कुछ मधेसी जागरूक लोगो ने दलितों से माफी मांगने का अभियान चलाया है। सराहनीय बात है। लेकिन क्या यह समस्या का समाधान है?
जातपात पहाड़ में भी है। बाहुनवाद का साप सारे देश के राजनीति को जकेडे हुए है। सबसे बडे तीन पार्टी, देशका पुरा ब्यूरोक्रेसी सब उस साप के सिकनजे में है।
शोसन करने का जिनके पास ताकत ही नहीं, जो खुद अपने आधारभूत अधिकार के लिए लड़ रहे हैं वैसे लोग माफी मांग रहे हैं। ये उनकी महानता है।
जातपात का जो प्रथा है उसके भीतर समानता सम्भव है ही नहीं। तो उस जातपात को जड़ से उखाड़ फेंकने का रास्ता क्या है? इस बात पर विचार विमर्श किया जाए।
No comments:
Post a Comment