Saturday, January 28, 2006

अहिंसाका प्रश्न


चुनाव बिथोल्नेकी बात हो रही है। वो ठीक है। लेकिन उस प्रयासमें हिंसाका प्रयोग गलत होगा। माओवादी और सात पार्टी अभी एक नहीं हुए हैं। और जब तक माओवादी हातहतियार बेगरकी राजनीतिक पार्टी हो नहीं जाते तब तक एक होनेकी कोइ संभावना भी नहीं है, उनको सत्तामें बुलानेकी कोइ गुञ्जायस ही नहीं है।

सात पार्टीओकी ताकत ही अहिंसा रहती आई है। उसको दुत्कार्नेकी कोइ प्रश्न ही नहीं उठती है। अहिंसाके बल पर ही संसदकी पुनर्स्थापना हो सकती है, और वो संसद राजतन्त्रकी समाप्ती तक कर सकती है। सेनाको अपने तहत ला सकती है। माओवादीके साथ शान्ति वार्ता कर सकती है। संविधान सभाकी चुनाव करा सकती है। एक क्रान्तिकारी संसद वो सब कर सकती है।

राजा चुनाव करा रहे हैं, वो लोकतन्त्रके लिए नहीं करा रहे हैं, वो तो जगजाहेर है। और उसका बहिष्कार होना भी बहुत जरुरी है। लेकिन उस बहिष्कारका रुप सिर्फ अहिंसात्मक ही हो सकती है। लोगोके घर घर जा करके बहिष्कारके पक्षमें जनमत सिर्जना करना, यहाँ तककी नेपाल बन्दका आयोजन करना, वहाँ तक भी ठीक है। लेकिन उसके बाबजुद भी अगर कोइ बुथ पर जाते हैं, मतदान करते हैं, तो उनका वो अधिकार बनता है। हम उनका दिल जितनेका प्रयास कर सकते हैं, लेकिन अगर हम विफल होते हैं तो हमे अपनी असफलता स्वीकार करनी ही होगी।

चुनाव तो वैसे ही विफल हो गयी है। सात पार्टी बहिष्कार किए हैं। बहुत ऐसे सीट हैं जहाँ कोइ उम्मीदवारी ही नहीं है। चुनावके दौरान माओवादीका एक हप्ता नेपाल बन्द है। अन्तर्राष्ट्रिय शक्ति कोइ मान्यता नहीं दे रहे हैं चुनावको। लेकिन इस सबके बाबजुद कोइ जनता बुथ पर जानेकी इच्छा करती है तो वो उनका अधिकार बनती है। हम उनको रोकनेकी प्रयास नहीं कर सकते हैं। जिस जनताके अधिकारके लिए हम लड रहे हैं, उन्हीका अपमान नहीं कर सकते हैं।

अहिंसाका प्रश्न बहुत ही जरुरी है। लोकतन्त्र अहिंसाका ही तो अभ्यास है। जिस तरह लोकतन्त्रके लिए किया गया आन्दोलन गैर-लोकतान्त्रिक नहीं हो सकती, ठीक उसी तरह वो हिंसात्मक भी नहीं हो सकती है। जिस आन्दोलनका गन्तव्य ही अहिंसा हो वो हिंसात्मक रुप कैसे धारण कर सकती है?

अहिंसाका मार्ग है लोगोमें चेतना जगानेकी। जो चेतना जगानेमें असमर्थ होते हैं वो हिंसाका रास्ता अख्तियार करते हैं। चेतना न जगा सकनेकी अपनी असफलताको स्वीकार्नेके बदले हिंसाका तान्डव नृत्य मच्चाते हैं।

सात पार्टी अहिंसाका मार्ग छोडे ऐसा कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। लेकिन चेतना जगानेकी अपनी जिम्मेवारीको बेहतर पुरा करनेकी प्रयास कर सकते हैं। हो सकता है हम जो संदेश देना चाह रहे हैं वो जितना स्पष्ट होना चाहिए उतना स्पष्ट नही है। हो सकता है हमें जितना संगठित होना चाहिए उतना संगठित नहीं हैं हम। हो सकता है हमें जितना परिश्रम करना चाहिए उतना नहीं कर रहे हैं हम।

अहिंसाका मार्ग ही वो कारण है जिससे हमें व्यापक अन्तर्राष्ट्रिय समर्थन मिल रहा है। अहिंसाका मार्ग अगर छोडते हैं तो वो अन्तर्राष्ट्रिय समर्थन रफुचक्कर हो जाएगी। हमें वैसी गलती किसी भी हालतमें नहीं करनी है।

चुनाव तो वैसे ही विफल हो गयी है। फरवरीके दुसरे हप्तेमें वो औपचारिक रुपसे विफल होगी। तब इस सत्ता पर सब तरफसे व्यापक दबाब बढेगा। उसका इन्तजार किजिए। धीरज रखिए।

बहुत लोग कहने लगे हैं अब नेपालमें भी फ्रान्सके तरह क्रान्ति होगी। गलत, बिल्कुल गलत। हमें फ्रान्ससे नहीं बल्कि नेल्सन मण्डेलाके दक्षिण अफ्रिका से सबक सिखनी है। दक्षिण अफ्रिकामें जो अत्याचारी लोग सत्तामें थे, मण्डेलाने उन्ही लोगोसे वार्ताके माध्यमसे स्वतन्त्रता ली है। उनके समर्थक लोग डर रहे थे। बहुत लोग सोंच रहे थे कि मण्डेला सत्ताधारी लोगोसे बात करेंगे तो या तो ठगे जाएंगे, या तो सत्ताके लोभमें सिद्धान्तको बेच डालेन्गे। लेकिन वैसा कुछ नहीं हुवा। दक्षिण अफ्रिकामें पूर्ण लोकतन्त्रकी स्थापना हुइ। फर्क ये रहाकी उस पूर्ण लोकतन्त्रकी प्राप्तिमें कोइ गृहयुद्ध नहीं हुवा। लोगोकी जान बची।

अगर नेपालके आन्दोलनमें लोग शहीद होंगे तो वो अमेरिकामें रह रहे नेपाली लोग नहीं होंगे, न ही वो सात पार्टीके नेता लोग होंगे। सडक पर उतरे आम जनताकी मृत्यु होगी। इसि लिए हम ऐसा कोइ रास्ता नहीं अख्तियार कर सकते की जिससे शहीदोकी लाइन लग जाए। हमें गैर जिम्मेवारीपूर्ण ढंगसे नहीं संचालन करनी है ये आन्दोलन।

हमारा लक्ष्य है जनताका राजनीतिक चेतना जगाना। कवि भूपी शेरचनने ठीक ही कहा: "मर कर शहीद हो जानेवालो, जि कर के देखो, जिना और भी मुश्किल है।" इसिलिए मेरा कहना है हम कायर न बने, मुश्किल जिम्मेवारीसे डरके न भागें। अहिंसाके पथ पर डटे रहें।



From The Past Issues Of Janadesh, Maoist Mouthpiece
डा बाबुराम भट्टराईलाई शान्तिको सन्देश
डा बाबुराम भट्टराई: आन्दोलनको उत्कर्ष र त्रस्त सत्ता
मधेशी अधिकारको कुरामा पहाडीहरुको सहभागीता
प्रवासी नेपाली: "नैतिक समर्थन कायम राख्दै भौतिक समर्थन थप्ने।"
भूपि शेरचन, गोपालप्रसाद रिमाल, प्रवर जिसी
मधेशी पहचान
देशव्यापी पम्फलेटिङ
प्रहार गरिहालौं
अइ आन्दोलनमें मधेशी अधिकारके बात
लोकतान्त्रिक गणतन्त्र नै किन?
चुनाव बहिष्कार बाहेक विकल्प छैन: सात दल

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