गर्छ त? 

राजपा र सपा को मात्र होइन नया शक्ति को पनि एकीकरण भएकोले र अरु पनि साना जनजाति पार्टी हरु समाहित भएर पहाडमा पनि संगठन विस्तार गरेकोले जसपा को भोट १० लाख बाट बढेर १५ लाख तिर पुग्ने संभावना छ। २०१७ को १० लाख मध्ये यदि त्यस पार्टीले दुई लाख जपा लाई नै पनि गुमाउँछ भने पनि। 

नेकपा र नेका दुबै थाकेका पार्टी हुन। एजेंडा खासै छैन। नेकपा को ४५ लाख मध्ये २० लाख मधेसका २२ जिल्ला मा हो भने र नेका को ३५ लाख मध्ये १५ लाख मधेसमा हो भने अझै पनि ती दुबै पार्टी जसपा भन्दा मधेस मै पनि ठुलो देखिन पुग्छन। पश्चिमी तराई मा शुन्यता, झापा मोरंग सुनसरी चोइटिनु आदि कारन हुन सक्छन। राजपा र सपा को एकीकरण अगाडि तर दुई नंबर प्रदेश सभामा सबैभन्दा ठुलो पार्टी नेकपा नै थियो। 

त्यसबाट जसपा र जपाले लिने शिक्षा हो पहाड़ पुरै नेका र नेकपा लाई छोडिदिंदा मधेसमा पनि घाटा लाग्दो रहेछ। 

सीके राउतको जनमत पार्टीले कि त अन्ना हजाड़े र अरविन्द केजरीवाल लाई याद दिलाउने गरी कमसेकम मधेसका २२ जिल्लामा आन्दोलन नै गरेर १० लाख होइन २० लाख बढ़ी भोट को लक्ष्य राख्न सक्नुपर्छ र यो आशा गर्नुपर्छ कि पहाड़मा विवेकशील साझाले त्यही गरोस। होइन यदि त्यसो गर्न नसकेको खण्डमा जसपा सँग ५०-५० को अनुपातमा चुनावी गठबन्धनमा जानुपर्छ। मधेसका २२ जिल्लामा नेका र नेकपा लाई उछिन्ने उपाय त्यो हुन सक्छ। आखिर जनमत को शुरुवाती एजेंडा जसपा सँग नै मिल्छ: मधेसको अधिकार र अस्मिता। 

भ्रष्टाचार विरुद्ध आन्दोलन गरेर मधेसमा जपा ले २० लाख र विवेकशील साझा ले पहाडमा १० लाख भोट मात्र ल्याउँछ भने देशको राजनीति हल्लिन्छ। संविधान संसोधनको मुद्दाले जसपा लाई १५ लाख सम्म पुर्याउँछ भने बाँकी ५५ लाख भोट भित्र नेकपा र नेका सीमित हुने भए। नेका ३० र नेकपा २५ शायद, अथवा ३० लाख। जम्मा मत पनि केही बढ्दो हो। 

जनमत पार्टी र विवेकशील साझा त्यो बाटोमा जाँदैनन भने अबको चुनाव विवेकशील साझा को लागि शायद अंतिम हो अब पनि राष्ट्रिय पार्टी बन्न नसकेमा। जनमत पार्टी १० लाख भोट सम्म पुग्छ भने पाँच वर्ष पर्खिने मात्र हुन्छ। राष्ट्रिय पार्टी बन्ने र पर्खिने। २० लाख भोट भन्दा १० लाख भोट वाला बाटो बढ़ी गारहो हो। २० लाख वाला बाटो ले २५ अथवा ३० लाख सम्म पुर्याउन सक्छ। १० लाख वाला बाटो ले पाँच लाखमा सीमित राख्न सक्छ। 



Tuesday, February 23, 2021

संसद पुनर्स्थापनाको मधेस आन्दोलन सँगको सम्बन्ध

केपी ओली ले संसद विगठन गर्न नपाउने कुरा संविधानमा यति सारहो स्पष्ट छ कि सर्वोच्चले संसद पुनर्स्थापना गर्दा मलाई खासै उल्लास लागेन। हुनुपर्ने कुरा भयो। त्यहाँ खासै दिमाग लगाउनु पर्ने, तर्क वितर्क गर्नुपर्ने नै थिएन। 

त्यसै गरी अंतरिम संविधान मा थप्न पाउने, घटाउन नपाउने भन्ने थियो। अंतरिम संविधान क्रांतिले दिएको थियो। क्रांति चुनावभन्दा माथि हुन्छ। त्यसै अंतरिम संविधानले संविधान सभा दिएको। अंतरिम संविधानको संविधान सभालाई आदेश थियो, अधिकार थप तर अंतरिम संविधानले दिएको केही पनि नघटाउ। 

त्यो आदेशको पालना भएन। 

संविधान सभामा व्हिप लाग्दैन। व्हिप जारी गरेर संविधान सभालाई एउटा साधारण संसद बनाउने काम भयो। त्यो गर्न नपाइने कुरा थियो। गरियो। संविधान सभामा प्रस्तावना, प्रत्येक दफा र उपदफामा व्हिप बिनाको बहस र मतदान हुन्छ। भएन। बिना बहस संविधान पास गरियो। 

केपी ओली ले संसद विगठन गर्न नपाउने कुरा संविधानमा जति सारहो स्पष्ट छ त्योभन्दा बढ़ी स्पष्ट थियो अंतरिम संविधान मा थप्न पाउने, घटाउन नपाउने कुरा, संविधान सभामा व्हिप नलाग्ने कुरा, प्रस्तावना, प्रत्येक दफा र उपदफामा व्हिप बिनाको बहस र मतदान हुनुपर्ने कुरा। 

मधेस प्रतिको पहाड़ी पुर्वाग्रह को प्रतिनिधित्व गरेकै आधारमा ओली चम्केका हुन। पहाड़ी मतदाता र नेता ले ओली को स्वामित्व लिनु नै पर्छ। 

समस्यालाई समाधान तर्फ लगौं। संसदको बाँकी समयमा मधेसले खोजेको संविधान संसोधन गरौं। संविधानको प्रस्तावनामा मधेस आन्दोलन लाई ठाउँ दिउँ। 



Friday, February 19, 2021

यस संसद र अर्को संसद का संभावित अंक गणित हरु

यस संसद र अर्को संसद का संभावित अंक गणित हरु 



संसद पुनर्स्थापना भएर देउबा प्रधान मन्त्री बन्नु भनेको मधेसले खोजेको संविधान संसोधन गर्ने अत्यंत राम्रो मौका हो। इमान्दारीका साथ त्यसरी संविधान संसोधन गरिन्छ भने सबैभन्दा फाइदा हुने भनेकै नेका र नेकपा लाई हो। मधेसी पार्टी हरुको मुल मुद्दा समाप्त भएर या त नया मुद्दा (जस्तो कि भ्रष्टाचार र आर्थिक क्रांति) समात्न हतार गर्ने अथवा पार्टी नै समाप्त हुने डर हुन्छ। मुख्य कुरा देशलाई फाइदा हुन्छ। नेका, नेकपा, जसपा सबैले आर्थिक विकास को मुद्दामा प्रतिस्प्रधा गर्नुले त्यस मुद्दा लाई बल पुग्छ। 

तर त्यसरी संविधान संसोधन हुने संभावना क्षीण छ। प्रयास नै न होला। भए पनि हल्काफुल्का (cosmetic) ढङ्गले गरेर भयो है भनेर ठग्ने प्रयास होला, पहिला पनि भएको हो। मधेस प्रतिको घृणा लाई नै राष्ट्रवाद ठान्ने हरुको बोलवाला छ नेका र नेकपा भित्र।  

संसद पुनर्स्थापना हुनु भनेको ओली सँग रहेका हरु बिभिन्न बहाना बनाएर मुल पार्टीमा ओइरो लाग्ने तमाशा हुने त छँदैछ। अर्को चुनाव पछि बचेखुचेको ओली गुट शायद राष्ट्रिय पार्टी पनि न बनला, तर बनने प्रयासमा नेकपा लाई व्यापक क्षति भने गर्छ। सानो राष्ट्रिय पार्टी बन्न भ्याएछ भने चुनाव पछि क्षति गर्छ। 

संविधान संसोधन नगरेरै फेरि मधेसमा आफ्नो बेस बढाउने नेका को प्रयास सफल हुने देखिन्न। निधि को पार्टी अध्यक्ष बन्ने प्रयास सफल होला नहोला त्यो आफ्नो ठाउँमा छ। तर अहिले त्यही पनि संभावना भन्दा पर नै देखिन्छ। 

जसपाले त्रिपाठी समुह सँग एकीकरण गर्छ गर्दैन त्यो पनि हेर्नु पर्ने कुरा हो। ओली लाई समर्थन त तत्कालीन राजपा ले पनि गरेको हो। मंत्री त उपेन्द्र यादव पनि बनेका हुन। राप्ती र नारायणी बीचको मधेसमा त्रिपाठी समुह को राम्रै पकड़ छ। त्रिपाठी समुह सँग सम्मानजनक एकीकरण को प्रयास सपा र राजपा एकीकरण पछिको दोस्रो कदम नै हो। त्यसमा नै दुबै को भलाई छ। अहिले सम्म भने फेरि सुर्य चिन्ह नै समाउने  त्रिपाठी समुह को प्रयास हो भने चुनाव त जितलान फेरि तर स्थानीय चुनावमा आफ्नो बेस व्यापक गुमाउने स्थिति खड़ा हुन्छ। जसपा र त्रिपा मिलेको राम्रो। यस्तो महमारीको समयमा तपाईं किन स्वास्थ्य मंत्री बनेको भनेर हृदयेश त्रिपाठी लाई कमसेकम म प्रश्न गर्ने अवस्थामा छैन। सक्षम मान्छे। बन्यो। ओली ले स्वास्थ्य आफुसँग राखेको भए शायद अहिलेसम्म खोप न आउने। 

जनमत पार्टी त राष्ट्रिय पार्टी बन्ने पक्का छ तर भ्रष्टाचारको मुद्दा समातेर जनआन्दोलनको उभार ल्याएर मधेसका २२ जिल्ला मा स्वीप नै दिने अवस्था भने आएको देखिँदैन। हुन त समय बाँकी छ। संसद विगठन अनुमोदन भए सबैभन्दा घाटा लाग्ने भनेकै जपा लाई। अधिवेशन सम्म गर्न नभ्याएको। आफ्नो पहिलो अधिवेशन। 

भ्रष्टाचारको मुद्दा समातेर जनआन्दोलनको उभार ल्याउने बाटो सबैभन्दा उत्तम हो तर कठिन पनि। जनमत पार्टी को चुनावी नतिजा ले देखाउला। मुख्य रूपले नेका र नेकपाको भोट काटने प्रयास हुँदो हो। 

नेका, नेकपा, जसपाजपा चार राष्ट्रिय पार्टी भएर आउने तर कसैले बहुमत न पाउने अवस्था आउन लागेको हो? त्यस अंक गणितले मधेसले खोजेको संविधान संसोधन देला त? त्यस्तो अवस्था यदि आउनै लागेको हो भने चुनाव अगाडि नै गठबन्धन बनाउन सक्ने पार्टी हरु सबैभन्दा बलियो अवस्थामा पुग्ने देखिन्छ।  

जसपा र जपा ले एकले अर्कोलाई अछुत मानने भुल गर्नु हुँदैन। संवादहीनता समाप्त गर्नु पर्छ।  अर्को संसदले मधेसी प्रधान मंत्री पनि दिन सक्छ। 




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One Unified Global Madhesi Organization (PlayList)

Sunday, February 14, 2021

सीके राउतको जनमत पार्टीका थुप्रै थुप्रै संभावनाहरु

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मधेसी क्रान्तिको नया स्वरुप भनेको संगठन विस्तार हो भन्ने कुरा सीके राउतको नेतृत्वको जनमत पार्टी ले आफ्नो प्रत्येक फेसबुक पोस्ट मा दर्शाइरहेको छ। त्यस फेसबुक पेज लाई फॉलो गर्ने पाँच लाख बढ़ी छन। 

लोकतंत्रको लड़ाइ सकियो, गणतंत्रको लड़ाइ सकियो म भन्दिन। मधेसले खोजेको संविधान संसोधन मानव अधिकार सँग सम्बंधित छ। जुन देशमा अझै पनि मानव अधिकारकै खोजी हुँदैछ त्यसलाई लोकतंत्र भन्न मिल्दैन। दुई तिहाईले मलाई नेता चुन्यो, अब म राजा भएँ भन्ने सोंच भएको प्रधान मंत्री भएको देश गणतंत्र होइन। लोकतंत्र र गणतंत्र १९ दिनको सड़क क्रांति होइन रहेछ। वर्षौं लगाएर संस्था हरु निर्माण गर्नुपर्ने कठिन काम रहेछ। 

मधेसका २२ जिल्लामा संगठन निर्माण गरेर देश हल्लाउने पार्टी जनमत पार्टी बन्न सक्छ। नेपाल काठमाण्डु उपत्यका हो भने त्यस खाल्डोमा राजसत्ता स्थापना गर्ने नै मधेसी हरु, पुर्वी तराईका गोपालवंशी, अर्थात यादव हरु. गाई भैंसी चराउने हरु। लिच्छवी शासन लाई आज सम्म नेपाली इतिहासको स्वर्ण युग मानिन्छ। लिच्छवी भनेका मधेसी। लिच्छवी शासन को समयको सुशासन नेपालले आजसम्म फेरि देख्न पाएको छैन। लिच्छवी गए तर तिनको प्रभाव यति सारो बुलंद थियो कि मल्ल कालसम्म राजकाजको भाषा मैथिली रह्यो। रण बहादुर शाह की मधेसी रानी कै संतति हुन महेन्द्र, वीरेंद्र, ज्ञानेंद्र सबै। मधेसी भनेका नेपालका स्थानीय वासिन्दा। 

एउटा बाटो छ नया संविधान सभाको। त्यसकालागि भ्रष्टाचार र आर्थिक क्रांतिको मुद्दा समातेर जनमत पार्टी जस्तो पार्टीले देशको नेतृत्व नै लिएर देशलाई नया संविधान सभा मा लानुपर्ने हुन्छ। त्यो शायद गारहो बाटो हो। तुलनात्मक सजिलो बाटो भनेको संविधान संसोधनको बाटो। जुन सुकै संसद्ले दुई तिहाईले संविधान संसोधन गर्न सक्ने भएकोले प्रत्येक संसद एक किसिमको संविधान सभा नै हो। राजनीतिमा सदाकालागि शत्रु र सदाकालागि मित्र कोही पनि हुँदैन भन्ने गरिन्छ। संविधान संसोधन का लागि दुई तिहाई पुर्याउन जुन सुकै पार्टीको सहयोग लिन सक्नुपर्छ भन्ने सोंच का साथ अगाडि बढ्नुपर्ने हुन्छ। चाहे त्यो यस संसदमा होस अथवा अर्को संसदमा। 

जनमत पार्टी त राष्ट्रिय पार्टी बन्यो बन्यो। त्यसमा शंका छैन। तर भाजपाले १९८४ मा दुई सांसद र बल्ल १९९६ मा देशको नेतृत्व लिने, अथवा आम आदमी ले अहिले दिल्ली र अर्को पीढ़ीमा देश हाँकने किसिमको रोडमैप जनमत पार्टी लाई उपलब्ध छैन। जनमत पार्टीको मुद्दा देशमा तातो मुद्दा आज हो। पर्खिने समय छैन। जनमत पार्टी ले चुनाव होइन आन्दोलन को तहमा सोच्नु पर्ने हुन्छ। 

दुई नम्बर प्रदेसमा जसपा लाई विस्थापित गर्ने लक्ष्य जनमत पार्टी को हुन सक्दैन। आधा भोट र सीट जसपा ले पायो तर बाँकी आधा भोट र सीट नेका नेकपा ले किन पायो भन्ने प्रश्न जनमत पार्टी ले गर्न सक्नुपर्छ। दुई नम्बर प्रदेस सरकार जसपाले सम्हालेको ले त्यस सरकारको आलोचना गर्नु अन्यथा होइन। लोकतंत्रमा विपक्षको त्यो त कर्तव्य नै हुन जान्छ। नेका नेकपा विरुद्ध क्रान्ति गर्ने, शहीद हुने तर त्यसको छ महिना पछिको चुनावमा फेरि त्यसै नेका नेकपा लाई भोट दिने किन? जपा ले मधेसी जनतालाई त्यसरी प्रश्न गर्न सक्नुपर्छ। भोट माग्ने भनेको मलाई भोट देउ अनि चार पाँच वर्ष सुत भन्ने होइन। जनतामा गएर भोट माग्नु भनेको जनतालाई चैलेंज गर्नु हो। कठिन बाटो रोज भन्ने हो। 

दुई नम्बर प्रदेसमा जसपा भन्दा ठुलो पार्टी भएर आउँछ जपा भने त्यसले मधेस आन्दोलन कमजोर हुने होइन। तर भोट मुख्य रूपले खाने भनेको नेका र दुई नेकपाको हो। जनमत पार्टी को मुख्य चुनौती भनेको मधेसका २२ जिल्लामा नेका र दुई नेकपा लाई विस्थापित गर्ने हो। त्यसकालागि आन्दोलनको आंधी हुरी चाहिन्छ। साधारण चुनावी अभियानले पुग्दैन। २०४६ को आन्दोलन पछि कांग्रेस को संगठन गाउँ गाउँ मा रातारात बनेको हो। आफै बनेको हो। लक्ष्य स्पष्ट थियो। यति स्पष्ट कि एक शब्दमा भन्न सकिने। बहुदल। 

अहिले त्यस किसिमको जन उभार ल्याउन सक्ने मुद्दा भनेको भ्रष्टाचार नै हो। अन्ना हजाड़े र अरिवंद केजरीवाल ले जुन तहलका दिल्लीमा मचाए त्यही तहलका मधेसका २२ जिल्ला मा मचाउनु परेको छ। 

बीरबल ले अकबर ले दिएको लट्ठी लाई सानो पार्न त्यसलाई छुनु परेन। मधेसका २२ जिल्ला बाट नै नेका र दुई नेकपा लाई पहाड़मा परास्त गर्न सकिन्छ। त्यो भनेको नेका, २ नेकपा, र जसपा तीन वटा भन्दा बढ़ी भोट र सीट २२ जिल्ला मा ल्याउनु हो।मधेस र देशको पीड़ा लाल बाबु राउत होइन केपी ओली हो। 

निशाना वहाँ पर लगाओ।  

मधेस ले एक प्रदेश अथवा दुई प्रदेश पायेन र मधेस हार्यो भन्ने होइन। सात मध्ये छ प्रदेस राजधानी मधेसमा छन। तिनको बाटो मधेसले देश कब्जा गर्ने भरयांग पाएको हो बरु। मधेस बसी बसी सात वटै प्रदेश हल्लाउने हो। 



Tuesday, February 09, 2021

प्रतिक्रान्ति विरुद्धको संसद पुनर्स्थापना र कॉंग्रेस भित्र विमल गगनको सम्मिश्रण

सर्वोच्च अदालतले संसद पुनर्स्थापना नगर्ने संभावना न को बराबर छ। संसद पुनर्स्थापना भए पछि नेकपा कानुनी रूपले फुट्दैन तर चोइटिएर जाने भने हुन्छ। केपी ओली प्रधानमंत्री नरहँदा र पार्टीको साधारण सदस्य समेत नरहँदा उसको पछि पछि लाग्ने मान्छे अत्यंत कम हुन्छन्। तर पार्टी त फुट्यो फुट्यो। प्रचंड माधव पक्ष पनि थाकेको बथान हो। अर्को चुनावमा साधारण बहुमत पनि ल्याउने ल्याकत रहँदैन।  

संसद पुनर्स्थापना हुँदैमा राष्ट्रपति विरुद्ध महाभियोग लाग्नु पर्छ भन्ने छैन। प्रधानमंत्री ले गर्ने गलती सच्याउँदै हिँड्ने काम राष्ट्रपतिको होइन। तर संसद पुनर्स्थापना भए पछि केपी ओली लाई पार्टी फोड़न सजिलो होस भनेर अध्यादेश ल्याउन राष्ट्रपति ले सघाएको खण्डमा महाभियोग एक मात्र उपाय हुनेछ र देशले नया राष्ट्रपति पाउँछ। त्यो नया राष्ट्रपति कोही दलित भैजाओस। दमजम मध्ये मधेसी र महिला त भए भए। 

ओली को जिम्मेवारी ओली मात्र ले लिएर पुग्दैन। भैसीको सिंग वाला नक्शा पास गर्ने कॉंग्रेसले पनि लिनुपर्छ। २५ वर्ष अगाडि मात्र महाकाली नदी नेपाल भारत को अधिकांश सीमाना हो (अर्थात सम्पुर्ण होइन) भनेर संधि गर्ने पात्र नै त्यही ओली हो। संसदीय दलको नेता मा प्रस्ताव गर्ने माधव नेपाल ले पनि लिनुपर्छ। मान्छेको चरित्र चिन्न नसकेको माधव नेपाल। खुरुक्क संसदीय दलको बैठक डाकेर संसदीय दलको नेता बाट हटाउने प्रयास नगरेको कामरेड प्रचण्डले पनि जिम्मेवारी लिनुपर्छ। 

ओली दुई वर्ष अगाडि अर्कै आज अर्कै मान्छे होइन। उसको भएको चरित्र उजागर भएको हो। तर एक दुई पात्रको चरित्र ख़राब हुँदैमा व्यवस्था नै धरापमा पर्ने रैछ भने कतिसम्म को फितलो व्यवस्था भन्ने प्रश्न खड़ा हुन्छ। 

तानाशाही संविधानले एउटा तानाशाह पैदा गर्यो। अपेक्षा के थियो? देशको आधा जनसंख्या माथि बन्दुक को नाल सोझ्याएर लादेको तानाशाही संविधान हो यो। कुनै संविधान सभाले दिएको संविधान हुँदै होइन यो। संविधान सभामा व्हिप जारी गर्न मिल्दैन। प्रत्येक दफा र उपदफामा बिना व्हिप को बहस र मतदान हुन्छ। भएन। भएको भए आधा जनसंखयाले अस्वीकार गर्ने अवस्था नै आउने थिएन। 

ओली त सानो मान्छे हो। ओली प्रवृति को विरोध गरौं। नेपाली ले गणतंत्र को इच्छा गर्नु बयलगाड़ा चढेर अमेरिका पुग्ने इच्छा हो भन्ने प्रवृति नया प्रवृति हो र? मधेसी शहीद लाई आँप झरेको देख्ने प्रवृति ओली मा मात्र छ र? मधेसी जनतालाई तिरस्कार गर्ने मान्छे ले सम्पुर्ण नेपाली जनतालाई  तिरस्कार गर्न तिनका जनप्रतिनिधि लाई तिरस्कार गर्न बाँकी राख्ने कुरै थिएन, राखेन। अचम्म मानने किन? 

संसद पुनर्स्थापना भएर एउटा सानो पार्टीका नेता देउबा प्रधान मंत्री हुने देखियो। तर यस संसदको बाँकी समय भित्र मधेसले खोजेको संविधान संसोधन हुँदैन भने मधेसमा कॉंग्रेस भनेको बिहार र युपी को कॉंग्रेस हो। 

विमल निधि सभापति, गगन थापा त्यस पछिको महाधिवेशनमा सभापति तर अहिले उप सभापति भन्ने किसिमको नेतृत्व पुस्ता हस्तांतरण को फोर्मुला को प्रयास देखिन्छ। मधेसमा कॉंग्रेस को गुमेको साख फिर्ता ल्याउने त्यो प्रयास सराहनीय छ। तर मुहार काफी हुँदैन, मुद्दा समाउनु पर्ने हुन्छ। कॉंग्रेस ले मुद्दा नसमाएको ले नै त मधेसी पार्टी हरु पैदा हुनु परेको। गजेंद्र नारायण नेका का सप्तरी जिल्ला अध्यक्ष थिए।   


Monday, February 01, 2021

ओली प्रचण्डको झगड़ा: सीके र रविन्द्र का लागि मौका मा चौका

संसद पुनर्स्थापना भए पनि नभए पनि, चुनाव छ महिना अथवा दुई वर्षमा भए पनि, प्रचण्ड, ओली, देउबा जोसुकै प्रधान मंत्री रहे अथवा बने पनि, नेपाल ले खोजेको आर्थिक क्रान्ति गर्ने पुस्ता त्यो हुँदै होइन। यदि आर्थिक क्रान्ति दिपावली हो भने त्योभन्दा अगाडि झाडु लगाउनु पर्ने भनेको भ्रष्टाचार विरुद्ध को लड़ाइ, त्यो त शुरू पनि भएको छैन। बहुदल दियो, त्यो पुस्ताले गणतंत्र सम्म दियो। सबै थोक त्यसै पुस्ताले दिनुपर्छ भन्ने छैन, दिनसक्ने सामर्थ्य पनि छैन। 

सच्चा संघीयता आएको छैन। भ्रष्टाचार विरुद्ध को लड़ाइ शुरू भएको छैन। आर्थिक क्रान्ति भनेको त कहाँ हो कहाँ। लगातार ३० वर्ष सम्म दुई अंक (double digit) को आर्थिक वृद्धि दर आर्थिक क्रांतिको परिभाषा हो। प्रचण्ड, ओली, देउबा पीढीले विरासतमा पाएको भ्रष्टाचार बरु मलजल गरेर बढाउने काम गरे। त्यसै पीढीले भ्रष्टाचार विरुद्ध लडेर आर्थिक क्रान्ति ल्याउँछ भन्नु महेन्द्रले बहुदल ल्याउँछ र ज्ञानेन्द्रले गणतंत्र ल्याउँछ भन्नु जस्तै हो। भ्रष्टाचार नगरे कार्यकर्ता कसरी पालने, पार्टी कसरी चलाउने भन्ने सोंच भएको पीढ़ी त्यो। जनताको पैसा ठेकेदार लाई, ठेकेदारको पैसा नेता र पार्टीलाई। त्यसरी सेटिंग मिलाएर बसेका छन। 

निर्दल बहुदल, राजतन्त्र गणतंत्र, एकात्मक व्यवस्था र संघीयता बीच जसरी स्पष्ट फरक (sharp contrast) देखाइयो जनता लाई भ्रष्टाचार को विषयमा नया पुस्ताले त्यसरी नै स्पष्ट फरक (sharp contrast) देखाउन सकेको देखिँदैन। कम उमेर भएकै आधारमा नया नेतृत्वको अभिलाषा हो भने प्रचण्ड, ओली, देउबा सँग चेला चपाटी कम छन? 

डॉक्टर केसी नेपालको अन्ना हजाड़े। अरविन्द केजरीवाल बन्न सक्ने सबैभन्दा बढ़ी संभावना रहेको पात्र सीके राउत। झट्ट लाग्न सक्छ देशको आधा भागमा मात्र संगठन सीमित राख्ने ले देश के पो हल्लाउँदो हो। तर दिल्ली त भारतको ५% पनि हो कि होइन। तर डॉक्टर केसी र डॉक्टर सीके बीच पुर्ण रूपेण संवादहीनताको स्थिति छ। केन्द्रले मधेस आन्दोलन प्रति गरेको दमन को उपज हो त्यो संवादहीनता। 

अर्को चुनाव मा (चाहे त्यो छ महिना मा होस अथवा दुई वर्षमा) सीके राउतको जनमत पार्टी ले कस्तो परिणाम देखाउँछ त्यो नै नेपालको राजनीतिको अहम प्रश्न हो। राष्ट्रिय पार्टी बन्दैन भने सीके राउतको राजनीति सकियो। बल्ल बल्ल सानो राष्ट्रिय पार्टी बन्छ भने पाँच वर्ष पर्खिन्छ मात्र। त्योभन्दा ठुलो बन्छ भने मिलीजुली सरकार बनाउने हैसियतमा पुग्छ र जुन जोगी आए पनि कानै चिरेका भन्ने अवस्था सिर्जना हुन्छ। 

निर्दल बहुदल, राजतन्त्र गणतंत्र, एकात्मक व्यवस्था र संघीयता बीच जसरी स्पष्ट फरक (sharp contrast) देखाइयो जनता लाई भ्रष्टाचार को विषयमा नया पुस्ताले त्यसरी नै स्पष्ट फरक (sharp contrast) देखाउन सकेर चुनावलाई जनआंदोलन बनाउन सकेको खण्डमा झापा देखि कंचनपुरसम्म दुई तिहाई ल्याउन सकेको खण्डमा सीके राउत नेपालको इमानुएल मैक्रोन हो। अहिले भने त्यसको संभावना देखिँदैन। सीके ले भ्रष्टाचार को मुद्दा समाएको तर दरो सँग नसमाएको अवस्था छ। प्रचण्डले जति दरो सँग गणतंत्र को मुद्दा समाए, बीपीले जति दरो सँग बहुदल को मुद्दा समाए, सीके ले त्यति नै दरो भ्रष्टाचार को मुद्दा समाउन सक्नुपर्छ।